टाइटन पनडुब्बी का खोज अभियान कैसे चल रहा है, कितनी हैं मिलने की संभावनाएं?

Hindi New Delhi

DMT : नई दिल्ली : (21 जून 2023) : –

टाइटैनिक का मलबा दिखाने पांच लोगों को लेकर समुद्र तल में गई पनडुब्बी को ढूंढने का काम जारी है और धीरे-धीरे समय हाथ से निकल रहा है.

अटलांटिक महासागर की गहराइयों में बीते दो दोनों से ग़ायब पनडुब्बी को ढूंढने का काम आख़िर किस तरह से चल रहा है और इस काम में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इस बारे में विस्तार से हमने जानने की कोशिश की है.

खोजी अभियान का केंद्र

ग़ायब टाइटन पनडुब्बी के क्रू का समुद्र के ऊपर मौजूद उसके जहाज़ पोलर प्रिंस से संपर्क टूट गया था. रविवार को यह संपर्क एक घंटे 45 मिनट में ही टूट गया था. सोमवार की शाम विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया कि सिर्फ़ चार दिनों के लिए ऑक्सीजन बची थी.

टाइटैनिक का मलबा कनाडा के न्यूफ़ाउंडलैंड में सेंट जॉन्स के दक्षिण में 700 किलोमीटर दूर है. हालांकि इस बचाव अभियान को अमेरिका के बोस्टन से चलाया जा रहा है.

इस खोजी और बचाव अभियान में अमेरिकी और कनाडाई एजेंसियों के अलावा नौसेना, गहरे समुद्र में उतरने वाली व्यावसायिक कंपनियां भी लगी हैं जो सैन्य विमानों, पनडुब्बियों और सोनार बॉय मशीनों से पनडुब्बी को खोज रही हैं. इसमें कई निजी जहाज़ भी उनकी मदद कर रहे हैं.

एक रिमोट पनडुब्बी वाला व्यावसायिक जहाज़ डीप एनर्जी भी उस जगह पर पहुंच चुका है. वहीं अटलांटिक मर्लिन टग और एक आपूर्ति जहाज़ भी रास्ते में है.

लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) में मरीन इंजीनियरिंग के प्रोफ़ेसर एलिस्टेयर ग्रेग कहते हैं कि बचावकर्मियों के लिए सबसे बड़ी समस्या ये है कि वो नहीं जानते हैं कि वो समुद्र के तल में देखें या सतह पर, और खोजबीन के दौरान हर मोड़ पर चुनौती है.

समुद्री की तह में खोज

अमेरिकी कोर्ट गार्ड ने कहा है कि पनडुब्बी को मलबे की जगह तक ले जाने वाले रिसर्च और सपोर्ट शिप पोलर प्रिंस ने सोमवार की शाम सतह पर खोजी अभियान चलाया था.

तीन सी-130 हर्क्युलिस विमान भी इस खोजी अभियन में लगे हैं जिनमें दो अमेरिका और एक कनाडा का है. इसने समुद्र की सतह पर खोजी अभियान चलाया था ताकि हवा से सतह पर पनडुब्बी को ढूंढा जा सके.

अमेरिकी कोस्ट गार्ड ने कहा है कि 10,000 स्क्वेयर मील के इलाक़े में खोजबीन कर ली गई है.

ऑस्ट्रेलियन सबमरीन एस्केप एंड रेस्क्यू प्रोजेक्ट के पूर्व डायरेक्टर फ्रेंक ओवेन बीबीसी से कहते हैं कि सतह पर आने के बाद पनडुब्बी बचावकर्मियों को अलर्ट भेजने में सक्षम हो सकती है.

उन्होंने कहा, “उस समय रेडियो ट्रांसमीटर्स और जीपीएस सिग्नल काम करेगा. स्ट्रोब लाइटें और रडार रिफ़्लेक्टर्स भी सुरक्षाबलों को खोजने में मदद कर सकते हैं.”

मगर किन्हीं कारणों से वो संकट के सिग्नल नहीं भेज पाएं तो क्या होगा? इस सवाल पर प्रोफ़ेसर ग्रेग कहते हैं, “ये एक बड़ी ट्रांज़िट वैन जैसी है और इसका पेंट भी सफ़ेद है तो हवा से इसे देखना वाक़ई में एक बड़ी चुनौती होने जा रही है.”

लगातार बदलते मौसम और बेहद ख़राब दृश्यता जैसी चुनौतियों से भी बचाव दल को संघर्ष करना पड़ रहा है.

गहरे समुद्र में खोजी अभियान

बचावकर्मियों को 4 किलोमीटर की गहराई तक अपना खोजी अभियान चलाना होगा क्योंकि पानी में रेडियो और जीपीएस सिग्नल्स नहीं जा सकते हैं. ये पनडुब्बी सिर्फ़ 6.7 मीटर ही लंबी है.

अमेरिकी कोस्ट गार्ड ने पुष्टि की है कि उसने गहरे समुद्र में मंगलवार को अपना खोजी अभियान चलाया है. कनाडाई पी-3 ऑरोरा विमान भी उस जगह पर पहुंचा है और उसने इलाक़े में सोनार बॉय की मदद से खोजी अभियान चलाया है.

सोनार बॉय की मदद से पानी के अंदर चीज़ों को पहचाना जा सकता है और इसे अक्सर गहरे समुद्र में दुश्मनों की पनडुब्बी ढूंढने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

इसके साथ ही बचाव दल पनडुब्बी के प्रोपेलर्स और उसकी मशीन से निकली ध्वनि को भी सुन सकते हैं. पनडुब्बी से क्रू सोनार के ज़रिए लोगों का शोर भी सतह पर मौजूद जहाज़ तक पहुंचा सकता है.

ओवेन चेताते हुए कहते हैं कि पनडुब्बी अगर पानी के अंदर है तो उसे ढूंढ पाने बहुत मुश्किल होगा. इसकी वजह वो इसके साइज़ और इसके टाइटैनिक के मलबे के बीच होने को बताते हैं.

वो बीबीसी से कहते हैं कि ‘ये ऐसा है जैसे आप बारूदी सुरंगों के बीच कोई एक सुरंग को ढूंढें.’ उन्होंने आगे कहा कि ये जान पाना बहुत मुश्किल होगा कि क्या पत्थर है और क्या नहीं है.

पनडुब्बी में क्या आपातकालीन उपाय हैं?

ये सबमर्सिबल पनडुब्बी एक आम पनडुब्बी से अलग होती है.

नेशनल ओशनिक एंड एटमोसफ़ेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार, एक पनडुब्बी किसी तट से स्वतंत्र तरीक़े से ख़ुद आ और जा सकती है जबकि एक सबमर्सिबल पनडुब्बी के पास बहुत सीमित ताक़त होती है और उसे समुद्र के नीचे जाने और ऊपर आने के लिए एक जहाज़ की ज़रूरत होती है.

बीते साल अमेरिकी टीवी नेटवर्क सीबीएस के पत्रकार डेविड पग ओशनगेट की इस पनडुब्बी में सवार हुए थे और टाइटैनिक के मलबे को देखने गए थे. उन्होंने बताया था कि पनडुब्बी में वापस सतह पर आने में मदद करने के लिए कई सुरक्षा सिस्टम मौजूद हैं. जैसे:

  • ट्रिपल वेट्स: तीन मुख्य पाइपों को भेजा जा सकता है जो हाइड्रॉलिक तकनीक की मदद से पनडुब्बी को ऊपर ला सकते हैं.
  • रोल वेट्स: अगर हाइड्रॉलिक तकनीक फ़ेल हो जाए तो पनडुब्बी के भीतर बैठे लोग पनडुब्बी के एक छोर पर जाकर वज़न कम कर सकते हैं, उसके बाद दूसरे छोर पर जाकर वज़न कम कर सकते हैं. इससे ग्रेविटी के आधर पर समुद्रतल पर टिकी पनडुब्बी एक तरफ से उठने लगेगी.
  • बैलेस्ट बैग्स: पनडुब्बी के नीचे धातु से भरे बैग्स लगाए गए हैं, मोटर के इस्तेमाल से इन्हें रिलीज़ कर सकता है.
  • फ्यूज़िबल लिंक्स: ये वो ख़ास किस्म के तार हैं जिनके साथ बैलेस्ट बैग्स को पनडुब्बी के साथ जोड़ा गया है. पनडुब्बी अगर लगातार 16 घंटों तक पानी के भीतर रहती है और अगर किसी कारण से इसकी इलेक्ट्रिक और हाइड्रॉलिक तकनीक फेल हो जाती है, तो ये लिंक्स अपने आप गल जाते हैं और बैलेस्ट बैग्स पनडुब्बी से अलग हो जाते हैं.
  • थ्रस्टर्स: ख़ास सिस्टम जो पनडुब्बी को ऊपर की तरफ धक्का दे सकते हैं.
  • पनडुब्बी के लेग: पनडुब्बी के लेग को पनडुब्बी के मुख्य बॉडी से अलग किया जा सकता है, इससे भी पनडुब्बी तल से ऊपर उठने लगेगी.
  • एयरबैग्स: क्रू पनडुब्बी में मौजूद एयरबैग्स को फुला सकते हैं, ऐसा करने से पनडुब्बी तल से ऊपर उठने लगेगी.

अगर पनडुब्बी समुद्रतल पर हुई तो क्या करेंगे बचावकर्मी?

अमेरिकी कोस्ट गार्ड के रीयर एडमिरल जॉन मॉगर कहते हैं कि अगर पनडुब्बी समुद्रतल पर मिली तो इसे बाहर निकालने के लिए अन्य एक्सपर्ट्स की मदद की ज़रूरत होगी. वो कहते हैं कि इसके लिए वो अमेरिकी नौसेना और निजी कंपनियों से भी मदद ले रहे हैं.

ओशनगेट के अनुसार टाइटन दुनिया में मौजूद उन पांच सबमर्सिबल्स में से एक है जो समंदर में 12,500 फीट (3,800 मीटर) की गहराई तक जा सकती है, जहां टाइटैनिक का मलबा है.

सबमरीन एक्सपर्ट प्रोफ़ेसर एलिस्टेयर ग्रेग कहते हैं कि अगर टाइटन पनडुब्बी समुद्रतल पर कहीं है और खुद से ऊपर नहीं उठ पा रही है तो बचावदल के पास बेहद सीमित रास्ते बचते हैं.

वो कहते हैं, “हो सकता है कि ये पनडुब्बी सही सलामत हो, लेकिन अगर से 200 मीटर से अधिक गहरे पानी में है तो कम ही ऐसी पनडुब्बियां या रेस्क्यू उपकरण हैं जो उस गहराई तक पहुंच सकें. डाइवर्स से आप इतनी गहराई में जाने की उम्मीद नहीं कर सकते. नौसेना की पनडुब्बियों के लिए मौजूद रेस्क्यू उपकरण भी ऐसे नहीं हैं जो टाइटैनिक की गहराई के पास तक भी पहुंच सकें.”

उस गहराई में कसी भी तरह के बचावकार्य को अंजाम के देने के लिए आपको मानवरहित रिमोट कंट्रोल व्हीकल (आरओवी) का इस्तेमाल करना होगा.

ओशियन रिकवरी एक्सपर्ट और वैज्ञानिक डेविड मीयर्न्स कहते हैं कि बचावकार्य में जुटे डीप एनर्जी केबल लेयर के पास पास आरओवी और इसे चलाने की क्षमता है. हालांकि वो कहते हैं कि अब तक ये स्पष्ट नहीं है कि इस कंपनी ने अब तक खोज अभियान में किसी अंडरवाटर व्हीकल को भेजा है या नहीं, या फिर उसके आरओवी वाकई में टाइटैनिक की गहराई तक पहुंचने में सक्षम हैं या नहीं.

अमेरिकी नौसेना के पास भी आरओवी है जो समंदर की गहराइयों में काम कर सकती है. बीते साल दक्षिण चीन सागर में क्रेश हुए एक लड़ाकू विमान का मलबा निकालने में इसकी मदद ली गई थी. विमान का मलबा 12,400 फीट (3,780 मीटर) की गहराई में मिला था.

इस वक्त विमान का मलबा निकालने के लिए आरओवी का इस्तेमाल मलबे के आसपास तार बांध कर उन तारों को एक हुक से बंधने के लिए किया गया था. ये हुक एक क्रेन से जुड़ा था समुद्र की सहत पर मौजूद बचाव अभियान में जुटे एक जहाज़ में लगा था.

ओशियन रिकवरी एक्सपर्ट डेविड मीयर्न्स कहते हैं कि अगर किसी आरओवी ने टाइटन का पता लगा लिया तो इसे समुद्र से बाहर निकालना संभव होगा.

उन्होंने बीबीसी से कहा, “एक विश्वस्तरीय ट्विन मैनिपुलेटर वाला रिमोट कंट्रोल व्हीकल असल में टाइटन को एक हुक लाइन से जोड़ने में कामयाब हो सकता है ताकि उसे धीरे-धीरे समुद्रतल से बाहर लाया जा सके.”

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