मणिपुर हिंसा: क्या ‘अवैध घुसपैठियों’ की वजह से सुलग रहा है पूर्वोत्तर भारत का ये राज्य

Hindi Manipur

DMT : मणिपुर  : (25 अगस्त 2023) : –

दोपहर के 12 बजने को हैं और मणिपुर सेंट्रल जेल के भीतर गहमागहमी बढ़ी हुई है.

तक़रीबन 700 क़ैदियों ने खाना ख़त्म कर लिया है और ज़्यादातर अपनी बैरकों में पहुँच रहे हैं.

सायरन के बंद होते ही जेल में सन्नाटा पसर चुका है लेकिन गार्डों की निगरानी में क़रीब पचास लोगों की एक क़तार हमारी तरफ़ आ रही है.

ये सभी भारत के पड़ोसी देश म्यांमार के अलग-अलग प्रांतों के रहने वाले हैं और अगले दो घंटों तक इनका बायोमीट्रिक वेरिफ़िकेशन किया जाएगा.

मणिपुर में कोई फ़ॉरेन डिटेंशन सेंटर नहीं था, इसलिए प्रदेश की सबसे बड़ी जेल के भीतर एक अस्थायी फ़ॉरेन डिटेंशन सेंटर बनाया गया है, जिसके एक हिस्से में पुरुष हैं और दूसरे हिस्से में महिलाएँ और बच्चे.

मुलाक़ात म्यांमार के रहने वाले 26 साल के लिन खेन मेंग से हुई, जिनका दावा है कि वे भारतीय सीमा के भीतर कुछ पैसे कमाने की मंशा से आया करते थे.

2022 में उन्हें भारतीय सीमा के भीतर पकड़ लिया गया और छह महीने की सज़ा हुई जो उन्होंने काट ली है, लेकिन मणिपुर में जारी हिंसा के चलते वापस जाने के दरवाज़े फ़िलहाल बंद हैं.

लिन ने बताया, “मैं म्यांमार के सगैंग राज्य से भारत में गाय बेचने आता था. नौ महीने पहले मुझे गिरफ़्तार किया गया था, तब से डिटेंशन सेंटर में हूँ. मेरी पत्नी-बच्चों और माँ-बाप को पता भी नहीं कि मैं यहाँ फँसा हुआ हूँ.”

ग़ैरक़ानूनी तरीक़ा

इस जेल में 100 से भी ज़्यादा ऐसे लोग है जो म्यांमार से कथित तौर पर ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से भारत आए थे.

म्यांमार के चिन प्रांत के रहने वाले यू निंग का दावा है कि वे, “अक़्सर भारत के सीमावर्ती गाँवों में हैंडलूम का काम करने आते थे लेकिन पिछले साल ग़लतफ़हमी के चलते पकड़े गए.”

उन्होंने कहा, “मेरा एक दोस्त WY टैबलेट्स (नशे के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रतिबंधित दवा) बेचता था, उसकी वजह से मुझे भी पकड़ लिया गया. सज़ा पूरी कर ली है लेकिन घर नहीं जा सकता क्योंकि सीमाएं बंद हैं”.

तमाम लोगों ने ये भी बताया कि वो भारत का बॉर्डर क्रॉस करके म्यांमार से इसलिए आए क्योंकि वहाँ जारी मिलिट्री ऑपरेशन से बच सकें.

साल 2021 से म्यांमार में सैन्य शासन है और आम नागरिकों पर फ़ौजी कार्रवाई के चलते हज़ारों लोगों ने पड़ोसी देश भारत के मणिपुर और मिज़ोरम राज्यों में शरण ली है.

म्यांमार के हालात

पड़ोसी म्यांमार की सैन्य सरकार से PDF यानी पीपल्स डिफ़ेंस फ़ोर्स और KNA यानी कुकी नेशनल आर्मी की हिंसक झड़पें अभी भी जारी हैं.

इधर भारत और मणिपुर सरकार ने कथित शरणार्थियों या अवैध घुसपैठियों को राज्य में जारी हिंसा का ज़िम्मेदार ठहराया है. हिंसा में कम से कम 180 लोगों की जान गई है और 60,000 से ज़्यादा लोग बेघर हुए हैं.

म्यांमार में बीबीसी संवाददाता न्यो लेइ यी के मुताबिक़ म्यांमार में जारी फ़ौजी कार्रवाई का सीधा असर मणिपुर सीमाओं पर दिख रहा है.

उन्होंने बताया, “मैंने म्यांमार से मणिपुर भागे कई लोगों से बात की और वे यहां जारी हिंसा के चलते ही गए थे. लेकिन वे इस बात से आहत हैं कि उन्हें मणिपुर हिंसा के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है. वो कहते हैं कि उनके बायोमीट्रिक डेटा को जमा करने से उनके मानवाधिकारों का हनन हो रहा है जबकि मणिपुर में उन्हें मदद मिलनी चाहिए थी.”

मणिपुर के एक सीमावर्ती शहर में पहचान बदल कर रहने वाली म्यांमार की एक महिला ने बीबीसी से ख़ास बात करते हुए अपनी दास्तान सुनाई.

कुकी-चिन जनजाति वाली डोई श्वे (नाम बदला हुआ) म्यांमार की सैन्य कार्रवाई से अपने बच्चों समेत पूरे परिवार को बचा कर 2021 में मणिपुर पहुँची थीं.

उन्होंने बताया, “म्यांमार में फ़ौज बहुत लोगों को पकड़ रही है. नौकरी करने वाले मेरे कई सहयोगी पकड़े गए, पुलिस मुझे भी ढूँढ रही थी, मेरे परिवार को भी जेल में डाल देती. यहां तो कोई रेफ़्यूजी कैंप नहीं था जब हम 2021 में आए थे, लेकिन स्थानीय लोगों ने हमें सहारा दिया और रहने की जगह दी. पारिभाषिक तौर पर हम सभी एक ही हैं.”

डोई को लगा था ख़तरा टल गया और पूरा परिवार अब भारत में महफ़ूज़ है. लेकिन तीन महीने पहले मणिपुर में मैतेई और कुकी समाज एक दूसरे से भिड़ गए और छिटुपुट तौर पर ये हिंसा आज भी जारी है.

नम आँखों से डोई श्वे ने पूछा, “इम्फ़ाल और चूराचांदपुर में हिंसा शुरू होने से हम बेचैन हो गए थे. एक माँ होने के नाते मेरी चिंता बढ़ रही है. अभी तक हम एक बैग में कुछ कपड़े और ज़रूरी दस्तावेज़ लेकर सोते हैं, लेकिन ये पता नहीं कि अगर भागना पड़ा तो किधर जाएंगे? आख़िरकार हमें म्यांमार लौटना है, लेकिन कब, ये पता नहीं.”

समुदायों में रंजिश

मणिपुर में फ़िलहाल मैतेई और कुकी समुदाय अलग-अलग रह रहे हैं. आज़ादी के बाद ईसाई धर्म मानने वाले कुकी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला था जबकि मैतई लोग हिंदू बने और ये अनुसूचित जाति, ईडब्ल्यूएस और सामान्य वर्ग के हैं.

झगड़े की वजह यही है क्योंकि मैतेई लोग कुकी-बहुल इलाक़ों में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते और अब जनजाति का दर्जा भी चाहते हैं. मसला सरकारी नौकरियों में आरक्षण का भी है.

मौजूदा संकट के लिए पड़ोसी म्यांमार के चिन और सगैंग प्रांत से भाग कर आए चिन-कुकी लोगों पर भी आरोप लगे हैं, जिन्हें राज्य सरकार ‘अवैध घुसपैठिया’ बताती है.

बहुसंख्यक मैतेई लोगों के संगठन मानते हैं कि हिंसा में ‘हथियारबंद कुकी घुसपैठियों’ का हाथ है जो भारत-म्यांमार सीमा पर ड्रग्स के उत्पादन और कारोबार में लिप्त हैं.

तीन मई को राज्य में हिंसा भड़कने के दो महीने बाद भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा था, “हमारे राज्य और मणिपुर का बॉर्डर 398 किलोमीटर लंबा और पोरस है, जिसकी पूरी निगरानी भी नहीं हो सकती.”

उन्होंने कहा था, “अब इसमें क्या-क्या हो रहा है ये मैं क्या कहूँ. हमारी भारतीय फ़ौजें तैनात हैं लेकिन वो इतने लंबे-चौड़े बॉर्डर को तो कवर नहीं कर सकती. इसमें क्या हो रहा है उससे हम इनकार नहीं कर सकते. सब कुछ वेल-प्लांड तो लग रहा है, लेकिन वजह साफ़ नहीं है.”

चिन-कुकी लोगों का इतिहास

कुकी समुदाय इन आरोपों का खंडन करते हुए अलग प्रशासन की मांग कर रहा है, जिसे केंद्र सरकार ने ख़ारिज कर दिया है.

‘अवैध घुसपैठिए’ वाले आरोपों को ‘मनगढ़ंत कहानी’ बताते हुए कुकी समुदाय के लोग इस क्षेत्र के इतिहास की बात दोहराते हैं.

मणिपुर के डिटेंशन सेंटर में क़ैद म्यांमारी क़ैदियों के एडवोकेट डेविड वायफ़ेइ का मानना है कि, “अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को बनाते समय ब्रितानी सरकार ने ग़ौर ही नहीं किया कि यहां कौन रहते हैं”.

उन्होंने आगे बताया, “जैसे मेरी कई पीढ़ियाँ इस बॉर्डर पर रहती रही हैं और हम भारतीय हैं. लेकिन मेरी बहन की शादी एक बर्मीज़ कुकी परिवार में हुई है और वे सीमा के ठीक उस पार रहते हैं. अगर वो यहां रहने आती है तो उसे अवैध घुसपैठिया कहना ग़लत होगा. वे राजनीतिक शरणार्थी तक कहे जा सकते हैं क्योंकि वे यहां हमेशा के लिए नहीं आना चाहते. म्यांमार में उन्हें ज़्यादा आराम है अगर राजनीतिक स्थिरता हो तो.”

2022 में भारत द्वारा रोक लगाने से पहले दोनों देशों के बीच ‘फ़्री मूवमेंट रिजीम’ का करार था. इसके तहत सीमा पर रहने वाली जनजातियों को वीज़ा का बिना के एक-दूसरे की सीमा के 16 किलोमीटर भीतर तक आने-जाने की छूट थी.

पिछले कुछ वर्षों में भारत ने म्यांमार से टिम्बर (टीक, सागौन जैसी क़ीमती लकड़ी) का आयात बढ़ाया था और जबकि म्यांमार ने भारतीय कम्पनियों से हथियार और सैन्य उपकरण भी ख़रीदने शुरू कर दिए थे.

इस व्यापार में पहली मंदी कोविड-19 के दौरान दिखी थी और दूसरी तब महसूस हुई जब भारत ने फ़्री मूवमेंट रिजीम’ बंद कर दी.

क्योंकि मणिपुर में छिटपुट हिंसा अब भी जारी है तो इस बात की पड़ताल ज़रूरी है कि आख़िर म्यांमार से यहां आने वाले लोग कौन हैं.

सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ क़रीब ढाई हज़ार ऐसे लोगों की पहचान कर ली गई है.

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ म्यांमार में फ़ौजी शासन आने के बाद से क़रीब 80,000 रेफ़्यूजी दूसरे देशों में भाग गए हैं जिसमें भारत भी शामिल है.

भारत ने म्यांमार से अपने कूटनीतिक रिश्तों के संजीदगी को ध्यान में रखते हुए वहां लोकतंत्र की बहाली की बातें दोहराई है लेकिन भारत भाग आए शरणार्थियों को वापस भेजे जाने पर कोई बात आगे नहीं बढ़ी है.

‘वॉर रेफ़्यूजी’ ?

सवाल अब भी है कि म्यांमार से आने वालों में से ‘अवैध घुसपैठिया’ किसे कहेंगे और ‘वॉर रेफ़्यूजी’ किसे कहेंगे.

हमने मणिपुर के सूचना मंत्री सपम राजन से जानने की कोशिश की कि कहीं राज्य में जारी हिंसा के पीछे सिर्फ़ “अवैध घुसपैठ” को वजह बताना एक सरकारी नैरेटिव सा तो नहीं बन गया है?

सपम रंजन ने कहा, “हमारा किसी समुदाय के ख़िलाफ़ कुछ नहीं है, बस चिंता उनकी है जो बाहर से आ चुके हैं. बहुत से लोग हमारे राज्य में अवैध तरीक़े से आते रहे हैं तो हमें इस अहम मुद्दे को तो उठाना ही था. लोगों के बायोमीट्रिक वग़ैरह लिए जा रहे हैं और अभी तो सिर्फ़ शुरुआत हुई है. अब सीमा पर फ़ेंसिंग शुरू होगी”.

सीमा पर फेंसिंग शुरू करने की पहल की पुष्टि सांसद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी कर चुके हैं.

उन्होंने पिछले सांसद सत्र में कहा था, ““क्योंकि भारत -म्यांमार सीमा पर आज़ादी के बाद से हूँ फ़्री बॉर्डर है तो बड़ी मात्रा में कुकी भाइयों का यहां आना शुरू हुआ. और जब परिवार जंगलों में बसने लगे तो मणिपुर के लोगों में एक तरह से असुरक्षा की भावना हुई है”.

मणिपुर-म्यांमार सीमा का दौरा करने पर हमें कई ऐसे गांव मिले जिनमें कुछ घर भारत में आते हैं और कुछ म्यांमार का हिस्सा हैं.

सीमा पर रहने वालों की भाषा भी समान है, पहनावा भी और खान-पान भी. इनमें मैतेई और कुकी दोनों समुदाय के लोग शामिल हैं. मणिपुर का कुकी समुदाय इस बात से आहत लग रहा है कि कई लोग इन सभी को “अवैध घुसपैठिए’ वाली श्रेणी में डाल रहे हैं.

चूराचांदपुर में कुकी पीपुल्स एलायंस के उपाध्यक्ष चिनखोलाल थांसिंग से इसी मसले पर लंबी बात हुई.

उनके मुताबिक़, “चाहे सीरिया से हो या कहीं और जारी हिंसक संघर्ष वाले देश से…शरणार्थियों को मानवीय आधार पर यूरोप, ब्रिटेन या अमेरिका जैसे देशों में शरण मिलती रही है. ठीक उसी तरह म्यांमार में सैन्य शासन से परेशान होकर आने वाले शरणार्थियों के मानवाधिकारों की रक्षा करते हुए भारत में उनका स्वागत करना चाहिए”.

लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त यही है कि सैकड़ों सालों से साथ रह रहे कुकी और मैतेई लोगों के बीच दुश्मनी गहराती जा रही है.

65 साल के एन पुलिंद्रो सिंह भारत-म्यांमार सीमा पर बसे मोरेह शहर में व्यापार करते थे. चार मई को एक गुस्साई हुई भीड़ ने इनके घर और गोदाम को जला दिया.

भारतीय सेना ने इनके परिवार को बचाकर इम्फ़ाल पहुँचाया.

एन पुलिंद्रो सिंह ने इम्फ़ाल में विपक्षी समुदाय के एक ख़ाली घर को अपने परिवार का ठिकाना बना लिया है.

वापस लौटने की शर्त भी है क्योंकि पड़ोसी म्यांमार से बढ़ते हुए व्यापार में मोरेह के व्यापारियों का बड़ा हाथ था.

उन्होंने कहा, “केंद्र सरकार और राज्य सरकार जब मोरेह में स्टेट फ़ोर्स रखेंगे तभी हम लोग वापस जाएंगे. अगर मणिपुरी लोगों को मोरेह में नहीं रहने देंगे तो हमारा बिज़नेस जो मणिपुर को खिला रहा है, वो सब फेल हो जाएगा और नुक़सान पूरे मणिपुर का होगा.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *