DMT : लीबिया : (28 अगस्त 2023) : –
लीबिया के प्रधानमंत्री ने इसराइली विदेश मंत्री के साथ अपनी विदेश मंत्री की अनौपचारिक मुलाक़ात के बाद उन्हें निलंबित कर दिया है.
लीबिया फ़लस्तीन का समर्थन करता है और इसराइल को मान्यता नहीं देता.
ऐसे में इस मुलाक़ात की ख़बर सार्वजनिक होने के बाद अरब बाहुल्य आबादी वाले लीबिया में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं.
इसराइल के विदेश मंत्री ली कोहेने ने कहा है कि लीबियाई विदेश मंत्री नज़ला अल-मेंगूश के साथ हुई मुलाक़ात दोनों मुल्कों के बीच रिश्ते स्थापित करने की ओर ऐतिहासिक कदम था.
इसराइल पिछले कुछ समय से उन अरब और मुस्लिम बाहुल्य आबादी वाले देशों के साथ संबंध सुधारने की कोशिश कर रहा है जो उसे एक मुल्क के रूप में मान्यता नहीं देते.
हालांकि, तीन लीबियाई प्रांतों का प्रतिनिधित्व करने वाली प्रेसिडेंशियल काउंसिल ने कहा है कि इसराइल के साथ संबंध सामान्य करना अवैध था.
लीबियाई संसद के सभापति के दफ़्तर ने मंगूश पर राजद्रोह करने का आरोप लगाया है.
इसके साथ ही प्रधानमंत्री अब्दुल हामिद देबिबाह ने उनके ख़िलाफ़ जांच शुरू करने की ओर कदम उठाए हैं.
इसराइल की ओर से इस तरह की बैठक के बारे में घोषणा करना काफ़ी आश्चर्यजनक रहा. क्योंकि उसे लीबिया के साथ अच्छे रिश्ते रखने के लिए नहीं जाना जाता है.
लीबिया इसराइल का धुर विरोधी रहा है और फ़लस्तीनी सघंर्ष का समर्थक रहा है, विशेष रूप से उस दौर में जब मुअम्मर गद्दाफ़ी लीबिया के नेता हुआ करते थे.
गद्दाफ़ी के दौर में हज़ारों यहूदियों को लीबिया से बाहर निकाला गया था और कई सिनोगॉग बर्बाद किए गए.
इसराइल का बयान अपने आप में काफ़ी अजीब है क्योंकि ये काफ़ी विस्तृत है.
इसकी एक वजह संभवत: लीबिया की ओर से किसी भी प्रत्याशित खंडन से बचना होगा.
क्योंकि इसमें ये स्वीकार किया गया कि रोम के एंतोनियो तजानी ने इस बैठक को होस्ट किया गया.
सोमवार को एक अज्ञात इसराइली अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि लीबिया में बैठक के लिए सहमति काफ़ी उच्च स्तर पर दी गई थी. अधिकारी ने कहा है ये वार्ता एक घंटे से अधिक चली है.
रविवार को जारी अपने बयान में कोहन ने कहा कि मेंगूश ने उनकी मुलाक़ात रोम में हुई है और उन्होंने ‘दोनों देशों के बीच संबंधों की अपार संभावनाओं पर चर्चा की’.
कोहेन ने कहा कि कृषि, जल प्रबंधन और लीबिया में यहूदी विरासत को संजोए रखने जैसे विषयों पर चर्चा हुई. बातचीत में लीबिया में यहूदी कब्रिस्तानों और इबादतगाहों की हालत सुधारने का मुद्दा भी उठाया गया.
लेकिन लीबिया के विदेश मंत्रालय ने इसराइल के प्रतिनिधि के साथ उनके विदेश मंत्री की मुलाक़ात की बात को सिरे से ख़ारिज कर दिया है.
उनकी दलील है कि इटली में जो कुछ हुआ है वो ‘एक अनौपचारिक और बिना किसी तैयारी की मुलाक़ात’ है.
बयान में ये भी कहा गया है कि मुलाक़ात के दौरान किसी तरह की कोई चर्चा, समझौता या कंसलटेशन नहीं हुई है और विदेश मंत्रालय इसराइल के साथ संबंधों को बहाल करने को पूर्णत ख़ारिज करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराता है.
मुलाक़ात की ख़बरें आने के बाद शुरू हुए विरोध प्रदर्शन राजधानी त्रिपोली के अलावा कई अन्य शहरों में भी फैल गए हैं.
कई स्थानों पर सड़कों पर टायर जलाए गए हैं और प्रदर्शनकारी फ़लस्तीन के झंडे लहराते देखे गए हैं.
लीबिया में वर्षों से उथल-पुथल रही है. देश के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से में दो अलग-अलग अंतरिम सरकारें हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है.
यही वजह है कि इसराइल के साथ कोई भी, डील इस राजनीतिक विभाजन की वजह में काफ़ी जटिल होने वाली है. ये 12 वर्ष पूर्व जनरल गद्दाफ़ी के शासन काल से तो निश्चित तौर पर अधिक जटिल होने वाली है.
लीबिया के पूर्वी हिस्से में तोबरुक शहर से लिबियन नेशनल आर्मी के जनरल ख़लीफ़ा हफ़्तार सरकार चला रहे हैं.
सारा पूर्वी लीबिया इसी सरकार के आदेश मानता है.
हाल के वर्षों में इसराइल ने अरब लीग के देशों के साथ औपचारिक संबंध स्थापित करने की शुरुआत की है. ये ऐसे देश हैं जिनके साथ इसराइल की अदावत दशकों पुरानी रही है.
साल 2020 से इसराइल ने संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सुडान और मोरोक्को के साथ अमेरिका की पहल पर समझौते किए हैं. इन समझौतों को अब्राहम अकॉर्ड्स का नाम दिया गया है.
फ़लस्तीनियों ने इन समझौतों पर दस्तख़्त करने वाले अरब देशों को गद्दार तक क़रार दिया है.
रविवार शाम लीबिया के राष्ट्रपति की परिषद ने इसराइल के साथ संबंधों पर सरकार से एक स्पष्टीकरण मांगा है. लीबिया की सेना इसी परिषद के नियंत्रण में होती है.
परिषद ने सरकार को लिखे पत्र में लिखा है कि ‘दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक किसी भी ढंग से लीबिया की विदेश नीति को नहीं दर्शाती. ऐसा कोई भी क़दम लीबिया के कानून का उल्लंघन है जिसके अनुसार इसराइल से संबंधों की बहाली एक अपराध है.’
परिषद ने ये भी कहा है कि अगर बेबाह ने मुलाक़ात की भी है तो उन्हें इसी क़ानून का पालन करना चाहिए.