चंद्रयान-3 सफल लैंडिंग के बाद क्या-क्या करेगा?

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DMT : नई दिल्ली : (23 अगस्त 2023) : –

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो 23 अगस्त को इतिहास बनाने की तैयारी में है.

चंद्रयान-3 चंद्रमा के उस दक्षिणी ध्रुव की सतह पर उतरने वाला है, जहां इससे पहले दुनिया के किसी भी देश को उपग्रह उतारने में सफलता नहीं मिली है.

14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने वाला चंद्रयान-3 अपनी 40 दिनों की लंबी यात्रा के बाद 23 अगस्त को शाम 6:04 बजे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश के पास उतरने की कोशिश करेगा.

चंद्रयान-2 की लैंडिंग के दौरान हुई तकनीकी विफलताओं को ध्यान में रखते हुए इसरो ने जानकारी दी है कि चंद्रयान-3 को और अधिक कुशल बनाया गया है.

इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने मीडिया को जानकारी दी है कि चंद्रयान-2 के लैंडर मॉड्यूल को सफलता हासिल करने के विश्लेषण के साथ डिजाइन किया गया था, लेकिन नाकामी के बाद के विश्लेषण के साथ चंद्रयान-3 को डिजाइन किया गया.

इसका मतलब है कि चंद्रयान-3 के तहत पिछले मिशन यानी चंद्रयान-2 के डेटा का विश्लेषण करके पहले से ही अनुमान लगाया गया है कि किस तरह की गड़बड़ी हो सकती है और उसके लिए लैंडर मॉड्यूल फ़ैसले लेकर आगे बढ़ सके.

लैंडर मॉड्यूल ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के करीब 4 किमी लंबाई और 2.4 किमी चौड़ाई वाले एक उपयुक्त क्षेत्र की भी पहचान की है और कोशिश होगी कि एक सपाट सतह पर उतरा जा सके.

चंद्रयान-3 में क्या क्या है

इसरो के बताए गए विवरण के मुताबिक, चंद्रयान-3 के लिए मुख्य रूप से तीन उद्देश्य निर्धारित हैं.

  • चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराना
  • चंद्रमा की सतह कही जाने वाली रेजोलिथ पर लैंडर को उतारना और घुमाना
  • लैंडर और रोवर्स से चंद्रमा की सतह पर शोध कराना

चंद्रयान-2 में आई तकनीकी खामियों को दूर करते हुए लैंडर को अत्याधुनिक तकनीकों से लैस किया गया है.

प्रोपल्शन मॉड्यूल, लैंडर और रोवर्स सात तरह के उपकरणों से लैस हैं. इनमें लैंडर पर चार, रोवर पर दो और प्रोपल्शन मॉड्यूल पर एक तकनीक शामिल है.

चंद्रयान-2 में ऑर्बिटर के साथ इसरो ने लैंडर मॉड्यूल के हिस्से के रूप में लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को भी भेजा था.

हालाँकि चंद्रयान-2 का लैंडर चंद्रमा पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, लेकिन ऑर्बिटर लगभग चार वर्षों से चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है.

इसीलिए इस बार इसरो ने चंद्रयान-3 में सिर्फ़ लैंडर और रोवर ही भेजा है. यानी चंद्रयान-3 का लैंडर चंद्रयान-2 पर लॉन्च किए गए ऑर्बिटर के साथ संवाद स्थापित करेगा.

प्रोपल्शन मॉड्यूल की ख़ासियत

प्रोपल्शन (प्रणोदन) मॉड्यूल चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर्स को चंद्रमा की सतह पर एक सौ किलोमीटर की ऊंचाई तक ले गया है.

17 अगस्त को लैंडर इस मॉड्यूल से अलग हुआ था. इसका वजन 2145 किलोग्राम है और शुरुआत के वक़्त इसमें 1696 किलोग्राम ईंधन था.

चंद्रयान-3 को शेप यानी एसएचएपीई नामक उपकरण से भी सुसज्जित किया है. एसएचएपीई का अर्थ है स्पेक्ट्रो पोलरोमेट्री ऑफ़ हैबिटेबल प्लेनेटरी अर्थ.

इसका मतलब है कि यह चंद्रमा की परिक्रमा करता रहेगा और सुदूर ब्रह्मांड में पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज करता रहेगा. यह अन्य ग्रहों के स्पेक्ट्रोपोलिमेट्रिक संकेतों का पता लगाकर पृथ्वी के समान जीवन वाले ग्रहों की तलाश करेगा.

इसरो का अनुमान है कि यह तीन से छह महीने तक चंद्रमा की परिक्रमा करेगा. यह एसएचएपीई उपकरण प्रोपल्शन मॉड्यूल में लगे एस बैंक पॉन्डर पर एकत्रित जानकारी को भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क तक पहुंचाता रहेगा.

लैंडर मॉड्यूल की ख़ासियत

इसरो ने लैंडर मॉड्यूल में महत्वपूर्ण पेलोड स्थापित किए है.

इनमें एक है रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फीयर एंड एटमॉस्फियर या संक्षेप में कहें तो रंभा.

यह डिवाइस चंद्रमा की सतह पर प्लाज्मा घनत्व की जांच करेगा. यानी यह वहां आयनों और इलेक्ट्रॉनों के स्तर और समय के साथ उनमें होने वाले बदलावों का अध्ययन करके जानकारी इकट्ठा करेगा.

लैंडर में स्थापित एक और महत्वपूर्ण उपकरण चंद्रमा की सतह के तापीय गुणों का अध्ययन करेगा.

लैंडर में लगा एक और प्रमुख उपकरण है आईएलएसए यानी इंस्ट्रुमेंट फॉर लूनर सिस्मिक एक्टिविटी.

यह चंद्रयान-3 लैंडर के लैंडिंग स्थल पर होने वाली भूकंपीय गतिविधि की जांच करेगा. यह भविष्य में चंद्रमा पर इंसानों की मौजूदगी और निवास के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है.

टेक्टोनिक प्लेटों की गति के कारण प्रतिदिन पृथ्वी पर सैकड़ों भूकंप आते हैं. भूकंप की पहचान करने के लिए सिस्मोग्राफ़ी से ही होती है. यही स्थिति चंद्रमा पर भी है. चंद्रमा पर आने वाले भूकंप भी चंद्रमा की सतह पर आते हैं.

अगर भविष्य में चंद्रमा पर मानव बस्तियां या बस्तियां बसाई जानी हैं तो सबसे पहले भूकंपीय गतिविधि का अध्ययन किया जाना चाहिए. इसलिए, यह उपकरण चंद्रयान- 3 के लैंडिंग स्थल पर भूकंपीय गतिविधि का अध्ययन करेगा और चंद्रमा की परत और आवरण की जांच करेगा.

इनके साथ ही एलआरए नामक एक अन्य पेलोड भी लैंडर में स्थापित किया गया है.

एलआरए लेजर रेट्रोरेफ्लेक्टर ऐरे का संक्षिप्त रूप है जो चंद्रमा की गतिशीलता की जांच करता है.

इन उपकरणों को संचालित करने के लिए बिजली की आवश्यकता होती है. बैटरी के साथ-साथ, चंद्रयान-3 लैंडर बिजली उत्पन्न करने के लिए सौर पैनलों से सुसज्जित है.

अगर लैंडर सूरज की रोशनी की दिशा के अलावा किसी और दिशा में लैंड करता है तो कोई दिक्कत नहीं होगी क्योंकि लैंडर के तीन तरफ़ सोलर पैनल लगे हैं.

चौथी तरफ़ से रोवर सुरक्षित बाहर आ सके इसके लिए रैंप लगाया गया है.

रोवर मॉड्यूल का काम

चंद्रयान-2 की तरह ही चंद्रयान-3 में मुख्य घटक रोवर है. चंद्रमा पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद रोवर उसमें से निकलेगा और चंद्रमा की सतह पर घूमकर शोध करेगा, जानकारी जुटाएगा.

चंद्रयान-3 के रोवर का वजन केवल 26 किलोग्राम है. इसमें छह पहिए लगे हुए हैं. इसमें बिजली उत्पादन के लिए सोलर पैनल के साथ बैटरी भी शामिल है.

91.7 सेमी लंबा, 75 सेमी चौड़ा और 39.7 सेमी ऊंचा, रोवर अपने छह पहियों की मदद से चंद्र सतह पर चलेगा. छोटे आकार और अन्य चुनौतियों के चलते रोवर केवल लैंडर के साथ संचार कर सकता है.

इसका मतलब है कि अगर यह एकत्र की गई जानकारी लैंडर को भेजता है, तो लैंडर इसे भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क को भेजेगा.

रोवर में दो प्रमुख उपकरण हैं.

उनमें से पहला एलआईबीएस यानी लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप ही मुख्य है. यह एक अत्याधुनिक विधि है जिसका उपयोग किसी स्थान पर तत्वों और उनके गुणों की पहचान करने के लिए किया जाता है.

यह उपकरण चंद्रमा की सतह पर बहुत तीव्र लेजर फायर करेगा, इसके चलते सतह की मिट्टी तुरंत पिघल कर प्रकाश उत्सर्जित करेगी. इसके वेबलेंथ का विश्लेषण करके एलआईबीएस सतह पर मौजूद रासायनिक तत्वों और सामग्रियों की पहचान करेगा.

रोवर पर स्थापित यह एलआईबीएस उपकरण चंद्रमा की सतह पर मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, पोटेशियम, कैल्शियम, टाइटेनियम और आयरन जैसे तत्वों की उपस्थिति का पता लगाएगा.

चंद्रमा पर जारी अंतरिक्ष अभियानों का यह सबसे महत्वपूर्ण पहलू है. एलआईबीएस चंद्रमा की सतह पर 14 दिन बिताएगा और विभिन्न स्थानों पर विश्लेषण किए गए डेटा को लैंडर तक पहुंचाएगा. लैंडर उस जानकारी को भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क को भेजेगा. इस डेटा का विश्लेषण करके इसरो चंद्रमा की सतह पर तत्वों की पहचान करेगा.

रोवर पर लगा एक अन्य उपकरण एपीएक्सएस यानी अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर है. यह चंद्रमा की सतह पर मिट्टी और चट्टानों में प्रचुर मात्रा में रासायनिक यौगिकों का पता लगाएगा.

यह चंद्रमा की सतह और उसकी मिट्टी के बारे में हमारी समझ को बढ़ाकर भविष्य के प्रयोगों को और अधिक तेज़ी से आगे बढ़ाने का रास्ता तैयार करेगा.

ऐसा ही एक उपकरण नासा के मंगल ग्रह पर भेजे गए क्यूरियोसिटी जैसे रोवर्स में भी लगाया गया था.

14 दिनों तक करेगा प्रयोग

चंद्रयान-3 के लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल सभी को संचालित करने और पृथ्वी पर गहरे अंतरिक्ष नेटवर्क तक सूचना प्रसारित करने के लिए बिजली की आवश्यकता होती है.

यह बिजली सौर पैनलों से आती है. इसीलिए इसरो लैंडर मॉड्यूल को ठीक सूर्योदय के समय चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने की कोशिश कर रहा है.

पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर चंद्रमा पर दिन का समय होता है, इसके बाद 14 दिनों तक रात का समय होता है.

ऐसे में स्पष्ट है कि चंद्रमा की सतह पर दिन के दौरान लैंडर और रोवर्स को सौर ऊर्जा मिलेगी , जो पृथ्वी के मुताबिक 14 दिनों का समय होगा.

चंद्रमा की सतह पर दिन में तापमान 180 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है, जबकि रात के समय यह तापमान शून्य से 120 डिग्री नीचे चला जाता है.

चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की कोशिश करेगा, जहां रात के समय तापमान शून्य से 230 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है.

इसका मतलब है कि 14 दिनों के बाद लैंडर और रोवर्स को काफी ठंडे तापमान में रहना होगा और उस स्थिति में इलेक्ट्रानिक उपकरण और बैटरी काम करना बंद कर सकते हैं.

यही वजह है कि इसरो चेयरमैन एस. सोमनाथ ने स्पष्ट किया है कि लैंडर और रोवर्स का जीवन 14 दिनों का होगा.

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