सऊदी अरब का यह फ़ैसला क्या भारत के लिए चिंता बढ़ाने वाला है?

Hindi International

DMT : सऊदी अरब : (13 जून 2023) : –

दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देश सऊदी अरब और सर्वाधिक ऊर्जा खपत वाले देश चीन के बीच रिश्तों का आधार अभी तक तेल ही रहा है, लेकिन अब इन दोनों देशों के बीच रिश्तों की तस्वीर बदल रही है.

इस सम्मेलन में दोनों देशों के बीच दस अरब डॉलर के समझौते हुए हैं.

पिछले हफ़्ते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी अरब के प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन-सलमान ने फ़ोन पर बात की थी. दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की थी.

चीन की ओर से ईरान और सऊदी अरब के बीच राजनयिक संबंध बहाल कराए जाने के बाद दोनों नेताओं की यह पहली बातचीत थी. पीएम मोदी और सऊदी क्राउन प्रिंस की बातचीत के बाद ही सऊदी अरब ने चीन से अहम कारोबारी समझौते किए हैं.

इससे पहले सऊदी अरब ने श्रीनगर में जी-20 की एक बैठक में अपने प्रतिनिधि को नहीं भेजा था. श्रीनगर में जी-20 की बैठक कराने पर पाकिस्तान ने आपत्ति दर्ज कराई थी.

पाकिस्तान की आपत्ति के बाद चीन, सऊदी अरब, तुर्की और मिस्र ने अपने प्रतिनिधि नहीं भेजे थे. इस साल जी-20 की अध्यक्षता भारत के पास है और नवंबर महीने में नई दिल्ली में जी-20 समिट होना है.

अरब-चीन सम्मेलन के दौरान जब सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अज़ीज बिन सलमान से दोनों देशों के बीच संबंधों की पश्चिमी देशों की आलोचना के संबंध में सवाल पूछा गया तो उन्होंने इसे ख़ारिज करते हुए कहा, “मैं इसे नज़रअंदाज करता हूं…क्योंकि एक कारोबारी व्यक्ति के रूप में…अब आप वहीं जाएंगे जहां आपको मौक़ा दिखेगा.”

उन्होंने कहा कि हमारे सामने ऐसा कोई विकल्प नहीं होना चाहिए कि हमें दो में से किसी एक को चुनना पड़े.

इसका सीधा मतलब यह था कि सऊदी अरब के सामने ऐसी स्थिति नहीं आनी चाहिए कि उन्हें चीन या फिर पश्चिम देशों में से किसी एक को चुनना पड़े.

कुछ दिन पहले ही अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने सऊदी अरब की यात्रा की थी और अब रियाद में चीन के निवेशकों और कारोबारियों की भीड़ थी. ये घटनाक्रम सऊदी अरब की बदलती प्राथमिकताओं के बारे में बहुत कुछ बताता है.

लेकिन यहां से एक सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि अगर चीन, सऊदी अरब के बहुत क़रीब आता है तो भारत के लिए इसके मायने क्या होंगे, क्योंकि चीन भारत के लिए एक सुरक्षा ख़तरे के रूप में देखा जाता है.

चीन जिस तरीक़े से मध्य-पूर्व में आगे बढ़ रहा है, उसके मुक़ाबले भारत कहां खड़ा है? भारत की क्या तैयारी है और इसका प्रभाव किस तरह से देश पर पड़ेगा?

सऊदी-चीन के बीच मज़बूत होते रिश्ते

मध्य पूर्व के दो प्रतिद्वंद्वी देश ईरान और सऊदी अरब ने हाल ही में जब दोस्ती के लिए हाथ आगे बढ़ाए तो हर तरफ़ चीन की चर्चा होने लगी.

सात साल बाद दोनों देशों के बीच राजनयिक रिश्ते बहाल करने में चीन ने अहम भूमिका निभाई थी. यह समझौता चीन के शीर्ष राजनयिक वांग यी की मध्यस्थता में हुआ.

साल 2016 में सऊदी अरब में शिया धर्मगुरु को फांसी दिए जाने के बाद तेहरान स्थित सऊदी दूतावास में ईरानी प्रदर्शनकारी घुस गए थे. इस घटना के बाद सऊदी अरब ने ईरान से अपने रिश्ते तोड़ लिए थे.

दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के पश्चिमी एशिया अध्ययन विभाग की प्रोफेसर सुजाता ऐश्वर्या मानती हैं कि चीन का ऐसा करना उनकी दूरदर्शिता को दर्शाता है.

वह कहती हैं, “सऊदी अरब और ईरान दोनों देश बात कर रहे थे लेकिन एक दीवार थी जिसे चीन ने हटा दिया.”

इसके बाद दिसंबर 2022 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सऊदी अरब की यात्रा की. उन्होंने इस दौरान दोनों देशों के बीच तेल व्यापार को चीनी मुद्रा युआन में करने की मांग की थी, जबकि दुनियाभर में तेल का अधिकतम आयात-निर्यात डॉलर में होता है. यह एक ऐसी मांग थी जिसका सीधा असर डॉलर की मज़बूती पर होगा.

सऊदी चीन की तरफ क्यों बढ़ रहा है?

क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के कमान संभालने के बाद से ही सऊदी अरब अपनी तेल आधारित अर्थव्यवस्था में और विविधता लाने के प्रयास कर रहा है.

सुजाता ऐश्वर्या कहती हैं, “सऊदी की तेल आधारित अर्थव्यवस्था आने वाले समय में धीरे-धीरे कमज़ोर हो जाएगी. इसी को ध्यान में रखते हुए यह तैयारी की जा रही है. पिछले कई सालों में सऊदी अरब ने पेट्रो केमिकल सेक्टर को बहुत बढ़ावा दिया है. यह सेक्टर भी तेल और गैस पर ही निर्भर करता है.”

अरब-चीन व्यापार सम्मेलन में हुए नए समझौतों को विदेशी मामलों के एक्सपर्ट क़मर आगा सऊदी अरब की विदेश नीति में बड़ा बदलाव मानते हैं.

उनका भी कहना है कि अब सऊदी अरब बहुध्रुवीय दुनिया की तरफ़ बढ़ रहा है. वह कहते हैं, “सऊदी चीन से भी दोस्ती कर रहा है और रूस से भी. उनके भारत से भी अच्छे संबंध हैं. इतना ही नहीं उनकी विदेश नीति में जापान और दक्षिण कोरिया की भी जगह है. वे अपने रिश्तों को एक देश तक सीमित नहीं रख रहे हैं.”

क़मर आगा कहते हैं, “क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान नई पॉलिसी लाए हैं, जिसके तहत नए शहरों को बनाना और विदेशी इन्वेस्टमेंट लाना शामिल है, जिसके तहत उन्हें चीन एक महत्वपूर्ण प्लेयर दिखाई दे रहा है.”

एक देश पर निर्भर न रहकर कई देशों के साथ संबंध बनाने की बात सुजाता ऐश्वर्या भी करती हैं. वे कहती हैं जैसे भारत ने अपनी हथियारों की निर्भरता को रूस पर कम कर दूसरे देशों का रुख़ किया है. सऊदी भी इसी राह पर है.

खाड़ी देशों में पश्चिम का डर

20 साल पहले जब अमेरिका ने इराक़ पर हमला किया था, तब वह पश्चिमी एशिया में एक बड़ी ताक़त था, लेकिन बीते सालों में अमेरिका के दबदबे वाली यह स्थिति काफ़ी बदल गई है. चीन अमेरिका को पीछे धकेल रहा है.

रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद एक नया डर पश्चिमी एशिया के देशों को सता रहा है. उसके केंद्र में भी पश्चिमी देश ही हैं.

कमर आगा कहते हैं, “अमेरिका ने जिस तरीके से रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं. पश्चिमी देशों में रूस के करोड़ों डॉलर के इनवेस्टमेंट प्रोजेक्ट सीज कर दिए हैं. उससे पश्चिमी एशिया के देशों में डर बढ़ा है. उन्हें लगता है कि उनका पैसा पश्चिमी देशों में अब सुरक्षित नहीं है. वो अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों की बजाय उभर रही अर्थव्यवस्थाओं में पैसा लगाना चाहते हैं.”

अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को आर्थिक मदद के साथ रूस पर प्रतिबंध लगाकर उसे युद्ध में कमजोर करने की कोशिश की हैं.

सुजाता ऐश्वर्या कहती हैं, “पश्चिमी देश प्रतिबंधों को हथियारों की तरह इस्तेमाल करते हैं, जिसकी वजह से पश्चिमी एशिया के देशों का डरना जायज़ है.”

वह कहती हैं, “चीन की ख़ास रणनीति है कि वह पश्चिमी मुल्कों की तरह किसी देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देता.”

क्या सऊदी-चीन कैंप में चला जाएगा?

विदेश मामलों के एक्सपर्ट क़मर आगा कहते हैं, “ये सोचना कि सऊदी अरब चीन कैंप में चला जाएगा ये बिल्कुल ग़लत है. चीन का समर्थन अरब देशों में बिल्कुल नहीं है. यह जो समझौते हुए हैं, वे एक सरकार के दूसरी सरकार के साथ हैं. चीन के शिनजियांग में जो मुस्लिम लोगों के साथ हो रहा है, उसकी वजह से अरब देशों के लोग चीन को पसंद नहीं करते.”

वे कहते हैं, “भारत और अरब संबंध सभ्यताओं के संबंध हैं. मुझे नहीं लगता कि ये कभी ख़त्म हो सकते हैं. कोरोना महामारी से पहले क़रीब 75 लाख लोग खाड़ी क्षेत्र में काम कर रहे थे, अकेले सऊदी अरब में करीब 25 लाख भारतीय होंगे जो वहां की जनसंख्या के हिसाब से अच्छा बड़ा नंबर है.”

“भारतीय वर्कर की खाड़ी देशों में बहुत अच्छी छवि है. वे मानते हैं कि भारतीय वर्कर बहुत ईमानदारी से काम करते हैं और पैसा जमा कर वापस भारत लौट जाते हैं. भारतीय वर्कर इंग्लिश भी बोल लेते हैं. कंप्यूटर भी चला लेते हैं. टेक्निकल भी हैं. चीन के वर्कर ज्यादातर चीनी प्रोजेक्ट में जाते हैं, क्योंकि भाषा की वजह से उन्हें परेशानी होती है.”

क्या बढ़ेगी भारत की चिंता

एक तरफ डोकलाम से लेकर गलवान तक भारत-चीन की सीमाओं पर पिछले कुछ समय से तनाव बढ़ा है, वहीं दूसरी तरफ चीन, भारत के पारंपरिक खाड़ी मित्र देशों के साथ संबंधों को मज़बूत कर रहा है.

सुजाता ऐश्वर्या कहती हैं, “भारत कितना भी अपने आप को ग्रेट पावर कहे लेकिन हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं. चीन हमारे ट्रेडिशनल पार्टनर के यहां अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है. ज़ाहिर है वो ऐसा कर भारत के भारत के प्रभाव को कम करेगा, क्योंकि जहां निवेश बढ़ता है, वहां दोस्ती भी बढ़ती है.”

सवाल है कि भारत, चीन की तरह इस तरह से खाड़ी देशों में बड़े समझौते क्यों नहीं कर पा रहा है. इस पर बात करते हुए सुजाता कहती हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था की हालत बहुत ख़राब है. तमाम प्रतिबंधों के बाद ईरान हमसे अच्छा कर रहा है. वहीं चीन की बात करें तो उसकी अर्थव्यवस्था करीब 17 ट्रिलियन डॉलर की जबकि भारत क़रीब तीन ट्रिलियन डॉलर पर है. चीन के पास पैसा है, कौशल है जिसका वह इस्तेमाल कर रहा है और चीन सेंट्रिक दुनिया की तरफ क़दम बढ़ा रहा है.”

सुजाता ऐश्वर्या भारत में हो रहे मुस्लिमों के साथ व्यवहार पर भी सवाल उठाती हैं. वे कहती हैं, “भारत में मुस्लिमों के साथ जो हो रहा है उसका प्रभाव विदेश नीति पर पड़ रहा है. इन देशों को भारत में इस्लाम धर्म ख़तरे में दिखाई दे रहा है, जो भारत के लिए अच्छा नहीं है. नूपुर शर्मा केस में भारत को खाड़ी देशों से आलोचना का सामना करना पड़ा.”

सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है. सऊदी अरब और भारत के संबध मोदी सरकार में कई मोर्चों पर अच्छे हुए हैं लेकिन यूक्रेन और रूस में छिड़ी जंग के बाद से बदलती विश्व व्यवस्था को लेकर चीज़ें तेज़ी से बदल रही हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *