DMT : सऊदी अरब : (16 अप्रैल 2023) : –
10 मार्च 2022 को सऊदी अरब और ईरान के बीच दोबारा राजनयिक बहाल करने को लेकर समझौता हो गया. इस समझौते का असर केवल इन दोनों देशों पर ही नहीं लेकिन पूरे मध्यपूर्व और विश्व की व्यवस्था पर भी पड़ेगा.
यह समझौता किसी पश्चिमी देश की मध्यस्थता से नहीं बल्कि चीन की मध्यस्थता से हुआ है जिसके बीते कई सालों से अमेरिका के साथ रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं.
ईरान और सऊदी अरब के बीच धार्मिक ही नहीं बल्कि राजनीतिक मतभेद भी रहे हैं. जहां सऊदी अरब एक राजतंत्र है जिसके पश्चिमी देशों से नज़दीकी संबंध हैं, वहीं ईरान थिओक्रेटिक देश है यानी यहां धर्मतंत्र है और अमेरिकी उसे अपने दुश्मनों की श्रेणी में रखता है.
यूक्रेन युद्ध के दौरान ईरान ने रूस का साथ दिया है इस कारण भी अमेरिका और दूसरे पश्चिमी मुल्क उससे नाराज़ हैं.
साथ ही ईरान और सऊदी अरब के बीच क्षेत्र में वर्चस्व के लिए यमन में कई सालों से लड़ाई भी चलती रही है. मगर अब दोनों देशों के बीच एकदूसरे की सार्वभौमिकता का सम्मान करने को लेकर समझौता हो गया है जिसका श्रेय काफ़ी हद तक सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को जाता है. उन्हें एमबीएस के नाम से भी जाना जाता है.
इस हफ़्ते हम जानने की कोशिश करेंगे कि सऊदी अरब को लेकर युवराज मोहम्मद बिन सलमान या एमबीएस का क्या सपना है?
कौन हैं मोहम्मद बिन सलमान?
जब सऊदी अरब के शाह सलमान ने 2015 सत्ता संभाली तब उनका राजा बनना अनअपेक्षित था क्योंकि अपने सात भाइयों में वो सबसे छोटे थे और उत्तराधिकार पर उनका दावा सबसे नीचे था. मगर जब उन्होंने सत्ता संभाली तब उनकी उम्र अस्सी वर्ष हो चुकी थी.
सऊदी अरब की गद्दी पर बैठते ही उनकी पहली ज़िम्मेदारी थी अपना युवराज यानी उत्तराधिकारी नियुक्त करना. उन्होंने अपनी तीसरी पत्नी से जन्मे सबसे बड़े बेटे मोहम्मद बिन सलमान को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और अब सऊदी अरब में एमबीएस को ही सबसे बड़े निर्णयकर्ता के रूप में देखा जाता है.
प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की उम्र तीस साल के क़रीब है. एमबीएस के बारे में हमारे पहले एक्सपर्ट स्टीफ़न कैलिन जो मध्यपूर्व में वॉल स्ट्रीट जर्नल के संवाददाता हैं, कहते हैं कि उनके युवा होने का असर उनकी नेतृत्व शैली में भी दिखाई देता है.
वो कहते हैं, “एमबीएस मिलेनियल पीढ़ी के हैं और आधुनिक तकनीक और ट्रेंड्स से भली भांति परिचित हैं. सऊदी अरब की लगभग सत्तर प्रतिशत आबादी तीस साल से कम की है, एमबीएस ख़ुद को उनके प्रतिनिधि की तरह देखते हैं. वो उन्हें आकर्षित करना चाहते हैं और उसे ध्यान में रखते हुए फ़ैसले करना चाहते हैं.”
अपनी छवि को ध्यान में रखते हुए एमबीएस ने सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के लिए एक योजना बनाई है. कच्चा तेल देश का मुख्य निर्यात है और वो इस पर अर्थव्यवस्था की निर्भरता को कम करना चाहते हैं.
स्टीफ़न कैलिन का कहना है, “2016 में उन्होंने एक महत्वाकांक्षी आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन कार्यक्रम की घोषणा की जिसका नाम है ‘विजन 2030’. इसके तहत उन्होंने आर्थिक और सामाजिक उदारीकरण के लक्ष्य तय किए हैं.”
औद्योगिक क्षेत्र में सऊदी अरब के विकास के लिए ज़रूरी है कि महिलाओं को श्रम और सार्वजानिक क्षेत्र में शामिल किया जाए. इसके लिए एमबीएस ने महिलाओं संबंधी नियमों मे ढील देने का फ़ैसला किया.
स्टीफ़न कैलिन कहते हैं, “महिलाएं कॉलेज और युनिवर्सिटियों में पहले भी पढ़ सकती थीं लेकिन उनके नौकरी करने को लेकर काफ़ी नियंत्रण थे. सऊदी अरब के श्रम क्षेत्र में महिलाओं की तादाद लगभग 37 प्रतिशत है. पहले उनके गाड़ी चलाने पर पाबंदी थी इसलिए काम करने जाने के लिए उन्हें ड्राइवर की ज़रूरत पड़ती थी. अब यह पाबंदी हटा दी गई है और महिलाएं ख़ुद गाड़ी चला कर काम पर जा सकती हैं.”
ज़ाहिर है कि इन फ़ैसलों ने देश के कई सामाजिक परंपराओं को दरकिनार कर दिया और एमबीएस धार्मिक नेताओं या दूसरे क्षेत्र से इन फ़ैसलो के विरोध को कुचलने के लिए तैयार थे. वो देश के धनी और प्रभावशाली तबके पर भी अपना वर्चस्व कायम करना चाहते थे.
नवंबर 2017 में उन्होंने देश के दौ सौ से अधिक धनी और प्रभावशाली लोगों को राजधानी रियाद के रिट्ज़ कार्लटन होटल में नज़रबंद कर लिया. इनमें से कई लोगों ने बाद में आरोप लगाया कि उन्हे पीटा गया, यातनाएं दी गईं और ब्लैकमेल किया गया.
इस विवादास्पद कदम की दुनिया के मीडिया में आलोचना हुई मगर देश पर प्रिंस सलमान की पकड़ और मज़बूत हो गई.
स्टीफ़न कैलिन कहते हैं इस घटना से कुछ हफ़्ते पहले एमबीएस ने अपने उस बड़े चचेरे भाई को सत्ता से बाहर कर दिया जो उत्तराधिकार की कतार में उनसे आगे थे और कई धार्मिक नेताओं के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की. उन्होंने उनकी ताक़त को मिलने वाली हर तरह की चुनौती को ख़त्म कर दिया. लेकिन उसके बाद जो हुआ उसने उन्हें पश्चिमी देशों के साथ टकराव के रास्ते पर पहुंचा दिया.
अक्तूबर 2018 मे इस्तांबुल में सऊदी दूतावास मे सऊदी सरकार के आलोचक और पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या कर दी गई. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस हत्या के लिए एमबीएस को ज़िम्मेदार ठहराया.
स्टीफ़न कैलिन कहते हैं, “उस घटना ने उनकी प्रतिष्ठा पर गहरा असर डाला. साथ ही इसकी वजह से सऊदी अरब में मानवाधिकार उल्लंघनों के दूसरे मामलों पर भी दुनिया का ध्यान गया जिन्हें पहले अनदेखा कर दिया जाता था. लेकिन ख़ाशोज्जी की हत्या के बाद अब वहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम लगाने वाले मामलों की तरफ भी लोगों का ध्यान गया.”
बात इस मामले पर भी होने लगी कि सऊदी अरब में अधिक आज़ादी की मांग करने वाली महिलाओं को कड़ी सज़ाएं दी जाती हैं. वहीं पिछले साल मार्च मे एक ही दिन में 81 लोगों को आतंकवादी घोषित करते हुए बिना मुक़दमे के मौत के घाट उतार दिया गया.
पश्चिमी देशों ने इस पर गौर किया और विश्व फ़ुटबाल संघ फ़ीफ़ा ने 2023 में महिला विश्व कप के लिए सऊदी अरब पर्यटन प्रशासन के प्रायोजन को रद्द कर दिया.
लेकिन क्या यह घटनाएं एमबीएस के आर्थिक उदारीकरण के एजेंडा को प्रभावित कर सकती हैं?
‘तरल सोने‘ का भंडार
सऊदी अरब के इतिहास का सबसे बड़ा नाटकीय मोड़ 1938 में उस वक्त आया जब वहां तेल बड़े भंड़ारों की खोज हुई. इस खोज ने आने वाले दशकों में देश का भविष्य तय किया.
बिल फ़ैरन प्राइस जो तेल ऊर्जा बाज़ार के विश्लेषक हैं. वो कहते हैं, “कालांतर में यह साबित हो गया कि सऊदी अरब में तेल के विशाल भंडार हैं. दूसरे महायुद्ध के बाद यह भी साफ़ हो गया था कि तेल ही पश्चिमी देशों के औद्योगिकीकरण का ईंधन होगा. इस तरह विश्व की अर्थव्यवस्था में इस ज़रूरत को पूरा करने वाले देश के रूप में सऊदी अरब की ख़ास जगह बन गयी थी.”
1970 और 1980 के दशक में तेल निर्यात से होने वाली आमदनी के चलते सऊदी अरब की अर्थव्यवसथा तेज़ी से बढ़ी. आज देश की राष्ट्रीय तेल निर्माण कंपनी सऊदी अरामको दुनिया की सबसे अधिक मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनी बन गयी है.
कंपनी के सफ़र के बारे में बिल फ़ैरन प्राइस कहते हैं, ” इस मुक़ाम तक पहुंचने के लिए सऊदी अरब ने एक अत्यंत व्यसायिक तरीक़े से काम करने वाली सऊदी अरामको कंपनी बनाई जिसके पास यहां तेल उत्पादन और विकास का एकाधिकार है. यह देश में रोज़गार देने वाली बड़ी कंपनियों में शामिल है और तेल से होने वाले मुनाफ़े को इस कंपनी ने क्षेत्रों के विकास पर भी लगाया है.”
सऊदी अरब तेल उत्पादक देशों के गुट ओपेक का संस्थापक सदस्य होने के नाते अब क्षेत्र की ही नहीं बल्कि विश्व की राजनीति में बड़ा प्रभाव रखता है.
बिल फ़ैरन प्राइस का मानना है कि सऊदी अरब ने हमेशा ही दुनिया में बड़ी भूमिका निभाई है. वर्तमान समय में वह यह काम और भी प्रभावशाली तरीके से कर रहा है.
विश्व के कुल तेल भंडार का दस प्रतिशत हिस्सा केवल सऊदी अरब में पाया जाता है जिसके चलते तेल के सबसे बड़े ग्राहकों यानी पश्चिमी देशों के साथ उसने मज़बूत संबंध बना लिए हैं. लेकिन हाल के समय में उसने पूर्वी देशों की ओर रुख़ किया है जहां वो चीन में बड़े पेट्रो केमिकल प्लांट लगा रहा है.
बिल फ़ैरन प्राइस इस बदलाव के बारे में कहते हैं, “यह सऊदी अरब और उसके पश्चिमी सहयोगियों के बीच संबंध में बदलाव आने का संकेत है. हम कह सकते हैं कि बीस साल पहले सऊदी अरब और अमरीका और यूरोपीय देशों के बीच संबंध जितने गहरे थे उतने अब नहीं रहे हैं.”
दशकों से एकदूसरे से लड़ रहे सऊदी अरब और ईरान के बीच हुआ ऐतिहासिक समझौता इसी का सूबूत है.
बिल फ़ैरन प्राइस कहते हैं कि “इससे चीन की महत्वाकांक्षाओं का संकेत तो मिलता ही है बल्कि यह भी पता चलता है कि अब यह तेल उत्पादक देश दूसरे देशों के साथ द्विपक्षीय नहीं बल्कि बहुपक्षीय व्यापारिक संबंध कायम करना चाहते हैं. यही नहीं एमबीएस ने सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों को विकसित करना भी शुरू कर दिया है.”
क्राउन प्रिंस सलमान का विज़न 2030
एमबीएस की ‘विज़न 2030’ योजना के बारे में हमने बात की सनम वकील से जो चैटहैम हाउस की उपाध्यक्ष हैं और मध्यपूर्व मामलों की विशेषज्ञ भी.
वो कहती हैं, “विज़न 2030 की घोषणा 2016-17 में की गई थी. इस योजना का मुख्य उद्देश्य सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था की तेल निर्यात पर निर्भरता को कम कर के उसमें विविधता लाना है. देश में दूसरे उद्योगों को विकसित करना, पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देना और नीजी उद्योगों को बढ़ावा देना है ताकि वो देश में अधिक रोज़गार पैदा कर सकें और सरकार पर से यह बोझ कम हो.”
मगर यह जितना काम सीधा और तार्किक लगता है उससे कहीं अधिक पेचिदा है.
सनम वकील कहती हैं, “यह एक चुनौतिपूर्ण काम है. सरकार अचानक अर्थव्यवस्था में विविधता नहीं ला सकती. उसके पहले उसे कई और कदम उठाने होंगे. विदेशी निवेश आकर्षित करना होगा, लोगों में उद्योग के प्रति रुझान विकसित करना पड़ेगा. इन सबके लिए देश में उद्योग के लिए अनुकूल माहौल बनाना पड़ेगा, नियामक क़ानूनों में बदलाव लाने होंगे. यह सभी कुछ विज़न 2030 का हिस्सा है.”
विज़न 2030 के तहत क्राउन प्रिंस एक अत्याधुनिक शहर नियोन सिटी बनाने की भी योजना है जिसका निर्माण शुरू हो चुका है. सनम वकील कहती हैं कि नियोन सिटी एमबीएस का आइडिया है और इस विशाल शहर में 2045 तक नब्बे लाख लोगों को बसाने का प्रावधान होगा.
सनम वकील को इस बारे में कुछ संदेह हैं, “नियोन सिटी एमबीएस का सपना है. उनके अनुसार यह एक ऐसा शहर होगा जिसमें वो सब होगा जिसके बारे में आप सपने में ही सोच सकते हैं, मिसाल के तौर पर उड़ने वाली कारें, अत्याधुनिक सुविधाएं, फ़्यूचरिस्टिक इमारतें. रेगिस्तान में यह एक अनूठा शहर होगा. मगर यह वाक़ई में इस तरह बन पाएगा या सिर्फ़ ख्यालों में ही रह जाएगा यह अभी स्पष्ट नहीं है. सऊदी अरब और क्षेत्र के दूसरे देशों में इस तरह के नए शहरों की योजनाएं बनी हैं लेकिन उस तरह के शहर नहीं बन पाए हैं.”
एक तरह से देखा जाए तो नियोन सिटी पूरे विज़न 2030 का ही नक़्शा है. इसे मानव सभ्यता में एक क्रांति की तरह पेश किया जा रहा है जहां सबसे बड़ी प्राथमिकता लोग होंगे. मगर इसके निर्माण की वजह से विस्थापित हो रहे लोगों को प्राथमिकता तो दूर, उनके विरोध के कारण मौत की सज़ा तक सुनाई जा रही है.
इस तरह की घटनाओं और देश के मानवाधिकार के रिकार्ड की वजह से इस परियोजना के लिए विदेशी निवेश में दिक्कतें आ रही हैं. मगर विश्व में अपनी छाप छोड़ने के लिए सऊदी अरब दूसरे कदम उठा रहा है.
ब्रिटन का न्यू कासल युनायटेड फ़ुटबाल क्लब अब सऊदी अरब के हाथों में है. अफ़वाह यह भी हैं कि अब सऊदी अरब की निगाहें बीस अरब डॉलर की फॉरम्यूला वन कार रेसिंग पर भी है. सनम वकील कहती हैं सऊदी अरब की सत्ता पर एमबीएस की दावेदारी इन परिवर्तनों की सफलता पर भी निर्भर करती है.
विश्व मंच पर सऊदी अरब
यह समझने के लिए कि इस समझौते की सऊदी अरब की भविष्य की योजना में क्या भूमिका हो सकती है एक बार लौटते हैं सऊदी अरब और ईरान के बीच हाल के दिनों में हुए कूटनितिक समझौते की तरफ.
हमारी एक्सपर्ट डीना असफंदियारी इंटरनैशनल क्राइसिस ग्रूप की मध्यपूर्व मामलों की वरिष्ठ सलाहकार हैं. वो कहती हैं, “यह समझौता मध्यपूर्व के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. दशकों तक इस क्षेत्र में ईरान और सऊदी अरब परस्पर प्रतिसपर्धी रहे हैं. पहले भी दोनों के बीच कूटनीतिक संबंधों की बहाली को लेकर प्रयास हुए हैं और दोनों के बीच फिर तनाव पैदा हो गया था. तो हमें कुछ महीनों तक देखना होगा कि क्या होता है.”
मगर पश्चिमी देशों के लिए चिंता का पहला कारण यह है कि यह समझौता चीन ने करवाया है. उनकी दूसरी चिंता ये है कि ईरान के पश्चिमी देशों के साथ संबंध ख़राब तो थे ही पर यूक्रेन युद्ध में वो रूस की मदद कर रहा है.
डीना असफ़ंदियारी इस घटनाक्रम को महत्वपूर्ण मानती हैं. वो कहती हैं, “सऊदी अरब का चीन के नज़दीक जाना, वह भी तब जब अमरीका के साथ उसके संबंध पहले ही उतार-चढाव से गुज़र रहे हैं बेहद महत्वपूर्ण है. सऊदी अरब अमेरिका से सुरक्षा का आश्वासन चाहता है मगर साथ ही स्वतंत्र विदेश नीति भी बनाना चाहता है जिसके लिए अमेरिका तैयार नहीं दिखता. ऐसे में दूसरे देशों के साथ वो एपने संबंध मज़बूत कर रहा है. इस लिहाज़ से चीन उसके लिए महत्वपूर्ण है.”
अब लौटते हैं अपने मुख्य सवाल पर कि सऊदी अरब के लिए सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की क्या योजना है? वो देश की अर्थव्यवस्था की तेल निर्यात पर निर्भरता को कम कर के उसमें विविधता लाना चाहते हैं. इसके लिए उन्हें समाज का उदारीकरण करना होगा निजी क्षेत्र को विकसित करना होगा. साथ ही उन्हें ईरान के साथ महंगे संघर्षों को टालना होगा.
डीना असफ़ंदियारी का कहना है, “ईरान के साथ सऊदी अरब का समझौता एमबीएस की योजनाओं की राह पर है. वो एक प्रभावशाली और स्वतंत्र नेता के रूप में अपनी छवि बनना चाहते हैं और सऊदी अरब को दुनिया में अधिक प्रभावशाली बनाना चाहते हैं. इसके लिए वो कई देशों के साथ संबंध कायम करना चाहते हैं, और वो यह काम चतुराई से कर रहे हैं.
साथ ही देश के भीतर वो सत्ता पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए अपने विरोधियों को कुचल रहे हैं जिसकी वजह से पश्चिमी देशों में नाराज़गी है. यही वजह है कि वो अब पूर्वी देशों, ख़ास तौर पर चीन की ओर रुख़ कर रहे हैं.
मगर उनकी योजना इस पर भी निर्भर रहेगी कि इसराराइ इसे कैसे देखेगा और वो इस पर कैसे प्रतिक्रिया देगा. इसराइल के अमेरिका से साथ क़रीबी संबंध हैं.