इसराइल-हमास संघर्ष: रूसी राष्ट्रपति पुतिन उठाना चाहते हैं जंग का फ़ायदा?

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DMT : इसराइल : (14 अक्टूबर 2023) : –

ये देखना बेहद दिलचस्प हो सकता है कि जेम्स बॉन्ड की फ़िल्मों की तरह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सुदूर पहाड़ियों में अपने ख़ुफ़िया ठिकाने पर एक बड़े से कंट्रोल पैनल पर बैठे हैं.

वो अपने कंट्रोल पैनल पर एक बटन दबाते हैं तो बल्कन के पूरे इलाक़े में तबाही फैल जाती है. वो दूसरा बटन दबाते हैं और पूरा मध्य पूर्व बमों के धमाकों से गूंजने लगता है.

ऐसी कल्पना करना बेहद रोमंचक हो सकता है लेकिन ये शायद तथ्यात्मक रूप से ग़लत है. ऐसी कल्पना करना रूस के राष्ट्रपति के प्रभाव को बढ़ा चढ़ाकर आंकने जैसा है.

ये बात सच है कि फ़लस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास के साथ रूस के संबंध हैं और रूस ईरान का भी क़ीरीबी दोस्त है.

अमेरिका के अनुसार, रूस और ईरान के बीच अब रक्षा मामलों में अच्छी साझेदारी है. हालांकि इसका ये मतलब नहीं है कि रूस को इसराइल पर हमास के हमले की जानकारी पहले से थी या फिर वो इस मामले में सीधे तौर पर शामिल है.

रूस के लिए इसराइल के राजदूत अलेक्ज़ेंडर बेल ज़्वी ने इसी सप्ताह कोम्मेसां अख़बार को दिए इंटरव्यू में कहा, “हम इस बात पर यकीन नहीं करते कि रूस इस मामले में किसी तरह से शामिल है.”

उन्होंने इस बात को सिरे से खारिज किया कि इसराइल में हमास के लड़ाकों ने जो कहर ढाया है उसका रूस के कोई नाता है. उन्होंने इस तरह के आरोपों के बारे में कहा कि ये “पूरी तरह से बेबुनियाद” है.

बर्लिन में मौजूद जेम्स मार्टिन सेंटर फ़ॉर नॉन प्रॉलिफ़रेशन स्टडीज़ में रूस और मध्य पूर्व मामलों की जानकार हान्ना नॉते का कहना है, “मैंने अब तक ऐसे कोई सबूत नहीं देखें जो इशारा करते हों कि रूस ने सीधे तौर पर हमास को हथियारों की सप्लाई की हो या फिर रूसी सेना ने हमास के लड़ाकों को किसी तरह की ट्रेनिंग दी हो.”

वो कहती हैं, “ये बात सच है कि लंबे वक्त से हमास के साथ रूस के संबंध रहे हैं. रूस ने हमास को कभी चरमपंथी संगठन घोषित नहीं किया. हमास के प्रतिनिधियों ने बीते साल और इस साल मॉस्को का दौरा किया था.”

“लेकिन इन बातों से मैं इस नतीजे पर कभी नहीं आउंगी कि रूस बड़े पैमाने पर हमास की मदद कर रहा है. हम ये मान सकते हैं कि रूस के बनाए हथियार और उपकरण ग़ज़ा पट्टी तक पहुंचे हैं, लेकिन ये शायद मिस्र के सिनाई प्रांत से यहां पहुंचे हैं और इसके लिए ईरान ने मदद की है.”

दूसरे शब्दों में राष्ट्रपति पुतिन ने “मध्य पूर्व में युद्ध” नाम का बटन नहीं दबाया है. लेकिन क्या वो इसका फायदा लेने के लिए तैयार हैं?

हां, बिल्कुल. वो पूरी तरह से इस जंग का फायदा लेने के लिए तैयार हैं. जानते हैं कैसे?

मध्य पूर्व में हिंसा बढ़ने के साथ अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ एजेंडा में इससे जुड़ी संघर्ष की रिपोर्टों को अधिक जगह मिलेगी.

रूस को उम्मीद है कि आने वाले वक्त में मीडिया में इसराइल और ग़ज़ा से आने वाली खबरें सुर्खियां बनेंगी और लोगों का ध्यान रूस-यूक्रेन जंग से हटेगा.

लेकिन ये ख़बरों का सिलसला बदलने से कहीं अधिक है. रूसी अधिकारियों को उम्मीद है कि मध्य पूर्व में तनाव के कारण पश्चिम के कुछ मुल्कों के हथियार यूक्रेन की बजाय अब मध्य पूर्व पहुंचेंगे.

रूसी राजनयिक कॉन्स्तान्तिन गैवरिलोव ने रूसी सरकार समर्थित इज़वेस्तिया अख़बार को बताया, “मैं मानता हूं कि इस संकट का सीधा असर यूक्रेन में जारी स्पेशल सैन्य अभियान पर पड़ेगा.”

उन्होंने कहा, “इसराइल के ग़ज़ा पट्टी पर हमले के बाद यूक्रेन का समर्थन करने वालों का ध्यान उस तरफ जाएगा. हालांकि इसका ये मतलब नहीं है कि पश्चिमी मुल्क यूक्रेनी नागरिकों को अपने हाल पर छोड़ देंगे. लेकिन यूक्रेन को मिलने वाली सैन्य सहायता में कमी ज़रूर आ जाएगी…. इससे रूस-यूक्रेन जंग में जीत का पलड़ा रूस क तरफ झुक जाएगा.”

क्या हम जानबूझकर रूस के पक्ष में सोचना चाहते हैं? संभव है ऐसा हो.

बीते दिनों नेटो रक्षा मंत्रियों की बैठक में अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा, “हम इसराइल के साथ खड़े रहते हुए यूक्रेन का साथ दे सकते हैं.”

लेकिन जानकार मानते हैं कि मध्य पूर्व में तनाव लंबा खिंचा तो, दो अलग-अलग जगहों पर युद्ध के लिए अपने सहयोगियों की मदद करना अमेरिका के लिए भी उसकी क्षमता की परीक्षा साबित होगा.

रूस मध्य पूर्व में अपनी भूमिका ये कह कर बढ़ाने की कोशिश कर रहा है कि वो यहां संभावित मध्यस्थ क भूमिका निभा सकता है.

रूस पहले भी इस भूमिका में रह चुका है और उसने इस इलाक़े में संघर्ष ख़त्म करने की अंतरराष्ट्रीय कोशिशों में शिरकत की है.

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव कहते हैं, “रूस संघर्ष ख़त्म करने की कोशिशों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और वो निभाएगा. हम संघर्ष में शामिल दोनों की पक्षों के साथ संपर्क रखते हुए हैं.”

इसी सप्ताह मॉस्को पहुंचे इराक़ के प्रधानमंत्री ने पुतिन से अपील की कि वो “सही मायनों में संघर्ष विराम के लिए योजना की घोषणा करें.

लेकिन क्या संघर्ष विराम के लिए रूस मध्यस्थ की भूमिका ले सकता है? ये समझना थोड़ा मुश्किल है.

क्योंकि रूस वही देश है जिसने बीते साल फरवरी में अपने पड़ोसी के ख़िलाफ़ ‘विशेष सैन्य अभियान’ की शुरूआत की थी. युद्ध को अब क़रीब 20 महीने हो चुके हैं और यूक्रेन में जिस तरह बड़े पैमाने पर तबाही हुई है और लोगों की जान गई है, उससे पूरी दुनिया सकते में है.

और इसके बाद शांति कायम करने के लिए “रूस मध्यस्थ की भूमिका ले सकता है” कहने से इसकी गारंटी कैसे मिलेगी कि संघर्ष में शामिल दोनों ही पक्ष उसे मध्यस्थ के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार हैं.

मध्य पूर्व में रूस की दिलचस्पी उस वक्त से ही है जब इसराइल धीरे-धीरे अमेरिका के साथ अपने रिश्ते मज़बूत कर रहा था और सोवियत संघ ने अरब मुल्कों के पक्ष में रहना बेहतर समझा. सालों तक यहूदी विरोधी आंदोलनों को सरकारी समर्थन देना सोवियत संघ की ज़िंदगी का हिस्सा रहा है.

सोवियत संघ के विघटन के बाद इसराइल के साथ रूस के संबंध बेहतर होने लगे. इसका एक कारण सोवियत संघ में शामिल रहे पूर्व गणराज्यों से हज़ारों की तादाद में यहूदियों का इसराइल की तरफ जाने था.

लेकिन हाल के सालों में पुतिन के नेतृत्व में रूस, ईरान जैसे इसराइल के दुश्मन मुल्कों के क़रीब आया है. इस कारण रूस और इसराइल के आपसी संबंधों पर तनाव पड़ा है.

इसराइल पर हमास के हमले के बाद से अब तक व्लादमीर पुतिन का संदेश यही रहा है कि “ये मध्य पूर्व में अमेरिका की नीति के नाकाम होने का एक उदाहरण है.”

ये रूस के उस सामान्य पैटर्न पर एकदम फिट बैठता है जिसे पुतिन “अमेरिकी आधिपत्य” करार देते रहे हैं.

अमेरिका को मध्य पूर्व के उथल पुथल का सबसे बड़ा अपराधी बताना, क्रेमलिन का वॉशिंगटन की क़ीमत पर इस इलाके में रूसी पक्ष को मजबूत करने का तरीका रहा है.

ये तो रहे, मध्य पूर्व में रूस को होने वाले संभावित फायदे. लेकिन इसके ख़तरे भी बहुत हैं.

हन्ना नॉते का मानना है, “अगर यह संकट यूक्रेन से ध्यान भटकाता है, और जिसकी प्रबल संभावना है, तो अमेरिका के घरेलू राजनीति में इसराइल की अहमियत को दखते हुए, ये हो सकता है कि थोड़े समय के लिए रूस को इसका फायदा मिले.”

उनका कहना है कि, “लेकिन अगर इस इलाके में युद्ध छिड़ जाए, जिसमें ईरान हमास को हथियार और फंड से मदद करे, तो रूस को इसका फायदा नहीं मिलेगा.”

“रूस नहीं चाहता कि इसराइल और ईरान के बीच युद्ध छिड़ जाए. अगर चीजें उस तरफ जाती हैं और ये साफ़ हो जाता है कि अमेरिका इसराइल के साथ खड़ा है तो मुझे लगता है कि रूस के पास ईरान की तरफ़ जाने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा. और मुझे नहीं लगता कि वो ये चाहता है.”

“मुझे लगता है कि पुतिन इसराइल के साथ अपने रिश्ते को अभी भी महत्व देते हैं. मुझे नहीं लगता कि रूसी कूटनीति उस तरफ जाना चाहेगी जहां उन्हें पक्ष चुनना पड़े. लेकिन जैसे जैसे यह टकराव आगे बढ़ेगा, उन पर उतना ही दबाव बढ़ेगा.”

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