वो कश्मीरी पंडित परिवार जिसे मुसलमानों ने घाटी नहीं छोड़ने दिया

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DMT : श्रीनगर : (15 मार्च 2023) : –

कश्मीरी पंडित बद्रीनाथ भट्ट अपने गांव लार की तीन मंज़िला मकान की निचली मंज़िल में कश्मीरी फ़िरन पहने उम्मीद और नाउम्मीदी की ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं. लार श्रीनगर से क़रीब तीस किलोमीटर दूर एक गांव है.

जब मैं वहां पहुंचा तो 78 वर्षीय बद्रीनाथ भट्ट मुझे देख कर मकान से बाहर आए और मोहब्बत के साथ मुझे भीतर ले गए.

उनकी बैठक में कई हिन्दू धार्मिक किताबें, हिंदी में पवित्र क़ुरान और भगवान शिव की एक तस्वीर साथ रखी थी.

बद्रीनाथ उन कश्मीरी पंडितों में से हैं जिन्होंने कुछ अन्य कश्मीरी पंडितों की तरह ही कश्मीर से कभी पलायन नहीं किया.

बद्रीनाथ भट्ट ने बताया कि उन्होंने कश्मीर क्यों नहीं छोड़ा.

उन्होंने कहा, “अपनी जन्मभूमि को कभी नहीं छोड़ना चाहिए. मेरे दिल ने कभी इस बात का साथ नहीं दिया कि मैं कश्मीर से पलायन करूं.”

वे कहते हैं, “दूसरी बात ये कि बहुसंख्यक समुदाय का हमारे साथ रवैया बहुत अच्छा रहा है. हमारे शास्त्रों में भी लिखा है कि अपनी जन्मभूमि से दूर नहीं जाना चाहिए. ये दो मुख्य कारण थे कि हमने कश्मीर नहीं छोड़ा.”

बद्रीनाथ के लार गांव में इस समय कुल छह कश्मीरी पंडित रहते हैं जो एक-दूसरे के रिश्तेदार और पड़ोसी हैं.

लार गांव में कुल पच्चीस कश्मीरी पंडितों के परिवार रहते थे.

बद्रीनाथ के दो बेटे सरकारी नौकरी करते हैं और वे ख़ुद एक रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी हैं.

सरकार ने इनकी सुरक्षा के लिए कुछ पुलिसकर्मियों को तैनात किया है. मकान के बाहर रात को नुकीली तारें बिछाई जाती हैं.

यहां आस-पास छह कश्मीरी पंडितों के मकान हैं जिसके इर्द-गिर्द केवल मुसलमानों की आबादी है.

1998 में गांदरबल के वंधहामा क़स्बे में 23 कश्मीरी पंडितों की हत्या की गई थी. इन हत्याओं के लिए चरमपंथी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को ज़िम्मेदार ठहराया गया था.

1989 में कश्मीर में चरमपंथ शुरू होने के बाद कई कश्मीरी पंडितों की चरमपंथियों ने हत्या की जिसके बाद कश्मीर से पंडितों का पलायन शुरू हुआ था.

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (केपीएसएस) के मुताबिक़, कश्मीर में ऐसे 800 कश्मीरी पंडित परिवार हैं जो कश्मीर छोड़कर नहीं गए.

बद्रीनाथ की पत्नी ललिता भट्ट घर के किचन में अपने रोज़ाना की तरह कामकाज में व्यस्त थीं. बातों को साझा करने में उन्हें हिचकिचाहट महसूस हो रही थी.

हालांकि वो उन्होंने हमसे कहा, “हम यहाँ अपने मुसलमान पड़ोसिओं के साथ बड़े प्रेम से रहते हैं. उनकी माएं, बेटियां मेरे पास आती हैं और मैं उनके घर जाती हूं. मैं हमेशा ये कहती हूं कि पहले पड़ोसी हैं, फिर रिश्तेदार.”

वे बताती हैं, “हाल ही में हमारा त्योहार था. कई पड़ोसी हमारे घर आए. वो चाय पीकर गए, अखरोट लेकर गए. हम पड़ोसी आपस में एक-दूसरे के साथ सालन शेयर करते हैं. किसी की शादी हो, कोई मर जाए या किसी का जन्म हो, हम उस समय एक-दूसरे के घर आते-जाते हैं.”

बीते डेढ़ सालों के दरम्यान कश्मीर में कश्मीरी पंडितों को एक बार निशाना बनाने के मामले सामने आए हैं.

मुसलमान बिरादरी ने हमें जाने नहीं दिया

हाल के दिनों में दक्षिण कश्मीर में एक कश्मीरी पंडित संजय शर्मा की हत्या की गई. संजय शर्मा उन कश्मीरी पंडितों में थे जिन्होंने कश्मीर से पलायन नहीं किया था.

इन हत्याओं के बाद कश्मीर से अब तक पलायन नहीं किए पंडित परिवार भी ख़ौफ़ में आ गए.

बद्रीनाथ बताते हैं, “ये जो कश्मीरी पंडितों की हत्या हो रही है, ऐसे हालात में अंदर एक ख़ौफ़ तो है. सोचते हैं कि पता नहीं कौन आएगा, क्या होगा, किस को कब मरना है, कौन मार डालेगा. लेकिन अब तक कुछ सोचा नहीं है कि अपना गांव छोड़कर जाएं या नहीं. अभी तो हम बैठे हैं. देखते हैं कि भगवान को क्या मंज़ूर है.”

ये पूछने पर कि आपको डर किससे लगता है. बद्रीनाथ कहते हैं, “यहां के मुसलमान ख़ुद डर में हैं. उन्हें इस बात का डर है कि अगर कोई आएगा तो वो हम सबको नुक़सान पहुंचाएगा.”

बद्रीनाथ के घर के बगल में ही उनके बड़े भाई पंडित सोमनाथ भट्ट रहते हैं. सोमनाथ उस समय को याद करते हैं जब कश्मीर से पंडितों ने पलायन करना शुरू किया था, लेकिन ख़ुद उन्होंने कश्मीर से पलायन नहीं किया था.

उस वाक़ये को याद करते हुए वे बोले, “हमने भी कई बार कश्मीर से पलायन करने की कोशिश की. लेकिन, मुसलमान बिरादरी ने हमें जाने नहीं दिया. उन्होंने कहा कि अगर हम कश्मीर छोड़कर जाएंगे तो वह भी हम लोगों के साथ ही निकलेंगे.”

वे कहते हैं, “मुसलमान बिरादरी ने कहा कि अगर कभी कोई आप लोगों को नुक़सान पहुंचाने आ गया तो उस समय हम साथ मरेंगे. ये सब देख कर हमने सब सह लिया और ख़ुशी से यहां रहने लगे.”

बीते साल प्रधानमंत्री पैकेज (पीएम) के तहत काम करने वाले एक कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की संदिग्ध चरमपंथियों ने बडगाम में उनके सरकारी दफ़्तर के अंदर गोली मार कर हत्या कर दी थी.

उसके बाद कश्मीर में पीएम पैकेज के तहत नौकरी करने वाले कश्मीरी पंडितों ने धरना-प्रदर्शन शुरू किया और सरकार से मांग की कि उन्हें कश्मीर से बाहर तैनात किया जाए.

क़रीब छह महीनों तक प्रदर्शन करने के बाद इन पंडित कर्मचारियों ने अपनी हड़ताल वापस ले ली.

पीएम पैकेज के तहत काम करने वाले कश्मीरी पंडितों की संख्या चार हज़ार से अधिक है और इन्हें कई ज़िलों में ट्रांजिट कैंप में रखा गया है.

किस तरह की मुश्किलें होती हैं?

शादी और धार्मिक रस्मों को पूरा करना बद्रीनाथ जैसे पंडितों के लिए आसान काम नहीं है.

बद्रीनाथ कहते हैं कि मुसलमानों के प्यार और अपनी मज़हबी आज़ादी के बावजूद कुछ कमियों को वे महसूस करते हैं.

वे कहते हैं, “कोई मरता है तो अंतिम संस्कार करने के लिए बंदे को जम्मू के बदरवाह से लाना पड़ता है. शादी के लिए लड़का या लड़की को तलाश करना बहुत मुश्किल काम होता है. लड़का मिलता है तो लड़की नहीं मिलती है. लड़की मिलती है तो लड़का नहीं मिलता है. लड़का या लड़की तलाश करने के लिए जम्मू जाना पड़ता है. इस तरह की मुश्किलें तो पेश आती ही हैं.”

साथ ही सोमनाथ कहते हैं कि जब हमारा कोई मरता है तो हमारे पड़ोसी मुसलमान ख़ुद सब काम हाथ में लेकर उसे अंजाम देते हैं.

वह बताते हैं, “ऐसे मौक़े पर मुसलमान भाई एक तरह से हर ज़िम्मेदारी अपने हाथों में लेते हैं.”

हालांकि बद्रीनाथ एक ओर शिकायत करते हैं कि आज तक जितनी भी हुकूमतें आईं, उनके लिए कुछ नहीं किया. वहीं दूसरी ओर यह भी बताते हैं कि उनके ज़िले के एक पूर्व विधायक ने बीते चार वर्षों में उनके कई काम किए.

वे बताते हैं, “हमारे यहां मंदिरों की हालत ख़राब हो गई थी जिनकी मरम्मत अब जा कर की गई है.”

बद्रीनाथ के घर के आंगन में एक छोटा-सा मंदिर बना है और गांव में भी दो बड़े मंदिर हैं. गांव में मौजूद शिव मंदिर को दिखाने के लिए बद्रीनाथ मुझे अपने साथ वहां ले गए. रास्ते में कई मुसलमानों के साथ उन्होंने गर्मजोशी से बात की और एक-दूसरे का हाल पूछा.

बद्रीनाथ ने बताया कि पूजा के लिए वे गांव के इस शिव मंदिर में हर दिन जाते हैं.

शिव मंदिर के बाहर बद्रीनाथ की मुलाक़ात एक स्थानीय मुसलमान अब्दुल अज़ीज़ से हुई.

अज़ीज़ ने मुझे बातचीत में बताया कि वे बद्रीनाथ को बीते 30 वर्षों से जानते हैं.

उनका कहना था, “बीते तीस वर्षों से इन पंडितों के साथ मेरे संबंध रहे हैं. इन पंडितों ने हमेशा मुझे राहत दी है. कभी भी इनसे कुछ कहता हूं तो ये मेरी बात को समझते हैं और मानते हैं. हम एक-दूसरे के घर आते-जाते हैं. मेरी कोई मुश्किल होती है तो इनको बताता हूं. मुसलमान पर उतना भरोसा नहीं है जितना इन पर है. इनका कोई भी काम होता है तो ये मुझे बताते हैं.”

अनुच्छेद 370 हटने से क्या बदला?

ये पूछने पर कि अनुच्छेद 370 के हटाने के बाद बीते तीन वर्षों में उनके लिए क्या बदला है, सोमनाथ कहते हैं कि उनके लिए कुछ भी नहीं बदला है. वे पूछते हैं कि अगर कुछ बदला होता तो फिर चरमपंथ ख़त्म क्यों नहीं हुआ?

उनका ये भी कहना था, “ये तो सियासी मसला है और ये सियासतदान ही जानते हैं, हमारे लिए तो कुछ भी नहीं बदला है, हम जैसे थे वैसे ही हैं.”

सोमनाथ पेशे से एक किसान हैं और गांव में अपनी खेती करते हैं.

हाल के दिनों में जब पुलवामा में कश्मीरी पंडित संजय कुमार की हत्या की गई थी तो कश्मीर में काम करने वाले नॉन माइग्रेंट कश्मीरी पंडितों के संगठन कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टीको से बीबीसी ने फ़ोन पर पूछा था कि आप लोगों (नॉन माइग्रेंट कश्मीरी पंडित) की सरकार से क्या मांग है.

इस पर उनका कहना था, ”हम सरकार से ये मांग कर रहे हैं कि नॉन माइग्रेंट कश्मीरी पंडितों के लिए अलग से हर ज़िले या श्रीनगर में ट्रांज़िट कैंप बनाए जाएं और अगर हालात अधिक ख़राब होते हैं तो हम लोगों को वहां शिफ़्ट किया जाए.

हालांकि, बद्रीनाथ ट्रांज़िट कैंप जैसे सुझाव से संतुष्ट नज़र नहीं आ रहे हैं.

वे कहते हैं, ”ये मेरे निजी विचार हैं. मैं एक किसान हूं और कश्मीरी पंडित हूं. मेरे पास ज़मीन और बाग़ हैं. इस ज़मीन पर हम साल भर खेती करते हैं. मैं अगर श्रीनगर रहने चला गया तो वहां क्या खाऊंगा? ऐसे लोग जा सकते हैं जिनके पास ज़मीन नहीं है.”

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