नेपाल में कैसे जड़ें जमा रही है हिन्दुत्व की राजनीति, मुसलमानों पर कैसा असर?

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DMT : जनकपुर  : (16 मार्च 2023) : –

नेपाल में जनकपुर के जानकी मंदिर के ठीक पीछे एक मस्जिद है. कहा जाता है कि जानकी मंदिर बनाने वाले कारीगर मुस्लिम थे और उन्होंने ही अपनी इबादत के लिए एक मस्जिद बना ली थी.

यह मस्जिद आज भी है. जनकपुर में तीन से चार फ़ीसदी मुसलमान हैं.

जनकपुर का जानकी मंदिर वॉर्ड नंबर छह में है. 1990 के दशक में इस वॉर्ड से सईद मोमिन अध्यक्ष बनते थे. बाद में मोहम्मद इदरिस इस वॉर्ड के अध्यक्ष बने.

विवाह पंचमी के समय सईद मोमिन और फिर बाद में मोहम्मद इदरिस जानकी मंदिर और राम मंदिर के बीच बारात की अगुआई करते थे.

जनकपुर के वरिष्ठ पत्रकार रोशन जनकपुरी कहते हैं कि बचपन में उन्होंने अपनी आँखों से देखा है कि कैसे सईद मोमिन और मोहम्मद इदरिस विवाह पंचमी में जानकी मंदिर की अगुआई करते थे.

रोशन जनकपुरी कहते हैं कि मुहर्रम का ताजिया भी जानकी मंदिर के कैंपस में ही बनता था.

मुसलमानों के लिए जानकी मंदिर का दरवाज़ा कभी बंद नहीं हुआ और न ही मुसलमानों को कभी लगा कि यह किसी अनजान मज़हब का मंदिर है.

एक वक़्त था जब जानकी मंदिर के भंडारे में मुसलमान काम किया करते थे और भंडारे के लिए सब्ज़ियाँ भी उगाते थे.

लेकिन अब जानकी मंदिर और मस्जिद के बीच की दूरी बढ़ गई है. मंदिर और मस्जिद के बीच एक दीवार खड़ी कर दी गई है. अब सईद मोमिन और मोहम्मद इदरिस की पीढ़ी ख़त्म हो चुकी है.

विवाह पंचमी में अब अयोध्या से भी बारात आने लगी है. यह बारात अब स्थानीय से अंतरराष्ट्रीय बन गई है और उतनी ही सियासी. 2018 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जनकपुर बारात लेकर पहुँचे थे.

रोशन जनकपुरी कहते हैं, ”योगी की एंट्री के बाद जानकी विवाह में सईद मोमिन और मोहम्मद इदरिस के लिए बहुत कम जगह बची थी. 2014 में भारत में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद नेपाल पर गहरा असर पड़ा है. अगर मैं जनकपुर की ही बात करूँ तो 2018 में मोदी के जनकपुर दौरे से पहले और दौरे के बाद बहुत कुछ बदल दिया गया.”

सुबह के दस बजे रहे हैं. जानकी मंदिर के भीतर से ‘हरे राम और सीता राम’ की मधुर आवाज़ आ रही है. मंदिर के कैंपस में हनुमान का मुखौटा लगाए एक व्यक्ति घूम रहा है. बच्चे हनुमान जी के साथ सेल्फ़ी ले रहे हैं.

हम लोगों का कैमरा देख 40 साल के एक व्यक्ति ने पूछा, ”कहाँ से आए हैं? मैंने कहा दिल्ली से. उन्होंने बिना पूछे ही बताया, प्रधानमंत्री भी आए थे. मैंने कहा, कौन प्रचंड? उनका जवाब था- अरे नहीं भाई मोदी जी.”

आपके प्रधानमंत्री तो प्रचंड हैं न? उस व्यक्ति ने कहा- हाँ हैं लेकिन मोदी जी भी हैं. मेरे साथ नेपाल के पहाड़ी इलाक़े से एक पत्रकार थे और जनकपुर के ही मुस्लिम पत्रकार. दोनों हँसने लगे. इन दोनों में से एक ने कहा- इसी से समझ लीजिए कि नेपाल पर मोदी के आने के बाद कैसा और कितना असर पड़ा है.

मैंने उस मुस्लिम पत्रकार से पूछा कि क्या मंदिर के महंत जी से बात हो जाएगी. उन्होंने कहा- महंत जी तो अभी अयोध्या गए हुए हैं. अगर मुख्य पुजारी जी से मिलना है तो चलिए. क्या आप मंदिर में जा सकते हैं?

उनका जवाब था, ”सर, ये जनकपुर है. मोदी जी का असर पड़ा है, लेकिन नेपाल में अब भी बहुत अच्छा है. चलिए पुजारी जी से मिलते हैं.”

उन्होंने गेट के बाहर अपने जूते खोले और मुख्य पुजारी के पास ले गए. जानकी मंदिर के मुख्य पुजारी ने बहुत ही अपनापन से मुस्लिम पत्रकार से हाल-चाल पूछा और फिर मुझसे बात हुई.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2018 में जनकपुर आए थे. पीएम मोदी के जनकपुर आने से पहले और जाने के बाद शहर में कई तरह के परिवर्तन हुए.

पीएम मोदी के स्वागत में जनकपुर उप-महानगरपालिका के तत्कालीन मेयर लालकिशोर साह ने शहर की कई दीवारों को भगवा रंग में रंगवा दिया था. जनकपुर उप-महानगरपालिका का नाम बदलकर जनकपुर धाम उप-महानगरपालिका कर दिया था.

नगरपालिका के कर्मचारियों के लिए यूनिफ़ॉर्म तय किया गया था जिसका रंग भगवा था. सभी कर्मचारियों के दफ़्तर पहुँचने पर ‘जय जनकपुर धाम’ टाइटल का एक प्रार्थना गीत होता था. तब नसीम अख़्तर नाम के एक मुस्लिम कर्मचारी ने इस फ़ैसले को मानने से इनकार कर दिया था.

लालकिशोर साह से पूछा कि उन्होंने इस तरह के फ़ैसले क्यों लिए थे? साह कहते हैं, ”हम जनकपुर को केसरिया नगर बनाना चाहते थे. इसीलिए तब हमने सरकारी पैसे से भी लोगों के घर भगवा रंग में रंगवाए. सीता जी को भी भगवा रंग बहुत पंसद था.”

लालकिशोर साह के इन फ़ैसलों से क्या पीएम मोदी ख़ुश हुए थे?

साह कहते हैं, ”एयरपोर्ट पर पीएम मोदी की अगवानी मैंने भी की थी. एयरपोर्ट से मोदी जी को जानकी मंदिर लाया था. इसके बाद मोदी जी का रंगभूमि मैदान में नागरिक अभिनंदन कराया था.”

“पीएम मोदी को फिर छोड़ने गया तो उन्होंने ख़ुद ही कहा था- मेयर साहब आपने तो एक तरह का रंग दे रखा है, जनकपुर में. मैंने कहा कि जी मेरा यह फ़ैसला था. मोदी जी ने कहा कि यह काफ़ी अच्छा है.”

नेपाल में हिन्दुत्व की राजनीति का असर

डेनमार्क में नेपाल के राजदूत रहे और काठमांडू में ‘सेंटर फ़ॉर सोशल इन्क्लूज़न एंड फ़ेडरलिज़म’ (सीईआईएसएफ़) नाम से एक थिंकटैंक चलाने वाले विजयकांत कर्ण कहते हैं कि नरेंद्र मोदी को जनकपुर में देखने हज़ारों की भीड़ आई थी.

वह कहते हैं, ”विदेश में मोदी को देखने और सुनने इतनी बड़ी तादाद में लोग कभी और कहीं नहीं आए थे. रंगभूमि मैदान पूरी तरह से भरा हुआ था. ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वह विदेश की धरती पर बोल रहे हैं.”

विजयकांत कर्ण कहते हैं, ”नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद नेपाल में हिन्दुत्व की राजनीति को बल मिला है. अगर धर्म का सियासी इस्तेमाल शुरू हुआ तो स्थिति ख़राब हो जाएगी.

विजयकांत कर्ण कहते हैं, “18 लाख मुसलमानों में से 98 फ़ीसदी मुसलमान मधेस इलाक़े में हैं. यह भारत से जुड़ा हुआ इलाक़ा है. इससे केवल नेपाल की सुरक्षा ही ख़तरे में नहीं पड़ेगी बल्कि भारत की सुरक्षा पर भी बहुत बुरा असर पड़ेगा.”

“भारत ऐसी नासमझी नहीं करेगा कि वह नेपाल बॉर्डर को भी एलओसी और बांग्लादेश से लगी सीमा की तरह बना दे. इन दोनों सीमाओं पर सुरक्षा के लिए भारत अरबों रुपए खर्च करता है, लेकिन नेपाल से लगी सीमा पर अब तक ऐसा नहीं है.”

नेपाल में आरएसएस

नेपाल में आरएसएस हिन्दू स्वयंसेवक संघ नाम से काम करता है. नेपाल में आरएसएस को एचएसएस कहा जाता है. बीरगंज के रंजीत साह जनकपुर संभाग के हिन्दू स्वयंसेवक संघ के कार्यवाह हैं.

बीरगंज बिहार के रक्सौल से लगा है. रंजीत साह से बीरगंज स्थित उनके दफ़्तर में मिलने गया. जिस कमरे में वह बैठते हैं, उसके ठीक पीछे दीवार पर आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार और आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर की तस्वीर लगी है.

क्या आप हेडगेवार और गोलवलकर से प्रेरणा लेते हैं? रंजीत साह ने हँसते हुए कहा, ”संघ का स्वयंसेवक हूँ और किससे प्रेरणा लूंगा?”

रंजीत साह ने नेपाल में मधेसियों और पहाड़ियों की लड़ाई, भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद के साथ तमाम समस्याओं के लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहरा दिया.

रंजीत साह कहते हैं, “नेपाल में मधेस आंदोलन इस्लामिक साज़िश थी. पहाड़ी और मधेसियों को जान-बूझ कर लड़ाया गया और इसका फ़ायदा मुस्लिम समाज ने उठाया.”

रंजीत साह किस आधार पर कह रहे हैं कि नेपाल के तराई इलाक़े में पिछले 10 सालों में मुसलमानों की आबादी 400 फ़ीसदी बढ़ गई है? साह कहते हैं, ”संघ ने इंटरनल सर्वे किया था.”

क्या संघ नेपाल को फिर से हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है? रंजीत साह इस सवाल के जवाब में कहते हैं, ”हर हिन्दू यही चाहता है. हर हिन्दू के मन में यह चाहत दबी हुई है. इसके लिए प्रयास जारी है. प्रयास के परिणाम भी अब आने शुरू हो गए हैं. भविष्य में ऐसा ज़रूर होगा. कुछ राजनीतिक व्यक्ति इस राह में अड़चन हैं. हमारे समाज के ही कुछ लोग अड़चन हैं.”

अगर नेपाल फिर से हिन्दू राष्ट्र बन भी गया तो उससे क्या हासिल होगा? रंजीत साह इस सवाल के जवाब में सवाल करते हैं- ”पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र है तो क्या हासिल हुआ?” मैंने कहा, ”मुझे तो नहीं लगता है कि इस्लामिक राष्ट्र होने के कारण पाकिस्तान ने बहुत तरक़्क़ी कर ली और वहाँ के मुसलमान ख़ुश हैं.”

रंजीत साह इस जवाब के बाद थोड़े असहज हो जाते हैं. फिर वह कहते हैं- ऑस्ट्रेलिया ईसाई देश है तो क्या हासिल कर लिया? सच यह है कि ऑस्ट्रेलिया सेक्युलर मुल्क है.

रंजीत साह कोई सही मिसाल नहीं चुन पाते हैं, लेकिन अपनी सोच को सही साबित करने के लिए कहते हैं, ”नेपाल जब तक हिन्दू राष्ट्र था, तब तक कोई सामाजिक मतभेद नहीं था. अल्पसंख्यक सबसे ज़्यादा सुरक्षित थे. जब से धर्मनिरपेक्ष हुआ है तब से यहाँ असुरक्षा बढ़ी है.

“अल्पसंख्यक समुदाय जिस भी इलाक़े में बहुसंख्यक हुआ है, वहाँ की मूल आबादी पर तबाही मचा रहा है. बीरगंज में हिन्दू बहुसंख्यक हैं, लेकिन एक ही श्मशान है पर मुट्ठी भर अल्पसंख्यकों का पिछले पाँच सालों में क़रीब दस क़ब्रिस्तान और ईदगाह बने हैं.

बीरगंज में स्थानीय हिन्दुओं ने रंजीत साह के उस दावे को ख़ारिज कर दिया कि शहर में एक ही श्मशान है. स्थानीय लोगों ने बताया कि कई ऐसी जगहें हैं, जहाँ हिन्दू शव की अंत्येष्टि करते हैं.

भारत में तो आरएसएस की पार्टी बीजेपी है, नेपाल में कौन सी पार्टी है? रंजीत साह कहते हैं, ”यहां सारी पार्टियों के लोगों से अच्छे संबंध हैं. अयोध्या में राम की मूर्ति बनाने के लिए गंडकी प्रदेश की कालीगंडकी नदी से ही पत्थर लिया गया है.”

“इस पत्थर को लेकर देवशिला यात्रा निकली और इसकी अनुमति गंडकी प्रदेश की कम्युनिस्ट सरकार ने ही दी थी.’

पत्रिका हिमाल दृष्टि के नाम से निकलती है. भारत में आरएसएस सरस्वती शिशु मंदिर नाम से स्कूल चलाता है और नेपाल में पशुपति शिक्षा मंदिर नाम से. जिस तरह से भारत में आरएसएस के कई संगठन हैं, उसी तरह से नेपाल में भी कई संगठन हैं.

रंजीत शाह बताते हैं कि नेपाल में आरएसएस के कुल 12 संगठन काम करते हैं. ये संगठन हैं-

फिर से हिन्दू राष्ट्र

सितंबर 2015 में नेपाल ने अपना नया संविधान लागू किया था. इस संविधान में घोषणा की गई थी नेपाल हिन्दू राष्ट्र अब नहीं रहेगा. नेपाल संवैधानिक रूप से सेक्युलर स्टेट बन गया था.

नेपाल में ऐसी घोषणा तब हुई थी जब भारत में हिन्दू राष्ट्र की वकालत करने वाली भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार थी. 2006 में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा था कि नेपाल को माओवादियों के दबाव में हिन्दू राष्ट्र की पहचान नहीं खोनी चाहिए.

नेपाल के सेक्युलर स्टेट बनने के बाद वहाँ के मुसलमानों की ज़िंदगी पर क्या असर पड़ा? बीरगंज में 35 साल के शेर मोहम्मद अंसारी कहते हैं, ”सच कहिए तो हम हिन्दू राष्ट्र में बहुत सुरक्षित थे. तब धर्म को लेकर तो कोई बात ही नहीं करता था. हिन्दू राष्ट्र होते हुए भी मज़हब को लेकर कोई बात नहीं करता था. हमें तब भी कोई नुक़सान नहीं था. हिन्दू राष्ट्र ख़त्म होने के बाद कुछ हक़ हमें मिले हैं. जैस- ईद और बकरीद में अब यहाँ के मुसलमानों को छुट्टी मिलती है. हिन्दू राष्ट्र में यही छुट्टी नहीं थी.”

शेर मोहम्मद अंसारी कहते हैं, ”भारत में हिन्दूवादी राजनीति का असर नेपाल के मुसलमानों पर सीधा पड़ा है. यह भले राजनीतिक रूप में नहीं दिख रहा है, लेकिन मुसलमानों के बीच हलचल है. ओवैसी नेपाल के मुसलमानों के बीच 2014 के पहले लोकप्रिय नहीं थे लेकिन अब उनका भाषण यहाँ यह युवा मुसलमान बहुत गौर से सुनता है. लोकतंत्र आने के बाद ऐसे मुद्दों पर यहाँ के मुसलमान भी एकजुट हो रहे हैं.”

शेर मोहम्मद ये सारी बातें बीरगंज की मस्जिद के पास कह रहे थे. उनके बगल में खड़े जैमुनीद्दीन अंसारी ने कहा, ”हमारे मुसलमान भाई को बेवजह मारा जाता है तो हमलोग पर असर पड़ता है. हमलोग के नेपाल में ऐसा नहीं होता है. हिन्दुस्तान में मुसलमानों को कुछ ज़्यादा ही सताया जा रहा है.”

नेपाल जब हिन्दू राष्ट्र था तो वाक़ई मुसलमान ज़्यादा सुरक्षित थे? नेपाल के जाने-माने पत्रकार और लेखक सीके लाल कहते हैं, ”राजा अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देकर उसमें अपनी वैधानिकता ढूंढते हैं. लेकिन लोकतंत्र में बहुसंख्यकवाद लागू हो जाता है. इसकी वजह से जिसका मत ज़्यादा होता है, उसे ज़्यादा महत्व मिलने लगता है. इसी वजह से नेपाल के कुछ मुसलमान कहते हैं कि उनके लिए राजशाही ज़्यादा ठीक थी. यह एक अल्पसंख्यक मनःस्थिति है.”

सीके लाल कहते हैं कि मधेस में आरएसएस और हिन्दुत्व की राजनीति को 2014 के बाद ज़्यादा बल मिला है.

वह कहते हैं, ”बीरगंज में बनियों की आबादी अच्छी ख़ासी है और हिन्दुत्व की राजनीति से उनका जुड़ाव भारत की तरह ही है. मुझे लगता है कि आरएसएस और हिन्दुत्व की राजनीति नेपाल में ऐसे ही ज़ोर पकड़ती रही तो आने वाले वक़्त में द्वंद्व बढ़ेगा. नेपाल तो इससे प्रभावित होगा है लेकिन भारत पर भी इसका असर ठीक नहीं पड़ेगा. नेपाल के राजनेता इस हिन्दुत्व की राजनीति से ख़ुद नहीं लड़ेंगे बल्कि चीन को आगे करेंगे. अभी भारत में हिन्दुत्व की राजनीति सत्ता में है और नेपाल का कोई भी नेता इस राजनीति से टकराना नहीं चाहता है. ऐसे में नेपाल में चीन की प्रासंगिकता और बढ़ेगी.”

चंद्रकिशोर झा बीरगंज के वरिष्ठ पत्रकार हैं. नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद नेपाल की राजनीति और समाज पर होने वाले असर को वह भी क़रीब से महसूस कर रहे हैं.

इन बदलावों को रेखांकित करते हुए चंद्रकिशोर झा कहते हैं, ”नेपाल में हिन्दू और मुसलमानों के संबंध का व्याकरण बदल रहा है. मोदी के पीएम बनने के बाद भारत का मीडिया भी बदला है. भारत के हिन्दी न्यूज़ चैनल ही नेपाल में देखे जाते हैं. इन न्यूज़ चैनलों में मुसलमानों को जिस रूप में दिखाया जाता है, उसका असर पड़ना हैरान नहीं करता है.”

चंद्रकिशोर झा कहते हैं, ”हिन्दुओं में अतिवाद बढ़ रहा है तो नेपाल के मुसलमान भी रिएक्शन में ख़ुद को अतिवाद की ओर ले जा रहे हैं. हिन्दुत्व के पक्ष में भारत में जो प्रचारतंत्र काम कर रहा है, उससे नेपाल भी अछूता नहीं है. युवा पीढ़ी इसे लेकर कुछ ज़्यादा ही आक्रामक है. नेपाल में आरएसएस नेपाल के हिसाब से काम कर रहा है. भारत की राजनीति में जिस तरह से हिन्दू-मुस्लिम कार्ड खेला जा रहा है, उससे यहाँ के मुसलमानों में भी हलचल है. उनके भीतर भी असुरक्षा का भाव बढ़ा है और अपनी पहचान को लेकर आक्रामक हो रहे हैं.”

चंद्रकिशोर झा कहते हैं, ”लाल बाबू राउत मधेस प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. उनके पिता का नाम है, दशरथ राउत. माता का नाम है, राधा राउत. नाम के हिसाब से देखें तो लगता है कि यह हिन्दू परिवार है. लेकिन लाल बाबू का परिवार मुस्लिम है. उनके घर में भी छठ पूजा होती थी और दिवाली मनाई जाती थी. लेकिन उन्हें लगा कि मुस्लिम पहचान से राज्य में उनको प्रतिनिधित्व मिलेगा तो उसका सहारा लिया. यहाँ के मुसलमान ख़ुद को फिर से पारिभाषित कर रहे हैं. पहले यहाँ के मुसलमान भोजपुरी, हिन्दी, मैथिली और नेपाली बोलने पर ज़ोर देते थे लेकिन अब अपनी भाषा उर्दू बता रहे हैं. नेपाल के मुसलमान अपने पर्व-त्योहारों का सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहे हैं. उनके गमछे का रंग बदल गया है. सोशल मीडिया पर देखिए तो मुस्लिम नौजवान ओवैसी और ज़ाकिर नाइक को ख़ूब पसंद करते हैं.”

नेपाल के पूर्व विदेश प्रदीप ज्ञवाली कहते हैं कि नेपाल में राजशाही और हिन्दुत्व की राजनीति की वकालत करने वाले दोनों एक हैं. ज्ञवाली कहते हैं, ”नेपाल की संसद में राष्ट्रीय प्रजातांत्रित पार्टी है जो राजशाही की भी वकालत करती है और हिन्दुत्व की राजनीति से भी क़रीबी रखती है. मुझे लगता है कि नेपाल में हिन्दुत्व की राजनीति मज़बूत हुई को यह नेपाल की संप्रभुता के लिए ख़तरनाक होगा.”

नेपाल की राजशाही से आरएसएस का पुराना रिश्ता

1964 में नेपाल के राजा महेंद्र को राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने नागपुर में मकर संक्रांति की रैली को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया था. इस आमंत्रण को किंग महेंद्र ने स्वीकार कर लिया था. किंग महेंद्र के रुख़ से भारत की तत्कालीन कांग्रेस सरकार काफ़ी असहज थी. तब आरएसएस की कमान गोलवलकर के पास थी और उन्होंने ही किंग महेंद्र के आने की घोषणा की थी. यह बात स्पष्ट नहीं थी कि किंग महेंद्र ने आरएसएस का न्यौता स्वीकार करने से पहले दिल्ली की सरकार से संपर्क किया था या नहीं.

1960 के दशक में नेपाल में भारत के राजदूत रहे श्रीमन नारायण ने ‘इंडिया एंड नेपाल: ऐन एक्सर्साइज़ इन ओपन डेमोक्रेसी’ में लिखा है, ”किंग महेंद्र ने आरएसएस का न्योता तब स्वीकार किया था जब दिल्ली की कांग्रेस सरकार से उनका संबंध बहुत अच्छा नहीं था. दूसरी तरफ़ आरएसएस नेपाल और वहाँ के किंग को हिन्दू किंगडम के रूप में देखता था. आरएसएस नेपाल को राम राज्य की मिसाल के तौर पर देखता था जो मुस्लिम शासकों के हमले से ‘अशुद्ध’ नहीं हुआ था. आरएसएस के सपने में नेपाल अखंड भारत का हिस्सा रहा है.”

प्रशांत झा नेपाल के हैं और वह हिन्दुस्तान टाइम्स के अमेरिका में संवाददाता हैं. प्रशांत ने अपनी किताब ‘बैटल्स ऑफ़ द न्यू रिपब्लिक में लिखा है, ”राजा वीरेंद्र पंचायती व्यवस्था के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन का सामना कर रहे थे. तभी विश्व हिन्दू परिषद ने काठमांडू में राजा वीरेंद्र के समर्थन में लामबंदी की थी और उन्हें विश्व हिन्दू सम्राट घोषित किया था. शाही क़त्लेआम के बाद राजा ज्ञानेंद्र को भी वीएचपी ने यही उपाधि दी थी. नेपाल के शाह वंश का गोरखपुर के गोरखनाथ मठ से ऐतिहासिक संबंध रहा है. गोरखनाथ मंदिर की नेपाल में कई संपत्तियां हैं. इनमें स्कूल और अस्पताल भी शामिल हैं.”

योगी आदित्यनाथ नेपाल के सेक्युलर राष्ट्र बनने के फ़ैसले से ख़ुश नहीं थे. यूपीए सरकार की नेपाल नीति को लेकर प्रशांत झा ने 2006 में योगी आदित्यनाथ से सवाल पूछा तो योगी ने जवाब में कहा था, ”केवल नेहरू भारत को समझते थे. नेहरू को पता था कि नेपाल में राजशाही ज़रूरी है, इसीलिए राणाशाही के बाद किंग को सत्ता में बैठाया था. नेपाल में कुछ भी होता है तो उससे हमलोग प्रभावित होते हैं. नेपाल में शांति और स्थिरता राजशाही से ही स्थापित हो सकती है. नेपाल में माओवादी और भारत के नक्सली मिलकर काम करते हैं. नेपाल में माओवादियों के हाथ में सत्ता आएगी तो भारत के नक्सलियों का भी मन बढ़ेगा. अगर बीजेपी सत्ता में होती तो ऐसा कभी नहीं होता.”

नेपाल में भारत के राजदूत रहे रंजीत राय ने अपनी किताब ‘काठमांडू डीलेमा रीसेटिंग इंडिया-नेपाल टाइज़’ में लिखा है, ”पंचायती व्यवस्था में तुलसी गिरी नेपाल के पहले प्रधानमंत्री थे और वह आरएसएस के मेंबर थे. उन्होंने मुझसे कहा था कि नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने का आइडिया उन्हीं का था. तुलसी गिरी के समय में भारत के हिन्दूवादी संगठनों और नेपाल के रॉयल पैलेस के बीच गहरे संबंध बने थे. नेपाल 1962 के संविधान के तहत हिन्दू राष्ट्र बना था और बनाने वाले किंग महेंद्र थे.”

प्रशांत झा मानते हैं कि भारत की हर पार्टी और विचारधारा का प्रभाव नेपाल में रहा है और हिन्दुत्व का प्रभाव भी इससे अलग नहीं है. भारत के वामपंथियों का संबंध नेपाल के वामपंथियों और माओवादियों से रहा है, समाजवादियों का रहा है और अब हिन्दुत्व की राजनीति सत्ता में है तो उनका प्रभाव ज़्यादा है.

त्रिपुरा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिप्लब कुमाब देब ने फ़रवरी 2021 में बीजेपी के एक कार्यक्रम में गृह मंत्री अमित शाह का हवाला देते हुए कहा था कि बीजेपी न केवल भारत के सभी राज्यों में, बल्कि नेपाल और श्रीलंका में भी सरकार बनाना चाहती है.

बिपल्ब देब ने कहा था, ”गृह मंत्री जी (अमित शाह) तब राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. मैंने एक बैठक में कहा कि अध्यक्ष जी बहुत स्टेट हमलोग के पास हो गया है. अब तो अच्छा हो गया है. इस पर अध्यक्ष जी ने कहा- अरे काहे का अच्छा हो गया है. अभी तो श्रीलंका बाक़ी है. नेपाल बाक़ी है. मतलब उस आदमी को…बोलता है कि देश का तो कर ही लेंगे…श्रीलंका है…नेपाल है…वहाँ भी तो पार्टी को लेकर जाना है. वहाँ भी जीतना है.”

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