लोकतंत्र का नया मंदिर और सड़कों पर घसीटी जाती महिला पहलवान: आँखों देखी

Hindi New Delhi

DMT : नई दिल्ली : (29 मई 2023) : –

रविवार, 28 मई. सुबह के 8 बजे का समय.

टीवी स्क्रीन पर दृश्य: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह से पहले की पूजा-अर्चना में हिस्सा लेते हुए, राज-धर्म के प्रतीक सेंगोल को लोकसभा में स्थापित करते हुए.

क़रीब 3 घंटे बाद, 11:15 बजे

स्थान: नए संसद भवन से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर जंतर मंतर.

जंतर-मंतर में प्रदर्शन कर रही महिला पहलवानों तक पहुँचना आसान नहीं था. प्रदर्शन-स्थल तक जाने वाली सड़क की सुबह से नाकाबंदी कर दी गई थी. बहुत से मीडिया कर्मियों को भी वहां से लौटाया जा रहा था.

किसी तरह जब हम प्रदर्शन स्थल के क़रीब पहुंचे तो देखा कि जंतर-मंतर का पूरा इलाक़ा एक पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका था. सैंकड़ों की तादाद में दिल्ली पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स के कर्मचारी नज़र आए. माहौल ऐसा था मानो कुछ बड़ा घटने वाला है.

महिला पहलवानों के तंबू से कुछ आवाज़ें आने लगीं. थोड़ा क़रीब जाकर देखा तो पाया कि हाथों में भारत का झंडा उठाए प्रदर्शनकारी इंक़लाब ज़िंदाबाद के नारे लगा रहे हैं.

कुछ ही मिनट बाद ये लोग पुलिस बैरिकेडों के किनारे से निकलकर मुख्य सड़क पर आने की कोशिश करने लगे. पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स के कर्मियों ने प्रदर्शनकारियों की धरपकड़ शुरू कर दी.

उसी वक़्त अचानक से जानी-मानी पहलवान साक्षी मालिक भीड़ को चीरती हुई निकली और तेज़ी से आगे बढ़ने लगीं. ठीक इसी वक़्त महिला पुलिसकर्मियों ने उनके चारों तरफ़ एक घेरा बना लिए और उन्हें दबोचने के कोशिश करने लगीं. साक्षी के आस-पास प्रदर्शनकारियों की भीड़ भी बढ़ने लगी लेकिन पुलिसकर्मी उन्हें धर दबोचने में कामयाब हो गए.

पूरे इलाक़े में कोलाहल मच चुका था. दिल्ली पुलिस का एक अधिकारी एक ऐसी गाड़ी से लगातार घोषणाएं करता दिखा जिसकी छत पर लाउडस्पीकर लगे हुए थे.

वो अधिकारी बार-बार यही बात दोहरा रहा था, “हम आपको सूचित कर रहे हैं कि कोई भी ऐसा कार्य जो देश विरोधी है, ग़लत है वो स्वीकार्य नहीं होगा. उचित कार्रवाई की जाएगी. आप लोग ऐसा न करें. हमारे लिए ये एक गर्व का क्षण है कि हमारा नया संसद बना है और जिसका आज उद्घाटन भी हुआ है. आपसे विनती है कि शांति-व्यवस्था बनाए रखें, क़ानून को अपने हाथ में न लें. किसी भी तरह का देश-विरोधी प्रचार न करें. आप नारेबाजी न करें.”

कुछ ही देर बाद साक्षी मालिक वापस अपने तंबू की तरफ जाती दिखीं. जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने कहा, “हम कोई ग़लत काम नहीं कर रहे थे. हम शांतिपूर्वक आगे बढ़ रहे थे. हमने कहा था कि हम शांतिपूर्वक मार्च करेंगे. लेकिन आगे बैरिकेड लगाए हुए थे. ज़बरदस्ती हमें पीछे धकेल दिया गया और डिटेन कर लिया गया.”

हमने साक्षी से जानना चाहा कि उनकी आगे की कार्रवाई क्या होगी. उनका जवाब था, “आगे की कार्रवाई यही है कि धरना जारी रहेगा.”

इस पूरे मामले में विपक्ष और नागरिक संगठनों ने पुलिस कार्रवाई की आलोचना की है, सोशल मीडिया पर भी ये मुद्दा दिन भर छाया रहा हालांकि सरकार और बीजेपी की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आयी है.

इसी बीच दर्जनों प्रदर्शनकारियों को बसों में ठूंस दिया गया था. ऐसी ही बस की खिड़की से लटकते एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “आप देख लीजिये. एक लोकतांत्रिक देश में अब हम विरोध प्रदर्शन भी नहीं कर सकते. हम पैदल चल कर नए संसद भवन तक जाना चाहते थे. हमारा विरोध शांतिपूर्ण था. लेकिन यहाँ जो भी हो रहा है वो लोकतंत्र को ख़त्म कर देने जैसा है.”

उसी बस की एक और खिड़की पर हमें एक युवक नज़र आया जिसके कुर्ते की बांह पुलिस के साथ हुई धक्कामुक्की में फट गई थी.

इस युवक ने कहा, “आज जिस संसद का उद्घाटन किया गया उसके लिए हमने पूरे देशवासियों को साधुवाद दिया. लेकिन जिस संसद में बैठ कर बृज भूषण शरण सिंह जैसे सांसद हमारी बहन-बेटियों के साथ यौन-उत्पीड़न करता है, तो ये संसद मौन कैसे हो सकती है? संसद को संचालित करने वाले मौन कैसे हो सकते हैं, संसद में बैठने वाली महिला सांसद कैसे मौन हो सकती हैं? यही आवाज़ तो हम उठा रहे हैं. हमने ऐसा क्या कर दिया कि इतनी बुरी तरह से हमें प्रताड़ित कर यहाँ से ले जाया जा रहा है. हमारी आवाज़ को दबाने का काम किया जा रहा है.”

इस युवक का कहना था कि जब तक उनके जिस्म में जान रहेगी तब तक वो ये लड़ाई लड़ते रहेंगे.

उन्होंने कहा, “ये लड़ाई सिर्फ साक्षी मालिक और विनेश फोगाट की नहीं है. ये लड़ाई लाखों-करोड़ों बेटियों की है जो देश के लिए कुछ करना चाहती हैं, तिरंगे का मान-सम्मान बढ़ाना चाहती हैं. आज देश की अस्मिता का सवाल है. देश की बहन बेटियों का सवाल है. अगर इनको न्याय नहीं मिला तो शायद ही देश की कोई बेटी ये उम्मीद कर पाएगी कि हम भी अन्याय के ख़िलाफ़ खड़े हो सकते हैं.”

इस युवक का गुस्सा और दर्द उसकी बातों में साफ़ झलक रहा था. उन्होंने कहा, “जो बेटी-बचाओ बेटी पढ़ाओ की बात करते हैं, महिला सम्मान की बात करते हैं वही लोग जब जंतर मंतर पर बैठी बेटियों को न्याय नहीं देते और उनके मनोबल को तोड़ने का काम करते हैं, तो ये मानसिकता हिंदुस्तान की जनता को पता चलनी चाहिए. सरकार जितना चाहे दमन कर ले लेकिन हम अहिंसा का रास्ता पकड़ कर इनकी हर हिंसा का जवाब देते हुए आगे बढ़ते रहेंगे.”

इसी घटनाक्रम के दौरान हमें उत्तर प्रदेश के मेरठ और मुज़फ्फ़रनगर से आई कुछ ऐसी महिलाएं मिलीं जो महिला पहलवानों का समर्थन करने पिछली रात ही दिल्ली पहुंची थीं.

मेरठ से आई गीता चौधरी भारतीय किसान यूनियन के साथ जुड़ी हुई हैं.

उन्होंने कहा, “पुलिस वालों ने हमारे साथ धक्कामुक्की की. ये सरकार की तानाशाही है. इसका जवाब हम 2024 में देंगे. अगर देश का मान बढ़ाने वाले पहलवानों के साथ ये हो रहा है तो आम आदमी के साथ क्या होगा? महिलाएं अपने हक़ के लिए लड़ रही हैं. जो अपराधी है उसे क्यों नहीं पकड़ पा रहे. बृजभूषण सिंह सरकार का नुमाइंदा है इसलिए उसके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है.”

कुछ ही देर में ज़्यादातर प्रदर्शनकारियों को बसों में भरकर ले जाया जा चुका था. जंतर-मंतर में भीड़ सिर्फ़ पुलिस और मीडियकर्मियों की ही बची थी. लेकिन कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई थी.

देखते ही देखते उस तंबू को उखाड़ फेंका गया जिसमें महिला पहलवान पिछले 35 दिनों से रह रहीं थी. उस तंबू के अंदर का सामान–कम्बल, गद्दे इत्यादि भी एक-एक कर हटा दिए गए और गाड़ी में लाद दिए गए.

ये साफ़ था कि प्रशासन की मंशा प्रदर्शनकारियों को वापस प्रदर्शन-स्थल पर बैठने देने की नहीं थी.

प्रदर्शनकारियों के समर्थन में जुटे सामाजिक कार्यकर्त्ता अतुल त्रिपाठी ने कहा, “जब नए संसद भवन का अनावरण हो रहा है उसी दिन देश की शान पहलवान बेटियों को कुचला जा रहा है. ये लोकतंत्र की हत्या है. आज का दिन भारत के इतिहास में एक काले धब्बे के रूप में याद रखा जाएगा. आज दिल रो रहा है इस अत्याचार और दमन को देख कर जब देश की बेटियों को ऐसे घसीटा जा रहा है. देश इस बात को स्वीकार नहीं करेगा.”

जैसे-जैसे वक़्त गुज़रा, जंतर मंतर पर लोगों की गिनती नाम मात्र रह गई. एक ऐसी ख़ामोशी छा गई जो शायद अपने अंदर सिमटे तूफ़ान को छुपा रही थी.

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