DMT : अमेरिका : (03 मार्च 2023) : –
भारत में जी-20 के विदेश मंत्रियों की बैठक में यूक्रेन युद्ध को लेकर तल्ख़ बयानबाज़ी छाई रही.
इसी वजह से मेज़बान भारत ने कहा कि सदस्य देशों के बीच मतभेदों के कारण कोई साझा बयान जारी नहीं होगा.
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि ये बैठक ‘रूस के बिना उकसावे वाले अतार्किक युद्ध’ के कारण बाधित हुई है.
वहीं, रूस के विदेश मंत्री ने पश्चिमी देशों पर ‘ब्लैकमेल करने और धमकियाँ देने’ का इल्ज़ाम लगाया है.
जी-20 के विदेश मंत्रियों की बातचीत के दौरान भारत ये चाहता था कि चर्चा उन मुद्दों पर हो, जो विकासशील देशों को प्रभावित कर रही हैं.
लेकिन, भारत ने कहा कि यूक्रेन को लेकर मतभेद ‘ख़त्म नहीं किए जा सके.’
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, “हमने कोशिश तो की, लेकिन देशों के बीच फ़ासले बहुत अधिक थे.”
जी-20 में दुनिया के सबसे अमीर 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं.
इस संगठन के सदस्य मिलकर दुनिया के 85 फ़ीसदी आर्थिक उत्पाद बनाते हैं और इनकी आबादी दो तिहाई है.
इस समूह के विदेश मंत्री, जिनमें रूस के सर्गेई लावरोफ़, अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और चीन के विदेश मंत्री किन गांग, भारत की अध्यक्षता में दिल्ली में मिले थे.
एक साल पहले यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिका और रूस के विदेश मंत्रियों की ये पहली आमने-सामने की मुलाक़ात थी.
एंटनी ब्लिंकन और लावरोफ़ क़रीब 10 मिनट अलग से भी मिले थे.
रूस और अमेरिका ने क्या कहा?
अमेरिका के विदेश विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एंटनी ब्लिंकन ने रूस के विदेश मंत्री से कहा कि ‘जब तक ज़रूरी होगा, तब तक पश्चिमी देश यूक्रेन के साथ खड़े रहेंगे.’
एंटनी ब्लिंकन ने लावरोफ़ पर इस बात का दबाव भी बनाया कि रूस, हथियार नियंत्रण के न्यू स्टार्ट परमाणु समझौते में दोबारा शामिल हो और इसकी शर्तें का पालन करे.
अभी हाल ही में, रूस ने ख़ुद को इस समझौते से अलग करने का एलान किया था.
वहीं, रूस के अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया कि रूस और अमरीका के विदेश मंत्रियों की कोई मुलाक़ात हुई थी.
इससे पहले रूस ने पश्चिमी देशों पर इस बात का इल्ज़ाम भी लगाया था कि उन्होंने उस समझौते को ‘दफ़्न’ कर दिया था, जिसमें यूक्रेन से कुछ अनाज निर्यात करने की इजाज़त दी गई थी.
हालांकि, अमरीका ने ये कहकर इसका जवाब दिया कि यूक्रेन के निर्यात में रूस बाधा डाल रहा था.
इसी दौरान, रूस के अधिकारियों ने कहा कि रूस और चीन ने मिलकर पश्चिमी देशों के ‘ब्लैकमेल और धमकियों’ का विरोध करने का फ़ैसला किया है.
हालाँकि, चीन ने इस बात की तस्दीक़ नहीं की है.
गुरुवार को बातचीत के बाद, रूस के विदेश मंत्री लावरोफ़ ने कहा, “हम तहज़ीब की बात करते हैं. अफ़सोस की बात है कि हमारे पश्चिमी साथी इस मामले में बहुत ख़राब बर्ताव कर रहे हैं. अब वो कूटनीति के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोच रहे हैं. अब वो बाक़ी दुनिया के साथ केवल ब्लैकमेल और धमकियों की ज़ुबान में बातें करते हैं.”
जी-20 के विदेश मंत्रियों की बैठक का आग़ाज़ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. उन्होंने चेतावनी दी थी कि दुनिया के मतभेद, स्थायी विकास को जोखिम में डाल रहे हैं.
पीएम मोदी ने क्या कहा?
मोदी ने कहा- बहुत से विकासशील देश, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष करने के साथ साथ क़र्ज़ के भारी बोझ की चुनौती से भी जूझ रहे हैं. ये देश ग्लोबल वार्मिंग से भी सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं, जो अमीर देशों की करनी का नतीजा है.
ये प्रधानमंत्री मोदी के कभी कभार ही दिए जाने वाले अंग्रेज़ी के भाषणों में से एक था.
ये इस बात का संकेत है कि वो चाहते थे कि तमाम देश उनके संदेश को बहुत गंभीरता से लें.
वैसे तो प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी तक़रीर में यूक्रेन युद्ध का सीधे-सीधे ज़िक्र नहीं किया. लेकिन ये ज़रूर माना कि इन वार्ताओं पर भू-राजनीतिक तनावों का असर रहेगा.
गुरुवार को हुई विदेश मंत्रियों की बैठक में खाद्य सुरक्षा, विकास में सहयोग, आतंकवाद और मानवीय सहायता जैसे मुद्दों पर सत्र शामिल थे.
जी-20 के अध्यक्ष के तौर पर ये भारत की प्राथमिकताओं का सबूत है.
विदेश मंत्रियों की बातचीत से पहले एक पूर्व भारतीय राजनयिक ने बीबीसी को बताया कि अगर भारत चाहता है कि वार्ता के प्रतिनिधि युद्ध को लेकर अपने मतभेदों की अनदेखी करें, तो उसे ‘कुछ विशेष क़दम उठाने होंगे.’
अमरीका और चीन के रिश्ते तनावपूर्ण हैं. चीन, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण का विरोध करने से इनकार करता रहा है. ऐसे में ये बैठक एक तरह से भारत की आम सहमति बना पाने की क्षमता का इम्तिहान थी.
आख़िर में गुरुवार की बातचीत के बाद, विदेश मंत्री एस जयशंकर को वो बयान देना पड़ा, जिसे उन्होंने अध्यक्ष का सारांश कहा.
इसका मतलब था कि बैठक में भाग लेने वाले नेता एक साझा बयान पर सहमत नहीं हो सके थे. रूस और चीन ये दो देश ही थे, जिन्होंने यूक्रेन युद्ध की निंदा करने से इनकार कर दिया.
लेकिन, भारत अंत में जी-20 देशों के नेताओं के सामने विकासशील देशों की आवाज़ उठाने के अपने मूल मक़सद में कामयाब रहा.
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि ज़्यादातर मुद्दों पर वो एक निष्कर्ष दस्तावेज़ पर सहमति बनाने में सफल रहे हैं.
सितंबर 2023 में जी-20 देशों के शीर्ष नेताओं की बैठक होने में अभी कई महीने बाक़ी हैं.
भारत ये उम्मीद करेगा कि जी-20 की उसकी अध्यक्षता का कार्यकाल निराशा के माहौल में न ख़त्म हो.
रास्ता निकालने के लिए क्या करना होगा?
जानकार कहते हैं कि भारत को युद्ध को लेकर गुटनिरपेक्ष रहने का नाज़ुक संतुलन बनाने के साथ-साथ बाक़ी देशों से अपील करनी होगी कि वो मिलकर काम करने का कोई रास्ता निकालें.
भारत अब तक पश्चिमी देशों के दबाव में आकर रूस की सीधे तौर पर आलोचना करने से बचता रहा है.
क्योंकि रूस, भारत को हथियारों का सबसे बड़ा निर्यातक है. भारत, संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन युद्ध की निंदा करने वाले प्रस्तावों की बैठक से नियमित रूप से अनुपस्थित होता रहा है. इसमें पिछले हफ़्ते संयुक्त राष्ट्र महासभा में हुआ एक मतदान भी शामिल है.
भारत ने रूस से तेल के आयात को बढ़ाने के अपने फ़ैसले का भी ये कहते हुए बचाव किया है कि उसे अपनी जनता की ज़रूरतों का ध्यान भी रखना है.
लेकिन, इसके साथ भारत ने यूक्रेन को लेकर अपने पिछले बयानों में बार बार ‘संयुक्त राष्ट्र के चार्टर, अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और देशों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करने’ की बात भी कही है.