यमुना का जल स्तर ख़तरे के निशान से ऊपर, साल 1978 से कैसे अलग हैं दिल्ली के हालात

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DMT : दिल्ली  : (13 जुलाई 2023) : –

दिल्ली में यमुना नदी का जलस्तर गुरुवार को बढ़कर 208.6 मीटर के पार पहुंच गया.

इससे पहले साल 1978 में आख़िरी बार यमुना का जलस्तर 207.49 मीटर तक पहुंचा था. तब दिल्ली में बाढ़ आ गई थी और इससे काफ़ी नुकसान हुआ था.

अभी फिलहाल दिल्ली के निचले इलाकों में पानी भर गया है और अगर जलस्तर बढ़ता जाता है तो रिहायशी इलाके भी इसकी जद में आ सकते हैं.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस सिलसिले में आपात बैठक भी बुलाई और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र भी लिखा है.

चिट्ठी में लिखा है कि “दिल्ली देश की राजधानी है और कुछ हफ़्तों में यहां जी-20 शिखर वार्ता होने जा रही है. देश की राजधानी में बाढ़ की ख़बर से दुनिया में अच्छा संदेश नहीं जाएगा. हम सबको मिलकर इस स्थिति से दिल्ली के लोगों को बचाना है.”

दिल्ली के उपराज्यपाल ने भी गुरुवार को दिल्ली डिज़ास्टर मैनेजमेंट कमेटी की एक बैठक बुलाई. इसमें सीएम केजरीवाल भी शामिल होंगे.

आम लोगों का डर

केंद्रीय जल आयोग (सीडब्लूसी) के फ्लड मॉनिटरिंग पोर्टल के अनुसार, पुरानी दिल्ली के पुल पर बुधवार सुबह 4 बजे पानी का स्तर 207 मीटर पर था, जो 2013 के बाद पहली बार इतना ज़्यादा है.

वहीं, सुबह आठ बजे तक ये बढ़कर 207.25 मीटर हो गया. इसकी वजह से दिल्ली के निचले इलाकों में पानी भर गया है.

दिल्ली में पिछले तीन दिनों से यमुना नदी का जलस्तर तेज़ी से बढ़ रहा है.

सोमवार रात 206 मीटर तक जलस्तर पहुंचने के बाद से ही निचले इलाकों में रह रहे लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाना शुरू कर दिया गया था.

ख़राब हालात को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने प्रभावित इलाकों में धारा 144 लागू कर दी है, जिसके तहत बिना कारण चार से अधिक लोग एक जगह पर इकट्ठा नहीं हो सकते.

दिल्ली में 1924, 1977, 1978, 1995, 2010 और 2013 में बाढ़ आई थी. अब कई लोगों को डर सता रहा है कि कहीं हालात 1978 की बाढ़ जैसे तो नहीं हो जाएंगे.

खबर में लिखा गया था – यमुना पर चार पुल – पुराना रेलवे पुल, जहां रेल और यातायात दोनों गुजरते हैं, वज़ीराबाद पुल, आयकर ऑफ़िस के पास का पुल और ओखला के पुल पर 48 घंटों के लिए यातायात के लिए बंद कर दिया गया है उत्तरी दिल्ली में 30 गांवों में बाढ़ आ गई है.

खबर के मुताबिक जीटी रोड से करनाल जाने वाली सड़क के एक बड़े हिस्से में पानी घुसने के कारण यातायात के लिए बंद कर दिया गया था. शाह आलम बांध में एक-दो स्थानों पर दरार आने के कारण प्रशासन ने उत्तरी दिल्ली की सात कॉलोनियों के निवासियों को सुरक्षित स्थानों पर चले जाने की चेतावनी दी थी. लद्दाखी बुद्ध विहार के पास नदी रिंग रोड के किनारे पर पहुंच गई थी.

इसके अलावा ख़बर में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश में राहत बचाव के लिए सेना को बुलाया गया.

यमुना का जलस्तर और बढ़ेगा?

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, दिल्ली इरीगेशन एंड फ्लड कंट्रोल डिपार्टमेंट के एक अधिकारी ने कहा कि नदी का जलस्तर अभी और बढ़ सकता है.

वहीं, मौसम विभाग के मुताबिक, उत्तराखंड में अगले दो दिनों तक बारिश हो सकती है.

इसके अलावा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी भारी बारिश की संभावना है.

हालांकि बायोडायवर्सिटी एक्सपर्ट डॉक्टर फैयाज खुदसर ने बीबीसी हिंदी से कहा बुधवार सुबह की तुलना में दोपहर में नदी के बहाव में कमी देखी गई थी.

उनके मुताबिक, पीछे से कम पानी छोड़े जाने से ऐसा हुआ और अगर स्थिति बरकरार रहती है तो पानी का बहाव कम होगा.

1978 से अलग हैं हालात?

डॉक्टर खुदसर का कहना है कि इस बाढ़ से फिलहाल उन्हीं लोगों पर असर हुआ है, तो एक्टिव फ़्लड प्लेन में बसे हैं.

बीबीसी से बात करते हुए वो कहते हैं, “अगर आप देखें तो इस बार की बाढ़ ने बता दिया है कि दिल्ली के फ़्लडप्लेन को अगर बचाकर नहीं रखा गया, और नदी इस स्तर पर आ जाए, तो पानी कहां जाएगा.”

वो कहते हैं कि 1978 में यमुना के तटबंध इतने अच्छे नहीं थे इसलिए पानी फैल कर कई जगहों घुस गया था. इस बार हालात इतने बुरे नहीं हैं.

उनके मुताबिक, “आज तटबंध हैं तो पानी फ़्लड प्लेन में सिमटा हुआ है.”

उनका कहना है कि फ़्लडप्लेन अगर इतना चौड़ा नहीं होता को पानी शहर में, लोगों के घर में घुस गया होता.

वो कहते हैं, “ये हमारे लिए सबक है कि फ़्लडप्लेन को और बेहतर बनाया जाए और बचाकर रखा जाए तो न सिर्फ़ बाढ़ से नहीं बचाएगी, बल्कि नदी को भी ज़िंदा रखेगी, और पानी की किल्लत से भी बचा कर रखेगी.”

उनका कहना है कि इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि बाढ़ के कारण आने वाले पानी को कैसे संग्रहित किया जा सकता है.

क्यों आई बाढ़ ?

डॉक्टर खुदसर कहते हैं, “कई बार दिल्ली में बारिश नहीं होती और फिर भी दिल्ली में नदी में पानी भर जाता है. जो बारिश के पानी से भरने वाली नदियां हैं या फिर हिमालय से निकलने वाली नदियां हैं, उनमें बाढ़ आना आम बात है, और ये नदी के लिए ज़िंदगी की तरह है.”

हालांकि उनका कहना है कि ऊपरी इलाकों में पानी को थामे रहने की क्षमता कम हो गई है, क्योंकि जंगल, ग्रासलैंड और वेटलैंड कम हो गए हैं, फ़्लड प्लेन को नुकसान होता जा रहा है. इसलिए निचले इलाकों में पानी ज़्यादा हो जाता है.

इसलिए ऊपरी इलाकों में पानी को रोकने के लिए व्यवस्था करनी चाहिए तभी हालात बदलेंगे.

केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, “हमने देखा है कि हथिनीकुंड बैराज से छोड़े गए पानी को पिछले वर्षों की तुलना में दिल्ली पहुंचने में कम समय लगा. इसका मुख्य कारण अतिक्रमण और गाद हो सकता है. पहले, पानी की प्रवाह के लिए अधिक जगह थी. अब, यह एक संकुचित क्रॉस-सेक्शन से होकर गुजरती है.”

राष्ट्रीय राजधानी से लगभग 180 किलोमीटर दूर हरियाणा के यमुनानगर में बैराज से पानी को दिल्ली तक पहुंचने में लगभग दो से तीन दिन लगते हैं.

इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज में नेचुरल हेरिटेज डिविज़न के प्रधान निदेशक मनु भटनागर ने दिल्ली में यमुना के उग्र होने का मुख्य कारण कम अवधि में अत्यधिक वर्षा बताया है.

उन्होंने पीटीआई से कहा, “लंबे समय तक एक जैसी मात्रा में पानी गिरने से ऐसी स्थिति पैदा नहीं होगी, क्योंकि इससे पानी को गुजरने का समय मिल जाता है.”

यमुना में क्या बाढ़ से क्या बदला

तेज़ बहाव के बीच यमुना के प्रदूषण में कमी आई है. डॉक्टर फ़ैय्याज खुदसर कहत हैं, “अभी के हालात ऐसे हैं कि यमुना का पूरा प्रदूषण बह गया है, ये बिल्कुल साफ़ है.”

हालांकि स्थिति सामान्य होने पर प्रदूषण फिर से बढ़ जाएगा.

दिल्ली में नदी के पास के निचले इलाके, जहां लगभग 41,000 लोग रहते हैं, बाढ़ के लिहाज से संवेदनशील माने जाते हैं. दिल्ली विकास प्राधिकरण, राजस्व विभाग और निजी लोगों की ज़मीन होने के बावजूद, नदी के बाढ़ क्षेत्र पर पिछले कुछ वर्षों में अतिक्रमण हुआ है.

पिछले साल सितंबर में यमुना ने दो बार खतरे के निशान को पार किया था और जलस्तर 206.38 मीटर तक पहुंच गया था.

2019 में, 18-19 अगस्त को नदी में 8.28 लाख क्यूसेक की पानी के साथ प्रवाह की चरम पर था और जल स्तर 206.6 मीटर तक बढ़ गया था. 2013 में यह 207.32 मीटर के स्तर पर पहुंच गया.

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