कपड़ों को बिना धोए महीनों तक पहनना कैसा है?

Hindi New Delhi

DMT : नई दिल्ली : (07 जून 2023) : –

राइन साबू और उनकी टीम ऐसी जींस की तस्वीरों का ध्यान से जायज़ा ले रही थी जो लंबे अरसे तक बिना धोए पहनी गई थीं. उन जींस में से कुछ धुंधली, फटी या दोबारा सिलाई की हुई थीं.

उनमें से जो अच्छी हैं उनकी कम्यूनिटी में तारीफ़ की जाती है. उन जींस में कुछ फटी हुई लेकिन हैरत में डालने वाली हैं. कुछ जींस पर तो ऐसी फटी हुई जगहें इतनी बारीक हैं कि बिल्कुल नज़र ही नहीं आती हैं. बल्कि उन नीली जींस के साथ उनसे एक सुंदर मेल बन जाता है. ये बहुत बारीक फटी जींस के हिस्से उसे और दिलकश बना देते हैं.

‘इंडिगो इन्विटेशनल’ मुक़ाबले में इसका अंदाज़ा इस तरह लगाया जाता है कि पूरी दुनिया से इस मुक़ाबले में हिस्सा लेने वाले अपनी जींस को ख़ास नियमों के तहत पूरे साल पहनते हैं.

इस अजीब मुक़ाबले में दुनिया की बेहतरीन जींस लेने के लिए एक बुनियादी रणनीति है: ‘लो वाश डेनिम’.

चूंकि डेनिम साबुन और पानी से नर्म हो जाता है इसलिए हाई कंट्रास्ट पैटर्न प्राप्त करने का एक राज़ है कि पतलून को न धोया जाए.

जीन्स धुले बिना गुज़ारे दस साल

लॉन्ड्री विरोधी पीपल्स क्लब के मेंबरों से लेकर लेवाइज़ के सीईओ तक हर कोई इस तरीक़े को अपनाता है.

जी हां, बिना धोए जींस पहनने की बात शायद मानने में मुश्किल लगे लेकिन प्रसिद्ध कंपनी लेवाइज़ के प्रमुख चिप बर्ग भी कुछ ऐसा ही करते हैं.

2014 के मई में लोग इस बात से बहुत हैरान हुए थे जब चिप बर्ग ने बताया था कि जो जींस उन्होंने पहन रखी है उसे उन्होंने कभी नहीं धोया.

इस बात के पांच साल बाद उन्होंने 2019 में मार्च में अमेरिकी चैनल सीएनएन को बताया था कि उन्होंने अपनी जींस को अभी तक नहीं धोया. उनकी जींस को बिना धुले 10 साल गुज़र चुके हैं.

राइन साबू को कपड़े कम धोने की आदत 2010 में उस समय पड़ी जब उन्होंने पहली बार जींस का एक जोड़ा खरीदा. उन्होंने अपने देश कनाडा से यूरोप के सफ़र पर छह माह तक उन जींस को धोए बिना पहने रखा.

उन्होंने ‘बीबीसी कल्चर’ को बताया, “ये बदबूदार जींस मेरे लिए अजीब थीं. उनसे भयानक दुर्गंध आ रही थी.”

हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में उन्होंने अपनी होने वाली बीवी से मुलाक़ात की और इस रिश्ते में पारंपरिक रिश्तों में मौसी या बुआ की भूमिका के उलट जींस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

उन्होंने इसके बारे में और जानकारी देते हुए बताया कि उन जींस को उनके बेड के पास फ़र्श पर फेंक दिया गया था.

उनके अनुसार, “जब आप कमरे में चलते फिरते हैं तो ऐसे में आप उनकी दुर्गंध महसूस कर सकते हैं मगर सौभाग्य से मेरी बीवी मुझ पर अपनी जान न्योछावर करती थी.”

राइन साबू के अंदाज़े के अनुसार पिछले पांच साल से इंडिगो इन्विटेशनल मुक़ाबले में हिस्सा लेने वालों में दस में से नौ से अधिक लोग अपनी पतलून 150 से 200 बार पहनने के बाद धोते हैं.

वॉशिंग मशीन का सहारा लेने के बजाय जो लोग बिना धोए उन कपड़ों को पहनते हैं वो अपने कपड़ों की देखभाल करने के दूसरे तरीक़े सीखते हैं जैसे कि उन्हें अल्ट्रावायलेट किरणों के सामने लाना. राइन के अनुसार यह कपड़ों को सोलर विधि से साफ़ करने का एक ढंग है. इसके अलावा रात को उन कपड़ों को ताज़ा हवा में लटका देने से भी मक़सद कुछ न कुछ पूरा हो जाता है.

राइन साबू ख़ुद भी कभी-कभार वॉशिंग मशीन इस्तेमाल करने की बात स्वीकार करते हैं. उनके अनुसार, “जैसे ही मेरी बीवी मेरी जींस को सूंघतीं हैं, वह मुझे बताती हैं और फिर हम दोनों तुरंत कपड़े धोने चले जाते हैं.”

जींस पहनने वाले केवल वही लोग नहीं हैं जो अपने कपड़ों को कम धोते हैं.

2019 में डिज़ाइनर स्टेला मकार्टनी ने ‘द गार्डियन’ को एक इंटरव्यू में बताया कि वह अपने कपड़े बहुत देर से धोती हैं. बस फिर क्या था, हर ओर मीडिया में यह ख़बर जंगल में आग की तरह फैल गई.

उनका कहना था कि उन्होंने यह ‘गुर’ लंदन के मशहूर दर्ज़ियों के साथ काम करते हुए सीखा है.

उनके अनुसार, “मूल रूप से हमें जीवन में एक नीति बना लेनी चाहिए. अगर किसी चीज़ को सफ़ाई की ज़रूरत नहीं तो उसे साफ़ न किया जाए.”

उनके अनुसार, “मैं हर दिन अपनी ब्रा नहीं बदलती और न मैं इस वजह से चीज़ों को वॉशिंग मशीन में फेंकती हूं कि मैंने उन्हें पहना है. मैं स्वास्थ्य की रक्षा के नियमों का पालन करती हूं मगर मैं यूं ही कपड़ों की ड्राई क्लीनिंग के पक्ष में भी नहीं हूं.”

धोए बिना 100 दिन कपड़े पहने रखे

कुछ लोग पर्यावरण या बिजली के बिल में इज़ाफ़े की वजह से अपनी लॉन्ड्री की आदत को बदल रहे हैं.

मैक बिशप कपड़े की कंपनी ‘वूल एंड प्रिंस’ के संस्थापक हैं. उन्होंने महिलाओं के लिए अपने इस ब्रांड के प्रमोशन के समय बताया था कि उन्होंने आराम और कम से कम मेहनत को अपनी नीति बना ली है जो कि पुरुष उपभोक्ताओं, और विशेष तौर पर जो लोग लॉन्ड्री करने से नफ़रत करते हैं, के साथ अच्छा लगता है.

उनके विचार में सदियों से कपड़ों के उद्योग में लैंगिक प्रचार के प्रभावों के रहते हुए शायद महिलाएं कम कपड़े धोने के रिवाज के लिए कम ही तैयार होंगी.

शोध से भी इस बात का पता चलता है कि पर्यावरण उन महिलाओं के लिए एक अधिक प्रभावी कारण था.

वूल एंड ब्रांड आज 100 दिनों तक एक ही वूल (ऊन) के जोड़े को हर दिन पहनने के चैलेंज के साथ मेरिनो वूल के कपड़े बेचता है.

वूल एंड कंपनी की रेबिका एबी के अनुसार इस चुनौती का सीधा सा लाभ तो लॉन्ड्री में कमी है जो हर दिन मेरिनो पहनने वालों की विशेषता बन चुकी है.

अमेरिका की चेल्सी हैरी ने, जो इस ब्रांड की एक क्लाइंट हैं, बीबीसी कल्चर को बताया कि वह ऐसे घर में पली-बढ़ी हैं जहां इस्तेमाल के बाद हर चीज़ को धोया जाता है, यहां तक कि तौलिए और पाजामा को भी.

गर्मी के मौसम में एक दिन जब हैरी अपनी दादी के साथ रह रही थीं तो उन्हें दादी ने सुबह के समय अपने पाजामा को तकिए के नीचे रखना और रात को दोबारा पहनना सिखाया. बाद में वह अपने पति से मिलीं जो लगभग कभी लॉन्ड्री नहीं करते. और फिर महामारी के समय फैलने वाली बीमारी के दौरान उन्होंने पैदल यात्रा शुरू की. उन्होंने ऐसा करना तब तक जारी रखा जब तक चीज़ें बिल्कुल बदल न गईं.

उनका कहना है कि अगर आप किसी झूले या तंबू में सो रहे हैं तो आप सारा दिन चलने के बाद नहा नहीं सकते.

हाइकिंग समुदाय के कुछ लोगों ने एक ख़ास ब्रांड के ऊनी अंडरवियर इस्तेमाल करने की सिफ़ारिश की है, जिनको कई दिनों तक पहना जा सकता है या धोकर जल्दी से सुखाया जा सकता है.

यह और दूसरे लिबास पहनकर हैरी ने महसूस किया कि वह कई दिनों तक पैदल यात्रा कर सकती हैं और फिर भी आराम महसूस करती हैं.

उनके अनुसार, “इसके बाद फिर मैंने सोचना शुरू किया: मैं अपनी हर दिन की ज़िंदगी में ऐसा क्यों न करूं? फिर मैंने ऐसा ही किया.”

दुर्गंध पर क़ाबू पाने का चैलेंज

वह कहती हैं, “मुझे बदबू की कोई परवाह नहीं है. मुझे अपनी नाक पर पूरा भरोसा है.”

ऊन के अलग-अलग अवयवों से बने नए लिबास में वह अपनी महक महसूस कर सकती हैं. लेकिन उनके दूसरे कपड़ों का मामला अलग है. उनके अनुसार वह मध्यपूर्व जैसी गर्म जगहों की यात्रा करते हुए भी कभी उन दूसरे कपड़ों में कोई गंध महसूस नहीं करती हैं.

राइन साबू की तरह धुलाई से पूरी तरह बचने के लिए उपाय किये जा सकते हैं, जैसे कपड़े को रात भर खुली हवा में रखना या अपनी बाज़ुओं के नीचे स्प्रे कर देने से भी बदबू से बचा जा सकता है.

वह यह स्वीकार करते हैं कि उन्हें शाम को अपने कपड़े और जुराबें खुली हवा में लटकाना अच्छा लगता है. वह बताते हैं, “मैं अपने उन कपड़ों को खिड़की के पास लटका देता हूं, अपने अंडरवियर को भी उतार कर लटका देता हूं और फिर सुबह में सब चीज़ों को दोबारा पहन लेता हूं.”

लीड्स यूनिवर्सिटी में सस्टेनेबल फ़ैशन के प्रोफ़ेसर मार्क सुमनर कहते हैं अगर आप कपड़ों के साथ कुछ सबसे बुरा कर सकते हैं तो उन्हें धोने से ज़्यादा बुरा कुछ नहीं हो सकता है.

वॉशिंग मशीनें और टिकाऊपन

वह कहते हैं कि एक बार धोने से कपड़े फट सकते हैं, सिकुड़ सकते हैं और उनका रंग उतर सकता है. अपने साथी मार्क टेलर के साथ मार्क सुमनर इस बात का अध्ययन कर रहे हैं कि घरेलू कपड़ों के माइक्रोफ़ाइबर समुद्र में कैसे जमा होते हैं.

हालांकि उनका मानना है कि कपड़े कम बार धोना पर्यावरण के लिए भी अच्छा है लेकिन वह वॉशिंग मशीनों को पूरी तरह ख़त्म करने की बात भी नहीं करते.

प्रोफ़ेसर सुमनर ने बीबीसी कल्चर को बताया, “हम नहीं चाहते कि लोग यह सोचें कि वह चीज़ों को नहीं धो सकते और ऐसा कर वह धरती को बर्बाद कर रहे हैं. यह सब तो संतुलन बनाए रखने की कोशिशों का हिस्सा है.”

एग्ज़ीमा के शिकार लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा और चिकित्सकीय ज़रूरतों के लिए कपड़े धोना ज़रूरी है. उस समय हमारे चमड़े के प्राकृतिक बैक्टीरिया हमारे कपड़ों के अंदर अधिक फैल जाते हैं और फिर वह खुजली और जलन का कारण बनते हैं.

लोगों के आत्मसम्मान के लिए यह भी ज़रूरी है कि वह अपने कपड़ों की वजह से शर्मिंदा न हों कि वो गंदे हैं या उनसे बदबू आती है.

धोने की आदतों के बारे में वह किसी ख़ास तरीक़े की तरफ़ इशारा नहीं करते हैं. आम आदमी विभिन्न तापक्रम, वॉश साइकिल और रंग और कपड़े के मेल का इस्तेमाल करते हैं और ख़ुद वैज्ञानिक भी इससे अलग नहीं हैं.

उनके अनुसार, “मैं 30 सालों से टेक्सटाइल के साथ काम कर रहा हूं और मुझे कपास को सिंथेटिक्स से और सफ़ेद को दूसरे रंगों से अलग करना जानना चाहिए लेकिन सच कहूं तो मेरे पास समय नहीं है.”

प्रोफे़सर मार्क सुमनर के अनुसार, “अच्छा दृष्टिकोण लचकदार होना है. अगर आपके कपड़ों से बदबू नहीं आती है तो उन्हें धोने का कष्ट न करें.”

“और जब आप उसे धोने जाएं तो उसके बारे में स्पष्ट रहें कि क्या करना है ताकि लिबास साफ़ हो लेकिन सबसे प्रभावी ढंग से हो.”

वह कम तापक्रम पर या बिना डिटर्जेंट के बहुत कम समय में कपड़े धोने का सुझाव देते हैं.

इसके अलावा लॉन्ड्री करने से भी जीवन का बड़ा समय बर्बाद होता है और हर किसी के पास समय नहीं होता है.

चेल्सी हैरी कहती हैं, “मैं टिकाऊपन, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की व्यवस्था में बहुत दिलचस्पी रखती हूं लेकिन मैं अपने समय के बारे में भी सोचती हूं.”

राइन साबू टिकाऊपन के बारे में भी सोचते हैं लेकिन उनका कहना है कि उनके पास सफ़ाई की ज़रूरत से ज़्यादा आदत को छोड़ने की दूसरी वजहें हैं.

“मेरे पास और भी काम हैं. मेरे पास वॉक पर ले जाने के लिए एक कुत्ता है.”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *