ब्रिक्स बिज़नेस फोरम में पीएम मोदी ने दिया भाषण पर साउथ अफ़्रीका आकर भी चीनी राष्ट्रपति क्यों नहीं आए

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DMT : साउथ अफ़्रीका : (23 अगस्त 2023) : –

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग मंगलवार को दक्षिण अफ़्रीका में आयोजित ब्रिक्स बिज़नेस फोरम की बैठक में नहीं आए.

उम्मीद की जा रही थी कि वह ब्रिक्स के बाक़ी सदस्य देशों के राष्ट्र प्रमुखों के साथ एक स्पीच देंगे. शी जिनपिंग की जगह चीन के वाणिज्य मंत्री वांग वेंताओ आए और उन्होंने उनका भाषण पढ़ा. अपने भाषण में वेंताओ ने अमेरिका की जमकर आलोचना की.

शी जिनपिंग के भाषण को पढ़ते हुए वांग ने जोहानिसबर्ग के सैंडटन कन्वेंशन सेंटर में कहा कि अंतरराष्ट्रीय मामलों और वित्तीय बाज़ारों में अमेरिका के प्रभुत्व को जो भी देश चुनौती दे रहा है, उससे वह लड़ने को उतारू है.

शी जिनपिंग की स्पीच में वांग ने कहा कि सभी देशों को तरक़्क़ी का अधिकार है और लोगों के पास इतनी आज़ादी है कि ख़ुशहाल जीवन जीने की अपनी कोशिशें जारी रखें.

वांग ने शी जिनपिंग का भाषण पढ़ते हुए कहा, ”लेकिन एक देश अधिनायकवाद की मानसिकता से आत्ममुग्ध है और वह उभरते बाज़ारों के साथ विकासशील देशों के आड़े आ रहा है. जो भी विकास की राह पर आगे बढ़ रहा है, उनके निशाने पर आ जा रहा है.”

शी जिनपिंग सोमवार की शाम दक्षिण अफ़्रीका पहुँचे थे लेकिन वह मंगलवार को ब्रिक्स बिज़नेस फोरम की बैठक में नहीं आए. शी के शरीक नहीं होने पर चीन की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है.

जर्मन मार्शल फंड में इंडो पैसिफिक प्रोग्राम की मैनेजिंग डायरेक्टर बोनी ग्लैसर ने शी जिनपिंग की ग़ैरमौजूदगी पर हैरानी जताई है. उन्होंने आशंका जताते हुए लिखा है कि क्या कुछ गड़बड़ है?

ग्लैसर के इस ट्वीट पर चीन में मेक्सिको के राजदूत रहे जोरगे गुअजारदो ने लिखा है, ”यह बड़ी ख़बर है. एक बहुपक्षीय फोरम में अघोषित ग़ैर-मौजूदगी, जो कि चीन कभी मिस नहीं करता है, बड़ी ख़बर है. वो भी तब जब इसके लिए भारत के साथ तैयारी ग्राउंड वर्क किया गया था. अगर यह सच है तो वाक़ई कुछ गड़बड़ है.”

ब्लूमबर्ग न्यूज़ ने लिखा है कि शी जिनपिंग दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति की ओर से आयोजित डिनर में ब्राज़ील, भारत के अपने समकक्ष और रूस के विदेश मंत्री के साथ शामिल हुए लेकिन लेकिन ब्रिक्स बिज़नेस फोरम में तयशुदा कार्यक्रम से ग़ायब रहे.

इससे पहले मंगलवार को दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा से शी जिनपिंग की मुलाक़ात हुई थी और दोनों देशों ने ग्लोबल साउथ में अपनी भूमिका मज़बूत करने की बात कही थी.

ब्रिक्स दुनिया के पाँच उभरते हुए बाज़ार और विकासशील देश- ब्राज़ील, रूस, इंडिया, चाइना और दक्षिण अफ़्रीका का समूह है. लेकिन जोहानिसबर्ग के समिट में 30 से ज़्यादा देशों के राष्ट्राध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस भी शामिल हो रहे हैं.

कहा जा जा रहा है कि ग्लोबल साउथ के देशों का यह बड़ा जुटान है, जिसमें अफ़्रीका, कैरिबियाई, लातिन अमेरिका, मध्य-पूर्व, पश्चिम एशिया, दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के देश शरीक हो रहे हैं.

इस बार ब्रिक्स समिट के एजेंडे में नए देशों को शामिल करना है. यानी ब्रिक्स के विस्तार की बात होनी है. कहा जा रहा है कि पश्चिम के दबदबे वाली दुनिया में चीन ब्रिक्स से ज़रिए चुनौती देना चाहता है.

इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए ब्रिक्स देशों की मुद्राओं के इस्तेमाल की भी बात हो रही है.

ब्लूमबर्ग ने लिखा है कि ब्रिक्स के विस्तार में चीन को रूस और दक्षिण अफ़्रीका का साथ मिल रहा है लेकिन भारत को लग रहा है कि विस्तार के बाद ब्रिक्स चीन का मुखपत्र बन सकता है.

दूसरी तरफ़ ब्राज़ील इस बात से चिंतित है कि ब्रिक्स को पश्चिम से अलग-थलग किया जा रहा है. चीन में कई मोर्चों पर घिरे शी जिनपिंग का इस साल यह दूसरा विदेशी दौरा है. इससे पहले वह दो दिन के लिए रूस गए थे.

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से दक्षिण अफ़्रीका के अधिकारियों ने कहा, ”अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों के दबदबे से असंतुष्ट 23 देशों ने इस गुट में शामिल होने के लिए आवेदन किया है.”

इसके अलावा कई और देश इसमें शामिल होने पर विचार कर रहे हैं. इन देशों का मानना है कि ब्रिक्स एक बहुपक्षीय गुट है और इसके ज़रिए पश्चिमी दबदबे वाले अंतरराष्ट्रीय निकायों का सामना किया जा सकता है. ख़ास कर वर्ल्ड बैंक, संयुक्त राष्ट्र और आईएमएफ़ में ये देश अपने हिसाब से नीतियां चाहते हैं. इन तीनों संगठनों के बारे में कहा जाता है कि यहाँ अमेरिका की चलती है.

शी जिनपिंग ने अपने भाषण में कहा, ”ब्रिक्स विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व करता है और बदलती दुनिया में इसकी अहम भूमिका है. ब्रिक्स एक सकारात्मक और स्थिर समूह है. यह आगे बढ़ता रहेगा. चीन ब्रिक्स के विस्तार के पक्ष में है. हम ब्रिक्स प्लस के पक्ष में हैं. इससे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में संतुलन लाया जा सकेगा.”

दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने कहा है कि वैश्विक वित्तीय संस्थानों में सुधार की ज़रूरत है ताकि उसे ज़िम्मेदार बनाया जा सके. रामाफोसा ने कहा कि चुनौती का सामना कर रही विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था लिए यह ज़रूरी है. दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति ने कहा कि 2015 में ब्रिक्स देशों ने न्यू डिवेलपमेंट बैंक बनाया था और इससे विकासशील देशों को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था में नई राह मिल रही है.

इस ब्रिक्स समिट में रूसी राष्ट्रपति पुतिन वर्चुअली शामिल हो रहे हैं और रूस का प्रतिनिधित्व करने विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोफ़ दक्षिण अफ़्रीका पहुँचे हैं. पुतिन के ख़िलाफ़ इंटरनेशनल क्रीमिनल कोर्ट ने इसी साल मार्च में अरेस्ट वॉरंट जारी किया था. यह अरेस्ट वॉरंट यूक्रेन में युद्ध अपराध को लेकर है.

पश्चिम को चुनौती

ब्रिक्स में साउथ अफ़्रीका राजदूत अनिल सुकलाल ने कहा है, ”23 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने के लिए औपचारिक आवेदन दिया है.” दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति ब्रिक्स के विस्तार का समर्थन कर रहे हैं. उनका मानना है कि ब्रिक्स के विस्तार के ग्लोबल ऑर्डर संतुलित होगा.

हालांकि दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति ने ब्रिक्स समिट से पहले कहा था कि उनका देश किसी गुट में शामिल नहीं होना चाहता है और गुटनिरपेक्षता की नीति के साथ है. यह भारत की विदेश नीति की लाइन रही है और दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति ने इसी नीति के साथ अपनी प्रतिबद्धता जताई थी.

दक्षिण अफ़्रीकी राष्ट्रपति ने रामाफोसा ने कहा था, “हमारा देश गुट-निरपेक्षता की नीति को लेकर प्रतिबद्ध है. हमने ख़ुद को किसी भी वैश्विक शक्ति या कुछ देशों के प्रभावशाली गुटों का हिस्सा बनाने वाले दबाव में आने से बचाया है. शीतयुद्ध के वक़्त बहुत से अफ़्रीकी देशों की स्थिरता और संप्रभुता कमज़ोर हुई क्योंकि इन्होंने ख़ुद को किसी एक बड़ी शक्ति के साथ जोड़ा.”

राष्ट्रपति रामाफोसा ने कहा था, “इस अनुभव ने हमें ये सिखाया कि कोई देश हम पर हावी हो, इसकी बजाय हम रणनीतिक ज़रूरतों के हिसाब से साझेदारी करें. हमारे कुछ आलोचक चाहते हैं कि हम उनके राजनीति और वैचारिक पसंदों का खुला समर्थन करें लेकिन हम इन वैश्विक शक्तियों के बीच प्रतियोगिता में नहीं फंसेंगे. हमारा देश वैश्विक शांति और विकास के लिए सारे देशों के साथ मिलकर काम करना चाहता है. दक्षिण अफ़्रीका 120 देशों के फ़ोरम नॉन अलाइंड मूवमेंट (नाम) का हिस्सा है. ये देश औपचारिक तौर पर किसी महाशक्ति या गुट का हिस्सा नहीं हैं.”

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