छत्तीसगढ़ में धान से चुनावी फसल काटने की तैयारी, कांग्रेस- बीजेपी के क्या हैं दावे

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DMT : छाती : (28 जून 2023) : –

‘धान का कटोरा’ कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की चुनावी थाली में धान बड़े हिस्से में मौजूद रहेगा.

चुनाव की बढ़ती सरगर्मी के बीच भूपेश बघेल सरकार का कहना है कि उसने किसानों की क़र्ज़-माफ़ी और धान ख़रीदने के लिए एमएसपी पर भुगतान का वादा पूरा किया है.

इसके साथ राज्य सरकार ग्रामीण अंचल के लिए दूसरी स्कीमों को ‘किसानों के साथ न्याय’ के रूप में पेश कर रही है.

कांग्रेस सरकार का दावा है कि क़र्ज़ माफ़ी के वादे को पूरा कर उसने क़रीब 18 लाख किसानों को क़र्ज़ से मुक्ति दिलाई.

इसके साथ ही फसल की बेहतर क़ीमत दिए जाने से न सिर्फ़ किसानों में ख़ुशहाली आई है, बल्कि किसान अधिक धान बो रहे हैं.

सरकार और विपक्ष के दावे

पिछले साल के आँकड़ों के अनुसार पंजाब के बाद सबसे अधिक धान की ख़रीद छत्तीसगढ़ में हुई थी.

दूसरी ओर विपक्षी भारतीय जनता पार्टी दो हज़ार किसान चौपालों के माध्यम से ये समझाने की कोशिश कर रही है कि जो मिल रहा है, वो मोदी सरकार की देन है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाल ही में दावा किया था कि किसान, खेतिहर मज़दूरों और गौ-केंद्रित योजनाओं के माध्यम से सरकार आम नागरिकों तक 1.50 लाख करोड़ रुपये पहुँचाने में सफल रही है.

लेकिन बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते रहे हैं, ‘दाना-दाना ख़रीदने का वादा कांग्रेस का, पूरा करे भाजपा. 2,500 रुपये क्विंटल देने का वादा कांग्रेस का, पैसे दे केंद्र सरकार.’

कांग्रेस ने क्या वादा किया था?

कांग्रेस पार्टी ने 2018 के चुनाव घोषणा पत्र में धान की सरकारी ख़रीद के लिए 2,500 रुपये प्रति क्विंटल क़ीमत देने का एलान किया था.

ये उस समय केंद्र सरकार की ओर से निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य से क़रीब 600-700 रुपये अधिक था.

कांग्रेस नेताओं ने गंगा की सौगंध खाकर सरकार बनने के 10 दिनों के भीतर किसानों की क़र्ज़ माफ़ी का वादा भी किया था, जिसका फ़ायदा चुनाव नतीजों में साफ़ देखने को मिला.

कांग्रेस पार्टी फ़िलहाल 90 में से 71 सीटों पर क़ाबिज़ है.

कांग्रेस छत्तीसगढ़ में सरकार गठन के बाद तक़रीबन 17.82 लाख से किसानों के क़र्ज़ की माफ़ी का दावा करती है, जिसकी कुल राशि उसके अनुसार 9,270 करोड़ रुपये है.

अब राज्य के विधानसभा चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं.

क्या कहते हैं किसान

रायपुर से धमतरी और फिर भीतर के रास्तों से होते हुए वापसी में जिन दर्जन-दो दर्जन से अधिक किसानों से हमारी मुलाक़ात और बातचीत हुई, उनके बीच कुछ शिकायतें भी सुनने को मिलीं, लेकिन कई खेतिहर सरकार के कृषि क्षेत्र में कामकाज से संतुष्ट दिखे.

एक किसान ललित साहू ने कहा, “कक्का बढ़िया करत है.”

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को काफ़ी लोग ‘कक्का’ बुलाते हैं.

छत्तीसगढ़ की लगभग पौने तीन करोड़ की आबादी में 43 लाख की जनसंख्या किसान परिवारों की है.

राज्य सरकार एमएसपी के ऊपर जो राशि किसानों को देना चाहती थी, उसको लेकर केंद्र सरकार और उसके बीच कुछ विवाद भी रहा.

खाद्य विभाग के सचिव तोपेश्वर वर्मा के अनुसार केंद्र का कहना था कि वो इस तरह नियमानुसार निर्धारित न्यूनतम मूल्य से अधिक रक़म किसानों को नहीं दे सकते हैं.

तोपेश्वर वर्मा ने बताया कि इसके बाद राज्य सरकार ने मई 2020 से राजीव गांधी किसान न्याय योजना लागू की, जिसके तहत किसानों को ‘इनपुट सब्सिडी’ यानी खेती की ज़रूरतों के सामानों के लिए प्रति एकड़ नौ से दस हज़ार रुपये तक की राशि मुहैया कराई जाती है.

एक सरकारी अधिकारी के मुताबिक़, बीते साल (2022-23) केंद्र सरकार की ओर से निर्धारित एमएसपी 2,040 रुपये थी, तो छत्तीसगढ़ की सरकार की ओर से दी गई इनपुट सब्सिडी को मिलाकर किसानों के हाथ में प्रति क्विंटल धान की फ़सल की क़ीमत 2,649 रुपये आई.

क्या कहती है बीजेपी

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव कहते हैं कि भूपेश बघेल सरकार ने किसानों को कभी 2,500 रुपये प्रति क्विंटल का दाम नहीं दिया.

उनके मुताबिक़, “जब 2018 में सरकार बनी, तब एमएसपी 1,800 थी, जो पिछले सीज़न में बढ़कर 2,040-2,060 रुपये प्रति क्विंटल धान तक जा पहुँची है.”

यानी केंद्र सरकार की ओर से क़ीमत बढ़ाई जा रही है, लेकिन राज्य का रेट वहीं का वहीं है और वो भी किसानों को नहीं दिया जा रहा.

किसान ललित साहू के खाते में मई महीने में इनपुट सब्सिडी की एक क़िस्त के 3669 रुपये आए हैं, जिस कारण वो बेहद प्रसन्न हैं.

खेतिहर उदय राम साहू को हाल के दिनों में उनकी धान की फ़सल के लिए नौ हज़ार रुपये अतिरिक्त हासिल हुए हैं, जिसे लेकर वो कहते हैं कि ‘इससे किसानों का मनोबल बढ़ा है.’

उदय राम साहू से हमारी मुलाक़ात धमतरी ज़िले की छाती पंचायत की सरकारी मंडी में हुई, जहाँ उनके साथ आठ-दस और खेतिहर भी मौजूद थे, जिनमें पवन कुमार बघेल भी थे.

पवन कुमार बघेल बताते हैं कि सरकार की ख़रीद योजना का फ़ायदा बड़े किसानों को अधिक हो रहा है.

हालाँकि वो मानते हैं कि उन्हें भी हाल में धान बिक्री के लिए अतिरिक्त रक़म मिली.

छाती गाँव के ही रहने वाले बघेल बँटाई पर खेती करते हैं यानी किसी के खेत को लेकर वो बुआई, कटाई वग़ैरह सारा काम करते हैं जिसके बाद कुल उपज में से आधा ज़मीन मालिक का होता है, आधा उनके हिस्से आता है.

पूर्व कृषि मंत्री ब्रजमोहन अग्रवाल पूरे ख़रीदी कार्यक्रम को दिखावे के अलावा कुछ नहीं मानते और कहते हैं कि ये बड़े किसानों को लाभ पहुँचा रहा है.

वो सरकार की ओर से किसानों का भुगतान क़िस्तों में किए जाने के मामले पर सवाल उठाते हैं.

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव कहते हैं कि इसकी तुलना में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की छह हज़ार रुपये की पूरी रक़म एक साथ किसानों के बैंक खाते में चली जाती है.

इरा गाँव के 34 वर्षीय किसान संदीप साहू का मानना है कि एकमुश्त पैसा मिलने पर राशि ज़ल्द ख़र्च हो जाएगी, जबकि क़िस्त में हासिल होने पर वो किसी न किसी काम आ जाती है.

विपक्षी दल बीजेपी ने जून के पहले 10 दिनों में ‘किसान चौपाल’ आयोजित किए, जिसमें उसने धान ख़रीदी और गोठानों (मवेशियों के लिए दिन में ठहरने के लिए पानी और दूसरी सुविधाओं वाले स्थान) में कथित फ़र्ज़ीवाड़े के मामलों को उठाया.

देमार गाँव के लोगों के मवेशियों को चराने का काम करने वाले सरखन यादव कहते हैं कि पास के गोठान में न तो सौर ऊर्जा का प्लांट काम करता है और पानी की टंकी इस क़दर ख़राब बनी है कि पानी उसमें ठहरता ही नहीं, लीक हो जाता है.

इसी तरह का मामला सरकार की ओर से गोबर और गोमूत्र ख़रीदी का भी है, जिनसे सरकार खाद तैयार करवाकर जैविक खेती को बढ़ावा देने का दावा कर रही है.

जानकारों का मानना है कि एक ओर तो सरकार अधिक ख़रीद मूल्य देकर किसानों को पैदावार बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही है, वहीं पैदावार बढ़ाने की ख़ातिर किसान खाद का अधिक मात्रा में इस्तेमाल करने लगा है.

ऐसी स्थिति में जैविक खाद को बढ़ावा देने की बात करना विरोधाभासी है.

बीजेपी की रमन सिंह सरकार में मंत्री रह चुके केदार कश्यप इन मामलों पर कहते हैं कि कांग्रेस में ‘गमला में खेती करने वाले लोग हैं.’

कृषि वैज्ञानिक संकेत ठाकुर इसका एक दूसरा पक्ष रखते हैं.

वे कहते हैं कि किसानों की जेब में पैसा आ रहा है, वो रक़म बाज़ार में पहुँच रही है, जिससे ऑटोमोबाइल से लेकर कंज़्यूमर गुड्स, घर-निर्माण के क्षेत्र यानी सीमेंट, स्टील सेक्टर्स तक को बढ़ावा मिल रहा है, जो अर्थव्यवस्था के लिए फ़ायदेमंद है.

छत्तीगसढ़ कृषि मंत्रालय के अनुसार सूबे की कुल 2.55 करोड़ जनसंख्या में 70 प्रतिशत कृषि से जुड़ी है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जून के दूसरे सप्ताह में विधानसभा में घोषणा की है कि राज्य सरकार अब किसानों से धान ख़रीदी की सीमा को पाँच क्विंटल प्रति एकड़ बढ़ाकर 20 क्विंटल प्रति एकड़ करने जा रही है.

यानी अगर किसान के पास एक एकड़ भूमि है या उसने एक एकड़ में धान बोया है तो उसमें उपजी कुल फ़सल में से 20 क्विंटल तक वो सरकारी मंडी में बोनस मूल्य पर बेच सकता है.

किसान की धान बुआई अगर एक एकड़ से अधिक में होती है, तो भी यही नियम लागू होता है. धान की इस बिक्री के लिए उसे बुआई के समय पंजीकरण कराना होता है.

छत्तीसगढ़ सरकार में खाद्य विभाग के सेक्रेटरी टीके वर्मा कहते हैं कि कृषि क्षेत्र के मिल रहे लाभ और फ़सल की बेहतर क़ीमत से प्रेरित होकर सूबे में खेती को बढ़ावा मिल रहा है और इस साल धान की फसल लगाई में दो लाख हेक्टेयर रक़बे का इज़ाफ़ा नोट किया गया.

राज्य सरकार के आँकड़ों के अनुसार साल 2018-2019 में धान की खेती को लेकर पंजीकृत की गई ज़मीन का रक़बा 25.61 लाख हेक्टयर था, वो साल 2021-22 में 30.25 लाख हेक्टयर हो गया. धान बेचने वाले किसानों की तादाद में भी इसी तरह तक़रीबन पांच लाख की बढ़त हुई है.

हालांकि, कृषि वैज्ञानिक संकेत ठाकुर मानते हैं कि धान की खेती पर ज़ोर लंबे समय में दूसरे तरह की फसलों पर असर डालेगा. कई तरह की फसल लगाने से भूमि की उर्वरता बनी रहती है.

सरकार दूसरी तरह की फसलों जैसे मिलेट, कोदो वग़ैरह को भी बढ़ावा देने का दावा कर रही है.

धान जैसी फसल के लिए ज़्यादा पानी की ज़रूरत की बात को भी कृषि वैज्ञानिक संकेत ठाकुर उजागर करते हैं, जो उनके अनुसार भू-जल पर अभी से असर डालता दिख रहा है.

मैदानी इलाक़े कवर्धा के कुछ गाँवों में किसानों के बीच हुए सर्वे में अप्रैल में ही पानी के बोरवेल सूखने की शिकायत खेतिहरों ने की.

ये सर्वे संकेत ठाकुर और उनकी टीम ने किया था, जिसमें पाया गया कि कई क्षेत्रों में एक ही गाँव में चार सौ तक बोरवेल हैं.

उनके अनुसार किसान गर्मी में भी धान की फसल की बुआई कर रहे हैं, जिसे हालाँकि सरकार नहीं ख़रीदती लेकिन उसके लिए दूसरे तरह के बाज़ार उपलब्ध हैं.

धान की फसल पर सरकार के ज़ोर को लेकर कांग्रेस प्रवक्ता आनंद मोहन शुक्ला कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में पारंपरिक तौर पर किसान एक ही फसल उगाता था, जो धान की हुआ करती थी.

वो जो दूसरी फसल बोता है, वो भी धान की ही होती है.

शायद छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी इसलिए कहा जाता है. इलाक़े में 22 हज़ार क़िस्म की धान का संग्रह रिकॉर्ड में मौजूद है.

भौगोलिक तौर पर भी ये एक ऐसा हिस्सा है, जिसके दोनों तरफ़ पठारी क्षेत्र हैं और बीच में है मैदानी इलाक़ा.

राजधानी रायपुर इसी मैदानी इलाक़े का हिस्सा है. पिछले चुनाव में धान को लेकर किए गए वादे के कारण कहा जाता है कि कांग्रेस ने अच्छी राजनीतिक फसल काटी थी.

इत्तेफ़ाक़ से इस समय धान की बुआई का सीज़न है, जिसकी कटाई नवंबर मध्य तक होती है. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव नवंबर के आसपास ही होंगे.

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