भारत और अमेरिका का पास आना क्या रूस को कर रहा है परेशान?

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DMT : अमेरिका  : (22 जून 2023) : –

अमेरिका की अपनी पहली स्टेट विज़िट पर रवाना होने से पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि भारत और अमेरिका के संबंध अपने सबसे बेहतरीन दौर में हैं.

प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा को अमेरिका बहुत अहमियत दे रहा है.

गुरुवार को प्रधानमंत्री अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित कर रहे हैं और रात को व्हाइट हाउस में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन नरेंद्र मोदी के लिए स्टेट डिनर का आयोजन करने वाले हैं.

इस दौरे में दोनों देशों के बीच अरबों डॉलर के रक्षा सौदे होने का भी अनुमान है.

प्रधानमंत्री मोदी की इस हाई प्रोफ़ाइल अमेरिका यात्रा को लेकर चर्चा ये हो रही है कि क्या भारत की अमेरिका के साथ बढ़ती नज़दीकी, भारत के पुराने दोस्त रूस को चिंता में डाल सकती है?

भारत, रूस का पुराना दोस्त रहा है. यूक्रेन में युद्ध के बाद पश्चिम ने रूस पर पाबंदियां लगाईं लेकिन भारत लगातार रूस से तेल ख़रीदता रहा.

यूक्रेन युद्ध को लेकर संयुक्त राष्ट्र में जब-जब रूस के ख़िलाफ़ निंदा प्रस्ताव लाया गया तो भारत उसमें ग़ैर हाज़िर रहा. इसने अमेरिका और पश्चिमी देशों को कुछ हद तक नाराज़ भी किया.

भारत दुनिया भर में हथियारों का सबसे बड़ा ख़रीददार रहा है और रूस से वो सबसे ज़्यादा हथियार ख़रीदता रहा है.

लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि दुनिया बदल रही है. नए अलायंस बन रहे हैं और बदलते समीकरणों के तहत भारत, अमेरिका के नज़दीक जा रहा है.

जैसे हथियार सौदों की ही बात करें तो पिछले पांच सालों में भारत का रूस से व्यापार कम हुआ है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के मुताबिक़ जहां 2017 में भारत अपने कुल हथियार आयात का 62 प्रतिशत रूस से ख़रीदता था तो 2022 तक ये घटकर 45 प्रतिशत हो गया.

हथियार ख़रीदने के मामले में अब भारत का रूस से फ़ोकस हटकर धीरे-धीरे अमेरिका और फ़्रांस जैसे पश्चिमी देशों की तरफ़ शिफ़्ट हो रहा है.

यूक्रेन युद्ध के बाद से ही अमेरिका और यूरोपीय देशों का भारत पर अप्रत्यक्ष दबाव रहा है कि वो रूस के ख़िलाफ़ कड़ा रुख़ अपनाए.

रूसी विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव ने भी कई बार इशारों में कहा कि अमेरिका चाह रहा है कि भारत और रूस के ऐतिहासिक संबंध ख़त्म हो जाएं.

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार डॉक्टर प्रेम आनंद मिश्रा कहते हैं, “हां रूस परेशान तो है. उस पर दबाव है. भारत-अमेरिका के मौजूदा संबंध बेहद शानदार हैं. तो देखना होगा कि क्या रूस से अपनी दोस्ती की क़ीमत पर भारत अमेरिका के साथ अपने संबंध आगे बढ़ा सकता है. ये इस बात पर निर्भर करेगा कि चीन के साथ भारत के तनाव को देखते हुए अमेरिका किस हद तक भारत का साथ देगा.”

हलांकि भारत में रूस के राजदूत डेनिस एलिपोव ने अंग्रेज़ी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में कहा कि भारत और रूस के संबंधों में कोई असर नहीं पड़ेगा तो रूस पहले की ही तरह भारत को तेल की आपूर्ति जारी रखेगा.

विशेषज्ञ कहते हैं कि यूक्रेन युद्ध के बाद से अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं और इसी कारण भारत और रूस के बीच की डिफ़ेंस डील पर भी विपरीत असर पड़ा है.

अगर आगे अमेरिका ने रूस पर और प्रतिबंध लगा दिए तो निश्चित तौर पर भारत और रूस के व्यापारिक संबंध प्रभावित होंगे जो भारत के लिए नहीं बल्कि रूस के लिए चिंता का विषय होगा.

क्योंकि भारत ने हथियार ख़रीदने के लिए नए बाज़ार तलाशने शुरू कर दिए हैं साथ ही चीन और पाकिस्तान के साथ तनाव को देखते हुए वो ख़ुद भी हथियारों के निर्माण पर ध्यान दे रहा है.

ऐसे में भारत की रूस पर निर्भरता कम हो रही है.

डॉक्टर प्रेम आनंद मिश्रा कहते हैं, “वक़्त बदल रहा है. अब दो देशों के बीच दोस्ती सिर्फ़ इस वजह से आगे जारी नहीं रह सकती कि दोनों के बीच ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. “

“अब बिज़नेस और एक दूसरे की ज़रूरतों को प्राथमिकताएं दी जाती हैं. अगर रूस पर प्रतिबंध बढ़ते चले गए तो हो सकता है भारत का रूस से हथियारों का आयात बिलकुल कम हो जाए.”

रूस के बजाय अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती नज़दीकी की वजह चाइना फ़ैक्टर भी है.

हाल के सालों में सीमा पर भारत और चीन के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है. चीन का रुख़ भारत के प्रति बेहद आक्रामक रहा है.

वहीं दूसरी ओर यूक्रेन युद्ध के बाद से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग पड़े रूस को चीन से सहारा मिला है.

चीन ने कई मौक़ों पर रूस का साथ दिया है जिसके कारण दोनों देशों के बीच दोस्ती लगातार मज़बूत हो रही है.

इंडो पैसिफ़िक रीजन में चीन के लगातार बढ़ते असर को बैलेंस करने के लिए भारत को अमेरिका की ज़रूरत पड़ सकती है.

भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के साझा फ़ोरम क्वाड का मक़सद भी इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को काउंटर करने के लिए एक दूसरे का साथ देना है.

डॉक्टर प्रेम आनंद मिश्रा कहते हैं, “एक ही तरीक़ा है जिससे रूस भारत को लुभा सकता है. अगर रूस, चीन को समझा सके कि वो भारत के प्रति अपने आक्रामक रुख़ में नरमी लाए तब तो ये भारत के लिए फ़ायदे की बात हो सकती है. वरना मौजूदा हालात में रूस के पास इससे ज़्यादा विकल्प हैं नहीं. वो भारत की तुलना में कहीं ज़्यादा दबाव में है.”

भारत और अमेरिका को इस वक़्त एक दूसरे की ज़रूरत है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे से पहले कई संगठनों ने वहां विरोध प्रदर्शन किया था.

उन्होंने भारत में हुई कई घटनाओं का हवाला देकर मोदी सरकार पर मानवाधिकार उल्लंघन और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के आरोप लगाए थे.

डॉक्टर प्रेम आनंद के मुताबिक़, “धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर और मानवाधिकार मामलों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत पर जो भी सवाल उठे उसके बावजूद अमेरिका भारत के साथ आगे बढ़ने का फ़ैसला कर चुका है.”

“उसने इन सब मामलों में दख़ल देना ही बंद कर दिया है क्योंकि एशिया और ख़ास तौर से दक्षिण एशिया अमेरिका की विदेश नीति के मद्देनज़र उसके लिए बहुत अहम बन गया है. इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को बैलेंस करने के लिए उसे भारत की ज़रूरत महसूस हो रही है.”

लेकिन कई विशेषज्ञों का ये भी मानना है कि अमेरिका के साथ बढ़ते रिश्ते भारत की अपनी शर्तों पर हुए हैं और भारत, रूस से दूरी बनाए बिना भी अमेरिका के साथ आगे बढ़ने का माद्दा रखता है.

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार अंशु जोशी कहती हैं, “दुनिया देख रही है कि चीन किस तरह से अपनी विस्तारवादी नीति के बल पर धाक जमाने की कोशिश कर रहा है जबकि भारत सबको साथ लेकर आगे बढ़ने की बात कर रहा है. सैन्य शक्ति हो, तकनीकी ताक़त हो या सांस्कृतिक बल हो. भारत वर्ल्ड ऑर्डर में बहुत आगे बढ़ चुका है.”

कई विशेषज्ञों का कहना है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पर वोटिंग ना करके बताया है कि वो रूस का दोस्त है. लेकिन साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से ये भी कहा कि ये दौर युद्ध का नहीं शांति का है.

अंशु जोशी के मुताबिक़, “रूस पर तमाम पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने कहा था कि वो उससे तेल और गैस ख़रीदना जारी रखेगा और भारत ने ये बात खुलकर कही. अमेरिका ने भी भारत की इस बात को समझा है.

भारत का रुख़ साफ है कि जहां देशहित की बात आएगी वो सभी के साथ खड़ा है.

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