यूरोप को अमेरिका का पिछलग्गू बनने से ख़ुद को रोकना चाहिए: मैक्रों

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DMT : यूरोप  : (10 अप्रैल 2023) : –

फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यूरोप को अमेरिका पर अपनी निर्भरता घटाने की सलाह दी है.

साथ ही उन्होंने कहा कि यूरोपीय देशों को ताइवान मुद्दे पर चीन और अमेरिका के बीच नहीं आना चाहिए.

मैक्रों की ये टिप्पणी ऐसे वक़्त में आई है, जब चीन ताइवान से सटे इलाक़े में सैन्य अभ्यास कर रहा है.

बुधवार को ताइवानी राष्ट्रपति साई-इंग वेन और अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव केविन मैकेर्थी से मुलाक़ात के बाद चीन ने शनिवार को ये सैन्य अभ्यास तेज़ कर दिया था.

मैक्रों की चीन यात्रा का मक़सद यूक्रेन समस्या को ख़त्म करने के लिए चीनी नेतृत्व पर दबाव डालना भी है.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाक़ात के बाद बीजिंग से गुआंगचाऊ जाते वक़्त विमान में इंटरव्यू के दौरान मैक्रों ने कहा,” जो समस्याएं हमारी नहीं हैं, उनमें फँस कर यूरोप एक ‘बड़ा जोखिम’ मोल ले रहा है. यही चीज़ यूरोप को इसकी रणनीतिक स्वायत्तता अपनाने से रोक रही है.”

शी जिनपिंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी मैक्रों की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ का समर्थन करती रही है.

यूरोपीय देशों से बातचीत में चीन अक्सर मैक्रों की इस थ्योरी का हवाला देता रहा है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं और उसके विदेश नीति के सिद्धांतकारों का मानना है कि पश्चिमी देशों की ताक़त कम हो रही है और जैसे-जैसे ट्रांस-अटलांटिक रिश्ते कमज़ोर होंगे, यूरोपीय स्वायत्तता की अवधारणा मज़बूत हो जाएगी.

मैक्रों ने अपने इंटरव्यू में कहा,” ये विडंबना ही है कि यूरोप ये मानता है कि वो अमेरिका का अनुयायी है. यूरोप के लोगों को इस सवाल का जवाब ढूंढना चाहिए क्या ताइवान में तनाव बढ़ना उनके हित में है? नहीं. सबसे ख़राब चीज़ तो ये होगी कि हम यूरोपीय लोग इस मुद्दे पर अमेरिका की तरह सोचने लगे और हम अमेरिकी एजेंडे और इस पर चीन की प्रतिक्रिया को देख कर अपने क़दम उठाएं.”

मैक्रों ने कहा, ”यूरोपियन यूक्रेन संकट का हल नहीं निकल पा रहे हैं, ऐसे में ताइवान मुद्दे पर हम ऐसे कह सकते हैं कि देखो अगर तुमने कुछ ग़लत किया तो हम पहुंच जाएंगे, तनाव बढ़ाने का सचमुच ये एक तरीक़ा हो सकता है.”

हालांकि मैक्रों की इस इंटरव्यू पर व्यापक प्रतिक्रिया हुई है.

नेटो में यूरोप के पूर्व राजदूत इवो डालदर ने ट्वीट कर कहा,”मैक्रों यूरोप को उस समस्या में उलझने से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं, जो उसकी नहीं है. लेकिन उन्हें यूरोप की समस्या सुलझाने के लिए अमेरिकी सैन्य प्रतिबद्धताएं ठीक लगती हैं. ये रणनीतिक ‘स्वायत्तता’ नहीं है. ये रणनीतिक बकवास है.”

राजनीतिक विज्ञानी ईयान ब्रेमर ने लिखा, ”यूरोप को अमेरिका नहीं चीन पर अपनी निर्भरता घटानी चाहिए.”

प्रोफेसर एंद्रिस फल्दा ने लिखा, ”अमेरिका और चीन पर मैक्रों के बयान परेशानी पैदा करने वाले हैं. वो हम जैसे लाखों यूरोपीय का पक्ष नहीं ले रहे हैं जो लोकतंत्र और मानवाधिकार में विश्वास करते हैं. हमें चीन को ताइवान को हड़पने से रोकना होगा.”

पूर्व शतरंज चैंपियन और मानवाधिकार कार्यकर्ता गैर कास्पारोव ने ट्वीट किया, ” हमेशा की तरह मैक्रों दयनीय साबित हुए हैं. चीन के तानाशाह से मिलने के बाद तो वो और दयनीय दिख रहे हैं. पुतिन ने जब पहली बार 2014 में यूक्रेन पर हमला किया था तो यूरोप इस समस्या में नहीं उलझना चाहता था. लेकिन अब वो लड़ाई लड़ रहा है. अलग-थलग रहने की नीति नाकाम रहती है. ”

बेंजामिन टेलिस ने मैक्रों की इस टिप्पणी कर कहा, ”अगर आपको लगता है कि लोकतंत्र के लिए लड़ना आपका काम नहीं है. अगर आप ये सोचते हैं कि एक बड़ी अधिनायकवादी ताकत का अपने पड़ोसी को दबाना ठीक है. तब तो हम कुछ नहीं कहना है.”

”आप यूरोप के लिए नहीं बोल रहे हैं. आपने ऐसा किया भी नहीं है. ऐसा ही रुख रहा तो आपके पास अब वो यूरोप नहीं होगा जो आगे बढ़ कर नेतृत्व करे.”

फ़्रांस का संकट और चीन का साथ

मैक्रों ने ऐसे वक़्त में यूरोप की रणनीतिक स्वायत्तता की बात दोहराई है, जब फ़्रांस में पेंशन सुधार बिल के ख़िलाफ़ जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहे हैं.

इस सप्ताह की शुरुआत में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारी दुनिया के सबसे बड़े एसेट मैनेजमेंट फंड ब्लैकरॉक के पेरिस स्थित मुख्यालय के सामने के सामने जमा हो गए थे. प्रदर्शनकारियों ने वहाँ कंपनी के कॉरपोरेट दफ्तरों की लॉबी में आग लगा दी थी.

प्रदर्शनकारियों का कहना था कि कंपनी पब्लिक सर्विस पेंशन और वेलफेयर स्कीमों में कटौती से मुनाफ़ा कमा कर रही है.

फ़्रांस की अर्थव्यवस्था में संकट को देखते हुए मैक्रों चीन से अपने देश के संबंध और मज़बूत करने की वकालत कर रहे हैं. वे यूरोपीय यूनियन और चीन के रिश्तों में एक नए अध्याय की शुरुआत के पक्ष में है.

दूसरी ओर अमेरिका से अपने रिश्ते ख़राब होने बाद चीन को भी यूरोपीय बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी और बढ़ाने की चिंता हैं.

मैक्रों से अपनी बातचीत में चीनी राष्ट्रपति ने शी जिनपिंग ने फ्रांस से अपना द्विपक्षीय कारोबार और बढ़ाने का वादा किया. उन्होंने दोनों देशों के बीच एयरोस्पेस, एग्रीकल्चर, क्लाइमेट चेंज और बायोडाइवर्सिटी के मुद्दे पर बढ़ते सहयोग को सराहा.

फ्रांस की नाराज़गी

दरअसल फ्रांस और अमेरिका के रिश्ते काफ़ी पुराने रहे हैं. अमेरिका ब्रिटेन से अपनी आज़ादी में फ़्रांस के सहयोग को मान्यता देता रहा है. लेकिन हाल के दिनों में फ्रांस और अमेरिका के राजयनिक रिश्तों में खटास भी देखने को मिली है.

दो साल पहले ये तनाव तब दिखा जब ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस से 66 अरब डॉलर की पनडुब्बी सौदा रद्द कर अमेरिकी कंपनी को इसकी सप्लाई का ठेका दे दिया था.

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने आरोप लगाया था कि पनडुब्बी समझौते को लेकर ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने उनसे झूठ कहा था.

जब इमैनुएल मैक्रों से पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि स्कॉट मॉरिसन झूठ बोल रहे थे तो उन्होंने कहा, “मुझे सिर्फ़ लगता नहीं है बल्कि मैं ये जानता हूं.”

इसके चलते ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस के संबंधों में भी तनाव आ गया था.

इस फ़ैसले पर फ़्रांस ने नाराज़गी जाहिर करते हुए इसे ‘पीठ में छुरा घोंपने’ जैसा कहा था. फ्रांस ने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूत भी वापस बुला लिए थे.

फ़्रांस 2 टेलीविज़न को दिए इंटरव्यू में फ़्रांस के विदेश मंत्री ज्यां य्वेस ले ड्रायन ने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया पर ‘छल करने, भरोसा तोड़ने और अपमानित करने का आरोप’ लगाया था.

ऑकस समझौते के तहत अमेरिका ऑस्ट्रेलिया को परमाणु शक्ति से लैस पनडुब्बियों के निर्माण की टेक्नोलॉजी मुहैया कराने जा रहा है.

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