पटना में विपक्ष की बड़ी बैठक, क्या मोदी के ख़िलाफ़ गोलबंद होंगे सभी दल?

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DMT : पटना  : (22 जून 2023) : –

23 जून को बिहार के पटना में होने वाली ग़ैर-बीजेपी पार्टियों की बैठक बेहद ख़ास है. इसकी कुछ झलक अभी से देखने को मिल रही है.

कांग्रेस के बैनर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तस्वीर इसी की झलक है. और ये उम्मीद भी है पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी वामपंथी नेताओं के साथ एक मंच साझा करती दिखेंगी.

शुक्रवार यानि 23 जून को बिहार की राजधानी पटना में हो रही विपक्षी दलों की बैठक में राजनीति के कई धुर-विरोधी एक-दूसरे के साथ साल 2024 के लोकसभा चुनावों की रणनीति पर मंथन करने वाले हैं.

क़रीब 18 विपक्षी दलों की यह बैठक पटना में बिहार के मुख्यमंत्री आवास एक अण्णे मार्ग में होनी है.

इसमें बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइडेट के नीतीश कुमार के अलावा राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव, कांग्रेस के राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे, तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल शामिल होने वाले हैं.

इसके अलावा डीएमके के एमके स्टालिन, नेशलिस्ट कांग्रेस पार्टी के शरद पवार, शिव सेवा (उद्धव ठाकरे गुट) के उद्धव ठाकरे, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के सीताराम येचुरी, मार्क्सवादी-लेनिनवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के दीपांकर भट्टाचार्य, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के महबूबा मुफ़्ती और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला समेत कई बड़े नेता शिरकत करने वाले हैं.

इस बैठक का उद्देश्य नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार और बीजेपी के ख़िलाफ़ 2024 के आम चुनाव से पहले दमदार विपक्ष तैयार करने की कोशिश है.

लेकिन ग़ैर-बीजेपी पार्टियों की ये मित्रता कितनी गाढ़ी हो पाएगी और कितने दिनों तक टिकी रह पाएगी यह देखना दिलचस्प होगा.

इस बैठक से पहले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी शर्त रख दी है. केजरीवाल का मानना है कि पटना की बैठक में सबसे पहले दिल्ली से जुड़े केंद्र सरकार के अध्यादेश पर चर्चा होनी चाहिए.

जबकि यह मीटिंग चुनावों में विपक्षी दलों के वोटों के बिखराव को कम करने के लिए हो रही है, ताकि बीजेपी और नरेंद्र मोदी के लिए साल 2024 का रास्ता रोक सकें.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकता के लिए कई महीनों से कोशिश में लगे हैं.

इसी साल अप्रैल में नीतीश ने जब इस मक़सद से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाक़ात की थी तब ममता ने इसकी शुरुआत पटना से करने की सलाह दी थी.

हालांकि विपक्षी एकता की चर्चा कई महीनों से हो रही थी, लेकिन अब तक इसकी कोई तस्वीर सामने नहीं आई थी.

पटना की बैठक से इस एकता को लेकर एक विपक्षी दलों को एक उम्मीद ज़रूर दिख सकती है.

बीजेपी विरोधी दलों की ये बैठक अगर वह सफल होती है तो विरोधी दलों का एक मज़बूत गुट तैयार हो सकता है.

इससे ऐसे वोटरों को भी लुभाया जा सकता है जो किसी पार्टी के समर्थक नहीं होते हैं.

पटना से शुरुआत क्यों?

दरअसल पटना कई मायनों में विपक्ष की मीटिंग के लिए सबसे उपयुक्त जगह है. ममता बनर्जी ने इसके लिए नीतीश कुमार को जय प्रकाश नारायण की ‘संपूर्ण क्रांति’ आंदोलन का हवाला दिया था.

इंदिरा गांधी की सरकार के ख़िलाफ़ जेपी के साथ साल 1974 में तक़रीबन सारे बड़े विपक्षी दल एकजुट हो गए थे. पटना उस वक़्त छात्र आंदोलन से लेकर राजनीतिक विरोध तक की ज़मीन बना था.

इसी आंदोलन ने बाद में बिहार समेत पूरे देश में राजनीति के कई बड़े चेहरों को जन्म दिया था. इनमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हैं.

पटना कुछ अन्य वजहों से भी विपक्ष की बैठक के लिए सबसे उपयुक्त जगह है. साल 2015 में भी नीतीश कुमार ने यहां बीजेपी के ख़िलाफ़ विपक्षी दलों का महागठबंधन बनाया था. उस साल महागठबंधन ने बीजेपी को विधानसभा चुनावों में क़रारी शिकस्त दी थी.

मौजूदा समय में भी बिहार में बिना किसी संकट के महागठबंधन की सरकार चल रही है. इसमें कांग्रेस, जेडीयू, आरजेडी और वाम दल जैसी बड़ी पार्टियां शामिल हैं. ये दल शुक्रवार को विपक्ष की बैठक का अहम हिस्सा भी हैं.

“पटना एक अन्य वजह से भी महत्वपूर्ण है. जेडीयू का आरोप था कि ‘ऑपरेशन कमल’ के ज़रिए उनकी पार्टी को तोड़ने का षडयंत्र हो रहा था. लेकिन पिछले साल नीतीश कुमार ने इस कथित ऑपरेशन को नाकाम कर दिया था.”

यानि नीतीश कुमार को एक ऐसे नेता के तौर पर पेश किया गया, जिसने बीजेपी की तोड़-फ़ोड़ की राजनीति को मात दी थी.

जेडीयू का आरोप था कि बीजेपी ने इसके लिए जेडीयू नेता आरसीपी सिंह का इस्तेमाल किया.

हाल के वर्षों में कर्नाटक, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों की बीजेपी विरोधी दलों की सरकार समय से पहले गिर गई थी. बाद में इन राज्यों में बीजेपी या उसके गठबंधन की सरकारी बनी थी.

मोदी सरकार के ख़िलाफ विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम सबसे पहले आरजेडी के मुखिया लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने शुरू की थी. लालू को कांग्रेस और वाम दलों के साथ काम करने का अनुभव है.

वहीं नीतीश कुमार पहले बीजेपी के साथ रहे हैं और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ काम कर चुके हैं. ऐसे में पूर्व में बीजेपी के साथ रहे दलों से बात करने में उनको सहूलियत हो सकती है.

बैठक कितनी अहम?

विपक्षी दलों की यह बैठक ऐसे समय पर हो रही है जब पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव होने वाले हैं. राज्य में इन चुनावों में कांग्रेस, वामपंथी पार्टियां और ममता की टीएमसी आमने-सामने खड़ी रह सकती हैं.

दूसरी तरफ दिल्ली और पंजाब में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है. आप नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा है कि कांग्रेस दिल्ली और पंजाब में चुनाव न लड़े तो हम भी राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव नहीं लड़ेंगे.

“यह बैठक बहुत ही महत्वपूर्ण होने जा रही है. इसमें पार्टियों के बीच के मतभेद भी उभरकर सामने आएंगे और इसी से विपक्षी एकता के लिए महत्वपूर्ण समाधान भी निकल सकता है.”

पटना की सड़कों पर देखें तो कांग्रेस के बैनर और पोस्टर दिखाते हैं कि कांग्रेस इस मीटिंग में नेतृत्व की भूमिका में नज़र आती है. उसने बड़ी संख्या में ऐसे बैनर लगवाए हैं जिसमें सभी दलों के नेताओं को जगह दी गई है.

दरअसल नीतीश कुमार भी यही चाहते थे. शुरू में पटना की मीटिंग 12 जून को होनी थी, लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की मौजूदगी सुनिश्चित करने के लिए उस दिन की मीटिंग को टाल दिया गया था.

प्रमोद जोशी के मुताबिक़, “दरअसल नीतीश कुमार चाहते थे कि इस मीटिंग में कांग्रेस के ऐसे नेता शामिल हों जो कोई फ़ैसला ले सके. इसलिए राहुल गांधी का इंतज़ार किया गया.”

नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड लगातार इस तरह के गठबंधन में कांग्रेस की अहम भूमिका की बात करती रही है, लेकिन पटना में लगे आम आदमी पार्टी के बैनर पर ग़ौर करें तो उनके लिए विपक्ष की बैठक से ज़्यादा अहमियत अरविंद केजरीवाल की दिखती है.

कितनी उम्मीद

पिछले साल हिमाचल प्रदेश और अभी कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद विपक्ष और ख़ासकर विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को एक उम्मीद दिखी है.

नचिकेता नारायण के मुताबिक़, हाल की जीत से कांग्रेस और विपक्ष को यह उम्मीद जगी है कि वो हारे नहीं हैं, अब भी मैदान में हैं. इस मीटिंग के विरोधी दलों के रिश्तों पर जमी बर्फ़ भी थोड़ी पिघल सकती है.

माना जा रहा है कि इस बैठक में नीतीश कुमार सबसे पहले अपनी बात रखेंगे और उसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की बारी होगी. मीटिंग के सबसे आख़िर में कांग्रेस नेता राहुल गांधी बोल सकते हैं.

प्रमोद जोशी कहते हैं, “चुनावों के बाद नेता का चयन, कांग्रेस की केंद्रीय भूमिका, आम आदमी पार्टी की उम्मीद जैसे कई अहम मुद्दों पर इसमें चर्चा हो सकती है. नीतीश कुमार इस तरह का प्रस्ताव भी रख सकते हैं कि बीजेपी के ख़िलाफ़ चुनाव में विपक्ष का एक ही उम्मीदवार हो और इसके लिए कांग्रेस को थोड़ा त्याग करने को कहा जा सकता है.”

हालांकि इस तरह का त्याग ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल को भी करने को कहा जा सकता है. ममता जहां पश्चिम बंगाल से लेकर गोवा और उत्तर-पूर्वी राज्यों में पार्टी का विस्तार चाहती हैं.

वहीं दिल्ली और पंजाब के बाद अरविंद केजरीवाल गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में दस्तक देना चाहते हैं. इस सब जगहों पर कांग्रेस का इन दोनों नेताओं से टकराव हो सकता है.

विपक्ष का एकजुट होना जिस इतिहास को दोहरा रहा है, वही इतिहास बताता है कि जेपी के नेतृत्व में साल 1977 के चुनावों में जनता पार्टी ने कांग्रेस को भले ही मात दे दी थी, लेकिन लगातार मतभेदों की वजह से वह सरकार भी क़रीब ढाई साल तक ही चल सकी थी.

ऐसे में पटना में जुट रहे नेताओं के सामने न केवल चुनाव के पहले के मतभेदों से निपटने की चुनौती है बल्कि चुनाव के बाद अगर सफलता मिल भी जाए तो उसके लिए एक ऐसा फॉर्मूला तैयार करना है जिससे यह एक एकता बनी रही.

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