DMT : नई दिल्ली : (12 जून 2023) : –
लैंसेट के एक ताज़ा शोध अध्ययन के मुताबिक़ भारत में 10.1 करोड़ लोग डायबिटीज़ से ग्रसित हैं.
वहीं भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के एक सर्वे के मुताबिक भारत में 13.6 करोड़ लोग प्री-डायबिटीज़ के साथ जी रहे हैं.
टाइप-2 डायबिटीज़ इस बीमारी का सबसे सामान्य रूप है.
डायबिटीज़ में लोगों के शरीर में ब्लड शुगर की मात्रा बढ़ जाती है क्योंकि शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन हार्मोन का निर्माण नहीं कर पाता है. इस हार्मोन के सही से काम नहीं कर पाने से भी डायबिटीज़ होती है.
द लैंसेट डायबिटीज़ एंड एंडोक्राइनोलॉजी में प्रकाशित इस शोध को भारत के प्रत्येक राज्य को व्यापक रूप से कवर करने वाला पहले शोध माना जा रहा है, जिसमें देश पर असंक्रामक रोगों के बोझ का आकलन किया गया है.
शोधकर्ताओं का मानना है कि भारत की आबादी में डायबिटीज़ का प्रसार पूर्व में लगाए गए अनुमानों से कहीं अधिक है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान था कि भारत में 7.7 करोड़ लोग डायबिटीज़ से ग्रसित होंगे और लगभग 2.5 करोड़ प्री-डायबिटीज़ की स्थिति में होंगे. नज़दीकी भविष्य में डायबिटीज़ होने के ख़तरे को प्री-डायबिटीज़ कहा जाता है.
इस शोध की प्रमुख लेखिका और डॉ. मोहन डायबिटीज़ स्पेशलिएटीज़ सेंटर की निदेशक डॉ. आरएम अंजना ने अख़बार इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “ये स्थिति किसी टाइम बम जैसी है.”
वो कहती हैं, “अगर आप प्री-डायबिटीज़ की स्थिति में हैं तो हमारी आबादी में डायबिटीज़ होने की दर बेहद-बेहद ज़्यादा है. प्री-डायबिटीज़ की स्थिति में होने वाले 60 फ़ीसदी लोगों को अगले पांच सालों में ये बीमारी हो ही जाती है.”
एक दशक लंबा चले इस शोध मद्रास डायबिटीज़ रिसर्च फ़ाउंडेशन ने इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के साथ मिलकर किया है. इसमें भारत के हर राज्य के बीस साल से अधिक उम्र के 1 लाख 13 हज़ार लोगों ने हिस्सा लिया.
इस शोध के लिए 2008 में इकट्ठा किए गए डेटा को नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे की जनसांख्यिकी का इस्तेमाल करते हुए 2021 में एक्स्ट्रापोलेट किया गया. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे सरकार द्वारा स्वास्थ्य और सामाजिक संकेतकों का सबसे व्यापक घरेलू सर्वेक्षण है.
शोध के मुताबिक डायबिटीज़ सर्वाधिक गोवा में है, जहां 26.4 प्रतिशत आबादी ग्रसित है. इसके बाद पुडुचेरी में 26.3 और केरल में 25.5 प्रतिशत लोगों में डायबिटीज़ है.
इस शोध में डायबिटीज़ के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और अरुणाचल प्रदेश में तेज़ी से बढ़ने का ख़तरा ज़ाहिर किया गया है. अभी तक इन प्रांतों में इसका प्रसार कम था.
शोध के मुताबिक़ डायबिटीज़ ग्रामीण क्षेत्रों के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में अधिक प्रचलित है.
बांबे हॉस्पिटल में में डायबिटोलॉजिस्ट राहुल बक्शी कहते हैं, “बदलती जीवन शैली, जीवन स्तर में सुधार, शहरों की ओर पलायन, अनियमित काम के घंटे, गतिहीन आदतें, तनाव, प्रदूषण, भोजन की आदतों में बदलाव और फास्ट फूड की आसान उपलब्धता कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से भारत में डायबिटीज़ बढ़ रही है.”
डॉ. बक्शी कहते हैं कि डायबिटीज़ अब “सिर्फ़ शहरों में रह रहे लोगों या उच्च वर्ग की बीमार नहीं रह गई है.”
“मेरे पास छोटे शहरों और क़स्बों से बड़ी तादाद में मरीज़ आते हैं. इन क्षेत्रों में प्री-डायबिटीज़ का प्रसार और अधिक है और बहुत से लोगों में लंबे समय तक बीमारी की पहचान नहीं होती है.”
डॉ. बक्शी कहते हैं कि हाल के सालों में बड़ी तादाद में युवा मरीज़ भी उनके पास आ रहे हैं.
वो कहते हैं, “मैंने कई ऐसे मामले देखे हैं जिनमें मेरे मरीज़ों के बच्चों ने घर पर अपना ब्लड शुगर स्तर जांचा और ये काफ़ी अधिक था.”
डायबिटीज़ से दुनियाभर में हर 11 में से एक वयस्क प्रभावित है और इससे हार्ट अटैक, स्ट्रोक, अंधेपन और किडनी फेल होने का ख़तरा बढ़ जाता है. इसके अलावा कई बार हाथ या पैर भी कटवाना पड़ जाता है.
क्या होती है डायबिटीज़
जब हमारा शरीर ख़ून में मौजूद शुगर की मात्रा को सोखने में असमर्थ हो जाता है तो ये स्थिति डायबिटीज़ को जन्म देती है.
दरअसल, हम जब भी कुछ खाते हैं तो हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेट को तोड़कर ग्लूकोज़ में बदलता है.
इसके बाद पेंक्रियाज़ से इंसुलिन नाम का एक हार्मोन निकलता है जो कि हमारे शरीर की कोशिकाओं को ग्लूकोज़ को सोखने का निर्देश देता है.
इससे हमारे शरीर में ऊर्जा पैदा होती है.
लेकिन जब इंसुलिन का फ़्लो रुक जाता है तो हमारे शरीर में ग्लूकोज़ की मात्रा बढ़ना शुरू हो जाती है.
टाइप 1, टाइप 2 डायबिटीज़ क्या होती है?
डायबिटीज़ के कई प्रकार होते हैं लेकिन टाइप 1, टाइप 2 और गेस्टेशनल डायबिटीज़ से जुड़े मामले अधिक पाए जाते हैं.
टाइप 1 डायबिटीज़ में आपके पेंक्रियाज़ में हार्मोन इंसुलिन बनना बंद हो जाता है. इससे हमारे खून में ग्लूकोज़ की मात्रा बढ़ने लगती है.
अब तक वैज्ञानिक ये पता लगाने में सफल नहीं हुए हैं कि ऐसा क्यों होता है. लेकिन इसे आनुवंशिकता और वायरल इन्फेक्शन से जोड़कर देखा जाता है.
इससे पीड़ित लोगों में से लगभग दस फीसदी लोग टाइप 1 डाटबिटीज़ से पीड़ित होते हैं.
वहीं, टाइप 2 डायबिटीज़ में पेंक्रियाज़ में ज़रूरत के हिसाब से इंसुलिन नहीं बनता है या हार्मोन ठीक से काम नहीं करता है.
डायबिटीज़ के लक्षण क्या हैं?
- प्यास ज़्यादा लगना
- सामान्य से ज़्यादा पेशाब होना, विशेषकर रात में
- थकान महसूस होना
- बिना प्रयास किए वज़न गिरना
- मुंह में अक्सर छाले होना
- आंखों की रोशनी कम होना
- घाव भरने में समय लगना
ब्रिटिश नेशनल हेल्थ सर्विस के मुताबिक़, टाइप 1 डायबिटीज़ के लक्षण काफ़ी कम उम्र में ही दिखना शुरू हो जाते हैं.
वहीं, टाइप 2 डायबिटीज़ अधेड़ उम्र के लोगों (दक्षिण एशियाई लोगों के लिए 25 वर्ष की आयु) परिवार के किसी सदस्य के डायबिटीज़ से पीड़ित होने पर और दक्षिण एशियाई देशों, चीन, एफ्रो-कैरिबियन, अफ्रीका से आने वाले अश्वेतों को ये बीमारी होने का ख़तरा ज़्यादा होता है.
क्या आप डायबिटीज़ से बच सकते हैं?
डायबिटीज़ आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों पर आधारित होती है.
लेकिन आप अपने खून में ग्लूकोज़ की मात्रा को नियंत्रित करके खुद को डायबिटीज़ से बचा सकते हैं.
और संतुलित डाइट और व्यायाम करने से ऐसा किया जा सकता है.
वहीं, इसकी जगह आप अपनी रोजाना की डाइट में सब्जियां, फल, फलियां, और साबुत अनाज शामिल कर सकते हैं.
इसके साथ-साथ सेहतमंद तेल, बादाम के साथ-साथ सार्डाइंस, सालमन और मेकेरल जैसी मछलियों को भी अपने आहार में शामिल कर सकते हैं क्योंकि इनमें ओमेगा 3 तेल की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है.
शारीरिक व्यायाम से भी ब्लड सुगर लेवल को कम किया जा सकता है.
ब्रिटिश नेशनल हेल्थ सिस्टम के मुताबिक़, लोगों को एक हफ़्ते में लगभग ढाई घंटे एरोबिक्स एक्सरसाइज़ करनी चाहिए जिसमें तेज गति से टहलना और सीढ़ियां चढ़ना शामिल है.
अगर आपके शरीर का वज़न नियंत्रण में है तो आप ब्लड शुगर लेवल को आसानी से कम कर सकते हैं.
वहीं, अगर आप वज़न गिराना चाहते हैं तो एक हफ़्ते में 0.5 किलोग्राम से 1 किलोग्राम के बीच गिराएं.
इसके साथ ही ये भी ज़रूरी है कि सिगरेट न पिएं और दिल की बीमारी से बचने के लिए कोलेस्ट्रॉल लेवल की जांच कराते रहें.
बिना ख़र्च के ये काम करने से कम हो सकता है डायबिटीज़ का ख़तरा
हर आधे घंटे पर तीन मिनट की चहलकदमी से ब्लड में शुगर का स्तर कम होता है. ब्रिटेन में एक छोटे समूह पर हुए एक शोध में ये बात सामने आई है.
डायबिटीज़ चैरिटी कॉन्फ्रेंस में जारी किए गए इस शोध के मुताबिक़ सात घंटे के भीतर हर आधे घंटे के अंतराल पर तीन मिनट चहलकदमी करने से डायबिटीज़-1 के मरीज़ों के ब्लड शुगर स्तर में गिरावट देखी गई. ये शोध कुल 32 मरीज़ों पर किया गया है.
डायबिटीज़ यूके का कहना है कि ये ‘एक्टिविटी स्नैक’ बिना ख़र्च के व्यवहारिक बदलाव ला सकते हैं.
डायबिटीज़ यूके में शोध की प्रमुख डॉ. एलिज़ाबेथ रॉबर्टसन कहती हैं कि टाइप-1 डायबिटीज़ से ग्रसित लोगों के लिए रोज़ाना अपने रक्त में शुगर के स्तर को नियंत्रित करते रहना एक थकाऊ काम हो जाता है.
रॉबर्टसन कहती हैं, “यह अविश्वस्नीय रूप से उत्साहजनक है कि इन निष्कर्षों से पता चलता है कि सरल और व्यवहारिक बदलाव करने से- जैसे की चलते हुए फोन पर बात करना या एक नियमित अंतराल पर सीट छोड़ने की याद दिलाने वाला रिमाइंडर सेट करने का ब्लड शुगर स्तर पर इतना व्यापक असर हो सकता है.”
“हम इसके दीर्घकालिक प्रभावों को समझने के लिए आगे और शोध करने के लिए उत्साहित हैं.”
यूनिवर्सिटी ऑफ़ संडरलैंड से जुड़े और इस शोध के प्रमुख रिसर्चर डॉ. मैथ्यू कैंपबेल कहते हैं कि इस निम्न स्तर की गतिविधि के ऐसे परिणाम से वो हैरान हैं.
वो कहते हैं कि टाइप 1 डायबिटीज़ से ग्रसित लोगों के लिए ‘एक्टिविटी स्नैकिंग’ एक बड़े बदलाव की शुरुआत हो सकती है और वो आगे ज़्यादा नियमित शारीरिक अभ्यास कर सकते हैं. अन्य लोगों के लिए ये ब्लड शुगर स्तर को नियमित रखने का एक आसान तरीक़ा हो सकता है.
शोधकर्ता मानते हैं कि नियमित अभ्यास या काम के दौरान समय-समय पर ब्रेक लेने से डायबिटीज़ का ख़तरा कम हो सकता है.