कनाडा खालिस्तान मामले में भारत की आपत्ति को क्यों अनसुना कर रहा है?

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DMT : कनाडा  : (07 जुलाई 2023) : –

कनाडा में खालिस्तान समर्थकों के विरोध प्रदर्शनों और राजनयिकों के ख़िलाफ़ हिंसा की धमकियों के बाद दोनों देशों के राजनयिक रिश्तों में तल्खी के संकेत मिलने लगे हैं.

भारत के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों और राजनयिकों को हिंसा का शिकार बनाने की अपील करने वालों से जुड़े सवालों पर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने कहा कि उनकी सरकार ने हमेशा से हिंसा और धमकियों को बेहद गंभीरता से लिया है.

उनका कहना था कि कनाडा ने हमेशा आतंकवाद के ख़िलाफ़ गंभीर कार्रवाई की है.

गुरुवार को ट्रुडो भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के उस बयान पर टिप्पणी कर रहे थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि कनाडा में खालिस्तानियों की हरकतें इसलिए बढ़ रही हैं, क्योंकि वो वोट बैंक की सियासत का हिस्सा हैं.

कनाडा में पिछले कुछ महीनों के दौरान खालिस्तान समर्थक तत्वों ने भारत विरोधी कई प्रदर्शन किए हैं. पिछले दिनों भारत ने अपने ख़िलाफ़ ऐसे तत्वों के पोस्टर, प्रॉपेगैंडा सामग्रियों और भारतीय राजनयिकों को धमकी के बाद नई दिल्ली में कनाडा के हाई कमिश्नर को समन किया था.

कनाडाई प्रधानमंत्री ने क्या कहा?

इस बीच, 8 जुलाई को खालिस्तान समर्थकों के संभावित प्रदर्शन से पहले भारत ने कहा है कि कनाडा में चरमपंथ और आतंकवाद को सही ठहराने के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी का दुरुपयोग हो रहा है.

गुरुवार (6 जुलाई 2023) को भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भारतीय राजनयिकों को खालिस्तान समर्थकों की ओर से दी जा रही धमकी पर नाराज़गी जताई और कनाडा सरकार से इन पर लगाम लगाने की अपील की है.

खालिस्तान समर्थकों ने एक पोस्टर जारी कर कनाडा में भारतीय राजनयिकों संजय कुमार वर्मा और अपूर्व श्रीवास्तव पर खालिस्तान टाइगर फोर्स के चीफ हरदीप सिंह निज्जर को मरवाने का आरोप लगाया था. खालिस्तान समर्थक, निज्जर की याद में 8 जुलाई को कनाडा में रैली कर रहे हैं.

कनाडा में इस रैली को लेकर खालिस्तान समर्थकों की सक्रियता को देखते हुए भारतीय विदेश मंंत्रालय ने अपने बयान में कहा, ‘’ये पोस्टर विदेश में हमारे राजनयिकों और दूतावासों पर हमला करने को उकसा रहे हैं. ये हमें किसी भी हाल में मंज़ूर नहीं है. ये मामला भारत और कनाडा दोनों जगह मौजूद कनाडाई अधिकारियों के सामने उठाया गया है. हमने कनाडा सरकार से भारत के राजनयिकों और राजनयिक मिशनों को सुरक्षा देने की अपील की है. ‘’

हालांकि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने इस मामले में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के बयानों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘वे ग़लत हैं. हमारा देश काफ़ी विविधता भरा है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हम काफ़ी महत्व देते हैं. लेकिन हम हमेशा ये सुनिश्चित करेंगे कि हिंसा और हर तरह के अतिवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई हो.’’

‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ को लेकर आमने-सामने

ट्रुडो ने खालिस्तान समर्थकों के प्रदर्शनों के संबंध में अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़ा जो बयान दिया है वो भारत को रास नहीं आया है.

अरिंदम बागची ने गुरुवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ”ये अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल नहीं है. इसका इस्तेमाल हिंसा, अलगाववाद और आतंकवाद को सही ठहराने के लिए किया जा रहा है. उन्होंने इसके लिए अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में खालिस्तान समर्थक तत्वों को दिए जा रहे कथित समर्थन का मुद्दा भी उठाया.”

ब्रिटेन ने भारत को दिया सुरक्षा का भरोसा

हालांकि, गुरुवार को ही ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेम्स क्लेवरली ने भारत के राजनयिक मिशनों पर हमलों के सिलसिले में सुरक्षा का आश्वासन दिया है.

शनिवार को यहाँ के प्रमुख शहरों में आयोजित होने वाली खालिस्तान समर्थकों के रैलियों के दौरान भी उन्होंने भारत को सुरक्षा का आश्वासन दिया.

उन्होंने कहा, ‘’लंदन में भारतीय हाई कमीशन पर कोई भी सीधा हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. हमने हाई कमिश्नर विक्रम दोरईस्वामी और भारत सरकार को साफ़ कहा है कि हाई कमीशन की सुरक्षा सर्वोपरि है.’’

लंदन में खालिस्तान समर्थकों ने 19 मार्च को भारतीय मिशन से जुड़ी एक बिल्डिंग में लहरा रहे तिरंगे को नीचे गिरा दिया था. उस दौरान मिशन के कांच के दरवाजे को भी तोड़ दिया गया था जो अभी तक टूटा ही हुआ है.

इस हमले के बाद भारत सरकार ने कहा था कि ब्रिटेन भारतीय मिशनों की सुरक्षा को लेकर उसकी चिंताओं पर ध्यान नहीं दे रहा है.

भारत ने इसके जवाब में नई दिल्ली में ब्रिटिश हाई कमिश्नर एलेक्स एलिस की सुरक्षा घटा दी थी.

भारत की चिंता क्यों बढ़ती जा रही है?

कनाडा में खालिस्तान समर्थकों के भारत विरोधी रुख़ को देखते हुए रॉयल कैनिडियन माउंटेड पुलिस ने भारतीय राजनयिकों और राजनयिक मिशनों को सुरक्षा मुहैया कराई है.

लेकिन कनाडा में अलगाववादी सिखों की गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं. कनाडा में बड़ी तादाद में सिख मौजूदा ट्रुडो सरकार के समर्थक हैं. कहा जाता है कि इसिलिए सरकार अब तक सिख चरमपंथियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करने से बचती रही है. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी इसी की ओर इशारा कर रहे हैं.

ट्रुडो के हालिया बयान से पहले तक कनाडा के विदेश और रक्षा मंत्री खालिस्तान समर्थकों को भारत विरोधी प्रदर्शन और हिंसा पर औपचारिक बयान ही जारी करते रहे हैं.

ट्रुडो और यहाँ तक कि कनाडा के कंजर्वेटिव विपक्षी दल के नेता ने भी भारतीय राजनयिकों को निशान बनाए जाने की खुली धमकी पर कुछ नहीं बोला है.

कनाडा में भारतीय मूल के 24 लाख लोग हैं. इनमें से सात लाख सिख हैं. ये लोग ज्यादातर ग्रेटर टोरंटो, ग्रेटर बैंकुवर, एडमोंटन और कैलगरी में बसे हुए हैं. इन्हें एक बड़े वोट बैंक के तौर पर देखा जा रहा है.

हाल के दिनों में कनाडा में भारत के ख़िलाफ प्रदर्शनों, इसके राजयनिकों को दी जा रही धमकी और मिशनों पर हमले ने भारत को चिंतित कर दिया है.

पिछले दिनों हुए कुछ प्रदर्शनों के बाद अब एक बार फिर सिख फोर जस्टिस के संयोजक जी एस पन्नु ने 19 जून को मारे गए चरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर के समर्थन में टोरंटो और बैंकुवर में भारतीय मिशनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन की अपील की है.

सिख फोर जस्टिस 16 जुलाई ग्रेटर टोरंटो और सितंबर में ग्रेटर बैंकुवर में खालिस्तान समर्थक रेफरेंडम कराने की योजना बना रहा है.

हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक़ बैंकुवर में निज्जर और ब्रिटेन में अवतार सिंह खांडा की गैंग-वॉर में मौत के बाद पन्नु की सक्रियता बढ़ गई है.

कहा जा रहा है कि वो 8 जुलाई की रैली में दिख सकते हैं. पहले ये ख़बर आई थी कि पन्नु की बुधवार को अमेरिका के सड़क हादसे में मौत हो गई है. हालांकि सोशल मीडिया पर वायरल इस ख़बर की पुष्टि नहीं हो पाई है.

कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका और जर्मनी में भारत विरोध प्रदर्शन करने वाले खालिस्तान समर्थक संगठनों ने आरोप लगाया है कि भारत सरकार उनके नेताओं को मरवा रही है. कहा जा रहा है कि इन संगठनों को पाकिस्तान का समर्थन मिल रहा है.

कनाडा में सिखों का बढ़ता राजनीतिक असर

कनाडा में सिखों की लगातार बढ़ती आबादी के बाद वे अब प्रमुख वोट बैंक के तौर पर उभरे हैं. स्थानीय परिषदों और कनाडाई संसद दोनों जगह अब कई सिख सांसद हैं.

लेकिन लंबे समय से यहां खालिस्तान समर्थक सिख अलगाववादियों की सक्रियता काफ़ी बढ़ गई है. इसकी जड़ें यहां पहले से रही हैं. 1985 में खालिस्तान समर्थक चरमपंथियों ने ने एयर इंडिया के एक विमान को बम से उड़ा दिया था. विस्फोट में इसमें सवार 268 कनाडाई नागिरक समेत सभी 329 लोग मारे गए थे.

पिछले दिनों जिस तरह से यहां भारत विरोधी प्रदर्शन हुए उससे कनाडा और भारत के राजनयिक रिश्ते तल्ख होते जा रहे हैं.

कनाडा की आबादी धर्म और नस्ल के आधार पर काफ़ी विविध है. जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में कनाडा की कुल आबादी में अल्पसंख्यक 22.3 फ़ीसदी हो गए थे.

वहीं 1981 में अल्पसंख्यक कनाडा की कुल आबादी में महज 4.7 फ़ीसदी थे. इस रिपोर्ट के अनुसार 2036 तक कनाडा की कुल आबादी में अल्पसंख्यक 33 फ़ीसदी हो जाएंगे.

‘वॉशिगंटन पोस्ट’ से कॉन्फ़्रेंस बोर्ड ऑफ कनाडा के सीनियर रिसर्च मैनेजर करीम ईल-असल ने कहा था, ”किसी भी प्रवासी के लिए कनाडा सबसे बेहतर देश है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यह मुल्क प्रवासियों को भी अवसर की सीढ़ी प्रदान करता है और लोग इससे कामयाबी की ऊंचाई हासिल करते हैं.”

कनाडा खालिस्तान समर्थक जनमत सर्वेक्षणों से यहाँ रहने वाले सिखों और हिंदुओं को बीच अलगाव भी बढ़ रहा है. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इस वजह से यहां ब्रिटेन के लिसेस्टर में हिंदू और मुस्लिमों के बीच हिंसक संघर्ष की तरह हिंदू और चरमपंथी सिखोंं के बीच संघर्ष देखने को मिल सकता है.

छह जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39 वीं बरसी से कुछ दिनों पहले कनाडा के ब्रैंपटन शहर में पांच किलोमीटर लंबी एक यात्रा निकाली गई थी.

इस यात्रा के दौरान एक चलती हुई गाड़ी पर इंदिरा गांधी की हत्या का दृश्य दिखाया गया.

गौरतलब है कि तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्तूबर 1984 को उनके दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कनाडा में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाए जाने पर कड़ी टिप्पणी की थी.

पहली बार सिख कनाडा कब और कैसे पहुंचे?

1897 में महारानी विक्टोरिया ने ब्रिटिश भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी को डायमंड जुबली सेलिब्रेशन में शामिल होने के लिए लंदन आमंत्रित किया था. तब घुड़सवार सैनिकों का एक दल भारत की महारानी के साथ ब्रिटिश कोलंबिया के रास्ते में था. इन्हीं सैनिकों में से एक थे रिसालेदार मेजर केसर सिंह. रिसालेदार कनाडा में शिफ़्ट होने वाले पहले सिख थे.

सिंह के साथ कुछ और सैनिकों ने कनाडा में रहने का फ़ैसला किया था. इन्होंने ब्रिटिश कोलंबिया को अपना घर बनाया. बाक़ी के सैनिक भारत लौटे तो उनके पास एक कहानी थी. उन्होंने भारत लौटने के बाद बताया कि ब्रिटिश सरकार उन्हें बसाना चाहती है. अब मामला पसंद का था. भारत से सिखों के कनाडा जाने का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ था. तब कुछ ही सालों में ब्रिटिश कोलंबिया 5000 भारतीय पहुंच गए, जिनमें से 90 फ़ीसदी सिख थे.

हालांकि सिखों का कनाडा में बसना और बढ़ना इतना आसान नहीं रहा है. इनका आना और नौकरियों में जाना कनाडा के गोरों को रास नहीं आया. भारतीयों को लेकर विरोध शुरू हो गया था.

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