इसराइल-हमास संघर्ष: फ़लस्तीनियों पर भारत ने अपना रुख ज़ाहिर करके क्या बताया?

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DMT : इसराइल : (13 अक्टूबर 2023) : –

  • इसराइल ने उत्तरी ग़ज़ा में रहने वाले 11 लाख लोगों से 24 घंटों के भीतर इलाक़ा ख़ाली कर दक्षिण की तरफ़ जाने को कहा है.
  • इसराइल ने कहा- अपनी सुरक्षा और बचाव के लिए” ग़ज़ा शहर के लोग इलाक़ा खाली कर दें.
  • यूएन ने कहा है कि ये असंभव है और इसराइल को ये फ़ैसला तुरंत वापस लेना चाहिए.
  • शनिवार से शुरू हमास के हमले में अब तक 1300 इसराइली लोगों की मौत हुई है.
  • इसराइल लगातार गज़ा पर हमले कर रहा है, इस हमले में 1400 लोगों की मौत हो गई है.
  • इसराइल ने ग़ज़ा में बिजली, पानी, खाना, दवाओं की सप्लाई रोक दी है. उसका कहना है कि इसराइली बंधकों को जब तक छोड़ा नहीं जाएगा, ग़ज़ा को ज़रूरी चीज़ों की सप्लाई नहीं मिलेगी.

इसराइल और हमास के बीच बीते सात दिनों से भीषण संघर्ष चल रहा है.

वैसे तो इस क्षेत्र में हिंसा का एक लंबा इतिहास है लेकिन शनिवार को हमास के दक्षिणी इसराइल पर हमले ने इसे अलग रूप दे दिया है. हमास ने इसराइल की सीमा के भीतर ताबड़तोड़ 5000 मिसाइल इसराइल पर दागे.

इसके बाद से ही इसराइल इसे जंग बताते हुए ग़ज़ा पर हमले कर रहा है.

जब ये संघर्ष शुरू हुआ तो एक के बाद एक कई देशों ने अपनी प्रतिक्रिया दी और इससे साफ़ हो गया कि मध्य पूर्व के इस इलाके में चल रही जंग में कौन देश किसके साथ खड़ा है.

उन्होंने अपने संदेश में फ़लस्तीन का ज़िक्र नहीं किया.

इससे पहले तक जब भी भारत की ओर से इस क्षेत्र पर कोई आधिकारिक बयान आता था तो उसमें फ़लस्तीनियों के का ज़िक्र ज़रूर आता रहा है.

लेकिन जब बीते सप्ताह पीएम मोदी के बयान में ऐसा कुछ भी नहीं दिखा तो देश-दुनिया में कूटनीति के जानकारों के बीच ये चर्चा तेज़ हो गई कि क्या भारत का रुख़ फ़लस्तीनियों को लेकर बदल चुका है?

क्या भारत पश्चिमी देशों की तरह सीधे और साफ़ तौर पर इसराइल के साथ खड़ा है?

लेकिन पांच दिनों तक चली ऐसी अटकलों को विराम देते हुए विदेश मंत्रालाय ने गुरुवार को कहा है कि फ़लस्तीनियों और इसराइल को लेकर भारत के रुख़ में कोई बदलाव नहीं आया है.

मंत्रायल ने कहा कि भारत फ़लस्तीनियों के लिए स्वतंत्र और स्वायत्त देश फ़लस्तीन की मांग के समर्थन में है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, “भारत हमेशा से फ़लस्तीन के लोगों के लिए एक संप्रभु, स्वतंत्र देश फ़लस्तीन की स्थापना के लिए सीधी बातचीत करने की वकालत करता रहा है. एक ऐसा देश बने जिसकी अपनी सीमा हो और फ़लस्तीनी वहां सुरक्षित रह सके. जो इसराइल के साथ भी शांति के साथ रहे.”

बागची ने ये साफ़-साफ़ कहा कि भारत का फ़लस्तीनियों को लेकर ये रुख लंबे वक्त़ से चला आ रहा है और इस नीति में कोई भी बदलाव नहीं हुआ है.

अमेरिका के थिंक टैंक रैंड कोपोरेशन में विश्लेषक डेरेक ग्रॉसमैन ने भारतीय विदेश मंत्रालय के बयान पर कहा है कि ये भारत के बीते दिनों इसराइल के समर्थन में दिए गए बयान को कमज़ोर दिखाता है.

भारत का विदेश मंत्रालय ‘दो राज्य समाधान’ पर टिका हुआ है.

वो एक्स पर लिखते हैं, “यहां साफ़ करना चाहता हूं कि भारत लंबे समय से दो अलग देशों की मांग को समाधान मानता है और इसके पक्ष में खड़ा रहा है. हालांकि मौजूदा हालात में और खासकर जब जो बाइडन ने इसराइल के समर्थन में काफ़ी मज़बूत भाषण दिया है तो ‘दो राज्यों के समाधान’ की बात थोड़ी मुश्किल गलती है. ”

बीते दिनों कांग्रेस की कार्यकारी समिति ने हमास और इसराइल के संघर्ष पर जो बयान जारी किया उसमें फ़लस्तीनियों के लिए समर्थन जताया गया.

इस बयान की बीजेपी नेताओं ने जमकर आलोचना की क्योंकि ये बीजेपी और देश के पीएम नरेद्र मोदी के रुख से अलग था.

कांग्रेस ने अपने बयान में कहा था कि पार्टी मध्य-पूर्व में जारी युद्ध की निंदा करती हैं जिसमें हज़ारों की संख्या में लोगों की मौत हो चुकी है. साथ ही कहा गया कि पार्टी फ़लस्तीनी लोगों के भूमि, स्व-शासन और गरिमा के साथ जीने के अधिकारों को समर्थन देती है.

कांग्रेस के इस बयान की बीजेपी के नेताओं ने खूब आलोचना की.

असम के सीएम हिमंत बिसवा सरमा ने कहा कि कांग्रेस हमास की बात ना करके फ़लस्तीनियों की बात कर रही है. “मुझे तो लग रहा है कि कांग्रेस भारत में सरकार बनाना चाहती है या पाकिस्तान में.”

कांग्रेस का वो बयान भारत सरकार के बयान से मेल खाता है.

साल 2022 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने राज्य सभा में कहा था कि भारत टू-स्टेट सॉल्यूशन’ चाहता है जिसमें दो देश आज़ाद हो और शांति से एक साथ रहें.

एस जयशंकर ने कहा था, “कुछ सदस्यों का कहना है कि फ़लस्तीनियों के लिए हमारी चिंता अब बदल गई है तो उन्हें हम बता दें कि इस सरकार के कार्यकाल में फ़लस्तीनी शरणार्थी एजेंसियों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता हमने बढ़ायी है.”

सवाल ये है कि आख़िर पीएम मोदी का ऐसा बयान क्यों आया जिससे इस मसले पर भारत के रुख बदलने की बात होने लगी.

इस सवाल का जवाब जेएनयू में गल्फ़ स्टडीज़ के पूर्व डायरेक्टर प्रोफ़ेसर आफ़ताब कमाल पाशा देते हैं.

प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं, “विदेश मंत्रालय के लोगों से और कुछ नौकरशाहों से बात में जो मुझे पता चला है वो ये कि प्रधानमंत्री ने बिना विदेश मंत्रालय से बात किए शनिवार को इसराइल-हमास युद्ध पर सीधे इसराइल का समर्थन कर दिया. ये पीएम नरेंद्र मोदी का व्यक्तिगत विचार हो सकता है लेकिन ये बतौर देश भारत का स्टैंड नहीं था.”

“आपने देखा होगा कि विदेश मंत्री का इस पर इतने दिनों तक कोई बयान ही नहीं आया क्योंकि विदेश मंत्रालय को ये तय करने में थोड़ा वक़्त लगा कि डैमेज कंट्रोल कैसे करना है. अब विदेश मंत्रालय ने साफ़ किया कि वह अपने लंबे वक़्त से चले आ रहे ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ पर ही टिका है.”

पाशा कहते हैं कि “जब पीएम ने ट्वीट किया तो शायद ये नहीं सोचा कि इसका ब्रिक्स, ओआईसी और शंघाई कॉपरेशन पर क्या असर पड़ सकता है. लेकिन विदेश मंत्रालय को इसका एहसास था इसलिए जो नया बयान आया है वहीं भारत का स्टैंड है.”

मोदी का इसराइल को खुला समर्थन और चुनावी एंगल

देश में अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं. नवंबर में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित पांच राज्यों के चुनाव होने हैं.

ऐसे में कई राजनीतिक जानकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान को घरेलू राजनीति से भी जोड़ कर देख रहे हैं.

पाशा भी इस बयान में घरेलू राजनीति का एंगल देखते हैं.

वो कहते हैं, “देश में चुनाव आने वाले हैं, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में अगले ही महीने चुनाव हैं तो ऐसे में पीएम मोदी का इसराइल को खुल कर समर्थन करने वाला बयान कट्टर हिंदू वोट को पूरी तरह एकजुट कर बीजेपी के समर्थन में करने की कोशिश है. ये बयान पूरी तरह से व्यक्तिगत और देश की राजनीति से प्रेरित भाषा वाला था, और वैश्विक स्तर पर भारत के रुख जैसा नहीं था. ”

हमास को अमेरिका, ब्रिटेन, इसराइल, फ्रांस, जर्मनी जैसे पश्चिमी देश आतंकवादी संगठन मानते हैं लेकिन भारत ने हमास को आतंकवादी संगठन घोषित नहीं किया है.

गुरुवार को अरिंदम बागची ने साफ़ ये कहा कि इसराइल पर शनिवार को हुए ‘आतंकवादी हमले’ की भारत निंदा करता है.

हालांकि जब अरिंदम बागची से एक पत्रकार ये पूछा कि क्या हमास को भारत ने आतंकवादी संगठन घोषित किया है?

इस सवाल पर बागची ने साफ़ जवाब नहीं दिया. उन्होंने कहा कि इस तरह के फ़ैसले लेना विदेश मंत्रालय की ज़िम्मेदारी नहीं है. ‘हमारा फ़ोकस हमारे नागरिकों की मदद’ करना है.

दिल्ली की जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और पश्चिमी एशिया की राजनीति की जानकार डॉक्टर सुजाता एश्वर्या कहती हैं, “आपने देखा होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट में हमास का ज़िक्र तक नहीं किया, भू-राजनीति में एक-एक शब्द के मायने होते हैं, ये दिखाता है कि उन्होंने भविष्य की संभावनाएं खोले रखी हैं.”

“ये भी समझना ज़रूरी है कि राजनीतिक संघर्ष से हमास जैसे समूह पनपते हैं. भारत ने ना तो हमास को आतंकवादी संगठन घोषित किया है और भारत ना ही हिजबुल्ला को आतंकवादी संगठन मानता है. क्योंकि इन दोनों संगठनों ने कभी भारत के लिए कोई मुश्किलें पैदा नहीं की और ना ही भारतीय ज़मीन का कोई इस्तेमाल किया.”

प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं कि भारत फ़लस्तीनियों के लिए हमास को एक राजनीतिक फोर्स की तरह देखता है.

वो कहते हैं, “साल 2006 में गज़ा और वेस्ट बैंक में जब चुनाव हुए तो हमास ने कई सीटें जीती थी. तभी भारत ने ये भी माना कि फ़लस्तीनियों का नेतृत्व सिर्फ़ फ़लस्तीन लिब्रेशन ऑर्गनाइजेशन ही नहीं करती, बल्कि एक अच्छा-खासा फ़लस्तीनियों का तबका हमास के साथ है और इसलिए भारत ने हमास को एक पॉलिटिकल फोर्स की तरह पहचाना.”

वो कहते हैं कि भारत के फ़लस्तीनियों के नेतृत्व और इसराइल दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं लेकिन पीएम के हालिया बयान से लग रहा है कि भारत इसराइल के और करीब जा रहा है.

कुगलमैन का मानना है, “भारत की इसराइल और फ़लस्तीन दोनों पक्षों के साथ दोस्ती हैं, इसलिए उसे अपने सार्वजनिक बयान में सतर्क रहना चाहिए, लेकिन हाल के सालों में इसराइल के साथ भारत के रिश्ते तेज़ी से बढ़े हैं. जैसा कि पीएम मोदी के ट्वीट से पता चलता है, इसराइल-हमास युद्ध दोनों देशों को और भी करीब ला सकता है.”

कुगलमैन लिखते हैं कि मध्य पूर्व में हाल के भू-राजनीतिक घटनाक्रम ने भारत और फ़लस्तीनियों के बीच कुछ दूरी तो ज़रूर बनाई है. भारत ने 2020 में हुए अब्राहम समझौते को अपनाया है. इन समझौतों ने अरब पड़ोसियों के साथ इसराइल के संबंधों को बेहतर किया और नई पहलों के नींव रखी.

आई2यू2 नाम का एक नया समूह भी इन्हीं समझौतों के कारण अस्तित्व में आया.

मध्य-पूर्व में बहुपक्षीय सहयोग भारत के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वहां उसके व्यापारिक हित भी हैं और अरब खाड़ी में बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी रहते हैं.

प्रोफ़ेसर पाशा और डॉक्टर एश्वर्या दोनों ही इस बात से इत़्तेफ़ाक रखते हैं कि जो ट्वीट पीएम ने किया वो उनके व्यक्तिगत विचार जैसे थे.

डॉक्टर एश्वर्या कहती हैं कि विदेश मंत्रालय के बयान से साफ़ हो गया कि जो पीएम कह रहे हैं वो भारत का रुख़ नहीं है.

वे कहती हैं, “भारत अभी इस मामले में बैलेंस बनाए रखना चाहता है. कोई भी शख़्स व्यक्तिगत राय रख सकता है, हालांकि देश के प्रधानमंत्री के मामले में ऐसा कम होता है. लेकिन ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं है.”

वहीं प्रोफ़ेसर पाशा मानते हैं पीएम मोदी की इसराइली पीएम बिन्यामिन नेतन्याहू से काफ़ी अच्छी दोस्ती है. तो उनका बयान उस दोस्ती की भावना से प्रेरित लगता है.

अतीत में भारत का क्या स्टैंड रहा है

वर्ष 1974 में भारत, यासिर अराफ़ात की अगुआई वाले फ़लस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) को फ़लस्तीनी लोगों के एकमात्र और वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला पहला ग़ैर-अरब देश बना था.

जानकार कहते हैं कि उस समय भारत की पीएम इंदिरा गांधी और यासिर अराफ़ात के बीच काफ़ी अच्छे संबंध थे.

वर्ष 1988 में भारत फ़लस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक बन गया. वर्ष 1996 में भारत ने ग़ज़ा में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला, जिसे बाद में 2003 में रामल्ला में स्थानांतरित कर दिया गया था.

भारत ने अक्टूबर 2003 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव का भी समर्थन किया, जिसमें इसराइल के विभाजन की दीवार बनाने के फ़ैसले का विरोध किया गया था. वर्ष 2011 में भारत ने फ़लस्तीन को यूनेस्को का पूर्ण सदस्य बनाने के पक्ष में मतदान किया.

वर्ष 2012 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया, जिसमें फ़लस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में मतदान के अधिकार के बिना “नॉन-मेंबर आब्ज़र्वर स्टेट” बनाने की बात थी.

भारत ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट भी किया. सितंबर 2015 में भारत ने फ़लस्तीनी ध्वज को संयुक्त राष्ट्र के परिसर में स्थापित करने का भी समर्थन किया.

भारत और फ़लस्तीनी प्रशासन के बीच नियमित रूप से उच्चस्तरीय द्विपक्षीय यात्राएं होती रही हैं.

अंतरराष्ट्रीय और द्विपक्षीय स्तर पर मज़बूत राजनीतिक समर्थन के अलावा भारत ने फ़लस्तीनियों को कई तरह की आर्थिक सहायता दी है.

भारत सरकार ने ग़ज़ा शहर में अल अज़हर विश्वविद्यालय में जवाहरलाल नेहरू पुस्तकालय और ग़ज़ा के दिर अल-बलाह में फ़लस्तीन तकनीकी कॉलेज में महात्मा गांधी पुस्तकालय सहित छात्र गतिविधि केंद्र बनाने में भी मदद की है.

इनके अलावा कई प्रोजेक्ट्स बनाने में भारत फ़लस्तीनियों की मदद कर रहा है.

फ़रवरी 2018 में नरेंद्र मोदी फ़लस्तीनी इलाक़े में गए थे. इस दौरान फ़लस्तीनी प्रशासन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने मोदी को देश का सर्वोच्च सम्मान ‘ग्रैंड कॉलर ऑफ़ द स्टेट ऑफ़ पेलेस्टाइन’ से नवाज़ा था.

बीते साल फ़लस्तीनियों के साथ एकजुटता के अंतरराष्ट्रीय दिवस के वक्त पीएम मोदी ने एक संदेश जारी किया. इसमें पीएम ने फ़लस्तीन के लिए भारत के “अटूट समर्थन की प्रतिबद्धता” को दोहराया.

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