ब्लिंकन की चीन यात्रा: अमेरिका-चीन संबंध सुधरे तो भारत पर क्या असर?

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DMT : अमेरिका : (21 जून 2023) : –

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका के अहम दौरे के बीच, भारत में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के चीन दौरे की आवाज़ कम सुनाई दी.

अमेरिका और चीन के बीच पिछले कुछ सालों में दरार गहराई है. इसके मद्देनज़र ब्लिंकन की यात्रा को काफ़ी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

ये दौरा इसलिए भी अहम है क्योंकि दुनिया में ये चिंता व्यापत है कि अगर इन दो महाशक्तियों के बीच संबंध यूं बिगड़ते रहे तो उसका असर दुनिया भर अर्थव्यवस्था पर तो पड़ेगा.

साथ ही इसके असर से वैश्विक शांति पर भी ख़तरा मंडराना शुरू हो सकता है.

ये बात अलग है कि जैसे ही ब्लिंकन चीन से लौटे तो राष्ट्रपति बाइडन ने एक समारोह में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को तानाशाह कह दिया.

चीन ने शी को तानाशाह कहे जाने पर अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है.

शी ने ब्लिंकन से मुलाक़ात के बाद सकारात्मक रुख़ अपनाते हुए कहा कि बातचीत में कुछ प्रगति हुई है, जबकि ब्लिंकन ने संकेत दिया कि दोनों पक्ष आगे भी बातचीत के लिए तैयार हैं.

बहरहाल, एंटनी ब्लिंकन के दौरे की शुरुआत अच्छी नहीं रही. एयरपोर्ट पर उनका स्वागत करने विदेश मंत्रालय के केवल एक उच्च अधिकारी मौजूद थे. लेकिन दौरे का अंत उत्साहजनक रहा.

चीन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ दो दिनों की बातचीत के बाद यात्रा के अंत में वो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिले, जो पहले से तय नहीं था.

इस मुलाक़ात के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने जोश में कहा, “एंटनी ब्लिंकन ने बहुत अच्छा काम किया है. हम सही रास्ते पर जा रहे हैं.”

इस दौरे को दोनों देशों के बीच बिगड़ते संबंधों को सुधारने के एक प्रयास की तरह से देखा जा रहा है. और ऐसा लगता है इस कोशिश में अमेरिका को कामयाबी मिली है.

सिंगापुर स्थित चीनी राजनीतिक विश्लेषक सन शी ने बीबीसी हिंदी को बताया, “इस यात्रा का सबसे अच्छा परिणाम यह है कि दोनों पक्ष तनाव को कम करने और संबंधों को सुधारने पर सहमत हैं. दोनों के बीच रिश्ते पहले ही बुरा वक़्त देख चुके हैं. अब इन रिश्तों में धीरे-धीरे बेहतरी लाने का समय है.”

वो आगे कहते हैं, “सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि दोनों पक्ष रिश्तों को और बिगड़ने न देने पर सहमत थे. साथ ही यह सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है कि दोनों पक्षों ने आमने सामने बैठक कर बात की.”

दिल्ली स्थित फ़ोर स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट में चीन के मामलों के विशेषज्ञ डॉ फ़ैसल अहमद की राय में “राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ एंटनी ब्लिंकन की बैठक चीन-अमेरिका के संबंध को पटरी पर लाने में एक मील का पत्थर साबित होगी.”

उनका कहना है, “सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस यात्रा के दौरान अमेरिका ने ‘वन चाइना पॉलिसी’ के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को फिर से दुहराया है.”

चीन के सिचुआन विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के प्रोफ़ेसर हुआंग युनसोंग कहते हैं कि चीन के शीर्ष राजनयिक वांग यी और किन गैंग के साथ ब्लिंकन की मुलाक़ात, बीजिंग में उनकी अपेक्षा के अनुरूप सबसे उचित स्वागत था.

उनके मुताबिक ये इस बात को दर्शाता है कि चीन दोनों देशों के बीच संबंधो को लेकर गंभीर है.

ब्लिंकन की यात्रा के क्या मायने हैं?

प्रोफ़ेसर हुआंग युनसोंग के मुताबिक़ ब्लिंकन के दौरे से दोनों पक्षों में कुछ सीमित लेकिन बहुत महत्वपूर्ण आम सहमति बनी.

वे कहते हैं , “सबसे पहले, चीन और अमेरिका आपसी मतभेदों से प्रभावी ढंग से निपटने को तैयार हुए हैं ताकि भविष्य में तनाव की स्थिति से बचा जा सके.”

“दूसरे, दोनों देश शिक्षा के क्षेत्र में आपसी सहयोग के विस्तार के लिए भी तैयार हुए हैं और ये उत्साहित करने वाली बात है.”

“तीसरा, चीन और अमेरिका संयुक्त कार्य समूह के माध्यम से द्विपक्षीय संबंधों में लंबित मुद्दों को हल करना चाहते हैं.

“चौथा, दोनों देश उच्च स्तरीय आदान-प्रदान जारी रखने पर सहमत हैं.”

अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और चीन दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था. अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा आयातक है और चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक.

दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 700 अरब डॉलर का है और उनकी अर्थव्यवस्थाएं बहुत हद तक एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं.

लेकिन अमेरिका और चीन के बीच संबंध हाल के सालों में काफी बिगड़े हैं, जिसके कई अहम कारण रहे हैं.

व्यापार के क्षेत्र में प्रतिद्वंद्विता

अमेरिका-चीन संबंधों के बिगड़ने का एक प्रमुख कारण दोनों देशों के बीच व्यापार विवाद रहा है. अमेरिका बौद्धिक संपदा की चोरी सहित चीन के व्यापार में अनुचित तौर तरीके अपनाने का इलज़ाम लगाता रहा है.

अमेरिकी सरकार ने अरबों डॉलर के चीनी सामान पर टैक्स लगा दिया, जिसके बाद चीन ने जवाबी कार्रवाई की. इससे दोनों देशों के बीच एक किस्म का ‘व्यापार युद्ध’ शुरू हो गया.

भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता

अमेरिका और चीन दोनों प्रमुख वैश्विक शक्तियां हैं.

उनके आपसी हित हैं और अंततराष्ट्रीय मामलों में अलग अलग नज़रिया है.

आर्थिक और सैन्य महाशक्ति के रूप में चीन के उभार ने दोनों देशों के बीच भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को जन्म दिया है.

अमेरिका चीन के बढ़ते प्रभाव को अपने वैश्विक नेतृत्व के लिए एक चुनौती के रूप में देखता है और उसने दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता और मानवाधिकारों के मुद्दों पर चिंता व्यक्त की है.

टेक्नोलॉजी और राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएं

अमेरिका ने साइबर सुरक्षा और जासूसी से संबंधित संभावित ख़तरों का हवाला देते हुए चीनी हाईटेक कंपनियों पर प्रतिबंध जैसे कदम उठाए हैं.

अमेरिकी सरकार ने महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में चीनी कंपनियों की भागीदारी को प्रतिबंधित करने और सेमीकंडक्टर जैसी उन्नत तकनीकों तक उनकी पहुंच को सीमित करने के उपाय लागू किए हैं.

इन क़दमों ने दोनों देशों के बीच संबंधों को और तनावपूर्ण बना दिया है.

मानवाधिकार मुद्दे

अमेरिका चीन के मानवाधिकार रिकॉर्ड का आलोचक रहा है. अमेरिका चीन के शिनजियांग प्रांत में वीगर अल्पसंख्यकों और हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई को लेकर आवाज़ उठाता रहा है.

अमेरिकी सरकार ने अन्य देशों के साथ, मानवाधिकारों के हनन पर चीनी अधिकारियों और संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव बढ़ा है.

COVID-19 महामारी

COVID-19 महामारी के प्रकोप ने भी अमेरिका-चीन संबंधों को प्रभावित किया है.

अमेरिका ने चीन पर वायरस के प्रसार को रोकने में ग़लत तरीके अपनाने और इसके पैदा होने के बारे में अपारदर्शी होने का आरोप लगाया है.

चीन पर वायरस की गंभीरता को कम करने और सूचनाओं को दबाने के आरोप लगे.

महामारी ने मौजूदा तनाव को और बढ़ा दिया और दोनों देशों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू हो गया.

ब्लिंकन की यात्रा ऐतिहासिक?

1971 के जुलाई में तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने चीन की एक गुप्त यात्रा की थी. इसके तुरंत बाद, संयुक्त राष्ट्र ने पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना को मान्यता दी.

चीन को स्थायी सुरक्षा परिषद की सीट दी गई, जो 1945 से ही ताइवान चले गए चांग काई-शेक के रिपब्लिक ऑफ़ चाइना के पास थी.

इसके बाद 1972 में अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने चीन का आठ दिनों का ऐतिहासिक दौरा किया जिसके बाद दोनों देशों के बीच संबंधों के एक नए अध्याय का आग़ाज़ हुआ. वो दौर अलग था.

तब चीन तीसरी दुनिया का एक कमज़ोर देश था. आज वो एक सुपर पॉवर है और गोल्डमैन सैक्स के अनुसार 2027 तक उसकी अर्थव्यवस्था अमेरिका को पछाड़ कर दुनिया में सबसे बड़ी इकोनॉमी बन जायेगी.

एंटनी ब्लिंकन की यात्रा को भी ऐतिहासिक कहा जा रहा है. ब्लिंकन की यात्रा सितंबर में दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन के समूह में बाइडन-शी की संभावित बैठक की तैयारी जैसी है.

शी जिनपिंग नवंबर में एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग मंच की बैठक में शामिल होने अमेरिका जाने वाले हैं.

सिंगापुर में चीनी मूल के विश्लेषक सन शी कहते हैं, “मुझे लगता है कि शी जिनपिंग और बाइडन के बीच दिल्ली में सितंबर में G20 शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाक़ात संभव है. वे बाली में पिछले G20 शिखर सम्मेलन में तीन घंटे के लिए मिले थे. लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि ब्लिंकन की बीजिंग यात्रा के बाद क्या होने वाला है.”

डॉ फ़ैसल के विचार में रिश्ते बेहतर करने में अमेरिका की ओर से पहल अधिक हो रही है.

वो कहते हैं, “अमेरिका साफ़ तौर पर महसूस कर रहा है कि चीन के ख़िलाफ़ दुनिया भर में उसका नैरेटिव अब काम नहीं कर रहा है. ये एक नैरेटिव विफल हो गया है. अधिक से अधिक देश आज भी आर्थिक लाभ या क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए चीन पर निर्भर हैं.”

अमेरिका भारत के साथ संबंधों को मज़बूत कर रहा है क्योंकि उसे उम्मीद है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ रहे चीन के प्रभाव की काट भारत हो सकता है.

अगर अमेरिका और चीन के संबंधों में सुधार आया तो क्या अमेरिका को भारत की उतनी ज़रुरत नहीं होगी जितनी अभी है?

डॉक्टर फ़ैसल कहते हैं, “चीन-अमेरिका के बीच मेल मिलाप भारत के हित में होगा, क्योंकि भारत चीन और अमेरिका सहित G20 देशों के नेताओं की मेज़बानी करेगा.”

ये शिखर सम्मेलन दिल्ली में 9 और 10 सितंबर को हो रहा है.

डॉ फ़ैसल आगे कहते हैं कि इससे चीन-भारत के रिश्ते भी बेहतर हो सकते हैं, ” जबकि अमेरिका भारत को IPEF (इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क) में एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए उत्सुक है, चीन भी भारत के साथ एक व्यापक साझेदारी की तलाश कर रहा है.”

सिंगापुर के राजनीतिक विश्लेषक सन शी भी इस बात से सहमत हैं कि मोदी और शी जिनपिंग के बीच मुलाक़ात का समय आ गया है.

सन शी कहते हैं, “शी जिनपिंग और बाइडन दोनों G20 सम्मेलन में भाग लेंगे. भारत G20 का चेयरमैन और मेज़बान है. चीन के राष्ट्रपति से मुलाक़ात से पहले थोड़ा माहौल बनाना पड़ेगा, सकारात्मक पहल करनी होगी. शी जिनपिंग ने ओडिशा रेल हादसे के बाद भारत के साथ शोक व्यक्त किया था. भारत को भी पहल करनी चाहिए.”

प्रोफ़ेसर हुआंग युनसोंग के विचार में भारत-अमेरिका संबंधों में नज़दीकी, ओद्यौगिक और सप्लाई चेन के अलावा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी है.

15 जून 2020 को लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें 20 भारतीय सैनिक मारे गए थे.

इसके बाद से दोनों देशों के बीच रिश्ते में भारी दरार पड़ गई है. हालाँकि चीन के साथ सैन्य गतिरोध को हल करने की प्रक्रिया के लिए कई दौर की सैन्य वार्ताएं हो चुकी हैं, लेकिन रिश्ते में गर्मजोशी वापस नहीं आयी है.

दिलचस्प बात ये है कि भारत और चीन के ख़राब संबंधों के बावजूद दोनों देशों के बीच आपसी व्यापर फल-फूल रहा है.

पिछले साल द्विपक्षीय व्यापार लगभग 130 अरब डॉलर था. चीन अमेरिका के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है.

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