महाराष्ट्र की हिंदू आक्रोश रैलियाँ विधानसभा चुनाव की तैयारी या कुछ और?

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DMT : महाराष्ट्र  : (22 अप्रैल 2023) : –

सुप्रीम कोर्ट में 30 मार्च को एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस केएम जोसेफ की टिप्पणी पर महाराष्ट्र से कई प्रतिक्रियाएँ आईं.

अपनी टिप्पणी में उन्होंने कहा था, “राज्य सरकार नपुंसक है. राज्य सरकार शक्तिहीन है, वह वक़्त पर कार्रवाई नहीं करती. अगर सरकार ख़ामोश ही रहती है, तो फिर हमें इसकी ज़रूरत ही क्या है?”

जस्टिस जोसेफ और जस्टिस नागरत्ना की बेंच, महाराष्ट्र के अधिकारियों के ख़िलाफ़ अवमानना के एक मामले की सुनवाई कर रही थी. ये अर्ज़ी केरल के रहने वाले एक व्यक्ति ने दाख़िल की थी.

इस याचिका के दाख़िल करने की वजह ये थी कि हाल में महाराष्ट्र में हिंदू संगठनों की रैलियों में जो भाषण दिए गए थे, उनके ख़िलाफ़ अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की थी. याचिकाकर्ता का दावा था कि इन रैलियों में बहुत भड़काऊ भाषण दिए गए थे.

राज्य भर में दर्जनों रैलियाँ कर कौन रहा है?

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इस वक़्त ‘हिंदू जन-आक्रोश मोर्चा’ के नाम से आयोजित की गई कई रैलियों पर बहस छिड़ी हुई है. पिछले कुछ महीनों में महाराष्ट्र में ऐसी कई रैलियां का आयोजन हो रहा है.

इनका आयोजन ‘सकल हिंदू समाज’ नाम का एक संगठन कर रहा है. यह मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो अदालत ने इस पर बेहद तीखी टिप्पणियाँ कीं.

पिछले छह महीनों के दौरान महाराष्ट्र में लगभग 50 ऐसी रैलियाँ आयोजित हो चुकी हैं. अलग-अलग हिंदू संगठनों के नेता और कार्यकर्ता ‘सकल हिंदू समाज’ के झंडे तले इकट्ठे होकर इन रैलियों में शामिल हुए हैं.

राजधानी मुंबई समेत महाराष्ट्र के अलग-अलग शहरों और क़स्बों में हुई इन रैलियों में काफ़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया.

किस तरह के मुद्दे उठाए जा रहे हैं?

इन रैलियों में नेताओं और वक्ताओं ने अपने भाषण में कई विवादित धार्मिक मुद्दों को उठाया है.

रैलियों में ‘लव जिहाद’ या फिर ख़ास तौर से हिंदू लड़कियों और मुस्लिम लड़कों के बीच प्रेम विवाह और ‘ज़मीन जिहाद’ यानी खुली ज़मीन पर धार्मिक इमारतों का निर्माण करने जैसे विवादित विषय शामिल हैं.

इसके अलावा, इन रैलियों में मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की अपील भी की गई.

वैसे, सत्ताधारी संगठन के कुछ सदस्यों, जैसे कि बीजेपी और शिवसेना (शिंदे) के नेताओं और कुछ चुने हुए जनप्रतिनिधियों को भी इन रैलियों में शामिल होते देखा गया है.

मगर, आधिकारिक रूप से बीजेपी और शिंदे गुट ने ख़ुद को इन रैलियों से दूर ही रखा है. कई सामाजिक संगठनों और मुस्लिम समूहों ने इन रैलियों की ये कहते हुए आलोचना की है कि ये सामाजिक सौहार्द्र के ख़िलाफ़ हैं.

क्या ये विधानसभा चुनाव की तैयारी है?

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महाराष्ट्र में अगले एक-डेढ़ साल में कई चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में राज्य का सामाजिक और सियासी माहौल बहुत बुरी तरह ध्रुवीकरण का शिकार हो गया है.

ऐसे में कई पर्यवेक्षक सवाल उठा रहे हैं कि आख़िर ये धार्मिक रैलियां इस वक़्त क्यों आयोजित की जा रही हैं.

इन कार्यक्रमों का संचालन बहुत योजनाबद्ध तरीक़े से किया जा रहा है. ये रैलियां न तो अचानक हो रही हैं और न ही कोई छोटा-मोटा संगठन इन्हें इतने बड़े पैमाने पर आयोजित कर सकता है.

मशहूर लेखक और राजनीतिक विश्लेषक सुहास पलशिकर कहते हैं कि ऐसा लगता है कि इसका मुख्य मक़सद गुजरात या कर्नाटक की तरह ‘हिंदू एकता’ क़ायम करना और यहां भी वैसा ही ध्रुवीकरण करना है.

सकल हिंदू समाज’ ने मुंबई के अलावा, नवी मुंबई, पुणे, कोल्हापुर, नासिक, कराड, सोलापुर, लातूर, नागपुर, छत्रपति संभाजीनगर, धुले, पिंपरी चिंचवाड़, अहमदनगर, जलगांव और दूसरे छोटे क़स्बों में विशाल ‘हिंदू जन आक्रोश मोर्चा’ आयोजित किए हैं.

लेकिन इन सबकी शुरुआत मराठवाड़ा क्षेत्र के परभणी से हुई थी. राज्य में पहली ऐसी रैली पिछले साल 20 नवंबर को परभणी में ही हुई थी.

हालांकि ये रैलियाँ अचानक ही नहीं शुरू हुईं. इसकी शुरुआत श्रद्धा वालकर हत्याकांड के बाद हुई जिसमें मुख्य अभियुक्त एक मुसलमान युवक है.

श्रद्धा, मुंबई के पास वसई की रहने वाली थीं और वो आफताब के साथ लिव-इन में रह रही थीं. दिल्ली पुलिस ने आफ़ताब को पिछले साल नवंबर में ही गिरफ़्तार किया था.

ये संगठन पहली बार ‘सकल हिंदू समाज’ के बैनर तले इकट्ठे हुए थे. पहला जन आक्रोश मोर्चा परभणी में आयोजित किया गया था, जिसका घोषित मक़सद ‘लव जिहाद’ के प्रति जागरुकता पैदा करना था.

पहली रैली में जुटी भीड़ से उत्साहित होकर और मौक़ा मुफ़ीद देखकर, इसके आयोजकों ने पूरे महाराष्ट्र में ऐसी ही रैलियाँ आयोजित करने का फ़ैसला किया.

क्या है बड़े संगठनों की भूमिका?

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विश्व हिंदू परिषद के नेता श्रीराज नायर ने फरवरी में बीबीसी मराठी को बताया था, “महाराष्ट्र में लव जिहाद के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. जब हम ज़मीनी स्तर पर काम करते हैं तो कई माँ-बाप हमारे पास शिकायतें लेकर आते हैं.”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का अनुषांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद भी ‘सकल हिंदू समाज’ का हिस्सा है यानी इन आयोजनों को आरएसएस और बीजेपी का समर्थन हासिल है.

कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन रैलियों में जमा होने वाली भीड़, इनमें लगने वाले नारे, मोर्चा निकाले जाने का रास्ता और इनमें दिए जाने वाले भाषण, सबकी योजना काफ़ी सोच-समझकर तैयार की गई थी.

स्थानीय वक्ताओं के अलावा, महाराष्ट्र के बाहर से भी कई लोग इन रैलियों में भाषण देने के लिए बुलाए गए थे.

तेलंगाना के निलंबित बीजेपी विधायक और भड़काऊ भाषण देने के लिए चर्चित टी राजा सिंह, गुजरात स्थित सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर काजल हिंदुस्तानी, ‘सुदर्शन’ न्यूज़ चैनल के संस्थापक सुरेश चव्हाणके और विवादित धार्मिक नेता कालीचरण महाराज को भी अलग-अलग जगहों पर निकाले गए मोर्चों में आमंत्रित किया गया था.

‘सकल हिंदू समाज’ क्या है?

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ये रैलियां ‘सकल हिंदू समाज’ नाम के मंच पर आयोजित की जा रही हैं. ‘जन आक्रोश मोर्चा’ शुरू होने से पहले इस संगठन का नाम शायद ही किसी ने सुना होगा.

इससे पहले महाराष्ट्र में ‘सकल मराठा समाज’ की चर्चा ज़रूर हुई थी, जिसने मराठा समुदाय को आरक्षण की मांग लेकर रैलियां निकाली थीं लेकिन ‘सकल हिंदू समाज’ एक नया मंच है जो इसी उद्देश्य के लिए खड़ा किया गया है.

‘सकल हिंदू समाज’ कई हिंदू संगठनों का एक संयुक्त मंच है. इनमें से कई संगठन आरएसएस से जुड़े हुए हैं. इस मोर्चे में शामिल संगठनों में विश्व हिंदू परिषद, हिंदू जनजागृति समिति, सनातन संस्था, दुर्गा वाहिनी, बजरंग दल, हिंदू प्रतिष्ठान, श्रीराम प्रतिष्ठान हिंदुस्तान शामिल हैं.

इन सभी को उनके आक्रामक हिंदुत्ववादी नज़रिए के लिए जाना जाता है, और पहले भी कई विवादों में इन संगठनों का नाम आ चुका है.

हिंदू जनजागरण समिति भी सभी हिंदू संगठनों के इस मंच का हिस्सा है. समिति के नेता सुनील घनवत ने बीबीसी मराठी को बताया, “अलग अलग हिंदुत्ववादी संगठनों ने मिलकर सभी ज़िलों में सकल हिंदू समाज का गठन किया है.”

घनवत बताते हैं, “इसमें संघ से जुड़े विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, हमारी हिंदू जनजागरण समिति, श्रीराम सेना, शिव प्रतिष्ठान और बहुत से अन्य संगठन शामिल हैं. हमारी कोई केंद्रीय समिति नहीं है, जो कार्यक्रम तय करती हो. अलग अलग ज़िलों में अलग संगठन अपने हिसाब से ज़िम्मेदारी लेते हैं.”

सुनील घनवत इस बात से इनकार करते हैं कि ये रैलियाँ योजनाबद्ध तरीक़े से आयोजित की जा रही हैं.

वो कहते हैं, “कुछ भी योजनाबद्ध नहीं है. सब कुछ अपने-आप हो रहा है. जहाँ तक मेरी जानकारी है, पहले से कुछ भी तय नहीं था.”

“जब सबने परभणी में हुई पहली रैली को मिला समर्थन देखा तो सभी संगठन, समुदाय और राजनेता अपनी भूमिका और पद को छोड़कर बस एक ‘हिंदू’ के तौर पर एक साथ आए. ये नुस्खा कारगर साबित हुआ और फिर हमने इसे दूसरी जगहों पर दोहराया.”

रैली मेंभाषण देने वाले कौन हैं और वो क्या कह रहे हैं?

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इन रैलियों में जो मांगें उठाई जा रही हैं, उनकी तीखी आलोचना की गई है. रैलियों में मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए और रैलियों में भाषण के दौरान भड़काऊ भाषा इस्तेमाल करने के लिए भी इनकी आलोचना की गई है.

जब काफ़ी हो-हल्ले के बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया, तो कुछ वक्ताओं के ख़िलाफ़ राज्य के अलग-अलग हिस्सों के पुलिस थानों में कई एफआईआर दर्ज की गई.

वैसे तो ‘सकल हिंदू समाज’ का कोई आधिकारिक फेसबुक पेज या यू-ट्यूब चैनल नहीं है. मगर इस मंच में शामिल संगठनों के अलग-अलग सोशल मीडिया पेज पर रैलियों में दिए गए कुछ भाषण और उनकी ख़बरें पोस्ट की गई हैं. इनकी बारीक़ी से पड़ताल करने पर हमें भाषणों में कही गई बातों का सार समझ में आ जाता है.

22 दिसंबर को धुले शहर में आयोजित की गई रैली में सुरेश चव्हाणके भी शामिल हुए थे.

अपने भाषण में उन्होंने कहा, “अगर पुलिस इसकी रिकॉर्डिंग करना चाहती है, तो उसे अपना कैमरा सुरेश चव्हाणके पर नहीं, बल्कि उन मस्जिदों पर लगाना चाहिए, जहाँ जिहादियों को ट्रेनिंग दी जा रही है. जहाँ से ‘लव जिहाद’ के लिए पैसा बांटा जा रहा है.”

उग्र हिंदुत्ववादी चैनल सुदर्शन टीवी के कर्ताधर्ता चव्हाणके ने कहा, “जहां से ‘लव जिहादियों’ को मोटरसाइकिलें मिलती हैं. जहां उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है कि वो हिंदू लड़कियों को कैसे फंसाएं. कैमरे तो मदरसों में लगाए जाने चाहिए जहां ये सिखाया जाता है कि मुसलमानों के सिवा बाक़ी सब ‘काफ़िर’ हैं.”

महाराष्ट्र में कई जगह पर आयोजन के बाद ऐसी ही एक रैली 29 जनवरी को राजधानी मुंबई में आयोजित की गई. ये रैली दादर के शिवाजी पार्क में हुई थी.

इनमें से एक, विवादित नेता और तेलंगाना से बीजेपी के निलंबित विधायक टी. राजा सिंह भी थे. मुंबई के अलावा राजा सिंह को महाराष्ट्र के लातूर और शोलापुर में हुई रैलियों में भी भाषण देने के लिए बुलाया गया था.

‘लव जिहाद’ के ख़िलाफ़ रैली

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मुंबई में अपने भाषण में टी राजा सिंह ने कहा, “महाराष्ट्र की पवित्र भूमि हिंदुओं की है. ये शर्म की बात है कि हिंदुओं की इस भूमि पर हमें लव जिहाद रोकने वाला क़ानून बनाने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है. महाराष्ट्र के हर कोने में पैसे का लालच देकर हमारे दलित और आदिवासी बंधुओं का धर्म परिवर्तन किया जा रहा है. हमारे देवताओं का खुले तौर पर अपमान किया जाता है.”

मुंबई की रैली में एक महिला नेता साक्षी गायकवाड़ लव जिहाद पर लंबी तक़रीर करती दिखाई देती हैं.

वे मंच से मुसलमानों को सीधे संबोधित करते हुए कहती हैं, “होश में आ जाओ. इन हज़ारों हिंदुओं को देखो. वो बलिदान देने से डरेंगे नहीं. मैं अपने सभी नौजवानों से अपील करती हूं कि वो हमारी लड़कियों को वापस लाने के लिए तैयार रहें. अभी तो हमने शुरुआत ही की है.”

जब रैलियों का ये सिलसिला चल रहा था, तो 19 मार्च को एक रैली मुंबई के पास मीरा रोड में भी हुई थी. मीरा रोड मुंबई के उप-नगरीय इलाक़ों का पश्चिमी हिस्सा है. यहां पूरे देश से आए आप्रवासियों का बसेरा है. इनमें से काफ़ी तादाद मुसलमानों की भी है.

इस रैली में ‘सकल हिंदू समाज’ के कई नेता शामिल हुए. इनमें अपने उग्र भाषणों के लिए मशहूर गुजरात की काजल हिंदुस्तानी भी शामिल हुई थीं.

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने इस रैली के बारे में अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि इसमें मीरा-भायंदर की निर्दलीय विधायक गीता जैन और बीजेपी विधायक नीतेश राणे भी शामिल हुए थे.

 इस रैली में खुलकर मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की अपील की गई.

‘हिंदू जनाक्रोश मोर्चा’ में एक और शख़्स का भाषण नियमित रूप से होता है. उनका नाम है- कालीचरण महाराज उर्फ़ अभिजीत सरग. कालीचरण, विदर्भ क्षेत्र के अकोला ज़िले के रहने वाले स्वघोषित धर्मगुरु हैं. कालीचरण का पहले भी कई विवादों से नाता रहा है.

इनमें वो बयान भी शामिल है, जो उन्होंने महात्मा गांधी के बारे में दिया था. बाद में छत्तीसगढ़ की पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ केस दर्ज किया था. कालीचरण महाराज ने नंदुरबार, यवतमाल, बारामती और अहमदनगर समेत कई रैलियों में शिरकत की.

15 दिसंबर को अहमदनगर में हुई रैली का एक स्थानीय यू-ट्यूब चैनल पर सीधा प्रसारण किया गया था. उसमें कालीचरण महाराज ने कहा, “वो आपकी माताओं और बहनों को आपसे छीन रहे हैं. भारत में हर दिन लव जिहाद के 40 हज़ार मामले हो रहे हैं.”

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की एंट्री

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29 जनवरी को मुंबई में हुई रैली के बाद, केरल के एक व्यक्ति ने इन रैलियों में भाषणों पर ‘अल्पसंख्यक विरोधी नफ़रत भरे’ होने का आरोप लगाकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.

अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि वो इन रैलियों में दिए जा रहे भाषणों की वीडियो रिकॉर्डिंग करे. अगर दोबारा नफ़रत भरे भाषण दिए जाएँ, तो उन पर कार्रवाई करे.

उसके बाद, पुलिस ने इन रैलियों की वीडियो रिकॉर्डिंग शुरू की. लेकिन जब इसके बाद भी रैलियों में ऐसे भाषण दिए गए, तो सुप्रीम कोर्ट में अदालत की अवमानना की याचिका दाख़िल की गई.

30 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की तल्ख़ टिप्पणियों के बाद, विपक्षी दलों ने एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली महाराष्ट्र सरकार पर निशाना साधा, जिसमें बीजेपी भी बड़ी भागीदार है.

विपक्ष के नेता अजित पवार ने सरकार पर हमला करते हुए कहा, “जब हम नफ़रत भरे भाषणों पर कार्रवाई करने में नाकाम रहने पर इस सरकार के ख़िलाफ़ बोलते हैं, तो सरकार हमसे नाराज़ हो जाती है. लेकिन अब तो ख़ुद सुप्रीम कोर्ट ने इस सरकार को नपुंसक कहा है.”

बीजेपी नेता और महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अजित पवार को जवाब दिया, “जब हमने सरकार की कार्रवाइयों की जानकारी दी, तो उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना की कार्रवाई नहीं शुरू की.”

“जब सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि अन्य राज्यों में भी ऐसी घटनाएँ हो रही हैं, लेकिन केवल महाराष्ट्र को ही निशाना बनाया जा रहा है, तो अदालत ने एक सामान्य टिप्पणी की कि सभी राज्यों की सरकारों को कार्रवाई करनी चाहिए. तो हमारे ख़िलाफ़ ऐसा कुछ नहीं है. कोई अवमानना नहीं हुई. सिर्फ़ एक वाक्य को ग़लत तरीक़े से पेश किया जा रहा है.”

मुंबई, सोलापुर, लातूर, नासिक और राज्य के अन्य हिस्सों में हुई इन रैलियों को लेकर कई एफआईआर दर्ज की गई हैं. इनमें से कई तो रैलियां होने के कई दिनों बाद दर्ज की गई हैं.

हालांकि, इन रैलियों के आयोजकों में से कुछ का कहना है कि नफ़रत भरे भाषण देकर माहौल ख़राब करने के जो आरोप उनके ऊपर लगाए जा रहे हैं, वो बेबुनियाद हैं.

हिंदू जनजागृति समिति के सुनील घनवत कहते हैं, “ये एक राजनीतिक आरोप है कि हम मुसलमानों के ख़िलाफ़ हैं और हम समाज में बैर-भाव पैदा कर रहे हैं. ये वामपंथियों और उदारवादी राजनेताओं की बदले की राजनीति है.”

लेकिन, मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की उस खुली अपील का क्या, जिसकी ख़बर मीडिया ने दी?

इस सवाल के जवाब में सुनील घनवत ने कहा, “मुझे तो ऐसी कोई अपील सुनने को नहीं मिली. कम-से-कम उन रैलियों में तो बिल्कुल नहीं, जिनमें मैं शामिल हुआ था.”

रैलियों में कई दलों के नेताओं की मौजूदगी

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वैसे तो घोषित तौर पर ‘सकल हिंदू समाज’ सभी हिंदू संगठनों का एक ग़ैर-राजनीतिक मंच है. फिर भी, महाराष्ट्र में सत्ताधारी बीजेपी और शिवसेना (शिंदे) के कई नेता इन रैलियों में शामिल होते और इनका समर्थन करते देखे गए हैं.

इनमें से कई नेता सोशल मीडिया पर खुलकर इन रैलियों के बारे में बात करते हैं. हालांकि बीजेपी ने आधिकारिक तौर पर इन रैलियों से दूरी बना रखी है. मसलन, जब मुंबई के दादर इलाक़े में जन आक्रोश मोर्चा निकला, तो इसमें बीजेपी के कई नेता और पदाधिकारी शामिल हुए थे.

मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष आशीष शेलार, विधायक अतुल भाटखाकर, विधान परिषद के सदस्य प्रवीण दरेकर और चित्रा वाघ इस मोर्चे में शामिल हुई थीं. शिवसेना (शिंदे) के नेता, जैसे कि विधायक सदा सरवनकर और शीतल म्हात्रे भी इस रैली में दिखाई दिए थे.

शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के नेता संजय राउत ने आरोप लगाया कि ये रैलियां ख़ुद बीजेपी आयोजित करा रही है. लेकिन, बीजेपी नेताओं ने कहा कि वो इन रैलियों में केवल एक हिंदू के तौर पर शामिल हो रहे हैं, बीजेपी के प्रतिनिधियों के रूप में नहीं.

मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष आशीष शेलार ने मीडिया को बताया, “हम इन रैलियों में देख सकते हैं कि लोग अपनी बेटियों को इस तरह छीने जाने से कितने नाराज़ और भड़के हुए हैं. वो खुली जगहों पर धार्मिक ढांचे बनाकर सार्वजनिक स्थानों पर क़ब्ज़े का भी विरोध कर रहे हैं.”

मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष कहते हैं, “सरकार अपना काम कर रही है और समुदाय अपने हिसाब से चलेगा. ये तो हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम लोगों के इस ग़ुस्से को अनुशासित तरीक़े से अभिव्यक्त होने दें.”

इस मुद्दे पर कांग्रेस और एनसीपी ने ज़्यादातर ख़ामोशी अख़्तियार कर रखी है. लेकिन, बीजेपी के साथ-साथ हिंदू वोटों की दावेदार रही उद्धव ठाकरे की शिवसेना इन रैलियों के बारे में सक्रियता से बयान देती रही है.

छत्रपति संभाजीनगर में एक रैली में ख़ुद उद्धव ठाकरे ने पूछा था, “जब इस देश का प्रधानमंत्री दुनिया का सबसे ताक़तवर शख़्स और एक हिंदू नेता है, फिर भी अगर हिंदुओं को सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करना पड़ रहा है. तो, फिर इस ताक़त का क्या फ़ायदा है?”

हिंदू रैलियों पर हो रही सियासत

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ज़मीनी स्तर पर ये रैलियां चल ही रही थीं, तभी इनमें उठाए जा रहे मुद्दों की गूंज विधानसभा में भी सुनाई दी. कथित लव जिहाद और धर्मांतरण रोकने के लिए क़ानून बनाने की मांग पर विधानसभा में भी चर्चा हुई.

दिसंबर महीने में महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में एक ‘अंतर्जातीय/अंतर्धार्मिक विवाह और परिवार समन्वय समिति’ बनाने का फ़ैसला किया.

इस समिति का मक़सद ऐसी शादियां करने वाले जोड़ों की जानकारी जुटाना है. 13 सदस्यों की इस समिति का अध्यक्ष, राज्य के महिला और बाल विकास मंत्री और मुंबई से बीजेपी के नेता मंगल प्रभात लोढ़ा को बनाया गया.

जब ऐसी समिति बनाने को लेकर काफ़ी हल्ला-हंगामा हुआ और विरोधियों, महिला अधिकार संगठनों ने इसकी कड़ी आलोचना की, तो सरकार ने एक क़दम पीछे खींचा और समिति के नाम में से ‘अंतर्जातीय’ शब्द हटा दिया.

लेकिन अंतर्धार्मिक शादियों की पड़ताल करने वाली एक समिति अब भी काम कर रही है. आलोचकों का कहना है कि ये लोगों के निजी जीवन में दख़लंदाज़ी है.

हाल ही में ख़त्म हुए विधानसभा के सत्र में बोलते हुए मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा ने सदन में दावा किया कि महाराष्ट्र में ‘लव जिहाद’ के एक लाख से ज़्यादा मामले पाए गए हैं.

लोढ़ा ने कहा, “राज्य के हर ज़िले में विशाल हिंदू रैलियां हो रही हैं. क्या वो महज़ इत्तेफ़ाक़ से हो रही हैं? निश्चित रूप से बिना आग के धुआं नहीं उठता. महाराष्ट्र में लव जिहाद के एक लाख से ज़्यादा मामले हुए हैं.”

विपक्षी दलों के विधायक जैसे कि एनसीपी के जितेंद्र आव्हाड और समाजवादी पार्टी के अबू आज़मी ने मंत्री के बयान में बताई गई संख्या को चुनौती दी. जितेंद्र आव्हाड ने सदन में कहा, ‘राज्य में तीन हज़ार से कुछ ही ज़्यादा अंतर्धार्मिक शादियां दर्ज हैं और उन्हें ‘लव जिहाद’ कहना ग़लत है.’

जब ‘लव जिहाद’ की ये परिचर्चा विधानमंडल के ऊपरी सदन यानी विधान परिषद में पहुंची, तो सरकार ने कहा कि वो सारी संभावनाओं का अध्ययन कर रही है.

गृह मंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, “हमारे पास शिकायतों की सटीक संख्या नहीं है. हमारे संविधान में अंतर्धार्मिक शादियों पर कोई पाबंदी नहीं है और कोई भी इसके ख़िलाफ़ नहीं है. लेकिन ज़ोर-ज़बरदस्ती या फिर धोखे से धर्म परिवर्तन करना गंभीर मामला है.”

धार्मिक ध्रुवीकरण की बढ़ती राजनीति

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अंतर-धार्मिक शादियों की जांच के लिए समिति बनाने के सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ एनसीपी की सांसद सुप्रिया सुले ने समान विचारों वाले राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों की ‘सलोखा या सौहार्द’ समिति की बैठक बुलाई थी.

मुंबई में हुई इस बैठक में 100 से ज़्यादा सामाजिक और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था.

उस मीटिंग में सुप्रिया सुले ने सवाल किया, “मुझे नहीं पता कि ‘लव जिहाद’ से उनका क्या मतलब है. मुझे इसका मतलब नहीं मालूम. जब मैं पढ़ती थी, तो किसी ने मुझे इस बारे में नहीं पढ़ाया.”सुनील घनवत ने कहा, “ऐसा नहीं है कि हिंदू संगठन लव जिहाद के ख़िलाफ़ क़ानून बनाने की मांग कर रहे हैं. सूचना के अधिकार के तहत हमें जानकारी मिली है कि 2008 से 2011 के बीच पुलिस को ऐसी 22 शिकायतें मिली थीं.”

क्या हैं ‘ज़मीन जिहाद’ के आरोप?

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हिंदू नेता, सार्वजनिक बयानों में ‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल तो लंबे समय से कर रहे हैं, लेकिन, इन रैलियों में नया जुमला ‘ज़मीन जिहाद’ या ‘लैंड जिहाद’ का इस्तेमाल हो रहा है.

इन रैलियों में भाषण देने वाले सभी वक्ताओं ने इसका इस्तेमाल किया. इसके ज़रिए वो आरोप लगाते हैं कि शहरों और क़स्बों में खुले सार्वजनिक स्थानों पर क़ब्ज़ा करके वहां मस्जिदें खड़ी की जा रही हैं.

वैसे तो हिंदू संगठन ये जुमला देश के अलग-अलग हिस्सों में पहले भी कई बार इस्तेमाल कर चुके हैं. असम की एक चुनावी रैली में गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसका ज़िक्र किया था और कहा था कि इसके ख़िलाफ़ क़ानून लाया जाएगा. लेकिन, पिछले कुछ महीनों के दौरान ‘हिंदू जन आक्रोश मोर्चों’ में ये शब्द बार-बार उछाले गए हैं.

फरवरी महीने में इस बारे में बीबीसी से बात करते हुए, मुंबई में विश्व हिंदू परिषद के संयोजक श्रीराज नायर ने कहा था, “एक ख़ास समुदाय के लोग सरकारी ज़मीनों पर अवैध रूप से क़ब्ज़ा कर रहे हैं और उस पर धार्मिक इमारतें बना रहे हैं. हम ऐसे अतिक्रमण के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई चाहते हैं. महाराष्ट्र में ज़मीन जिहाद एक नया चलन है, और ये सुरक्षा के लिए भी ख़तरा है.”

जब हिंदू रैलियों और उनमें उठाए जा रहे मुद्दों की चर्चा गर्म हुई, तो सियासी दलों ने भी इन विषयों पर बोलना शुरू कर दिया. राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी इन मुद्दों को उठा लिया.

राज ठाकरे इस वक़्त बीजेपी के नज़दीकी हैं, और वो उग्र हिंदूवादी राजनीति की राह पर चल रहे हैं.

वैसे तो राज ठाकरे ने ‘ज़मीन जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. लेकिन, गुडी पाडवा पर 22 मार्च को मुंबई में हुई रैली में अपने भाषण में राज ठाकरे ने जो मुद्दा उठाया, उस पर ज़ोर-शोर से चर्चा हुई.

उन्होंने मुंबई में माहिम के पास समुद्र में ज़मीन के एक टुकड़े पर बने मज़ार जैसे ढांचे का वीडियो दिखाया और पूछा कि अचानक ये ढांचा उस ज़मीन पर कैसे बन गया, जबकि कुछ महीने पहले तक तो वहां कुछ नहीं था?

इसके बाद, राज ठाकरे ने सरकार को अल्टीमेटम देते हुए कहा, “अगर आप ये ढांचा एक महीने के भीतर नहीं हटाते हैं, तो हम इसके बगल में गणपति का मंदिर बनाएंगे.” स्थानीय अधिकारियों ने अगली सुबह यानी 12 घंटों के भीतर ही ये ढांचा गिरा दिया.

इन रैलियों का आयोजन अभी क्यों?

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वैसे तो हिंदू संगठनों की इन रैलियों में जो मुद्दे उठाए जा रहे हैं, वो ऊपरी तौर पर सांप्रदायिक दिखते हैं और, ये सांप्रदायिक भावनाओं को उभारते नज़र आते हैं. लेकिन, महाराष्ट्र की सियासत पर बारीक़ी से नज़र रखने वाले जानकार मानते हैं कि इन रैलियों के पीछे मज़बूत सियासी कारण हैं.

महाराष्ट्र में हिंदुत्व की विचारधारा को लेकर सियासत कोई नई बात नहीं है. ऐसे में इन जानकारों को लगता है कि सांप्रदायिक आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण से चुनावों में फ़ायदा होगा. सवाल बस ये है कि ये फ़ायदा किसको होगा?

‘हिंदू जन आक्रोश मोर्चा’ निकालने की शुरुआत महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के चार महीने बाद हुई थी. 30 जून, 2022 को एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने शपथ ली थी. इसके बाद से राज्य का सियासी मैदान दो हिस्सों में बंट चुका है.

एक तरफ़ बीजेपी और शिवसेना (शिंदे) है, तो दूसरी ओर महा विकास अघाड़ी (MVA) यानी शिवसेना (उद्धव ठाकरे), एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन है.

मराठा सियासी मैदान पर इस वक़्त ज़बरदस्त राजनीतिक जंग चल रही है. बहुत से लोगों का ये मानना है कि इस वक़्त हो रही हिंदू रैलियों का असर, सूबे की सियासत पर भी पड़ेगा.

राजनीतिक विश्लेषक और लेखक डॉ प्रकाश पवार कहते हैं, “जहां तक वोट हासिल करने का सवाल है, तो महाराष्ट्र में ऐतिहासिक रूप से दो बातें बेहद अहम रही हैं. जाति और धर्म.”

“बीजेपी हमेशा ये चाहती है कि मतदान धार्मिक आधार पर हो और बहुसंख्यक मतदाता हिंदू के तौर पर वोट दें. अगर आप जाति की बात करते हैं, तो इस वक़्त महाराष्ट्र में वो नुस्खा नहीं चल रहा है.”

“मराठा आज चार गुटों में बंटे हुए हैं. ऐसे में एक ही विकल्प बचता है और वो है धर्म. हिंदुत्व का मुद्दा मतदाताओं को धार्मिक आधार पर वोट डालने के लिए प्रेरित करता है. इसीलिए धर्मांतरण विरोधी क़ानून, लव जिहाद और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दे हिंदुत्ववादी राजनीति की अलग-अलग परतें भर हैं.”

डॉ पवार के मुताबिक़, “बीजेपी और महाविकास अघाड़ी के बीच कुल वोटों का अंतर क़रीब तीन प्रतिशत है. मुझे लगता है कि इसी अंतर को पाटने के लिए ये रैलियां आयोजित की जा रही हैं.”

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