नूंह हिंसा: मेवात के मुसलमानों को जानिए, कैसे महात्मा गांधी बने थे सहारा

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DMT : नूंह  : (04 अगस्त 2023) : –

हरियाणा के नूंह ज़िले में बीती 31 जुलाई को भड़की हिंसा में अब तक कम से कम छह लोगों की मौत हो चुकी है.

नूंह से लेकर गुरुग्राम तक हिंसा प्रभावित इलाक़ों में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है.

हरियाणा पुलिस ने नूंह में हुई हिंसा के मामले में 45 एफ़आईआर दर्ज करके अब तक 139 लोगों को गिरफ़्तार किया है. इस मामले की जांच के लिए तीन जांच समितियां गठित की गई हैं.

लेकिन ये हिंसा नूंह में क्यों हुई…इस सवाल का जवाब इस क्षेत्र के इतिहास, भूगोल और सामाजिक संरचना में छिपा है.

चमकती बहुमंजिला इमारतों वाले गुरुग्राम से मात्र 50 किलोमीटर दूर स्थित नूंह ज़िले में मुसलमानों की आबादी 79 फ़ीसदी से ज़्यादा है.

साल 2016 में नाम बदलने से पहले तक नूंह को मेवात के नाम से जाना जाता था.

लेकिन मेवात सिर्फ़ एक ज़िला ही नहीं है बल्कि एक सांस्कृतिक और भौगोलिक क्षेत्र है, जो हरियाणा से लेकर राजस्थान के भरतपुर और उत्तर प्रदेश के मथुरा ज़िले तक फैला है.

यहां रहने वाले मुसलमानों को मेव मुसलमानों के रूप में जाना जाता है. इसी वजह से इस क्षेत्र को मेवात कहा जाता है.

इस क्षेत्र का ज़्यादातर इलाक़ा पिछड़ेपन का शिकार है. पीने के पानी से लेकर शिक्षा और स्वास्थ्य तमाम मानकों पर ये क्षेत्र भारत के दूसरे ज़िलों से पीछे है.

हरियाणा के नूंह (मेवात) ज़िले की सामाजिक और आर्थिक बदहाली का आलम ये है कि साल 2018 में आई नीति आयोग की रिपोर्ट में इसे देश का सबसे पिछड़ा ज़िला बताया गया था.

हरियाणा को दक्षिण में राजस्थान और पूर्व में उत्तर प्रदेश से जोड़ने वाले इस ज़िले की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय गुरुग्राम की तुलना में दस फीसद भी नहीं है.

साल 2014 में आई हरियाणा सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक़, गुरुग्राम की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय जहां 3,16,512 रुपये थी, वहीं नूंह की प्रति व्यक्ति वार्षिक 27,791 रुपये थी. इसके बाद के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.

पिछले कुछ सालों में नूंह सायबर अपराध के एक नये ठिकाने के रूप में उभरकर सामने आया है.

एनसीआरबी डेटा के मुताबिक़, साल 2021 में यहां 52,974 केस दर्ज किए गए थे, जिनमें से 12 फ़ीसद केस सिर्फ़ नूंह से जुड़े हैं.

ज़िला प्रशासन ने हाल ही में बताया है कि उसने 28000 केस हल किए हैं जिनमें 100 करोड़ रुपये का सायबर फ्रॉड किया था.

लेकिन मेवात सिर्फ़ एक ज़िला नहीं बल्कि एक भौगोलिक और सांस्कृतिक क्षेत्र है जो हरियाणा से लेकर राजस्थान के भरतपुर और उत्तर प्रदेश के मथुरा ज़िले तक फैला है.

यही बात इस क्षेत्र को बीते सोमवार हुई हिंसा से जोड़ती है.

बीते रविवार विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में निकाली गई बृज मंडल जलाभिषेक यात्रा गुरुग्राम से होकर मेवात में पूरी होनी थी.

इस यात्रा में शामिल लोग गुरुग्राम से मेवात क्षेत्र में स्थित नलहरेश्वर मंदिर पहुंचते हैं.

इसके बाद यात्रा इस मंदिर से 45 किलोमीटर दूर स्थित श्रृंगार गाँव पहुँचती है, जहाँ से यात्रा में शामिल लोग श्रंगेश्वर महादेव मंदिर पहुंचकर जलाभिषेक की प्रक्रिया पूरी करते हैं.

लेकिन नलहरेश्वर मंदिर के पास हुई हिंसा के बाद ये यात्रा आगे नहीं बढ़ सकी.

क़रीब तीन साल पहले विहिप के नेतृत्व में शुरू हुई उस यात्रा का मक़सद कथित रूप से इस क्षेत्र में मौजूद उन हिंदू मंदिरों और पवित्र स्थानों को लोगों के सामने लाना है, जिनका संबंध महाभारत से बताया जाता है.

विश्व हिंदू परिषद का दावा है कि “बीसवीं सदी की शुरुआत में मेवात में हिंदू समाज बहुसंख्यक था लेकिन अब धर्मांतरण की वजह से मुस्लिम बहुल बन गया है और यहाँ हिंदुओं का जीना दूभर हो गया है.”

विश्व हिंदू परिषद पिछले कुछ सालों से लगातार इस क्षेत्र में अपनी पहुँच बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि हिंसा में शामिल दोषियों को बख़्शा नहीं जाएगा.

वहीं हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा है कि धार्मिक यात्रा निकालने वालों ने पहले बताया नहीं था कि कितनी संख्या में लोग इसमें शामिल होंगे. चौटाला ने कहा था कि ठीक से सूचना नहीं मिलने के कारण भी स्थिति बेकाबू हुईं.

विहिप और बीजेपी की राजनीति पर नज़र रखने वालीं वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन इन कोशिशों को ध्रुवीकरण की राजनीति से जोड़कर देखती हैं.

वह कहती हैं, “हरियाणा में बीजेपी की स्थिति फ़िलहाल अच्छी नहीं. ऐसे में वे चाहेंगे कि किसी तरह हिंदू और मुसलमान के बीच ध्रुवीकरण हो. किसान आंदोलन के बाद से हरियाणा में राजनीति जाति के आधार पर बँटी हुई है और बीजेपी को जब जब महसूस होता है कि राजनीति में धर्म की जगह जाति के आधार पर ध्रुवीकरण हो रहा है तो वह उसे धर्म के आधार पर लाने की कोशिश करती है.”

लेकिन सवाल उठता है कि जब मेवात में मुसलमानों की आबादी 80 फीसद है तो बीजेपी के लिए यहां कितनी संभावनाएं हैं.

इस सवाल का जवाब देते हुए राधिका रामाशेषन कहती हैं, “मेवात में मुसलमानों की आबादी 80 फीसद है. लेकिन अगर आप यूपी के रामपुर का उदाहरण देखेंगे तो वहां भी मुसलमान बड़ी संख्या में हैं और बीजेपी ने वहां भी विहिप के दम पर अपनी जगह बनाई.”

”बीजेपी नूंह में हुई हिंसा के दम पर शेष हरियाणा में हिंदुओं को अपनी ओर खींचने की कोशिश करेगी. ये नैरेटिव आने वाले आम चुनाव तक चलाया जाएगा. लेकिन हरियाणा में ये नैरेटिव कितना काम करेगा, ये देखने की बात होगी. क्योंकि एक बार राजनीति जाति पर शुरू हो जाती है तो उसका धर्म के आधार पर बँटना थोड़ा मुश्किल होता है.”

मेवात में रहने वाले मुसलमानों को मेव मुसलमानों के नाम से जाना जाता है, जिन्हें महात्मा गांधी ने कभी ‘भारत की रीढ़ की हड्डी’ तक बताया था.

मेवात के इस इतिहास और सामाजिक पृष्ठभूमि को समझने वाले लेखक विवेक शुक्ल मानते हैं कि मेवात के मुसलमान अपने आप में ख़ास हैं.

वे कहते हैं, “यहाँ रहने वाले मुसलमान अब से कुछ सौ साल पहले धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया से गुज़रे थे जिसकी वजह से यहां का मुस्लिम समुदाय शेष भारत में रहने वाले मुस्लिम समुदाय से भिन्न हैं. ये समुदाय आज भी हिंदू धर्म से जुड़ी तमाम मान्यताओं को मानता है और उनका पालन करता है. इनमें गोत्र जैसी चीज़ अहम है. मैं कई मुसलमानों से मिला हूँ, जिन्हें आज भी धर्म परिवर्तन से पहले की अपनी हिंदू जाति याद है. यही नहीं, ये मुसलमान अपने आपको अहीर और हिंदू भगवान कृष्ण के वंशज मानते हैं. ये क्षेत्र भी बृज क्षेत्र ही कहलाता है.”

इसके साथ ही मेवात का भारत की आज़ादी, विभाजन और महात्मा गांधी के साथ भी गहरा नाता है.

भारत की आज़ादी के साथ ही जब मुल्क दो टुकड़ों में बँट गया तो एकाएक देश में कई जगह दंगे भड़क उठे.

मेवात में रहने वाले मेव मुसलमान भी राजस्थान के भरतपुर में इन दंगों का शिकार हुए.

विवेक शुक्ल बताते हैं, “राजस्थान के भरतपुर में हुए भारी नरसंहार में किसी तरह ख़ुद को बचाते हुए मेवातियों के प्रतिनिधि महात्मा गांधी के पास पहुँचे. उन दिनों एक नारा चला करता था – नरसंहार या पाकिस्तान. और मेवाती मुसलमान इससे बचने के लिए पाकिस्तान जाने के लिए तैयार ही नहीं हुए, बल्कि कई मुसलमान सरहद तक पहुँच भी गए.”

इस वक़्त दिल्ली के शाहदरा, दरियागंज, बेगमपुर, करोल बाग और पहाड़गंज आदि में भी दंगे भड़के हुए थे. लेकिन महात्मा गांधी दिल्ली के बिड़ला हाउस में ही मौजूद थे और दंगों को रोकने की कोशिश में लगे थे.

विवेक शुक्ल बताते हैं, “बीस सितंबर, 1947 को एक प्रार्थना सभा के दौरान मेव नेता चौधरी यासीन ख़ान ने गांधी जी को बताया कि मेवात के हज़ारों मुसलमान पाकिस्तान जाने को तैयार हैं. ये सुनते ही गांधी जी विचलित हो गए. उन्होंने ख़ुद मेवात जाने का फ़ैसला किया ताकि पाकिस्तान जाने को तैयार बैठे मुसलमानों को सरहद के उस पार जाने से रोका जा सके.”

यासीन ख़ान से इस मुलाक़ात के कुछ हफ़्ते बाद गांधी जी मेवात के घासेड़ा गांव पहुंचे.

विवेक शुक्ल गांधी जी की मेवात यात्रा को बयां करते हुए कहते हैं, “गांधी जी को बिड़ला हाउस से मेवात पहुंचने में क़रीब दो-तीन घंटे लगे होंगे. तब धौला कुआं के आगे क़ायदे की सड़कें ना के बराबर हुआ करती थी. घासेड़ा में राजस्थान के अलवर और भरतपुर के सैकड़ों मुसलमान कैंपों में रह रहे थे.

ये सब पाकिस्तान जा रहे थे. गांधी जी ने घासेड़ा में पहुंचते ही मेव मुसलमानों को लगभग आदेशात्मक स्वर में कहा कि उन्हें पाकिस्तान जाने की कोई ज़रूरत नहीं है. भारत उनका और वे भारत के हैं. ये सुनते ही वहां पर मौजूद मुसलमानों ने इस्लामिक पाकिस्तान जाने का इरादा त्याग दिया.”

हरियाणा के मेवात का घासेड़ा गाँव अपने आप में एक मिसाल बनकर खड़ा है.

बीबीसी संवाददाता सलमान रावी से 2014 में घासेड़ा गाँव के सबसे बुज़ुर्ग सरदार ख़ान ने बताया था, कि वह उस रोज़ रैली में मौजूद थे, जब महात्मा गांधी मुसलमानों से मुख़ातिब हुए थे. ख़ान ने कहा था, “मैं तब दस साल का था और मुझे उनकी एक-एक बात याद है. उनके आह्वान के बाद हम सब यहीं रुक गए.”

ख़ान ने कहा था, “वैसे भी मेवात के मुसलमान विभाजन के ख़िलाफ़ थे. मगर दंगे हो रहे थे, माहौल ख़राब था. चारों तरफ़ डर और दहशत का माहौल था. मगर हमारे बाप-दादाओं ने यहीं रहने का मन बना लिया. आज हमें ख़ुशी है कि हमने ऐसा किया.”

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