DMT : बेलारूस : (28 मार्च 2023) : –
रूस ने कहा है कि वो बेलारूस में परमाणु हथियार तैनात करेगा. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि इस क़दम से ‘अप्रसार समझौते’ का उल्लंघन नहीं होगा. उन्होंने कहा कि इसका कंट्रोल वो बेलारूस को नहीं देंगे.
बेलारूस यूक्रेन के साथ और नेटो के सदस्यों पोलैंड, लिथुआनिया और लातविया के साथ एक लंबी सीमा साझा करता है. 1990 के दशक के मध्य के बाद यह पहली बार होगा जब रूस के परमाणु हथियार दूसरे देश में होंगे.
1991 में सोवियत विघटन के बाद ये हथियार चार नए स्वतंत्र देशों- रूस, यूक्रेन, बेलारूस और कज़ाख़स्तान में चले गए थे. 1996 में रूस को सभी हथियारों का हस्तांतरण किया गया था.
बेलारूस पर लिए गए फ़ैसले को पुतिन एक सामान्य क़दम बता रहे हैं. उन्होंने कहा, “अमेरिका दशकों से ऐसा कर रहा है. उन्होंने लंबे समय से अपने सहयोगी देशों में अपने परमाणु हथियार तैनात कर रखे हैं.”
रूस अगले हफ़्ते से हथियारों को चलाने की ट्रेनिंग देना भी शुरू करेगा. राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि बेलारूस में परमाणु हथियारों के भंडारण सुविधा का निर्माण एक जुलाई से शुरू होगा.
पश्चिमी देशों के लिए चिंता का कारण?
रूस के एलान पर अमेरिका ने कहा कि उसे नहीं लगता कि रूस न्यूक्लियर हमले की तैयारी कर रहा है. अमेरिका के रक्षा विभाग ने एक बयान में कहा, “हमें अपनी नीतियों में बदलाव का कोई कारण नज़र नहीं आ रहा है.”
“हम नेटो अलांयस की सामूहिक रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं.”
नेटो ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बयान की निंदा की है. नेटो ने पुतिन के इस बयान को “ख़तरनाक और गैर-ज़िम्मेदाराना” बताया है.
नेटो ने कहा कि वो इंतज़ार करते रहे, लेकिन रूस की परमाणु रणनीति में कोई बदलाव नहीं देखने को मिल रहा है.
यूक्रेन के नेशनल डिफ़ेंस काउंसिल के सचिव ओलेक्सी डेनिलोव ने कहा कि यह क़दम बेलारूस को अस्थिर कर देगा और उसकी संप्रभुता छीन लेगा.
अमेरिका के बयान के क्या मायने
अमेरिका के पूरे यूरोप में पांच जगहों पर परमाणु हथियार हैं- बेल्जियम, नीदरलैंड्स, जर्मनी, इटली और तुर्की.
नॉन प्रॉलिफ़रेशन ट्रीटी (एनपीटी) यानी परमाणु अप्रसार संधि में ये कहा गया है कि परमाणु हथियार किसी को ट्रांसफ़र नहीं किए जा सकते.
जेएनयू के सेंटर फ़ॉर रशियन एंड सेंट्रल एशियन स्टडीज़ में असोसिएट प्रोफ़ेसर अमिताभ सिंह के मुताबिक़, “अमेरिका जानता है कि बेलारूस में तैनाती के बावजूद परमाणु हथियार के इस्तेमाल की उम्मीदें कम हैं. पुतिन ख़ुद ही कह रहे हैं कि कंट्रोल उनके पास है.”
वहीं चीन ने रूस से साफ़ किया है कि वो परमाणु हथियार का इस्तेमाल नहीं करेगा.
सिंह के मुताबिक़, “अमेरिका आश्वस्त है कि रूस परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेगा.”
विदेशी मामलों के जानकार हर्ष पंत का मानना है कि अमेरिका परंपरागत रणनीति के तहत ही चल रहा है. वो कहते हैं, “अमेरिका इस मुद्दे को तूल नहीं देना चाहता, रूस परमाणु हमले की धमकी देना चाहता है, लेकिन अमेरिका हमला नहीं करने की पुरानी नीति पर ही चल रहा है.”
रूस के लिए ये कितना ज़रूरी क़दम
बेलारूस की सीमा तीन नेटो देशों से मिलती हैं- पोलैंड, लातविया और लिथुआनिया.
पोलैंड पहले अमेरिका से अपने देश में न्यूक्लियर हथियार तैनात करने की मांग कर चुका है. हालांकि अमेरिका की ओर से इस पर कोई जवाब नहीं आया.
अमिताभ सिंह मानते हैं कि ये एक तरह से पोलैंड के लिए जवाब है. वो कहते हैं, “रूस दिखाना चाहता है कि वो परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को नकार नहीं रहा है, ज़रूरत पड़ी तो ये किया जा सकता है.”
हालांकि जानकार मानते हैं कि इस क़दम से रूस को कोई बहुत बड़ी रणनीतिक बढ़त नहीं मिल रही. यूक्रेन युद्ध के मद्देनज़र भी रूस के इस क़दम से कोई फ़ायदा नहीं नज़र आ रहा.
पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया
पिछले साल जुलाई में ब्रिटेन ने कहा था कि बेलारूस अगर यूक्रेन की जंग में रूस का समर्थन करता है तो वो उस पर कई तरह से प्रतिबंध लगाएगा.
लेकिन बेलारूस में परमाणु हथियारों की तैनाती को लेकर अमेरिका के अलावा किसी बड़े पश्चिमी देश की प्रतिक्रिया नहीं आई है.
पंत कहते हैं, “इन देशों की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया आई नहीं है क्योंकि इन्हें कोई ख़तरा फ़िलहाल दिख नहीं रहा है. परमाणु हथियारों की जगह बदलने से बहुत फ़र्क नहीं पड़ता.”
अमिताभ सिंह का कहना है कि इसके साथ ही अमेरिका इस बात की संभावना देख रहा है कि अगर पोलैंड फिर से कहता है या फिर तनातनी बढ़ती है, तो वो वहां परमाणु हथियार तैनात करने के बारे में सोच सकता है.
रूस-यूक्रेन युद्ध पर क्या असर होगा?
जानकारों का कहना है कि यूक्रेन युद्ध पर भी इसका कोई बड़ा असर नहीं होगा.
अमिताभ सिंह के मुताबिक़, “परमाणु हथियार रूस के लिए अंतिम विकल्प होगा. इसका इस्तेमाल यूक्रेन के साथ तो क़तई नहीं होगा. लड़ाई बहुत बढ़ी और दूसरे देश सामने से शामिल हुए, तभी इसके इस्तेमाल के बारे में रूस सोच सकता है.”
बेलारूस को क्या होगा फ़ायदा?
पश्चिमी देशों के लिए बेलारूस, रूस के साथ प्रतिबंधों के लिए एक बहुत बड़ा टार्गेट होगा.
वहां के शासक एलेक्ज़ेंडर लुकाशेंको हैं. पिछले चुनाव के नतीजों को यूरोपीय यूनियन ने नकार दिया था. लुकाशेंको के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने वाली स्वेतलाना तिखानोव्स्क्या को निष्कासित कर दिया गया था.
तिखानोव्सकाया ने कहा कि रूस द्वारा परमाणु हथियारों की तैनाती “बेलारूसी लोगों की इच्छा के विपरीत है”
अमिताभ सिंह कहते हैं, “लुकाशेंको को लगता है कि उन्हें अगर पदस्थ करने की कोशिश हुई को परमाणु हथियारों के वहां तैनात रहने से वो सुरक्षित रहेंगे.”
वहीं पंत का मानना है कि भाविष्य में बेलारूस के लिए रूस के साथ बातचीत और अपनी बातों को मनवाना आसान हो जाएगा.
भारत की कोई भूमिका होगी?
परमाणु हथियारों को बेलारूस में तैनात करने में कुछ महीनों का वक्त लगेगा. इस बीच कुछ देशों के साथ बातचीत भी संभव है. भारत के रूस और अमेरिका के साथ बेहतर संबंध हैं, लेकिन इसकी संभावना कम ही है कि भारत रूस को इस फ़ैसले से पीछे हटने के लिए कहेगा.
अमिताभ सिंह ने कहा, “भारत के अमेरिका और रूस के साथ अच्छे संबंध हैं. भारत शुरुआत कर सकता है, कोई फ़ोरम बनाकर या फिर जी-20 फ़ोरम के ज़रिए. लेकिन स्वतंत्र रूप से कुछ नहीं कर पाएगा क्योंकि जब चीन ने मिडिएट करना चाहा तो पश्चिमी देश उस पर आरोप लगाने लगे. भारत इससे बचना चाहेगा.”
किन देशों के पास है परमाणु हथियार
दुनिया में अभी नौ देशों के पास परमाणु हथियार हैं.
ये देश हैं – अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ़्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, इसराइल और उत्तर कोरिया.
कितनी संख्या है इनकी
वैसे परमाणु हथियारों के बारे में कोई भी देश खुलकर नहीं बताता, मगर ऐसा समझा जाता है कि परमाणु शक्ति संपन्न देशों की सेना के पास 9,000 से ज़्यादा परमाणु हथियार हैं.
स्वीडन स्थित संस्था थिंक टैक ‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (सिप्री) ने पिछले वर्ष अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि 2020 के आरंभ में इन नौ देशों के पास लगभग 13,400 परमाणु हथियार थे जिनमें से 3,720 उनकी सेनाओं के पास तैनात थे.
सिप्री के अनुसार, इनमें से लगभग 1800 हथियार हाई अलर्ट पर रहते हैं यानी उन्हें कम समय के भीतर दाग़ा जा सकता है.
इन हथियारों में अधिकांश अमेरिका और रूस के पास हैं. सिप्री की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के पास 2020 तक 5,800 और रूस के पास 6,375 परमाणु हथियार थे.
इन्हीं नौ देशों के पास परमाणु हथियार क्यों हैं
1970 में 190 देशों के बीच परमाणु हथियारों की संख्या सीमित करने के लिए एक संधि लागू हुई जिसका नाम है परमाणु अप्रसार संधि या एनपीटी.
अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ़्रांस और चीन भी इसमें शामिल हैं. मगर भारत, पाकिस्तान और इसराइल ने इस पर कभी हस्ताक्षर नहीं किया और उत्तर कोरिया 2003 में इससे अलग हो गया.
इस संधि के तहत केवल पाँच देशों को परमाणु हथियार संपन्न देश माना गया जिन्होंने संधि के अस्तित्व में आने के लिए तय किए गए वर्ष 1967 से पहले ही परमाणु हथियारों का परीक्षण कर लिया था.
ये देश थे – अमेरिका, रूस, फ़्रांस, ब्रिटेन और चीन.
संधि में कहा गया कि ये देश हमेशा के लिए अपने हथियारों का संग्रह नहीं रख सकते यानी उन्हें इन्हें कम करते जाना होगा.
साथ ही इन देशों के अलावा जितने भी देश हैं उन पर परमाणु हथियारों के बनाने पर रोक भी लगा दी गई.
इस संधि के बाद अमेरिका, ब्रिटेन और रूस ने अपने हथियारों की संख्या में कटौती की.
मगर बताया जाता है कि फ़्रांस और इसराइल के हथियारों की संख्या लगभग जस की तस रही.
वहीं भारत, पाकिस्तान, चीन और उत्तर कोरिया के बारे में फ़ेडरेशन ऑफ़ अमेरिकन साइंटिस्ट्स ने कहा कि ये देश अपने परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ाते जा रहे हैं.