हाथरस: अभियुक्तों के बरी होने पर क्या कह रहे हैं लड़की के परिजन?

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DMT : हाथरस  : (03 मार्च 2023) : –

2020 के हाथरस की दलित युवती के कथित हत्या और बलात्कार के मामले में हाथरस की अदालत ने एक अभियुक्त को दोषी पाया है और तीन अन्य को बरी कर दिया है.

अदालत के फ़ैसले की सबसे ख़ास बात यह है कि अदालत ने किसी को भी लड़की की हत्या और बलात्कार का दोषी नहीं पाया.

अभियुक्त संदीप को ग़ैर-इरादतन हत्या और एससीएसटी एक्ट की धाराओं के तहत दोषी पाया गया और उन्हें उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई.

इस फ़ैसले के बाद बीबीसी की टीम पीड़िता के परिवार से मिलने हाथरस में उनके गाँव पहुँची.

हत्या और बलात्कार का मामला क्यों नहीं बन पाया?

हाथरस के विशेष न्यायाधीश त्रिलोक पाल सिंह ने अपने फ़ैसले में लिखा है, “इस प्रकरण में पीड़िता घटना के आठ दिन बाद तक बातचीत करती रही हैं और बोलती रही हैं.”

“इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि अभियुक्त का आशय निश्चित रूप से पीड़िता का हत्या करने का रहा था. इसलिए अभियुक्त संदीप का अपराध ग़ैर-इरादतन हत्या की श्रेणी में आता है ना ही हत्या की श्रेणी में आता है.”

बलात्कार के आरोप से भी सभी को बरी कर देने पर अदालत ने कहा, “उस संबंध में मेरा विचार है कि साक्ष्य की उपरोक्त विवेचना में पीड़िता के साथ बलात्कार होना साबित नहीं हुआ है तथा अभियुक्तगण रवि, रामू व लवकुश के द्वारा पीड़िता के साथ कथित रेप भी नहीं पाया गया है. इसलिए सभी आरोपी बलात्कार के आरोप से दोषमुक्त किए जाने योग्य हैं.”

अदालत के अनुसार अभियुक्त संदीप सिसौदिया के ख़िलाफ़ ग़ैर-इरादतन हत्या और एससीएसटी एक्ट की धाराओं के तहत “संदेह से परे सबूत पाए गए हैं” और इसीलिए उन्हें उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गई है.

पीड़िता परिवार: न्याय तो सिर्फ़ जाति देख कर मिलता है

जब बीबीसी और अन्य मीडिया टीमें पीड़िता के परिवार के घर पहुँची तो सीआरपीएफ़ और सुरक्षा के कड़े घेरे में रह रहा परिवार बाहर आया.

परिवार की बहू ने हाथ जोड़ कर सुरक्षाकर्मियों से कहा कि इन्हें (मीडिया को) अंदर आने दीजिए, आज तो हमें अपने मन की बात करने दीजिए.

बाद में मीडिया को घर के अंदर जाकर उन लोगों से बात करने की अनुमति दी गई.

पीड़िता की भाभी ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, “हमें इन्साफ़ नहीं मिला. सिर्फ़ उस एक लड़के को मोहरा बनाया गया है.”

उनका कहना था, “यह दबाव में फ़ैसला हुआ है, सबूतों और गवाहों के बुनियाद पर नहीं हुआ है.”

वो कहती हैं कि अदालत में उन्होंने वकीलों को यह कहते सुना, “एक भंगी की लड़की के लिए चार-चार बलिदान थोड़ी ना दे दिए जाएंगे. वहां ऐसी-ऐसी बातें हो रही थीं.”

पीड़िता के भाई फ़ैसले पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, “अगर यह निर्दोष साबित हुए हैं तो फिर इन्हें ढाई साल से जेल में क्यों रखा हुआ था? सीबीआई ने बड़ी-बड़ी धाराओं में क्यों आरोप सिद्ध नहीं किया?”

उन्होंने कहा, “पिछली तारीख़ तक सब अच्छा चल रहा था, लेकिन यह अचानक हुआ, हम तो घबरा गए. सब बढ़िया चल रहा था. इनकी सारी बेल ख़ारिज हुई थीं. क़ानून वानून कुछ नहीं है. न्याय तो सब जाती देकर मिलता है.”

पीड़िता के भाई अपनी बहन के डाईंग डिक्लरेशन (मौत से ठीक पहले दिया गया बयान) का ज़िक्र करते हुए कहते हैं, “हमारी बहन ने उसमें सभी का नाम लिया है. वो मजिस्ट्रेट ने लिखा है. तो भी उसे कैसे ठुकरा सकते हैं?”

जिस तरीक़े से 19 साल की युवती का देर रात में अंतिम संस्कार हुआ, उसे लेकर परिवार एक बार फिर सवाल उठाता है.

उनके भाई कहते हैं, “किसी की बॉडी को रात के ढाई बजे आग लगा सकते हैं? परिवार की अनुमति के बिना लगा सकते हैं? यह कहाँ का क़ानून है? यह योगी राज के क़ानून में लिखा हुआ है क्या? क्या लावारिस थी किसी की बहन बेटी?”

सुनवाई पर उठाये परिवार ने सवाल

परिवार सुनवाई के दौरान उन पर और उनके वकीलों पर दबाव का भी आरोप लगाता है.

पीड़िता का परिवार 24 घंटे सीआरपीएफ़ और उत्तर प्रदेश पुलिस के कड़े घेरे में रहता है और बीबीसी की टीम को भी उनके घर के अंदर जाकर बात करने के लिए अनुमति लेनी पड़ी और रजिस्टर में एंट्री करनी पड़ी.

अपनी वकील सीमा कुशवाहा के बारे में परिवार कहता है, “उन्होंने अपनी मेहनत, ईमानदारी और निडरता से एक बेटी को न्याय दिलाना चाहा. आज उसे भी उन्होंने एक दम निराश करके छोड़ दिया.”

“मगर वो हिम्मत नहीं हारी हैं. उन्होंने आगे बढ़ने की कोशिश की है. वो कह रही हैं कि वे हाई कोर्ट जाएंगी, सुप्रीम कोर्ट जाऊंगी, शांत होकर बैठूंगी नहीं.”

सीमा कुशवाहा इस मुक़दमे की पैरवी करने के लिए दिल्ली से हाथरस आती थीं.

राजनीति से घिरा रहा पूरा मामला

दलित युवती की हत्या और बलात्कार के मामले के बाद यह मामला देश विदेश की सुर्ख़ियों में छाया हुआ था. राजनीतिक दलों ने भी योगी सरकार को इस मामले में घेरने की कोशिश की थी.

लेकिन क्या जो नेता उस समय परिवार के समर्थन में बातें कर रहे थे उनकी तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया आई?

ये सवाल जब हमने परिवार से पूछा तो पीड़िता की भाभी ने कहा, “राजनीति हमारे आरोपी पक्ष में हो रही है. हम अपने दिमाग़ से बोलते हैं. हमें कोई सिखाता नहीं है. जिसे दर्द होता है ना वो चीख़-चीख़ कर बोलता है. जिसे दर्द नहीं होता है वो राजनीतिक पेंच लगाता है. हम लोग राजनीतिक पेंच नहीं लगाते हैं.

लेकिन इस फ़ैसले के बाद अब भी परिवार ऐसा ही सोचता है? पीड़िता की भाभी कहती हैं, “अभी भी लगता है कि देर हुई है लेकिन अंधेर नहीं है. अगर एक जान गई है तो इन्हें भी सज़ा भुगतनी पड़ेगी.”

पीड़िता के भाई कहते हैं, “यह सुरक्षा तो कोर्ट से है, लेकिन अभी भी ख़तरा तो रहेगा. क्योंकि आज से इनके हौसले तो बुलंद हो चुके हैं. उनको तो ख़ुशी मिली है कि सब कुछ उनके पक्ष में है.”

पीड़ित की भाभी कहती हैं, “उन्होंने क्या खोया है? उनकी इज़्ज़त, उनकी मान मर्यादा, सम्मान, कुछ खोया है? हम लोगों ने खोया है ना, तो हमारे से पूछिए.”

“हमारा तो सब कुछ चला गया. हम लोग दो ढाई साल पीछे चले गए. हम लोग तसल्ली रखे थे कि न्याय मिलेगा, इसलिए शांत बैठे थे ना हम लोग. अब आप बताओ, हम किस पर विश्वास करें?”

क्या कहना है बचाव पक्ष का

बरी हुए तीन अभियुक्त शुक्रवार सुबह अलीगढ़ जेल से रिहा कर दिए गए.

बीबीसी ने बरी हुए अभियुक्तों और दोषी पाए गए संदीप के परिवारवालों से बात करने की कोशिश की लेकिन पीड़िता के पड़ोस में रहने वाले उनके परिवार वालों ने कुछ कहने से इनकार कर दिया. बाद में बीबीसी ने उनके वकील मुन्ना सिंह पुंढीर से मुलाक़ात की.

अपना पक्ष रखते हुए वकील मुन्ना सिंह पुंढीर ने कहा, “पीड़िता का परिवार जो भी कहे लेकिन एक सदमा हमें भी लगा है. एक निर्दोष व्यक्ति को सज़ा दे दी गई. केवल मीडिया ट्रायल की वजह से.”

“अपील हम भी करेंगे और निश्चित रूप से इसमें एक्विटल (बरी) होगा. सारे एविडेंस कंसीडर किए गए हैं.”

वकील मुन्ना सिंह का दावा है, “सारे सबूत फ़र्ज़ी थे.”

लेकिन मरने से ठीक पहले दिए गए बयान के बावजूद भी कोर्ट ने अभियुक्तों को बरी कैसे किया? इस बारे में मुन्ना सिंह कहते हैं, “मजिस्ट्रेट ने रिकॉर्ड किया था लेकिन एक प्लेन पेपर में मजिस्ट्रेट ने अपनी भाषा में कुछ चीज़ लिख दी. तो वो डाईंग डिक्लेयरेशन थोड़ी न हो जाएगा.”

लेकिन परिवार अपनी बेटी को इंसाफ़ दिलाना चाहता है? इस सवाल पर वकील मुन्ना सिंह पुंढीर कहते हैं.

जिस तरीक़े से प्रशासन पर लड़की का देर रात और बिना परिवार की अनुमति के अंतिम संस्कार कराने का आरोप लगा, क्या अदालत ने उस चीज़ का संज्ञान लिया? क्या फ़ैसले में उसका ज़िक्र है?

इस बारे में बचाव पक्ष के वकील मुन्ना सिंह कहते हैं, “वो मुद्दा कोर्ट के सामने नहीं था. यह यहाँ तय नहीं होना था. यह प्रशासन के ख़िलाफ़ उनका आरोप होगा, लेकिन उसका अभियुक्त से क्या लेना देना है? क्योंकि अभियुक्त ने अंतिम संस्कार नहीं कराया था.”

रेप की पुष्टि ना होने के बारे में वकील मुन्ना सिंह कहते हैं, “मेडिकल हुआ था लेकिन उसमें रेप नहीं पाया गया. फ़ॉरेंसिक जांच में रेप नहीं पाया गया था.”

पीड़िता के परिवार के मामले पर राजनीतिक दबाव के बारे में बचाव पक्ष के वकील मुन्ना सिंह पुंढीर कहते हैं, “क्या कभी अदालत पर कोई राजनीतिक दबाव चलेगा? एमएलए एमपी को रोज़ सज़ा हो रही है? अदालत पर कोई पॉलिटिकल प्रेशर नहीं होता है.”

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