पीएम मोदी के लिए क्या इस बार बिहार बनेगा बाधा?

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DMT : नई दिल्ली : (01 जून 2023) : –

“जब मोदी जी मुख्यमंत्री थे तो लोगों से यह कहकर वोट मांगते थे कि उन्होंने जैसा गुजरात बनाया है, वैसा ही देश बनाएंगे. क्या नीतीश कुमार भी जनता से कह सकते हैं कि जैसा बिहार है, वैसा ही हिन्दुस्तान बनाएंगे?”

बीजेपी सांसद और बिहार बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष संजय जायसवाल ने इसी सवाल के साथ नीतीश कुमार पर तंज़ कसा है. उनके शब्दों से ज़ाहिर होता है कि बिहार की तस्वीर दिखाकर देशभर में वोट नहीं मांगा जा सकता.

ऐसा तब है, जब पिछले क़रीब 20 साल में ज़्यादातर समय तक बिहार में जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन का शासन रहा है.

बिहार एकमात्र हिन्दी भाषी राज्य है, जहाँ बीजेपी कभी अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई. बीजेपी जब भी सरकार में रही है, नीतीश कुमार के पीछे खड़ी रही है.

बीजेपी नीतीश कुमार पर हमला भले ही करे लेकिन उसे बिहार में महागठबंधन की ताक़त का अंदाज़ा है और इससे मुक़ाबले के लिए अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंतज़ार कर रही है.

मोदी की ज़रूरत क्यों?

पिछले कई महीनों से विपक्षी एकता की कोशिश में जुटे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहली परीक्षा 12 जून को पटना में होने वाली है. इस दिन की तस्वीर बता सकती है कि विपक्ष कहां तक एक हो पाया है.

वहीं इसका जवाब देने के लिए बीजेपी भी तैयारियों में जुटी है. बीजेपी की कोशिश है कि जून के महीने में ही बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा हो.

बिहार बीजेपी के अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा है कि बीजेपी लगातार आम लोगों से संपर्क और समर्थन हासिल करने में जुटी है.

सम्राट चौधरी का कहना है, “हमारा महासंपर्क अभियान 30 मई से 30 जून तक चलना है. इस अभियान में हमें प्रधानमंत्री जी की लगभग सहमति मिली है. इसकी तारीख़ तय होने के बाद हम आपको बता देंगे.”

वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण का मानना है कि बीजेपी ने राज्य में अपने पुराने नेताओं को महत्व नहीं दिया. हमेशा नीतीश की ‘बी’ टीम बने रहने से राज्य बीजेपी के नेताओं में जनता से अपील की क्षमता नहीं है, इस अपील के लिए उन्हें मोदी की ज़रूरत है.

नचिकेता कहते हैं, “सम्राट चौधरी महज़ 6 साल पहले बीजेपी में आए हैं. पहले वो जेडीयू में और आरजेडी में थे. सम्राट चौधरी को राज्य की कमान सौंपने से पार्टी के अंदर एक खींचतान चल रही है. मोदी के आने से थोड़े समय के लिए इस पर विराम लग सकता है.”

वहीं जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है कि प्रधानमंत्री को अधिकार है वो बिहार आएं, लेकिन बताएं कि बिहार को विशेष राज्य के दर्जे और विशेष सहायता के उनके वादों का क्या हुआ.

नीरज कुमार ने कहा है, “प्रधानमंत्री बताएं कि साल 2013 में पटना में उनकी सभा में हुए बम धमाकों में मारे गए 6 कार्यकर्ताओं के परिवार की नौकरी का क्या हुआ? पूर्णिया में एयरपोर्ट और बिहार में तापघर के अमित शाह के वादे का क्या हुआ?”

माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी 12 जून को पटना में होने वाली ‘विपक्षी एकता’ की मीटिंग के बाद बिहार का दौरा कर सकते हैं.

बीजेपी की ताक़त

साल 2019 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 24 फ़ीसदी वोट के साथ राज्य की 17 लोकसभा सीटें जीती थीं. हालांकि उस वक्त जेडीयू भी बीजेपी के साथ थी.

उन चुनावों में जेडीयू को 22% वोट के साथ 16 सीटें, कांग्रेस को 8% वोट और एक सीट; जबकि आरजेडी को सीट भले एक भी नहीं मिली थी, लेकिन उसे 16% वोट मिले थे.

फ़िलहाल बिहार में राजनीतिक हालात साल 2015 में हुए विधानसभा चुनावों की तरह है. उस वक़्त महागठबंधन ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा था और बीजेपी राज्‍य में महज़ 53 सीटों पर सिमट गई थी.

उन चुनावों में आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस ने ही 243 में से 178 विधानसभा सीटों पर कब्ज़ा कर लिया था.

महागठबंधन की इसी ताक़त के दम पर आरजेडी सांसद मनोज झा बड़ा दावा कर चुके हैं.

मनोज झा ने बिहार में प्रधानमंत्री की जनसभा पर टिप्पणी करने से मना कर दिया है, लेकिन उनका कहना कि मैं इस बात पर क़ायम हूं कि साल 2024 में बिहार में बीजेपी दो से ज़्यादा लोकसभा सीट नहीं जीतेगी.”

बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह को भी भरोसा है कि अगर महागठबंधन एक होकर चुनाव लड़े तो बिहार में बीजेपी के लिए एक-दो सीट जीतना भी मुश्किल हो सकता है.

अखिलेश सिंह कहते हैं, “प्रधानमंत्री के आने से कुछ नहीं होने वाला है. बिहार में भी कर्नाटक जैसी हालत होनी है. नीतीश जी के अलग होने से बीजेपी के वोट में भारी गिरावट आई है.”

बड़े नेताओं के दौरे

बीजेपी बिहार में आक्रामक तरीक़े से अपने दम पर आगे बढ़ने की कोशिश में लगी हुई है. इसी कड़ी में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री भी पिछले कुछ महीनों में बिहार का दौरा कर चुके हैं.

इसी साल अप्रैल महीने में अमित शाह ने नवादा में रैली में की थी, जिसमें उन्होंने रामनवमी के दौरान बिहार शरीफ़ और सासाराम में हुई हिंसा पर नीतीश सरकार को घेरने की कोशिश की थी.

लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिहाज से अमित शाह इसी साल फ़रवरी में पश्चिमी चंपारण में बीजेपी कार्यकर्ताओं की एक बैठक कर चुके हैं और राजधानी पटना में भी एक कार्यक्रम में शरीक हो चुके हैं.

अगस्त 2022 में जेडीयू के अलग होने के फ़ौरन बाद यानी सितंबर महीने में अमित शाह ने पूर्णिया का दौरा किया था. सीमांचल का यह इलाक़ा सांप्रदायिक तौर पर भी संवेदनशील माना जाता है.

पूर्णिया में अमित शाह ने कहा था, “लालू-नीतीश की जोड़ी के कारण पूरे बिहार में और विशेषकर सीमावर्ती ज़िलों में डर का माहौल है. ये ज़िले हिन्दुस्तान का हिस्सा हैं. किसी को डरने की जरूरत नहीं है. क्योंकि यहां पर नरेंद्र मोदी सरकार है.”

लोगों के मुद्दे

साल 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने रामविलास पासवान की एलजेपी और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी के साथ समझौता किया था और तीनों ने मिलकर राज्य की 40 में से 31 सीटों पर जीत हासिल की थी.

पटना के एएन सिंहा इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर कहते हैं मोदी के बिहार आने से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा, लोगों के अपने मुद्दे हैं जो उन्हें ज़्यादा ज़रूरी लगते हैं.

उनका कहना है, “किसी को अगर गैस भरवाने के लिए ज़्यादा पैसे देने होते हैं तो मोदी के आने से यह सस्ता नहीं हो जाएगा. कर्नाटक में मोदी एक महीने तक लगे रहे लेकिन नतीजा क्या हुआ?”

डीएम दिवाकर का मानना है कि बिहार में बीजेपी के अंदर की कलह भी है. उनका कहना है कि बिहार में बीजेपी के आधे दर्जन तो मुख्यमंत्री के उम्मीदवार हैं, इसलिए राज्य में उनका कोई चेहरा तैयार नहीं हो पाता है.

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