DMT : बेंगलुरू : (15 जनवरी 2024) : –
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने मिलिंग कोपरा और बाल कोपरा पर एमएसपी को क्रमशः 300 रुपये और 250 रुपये बढ़ाने का फैसला लिया है.
लेकिन किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों ने कहा है कि नारियल उगाने वाले किसानों की ज़िंदगी पर इसका कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ेगा.
आर्थिक मामलों पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की समिति ने 2024 के सीज़न के लिए मिलिंग कोपरा की एमएसपी 11,160 रुपये प्रति क्विंटल और बाल कोपरा की एमएसपी 12,000 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित की है.
केरल और तमिलनाडु मिलिंग कोपरा के प्रमुख उत्पादक प्रदेश हैं जबकि कर्नाटक में बाल कोपरा का उत्पादन होता है.
यह सरकारी ख़रीद भी केवल छह महीने के लिए होती है.
शर्मा ने कहा, “हमने कई बार अपील की है कि समय को तीन महीने और बढ़ाया जाए लेकिन सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है. और खुले बाज़ार में किसान को क्या दाम मिलता है? अब यह गिर कर 7,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है. तो किसान के लिए मुनाफ़ा कहां हैं?”
शर्मा कर्नाटका फॉर्मर्स एसोसिएशन की तिपटूर यूनिट के अध्यक्ष हैं.
कर्नाटक में बाल कोपरा के सबसे बड़े थोक बाज़ार तिपटूर और अरसीकेरे में हैं.
बाल कोपरा अच्छी क्वालिटी की नारियल गिरी है जिसे अच्छी तरह सुखाया जाता है. इसका इस्तेमाल खासकर उत्तर भारतीय राज्यों में विभिन्न तरह के पकवानों में किया जाता है.
एमएसपी वृद्धि से किसको फ़ायदा होगा?
बेंगलुरू में इंस्टीट्यूट फ़ॉर सोशल एंड इकोनामिक चेंज के एग्रीकल्चरल एंड रूरल ट्रांसफ़ार्मेशन सेंटर में प्रोफ़सेर केबी रामप्पा ने हाल ही में तिपटूर में नारियल कृषि उद्योग पर आयोजित एक मीटिंग में कहा था, “केरल और तमिलनाडु मिलिंग कोपरा के सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य हैं, जिससे नारियल तेल निकाला जाता है.”
“नारियल तेल के लिए केरल में प्रमुख होलसेल बाज़ार कोच्चि, अलापुझा और कोझिकोड़ में है, जबकि तमिलनाडु में कांगायाम और तंजावुर में है.”
नारियल उत्पादक शर्मा कहते हैं कि वे इसे रख नहीं सकते इसलिए वो बेचते हैं.
प्रोफ़ेसर रमप्पा, शर्मा से सहमत हैं.
वो कहते हैं, “किसान बाल कोपरा को प्रॉसेस नहीं करते क्योंकि उनके पास नारियल को रखने और सुखाने की पर्याप्त जगह नहीं है. एक नारियल को सूखने के लिए 9 से 15 महीने तक धूप में रखना होता है. इसलिए वे होलसेलर को बेच देते हैं और वही इस एमएसपी का असली लाभार्थी होता है.”
तिपटूर बैठक में किसानों ने कहा कि व्यवहार में सरकारी ख़रीद में ही कड़े नियम लागू नहीं किए जाते.
शर्मा ने कहा, “कोई भी किसान पहचान पत्र दिखा सकता है और किसान होने का दावा कर सकता है. होता क्या है कि होलसेलर कुल जमा किया हुआ कोपरा ले आता है, मान लीजिए 2000 टन और किसानों को बेचने का मौका ही नहीं मिलता क्योंकि 25 प्रतिशत की सीमा होती है.”
उनका कहना है कि 250 रुपये की बढ़ोतरी सिर्फ़ ये दिखाने के लिए की गई है कि नारियल उत्पादकों को कुछ अधिक भुगतान किया जा रहा है.
भारत दुनिया में नारियल का सबसे बड़ा उत्पादक है. 2020 में वैश्विक उत्पादन में भारत की 31 प्रतिशत हिस्सेदारी थी.
दुनिया में पैदा होने वाले कुल नारियल का तीन चौथाई भारत, फ़िलीपींस और इंडोनेशिया मिलकर करते हैं.
नारियल के पेड़ को ‘कल्पवृक्ष’ या ‘स्वर्ग का वृक्ष’ कहा जाता है क्योंकि इसके हर हिस्से और फल का इस्तेमाल होता है. लेकिन एक्सपर्ट अफसोस जताते हैं कि नारियल पेड़ या वो ज़मीन जहां उन्हें उगाया जाता है, उसका कमर्शियल लाभ के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
शर्मा कहते हैं, “हम सरकार से लगातार मांग करते रहे हैं कि वो नारियल तेल के लिए वो सारा उत्पादन खरीदे और भारत कोकोनट ऑयल के नाम से बेचे ताकि लोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से स्वास्थ्यवर्द्धक तेल पा सकें, जैसे कि उन्हें रियायती दरों पर पाम ऑयल मिलता है. लेकिन सरकार ये करना ही नहीं चाहती.”
कर्नाटका फ़ॉर्मर्स एसोसिएशन के डॉ. मनोहर पटेल ने बीबीसी हिंदी से कहा, “पिछले साल जब पाम ऑयल के आयात शुक्ल में भारी कमी कर दी गई, उससे पहले बाल कोपरा और मिलिंग कोपरा के दाम स्थिर थे. जब आयात शुल्क 30 प्रतिशत था हमें परेशानी नहीं हुई.”
“लेकिन जब इसे कम करके शून्य कर दिया गया और पीडीएस के मार्फ़त सरकार ने पाम ऑयल पर रियायत दे दी तो इसने हमें सबसे अधिक प्रभावित किया. इसके कारण दाम में लगातार गिरावट आई. पिछले साल यह 8,000 रुपये प्रति क्विंटल था, अब इससे भी कम हो गया है. हमारी नीति ऐसी क्यों है?”
फसल उगाने के तरीके में बदलाव की ज़रूरत
प्रोफ़ेसर रमप्पा किसान यूनियन प्रतिनिधियों से सहमत हैं कि नारियल उद्योग में पाम ऑयल बाधा है.
वो कहते हैं, “नारियल उत्पादकों को एकीकृत कृषि का नज़रिया अपनाने की ज़रूरत है. किसान उसी ज़मीन का इस्तेमाल कोको, काली मिर्च या केले की फसल उगाने को लेकर करने का नहीं सोचते या उस जगह डेयरी, मुर्गी या बकरी पालन का प्रयास नहीं करते.”
कर्नाटका के बागलकोट में यूनिवर्सिटी ऑफ़ हर्टिकल्चर साइंसेज़ के पूर्व वाइस चांसलर डॉ. डीएल महेश्वर ने बीबीसी हिंदी को बताया, “पाम ऑयल के आयात और नारियल उत्पादक किसानों पर इसके असर की बहस अब विवादित हो चुकी है.”
“पाम ऑयल तेल उत्पादन और बाज़ार स्थिरता के लिहाज से नारियल को पीछे छोड़ता है. पाम ऑयल नारियल की तुलना में प्रति हेक्टेयर सर्वाधिक तेल उत्पादन देता है.”
उन्होंने कहा कि खाद्य तेल की उपलब्धता बहुत कम है और यही बात भारतीय नीति निर्माताओं को आयात की तरफ़ ले जाती है. कोई विकल्प नहीं है.
उनके अनुसार, “लोग ऑलिव ऑयल या नारियल तेल नहीं खरीद सकते क्योंकि इसकी उपलब्धता ही बहुत कम है. हम पाम ऑयल का आयात करते हैं और इसकी मात्रा बढ़ रही है क्योंकि अगले दो सालों में भारत में खाद्य तेल की मांग बढ़ेगी.”
भारत में ऑयल पाम का उत्पादन आम तौर पर आंध्र प्रदेश और कर्नाटक और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में होता है.
वो कहते हैं, “ऑयल पाम सह-फसल है. नीति निर्माता नारियल उद्योग के विकास को रोकना नहीं चाहते लेकिन वो चाहते हैं कि नारियल उद्योग अपने तरीक़े बदले. नारियल उद्योग को स्थिर करने के लिए यह लंबी अवधि की प्रक्रिया है और इसमें और मूल्य जोड़ने की ज़रूरत है.”
खाद्य तेल की भारी मांग है क्योंकि पाम ऑयल पीडीएस के मार्फ़त वितरित होता है. पाम ऑयल का इस्तेमाल आम तौर पर बेक्ड प्रोडक्ट्स जैसे आइसक्रीम, मार्गेरीन, चॉकले कोटिंग और बेबी फ़ॉर्मूले में की जाती है.
नारियल की तरह इसे विटामिन ई का अच्छा स्रोत माना जाता है. यह विटामिन ब्लड क्लाटिंग को रोकता है. दोनों ही असंतृप्त वसा होती है जिसे पशु चर्बी से बेहतर माना जाता है. पाम ऑयल का इस्तेमाल शैंपू और कॉस्मेटिक्स उत्पाद बनाने में किया जाता है जबकि नारियल तेल साबुन, डिटर्जेंट और कीटनाशक बनाने में इस्तेमाल होता है.