अधिकतर दक्षिण एशियाई देश बैलेट पेपर के पक्षधर

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DMT : बांग्लादेश  : (08 अप्रैल 2023) : –

कारण भले तकनीकी और वित्तीय हों, या फिर जनता की ईवीएम विरोधी बनती राय, लेकिन यह सच्चाई है कि बांग्लादेश सहित दक्षिण एशिया के अधिकतर देशों का इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से मोहभंग होने लगा है। अगर परिस्थितियां ऐसी ही रहीं तो भारत और भूटान को छोड़कर आसपास के सभी पड़ोसी देशों में मतदान बैलेट पेपर से हो सकते हैं। इनमें श्रीलंका, मालदीव, नेपाल और पाकिस्तान आदि शामिल हैं। फिलहाल बांग्लादेश ने नयी बहस शुरू की है।

बांग्लादेश में इस साल के दिसंबर, या 2024 की शुरुआत में आम चुनाव हैं। वहां के निर्वाचन आयोग ने निर्णय किया है कि मतदान में ईवीएम का इस्तेमाल नहीं करेंगे। बांग्लादेश चुनाव आयोग के सचिव जहांगीर आलम ने बयान दिया कि अगले आम चुनाव में 150 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए हमने ईवीएम से मतदान का प्लान किया था, जिसके लिए आठ हज़ार करोड़ टका ख़र्च होना था। योजना आयोग ने इसे हरी झंडी नहीं दी, चुनांचे इस योजना को हम रद्द कर रहे हैं। बांग्लादेश चुनाव आयोग को एक लाख 10 हज़ार ईवीएम को ‘रिफर्बिश’ करना था। बांग्लादेश मशीन टूल फैक्टरी ने 1,260 करोड़ टका की मांग की थी। वित्त मंत्रालय ने इसके लिए भी हाथ खड़े कर दिये थे। जहांगीर आलम ने कहा, ‘अब हमारे पास यही विकल्प बचा है कि आने वाला आम चुनाव मतपत्र के ज़रिये करें।’

श्रीलंका, मालदीव, अफग़ानिस्तान, नेपाल, पाकिस्तान और अब बांग्लादेश इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के ज़रिये चुनाव कराने से लगभग पीछे हट चुके हैं। केवल भारत और भूटान दक्षिण एशिया के दो देश हैं, जहां ईवीएम के ज़रिये चुनाव कराये जा रहे हैं। भूटान का ख़र्चा-पानी चूंकि भारत देता रहा है, इसलिए ईवीएम के जरिये उसके साढ़े चार लाख वोटरों के मतदान का इंतज़ाम नयी दिल्ली के लिए कोई मुश्किल नहीं है। नेपाल में पहली बार 2008 में ईवीएम का इस्तेमाल काठमांडो के एक चुनाव क्षेत्र में बतौर पायलट प्रोजेक्ट हुआ था। बाद के 10 वर्षों में सभी चुनाव मतपत्रों के आधार पर ही हुए। नवंबर 2022 में संसदीय चुनाव से दो माह पहले, 4 अगस्त को नेपाल के मुख्य निर्वाचन आयुक्त दिनेश कुमार थपलिया को घोषणा करनी पड़ी कि हम आम चुनाव बैलेट पेपर पर ही करायेंगे। दक्षिण एशियाई देशों में इवीएम का इस्तेमाल जिस तरह सिमट चुका है, उसे घ्यान में रखकर इस विषय पर नये सिरे से विमर्श की आवश्यकता है।

उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश की 39 रजिस्टर्ड पार्टियों में से 19 के नेताओं ने ईवीएम के विरुद्ध प्रतिरोध व्यक्त किया था। 17 से 31 जुलाई, 2022 तक बांग्लादेश चुनाव आयोग ने ईवीएम के हवाले से कई बैठकें की थीं। मुख्य विपक्षी बीएनपी, जातीय पार्टी (इरशाद), गणो फोरम, कम्युनिस्ट पार्टी बांग्लादेश समेत 19 दल इस पक्ष में बिल्कुल नहीं थे कि मतदान में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल हो। सत्तारूढ़ अवामी लीग, साम्यबादी दल, बिकल्प घारा बांग्लादेश जैसी पार्टियां चुनाव में ईवीएम के इस्तेमाल के पक्ष में थीं। 6 सितंबर, 2022 को बांग्लादेश के 39 प्रमुख नागरिकों ने चुनाव आयोग को सामूहिक पत्र भेजा था कि ईवीएम के इस्तेमाल के फैसले को रद्द किया जाए।

बांग्लादेश में ईवीएम ज़ेरे बहस 7 मई 2022 को प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के बयान के बाद बना, जब उन्होंने आगामी चुनाव में इसके इस्तेमाल पर ज़ोर दिया था।

तब उनके विरोधियों को शक़ हुआ कि शेख़ हसीना अपनी पार्टी ‘अवामी लीग’ को सत्ता में बनाये रखने के लिए इस मशीन का दुरुपयोग न करें। शेख़ हसीना ने कहा था कि संसद की सभी 300 सीटों के वास्ते मतदान में हम ईवीएम का इस्तेमाल करेंगे। यह बयान उस लक्ष्मण रेखा को पार करता हुआ था, जिसे चुनाव आयोग की हदों में समझा जा रहा था। 24 अगस्त 2022 को बांग्लादेश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त काज़ी हबीबुल हवाल ने सवाल किया कि चुनाव कैसे कराना है, यह तय करना ईसी का काम है, कोई राजनीतिक दल इसे कैसे निर्धारित कर सकता है? शेख़ हसीना का अपरोक्ष दबाव देखते हुए चुनाव आयोग ने सितंबर 2022 के आखि़र में एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की, और सरकार के पास दो लाख ईवीएम ख़रीदने के वास्ते 8,711 करोड़ टका की मांग कर दी। जनवरी, 2023 में बांग्लादेश के प्लानिंग कमीशन ने लिखा, ‘अर्थ संकट से गुज़र रहे इस देश के पास ईवीएम मशीनों को ख़रीदने के वास्ते इतना पैसा नहीं है।’ अब सवाल यह है कि 2018 से अबतक जो डेढ़ लाख ईवीएम ख़रीदी गईं, उनका क्या होगा? बांग्लादेश को एक ईवीएम की क़ीमत दो लाख टका अदा करनी पड़ी थी। इनमें से 40 हज़ार मशीनें बेकार हो चुकी हैं।

(लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।)

पड़ोसी देशों पर असर तय ईवीएम को लेकर बांग्लादेश ने जो फैसला लिया है, उसका असर दक्षिण एशिया के देशों पर पड़ना तय मानिये। नेपाल और पाकिस्तान दोनों मुल्कों में ईवीएम का पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है। यों, पाकिस्तान के गृह मंत्री राणा सनुल्लाह ने लंदन में 12 मई 2022 को बयान दिया था कि 2023 के आम चुनाव में हम ईवीएम का इस्तेमाल नहीं करेंगे। पाकिस्तान यदि ईवीएम चुनाव में इस्तेमाल करना है, तो उसे 230 अरब रुपये केवल नौ लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के वास्ते चाहिए। ईवीएम ऑपरेशनल करने के वास्ते 100 अरब रुपये अतिरिक्त चाहिए। जिस देश में खाने के लाले पड़े हुए हैं, वह कहां से 330 अरब रुपये ईवीएम पर ख़र्च करेगा?

ईवीएम बेचता है, लेकिन इस्तेमाल नहीं करता चीन

दिलचस्प है कि चीनी कंपनियां पाकिस्तान-बांग्लादेश में ईवीएम बेचने के वास्ते सक्रिय रही है, मगर स्वयं चीन अपने किसी चुनाव मेें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल नहीं करता। चीन का प्रतिस्पर्धी जापान भी अपने यहां चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल नहीं करता।

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