मणिपुर हिंसा में ‘विदेशी ताक़तों के दख़ल’ का दावा, क्या कहते हैं एक्सपर्ट

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DMT : मणिपुर  : (01 अगस्त 2023) : –

मणिपुर पिछले तीन महीने से हिंसा की आग में जल रहा है जिसमें अब तक 160 लोगों की मौत हो चुकी है. 50 हज़ार से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए हैं. लोगों के घरों को आग के हवाले कर दिया गया.

महिलाओं के साथ यौन हिंसा के मामले सामने आए. पांच हज़ार से ज़्यादा मामले दर्ज किए जा चुके हैं, पर हिंसा की खबरें थमने का नाम नहीं ले रही है.

विपक्ष सरकार से सवाल पूछ रहा है और केंद्र सरकार के खिलाफ़ इसे लेकर संसद में अविश्वास प्रस्ताव भी लाया गया है.

मणिपुर में जो कुछ हो रहा इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोई बयान नहीं दिया है, हालांकि बीते दिनों उन्होंने राज्य में कुकी महिलाओं के साथ हुई यौन हिंसा के वायरल वीडियो पर बयान ज़रूर दिया था लेकिन ये बयान उस घटना के ही बारे में था, उन्होंने अब तक मणिपुर में दो समुदायों के बीच हो रही इस ‘खूनी जंग’ पर कुछ नहीं कहा है.

इस बीच पूर्व सेना प्रमुख जनरल एम.एम नरवणे ने मणिपुर हिंसा में ‘विदेशी ताकतों’ के शामिल होने का शक जताया है.

उन्होंने कहा कि ”मणिपुर हिंसा में विदेशी एजेंसी की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता.”

क्या कहा जनरल एमएम नरवणे ने?

पूर्व सेना प्रमुख जनरल एम.एम नरवणे ने कहा, ”मणिपुर में जो हो रहा है उसमें विदेशी एजेंसियों की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता है, सीमावर्ती राज्यों में अस्थिरता देश की समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अच्छा नहीं है.”

उन्होंने ज़ोर देते हुए ये भी कहा कि ”अलग अलग विद्रोही समूहों को मिल रही कथित चीनी मदद कई सालों से जारी है”

”मुझे यकीन है कि जो लोग सत्ता में हैं, और जो भी कार्रवाई की जानी चाहिए, उसे करने के लिए ज़िम्मेदार हैं, वो अपना काम बहुत अच्छे से कर रहे हैं. घटनास्थल पर मौजूद लोगों को ज़्यादा पता होगा और ये भी कि क्या किए जाने की ज़रूरत है. लेकिन मैं ये कहना चाहता हूं कि अस्थिरता हमारी आंतरिक सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है.”

जनरल नरवणे ने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ”राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य” विषय पर आयोजित एक चर्चा के दौरान मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर ये बातें कही.

मणिपुर हिंसा में किसी ‘बाहरी ताक़त’ के हाथ होने की कितनी संभावना है? नरवणे के इस बयान का मतलब क्या है?

ये समझने के लिए हमने बात की सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च में सीनियर फेलो सुशांत सिंह से.

वह कहते हैं, ”नरवणे भारत के सेना अध्यक्ष रहे हैं और उस हैसियत से उनको उस जगह की जानकारी पूरी तरह से होगी. इसके अलावा वो असम राइफ़्ल्स में कई सालों तक ऊंचे पद पर रहे हैं. वह जो बात कह रहे हैं तो कुछ सोच समझ कर ही कह रहे होंगे.”

“अगर ये सच है कि इसमें (मणिपुर हिंसा) विदेशी ताक़तों का हाथ है, ख़ासतौर पर चीन का हाथ जो इन विद्रोही संगठनों को मदद दे रहा है तो हमें इस बात को गंभीरता से लेना चाहिए और इसे दरकिनार नहीं करना चाहिए.’’

दरअसल मणिपुर में मई महीने से हिंसा शुरू हुई थी. जिसके बाद भारत के इस पूर्वोत्तर राज्य में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच कड़वाहट कुछ ऐसी बढ़ी की अब राज्य में दो धड़े साफ़ नज़र आ रहे हैं. मणिपुर की 53 फीसदी आबादी मैतेई समुदाय की है जो ज़्यादातर इंफाल घाटी इलाक़े में रहते हैं. वहीं नागा और कुकी की आबादी 40 प्रतिशत है, वो पहाड़ी ज़िलों में रहते हैं.

मणिपुर पर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया में चर्चा तब सबसे ज़्यादा हुई जब यहां से एक वीडियो सामने आया.

19 जुलाई को मणिपुर की दो महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न का एक भयावह वीडियो वायरल हुआ. इस वीडियो ने पूरे देश में बहस छेड़ दी.

मोदी सरकार पर विपक्ष हमलावर हो गया, वीडियो को लेकर देशभर में लोगों के बीच गुस्सा था. ये सब संसद के मॉनसून सत्र शुरू होने से पहले हुआ.

विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी से लगातार जवाब मांगता रहा. 20 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के मॉनसून सत्र से पहले मीडिया से बात करते हुए कहा कि- मणिपुर की घटना से उनका हृदय पीड़ा से भरा हुआ है.

पीएम मोदी ने कहा कि ‘’देश की बेइज्जती हो रही है और दोषियों को बख़्शा नहीं जाएगा.’’ यह पहली बार था जब प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर में जारी हिंसा पर कुछ कहा हो.

वायरल वीडियो में जिन महिलाओं के साथ यौन हिंसा हुई उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया है. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल हिंसा का शिकार हुई महिलाओं की पैरवी कर रहे हैं. वहीं सरकार की पैरवी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कर रहे हैं.

‘लड़ाई के नए हथियार’

मीडियो रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार म्यांमार से आने वाले लोगों का बायोमैट्रिक डेटा लेगी ताकि जो लोग अप्रवासी हैं उनका रिकॉर्ड रखा जा सके.

पर सवाल अब भी बरकरार है कि क्यों रह रह कर बाहरी ताक़त, चीन की बात मणिपुर हिंसा के संदर्भ में उठती रहती है. बीबीसी से बात करते हुए मेजर जनरल (रिटायर्ड) डॉक्टर एसबी अस्थाना कहते हैं, ‘’मणिपुर के हालात के लिए विदेशी ताक़तों की बात को दरकिनार नहीं किया जा सकता है. इस दावे को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है.’’

आगे समझाते हुए वो कहते हैं, ‘’आजकल लड़ाई का एक नया कॉन्सेप्ट शुरू हो गया. जिसमें आप समाज में तनाव पैदा करते हैं, ये सब किसी भी तरीके से हो सकता है. जैसे फ़ेक वीडियो बना कर या फिर लोगों को भेज कर. भारत एक उभरता हुआ देश है और उसके कई सारे दुश्मन हैं. मसलन चीन नहीं चाहता कि भारत आगे बढ़े, और उसे रोकने में वो कोई कसर नहीं छोड़ता.”

“प्रॉक्सी वॉर और सोशल अनरेस्ट यानी समाज में तनाव पैदा करना ये दो लड़ाई के नए हथियार हैं. कोई भी देश ये हमारे ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर सकता है और मणिपुर के संदर्भ में इससे इनकार नहीं किया जा सकता.’’

ये पहली बार नहीं है जब मणिपुर हिंसा के संदर्भ में चीन का या विदेशी ताकत का ज़िक्र हुआ हो, लेकिन ये समझना भी ज़रूरी है कि जब भी इस तरह के दावे किए जा रहे हैं इसे लेकर कोई पुख्ता सबूत पेश नहीं किए गए हैं.

मणिपुर हिंसा में चीन और म्यांमार का ज़िक्र

बीते रविवार को मणिपुर के दो दिन के दौरे से लौटे विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के 21 सांसदों के हमलावर तेवर नज़र आए. उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार मणिपुर में जातीय संघर्ष रोकने में नाकाम रही है.

कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ”अगर मणिपुर संकट जल्द नहीं सुलझा लिया जाता है, तो यह देश के लिए सुरक्षा समस्याएं पैदा कर सकता है.”

उन्होंने कहा, “चीनी सैनिक सीमावर्ती राज्य में फैली अशांति का ग़लत फ़ायदा उठा सकता है. मणिपुर दो हिस्सों में बंट गया है. सरकार को हालात की गंभीरता समझ नहीं आ रही है. म्यांमार के साथ सिर्फ़ 75 किलोमीटर सीमा पर बाड़ लगाई गई है, चीन बस थोड़ी ही दूर पीछे है. ये चिंताजनक स्थिति है.”

सिर्फ़ नरवणे ही नहीं हैं जो मणिपुर हिंसा में ‘विदेशी ताक़तों’ का हाथ होने की बात कर रहे हों. इससे पहले जुलाई की शुरुआत में मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा था कि उनके प्रदेश में फैली हिंसा में ‘विदेशी ताक़तों’ का हाथ हो सकता है.

समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक़, मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा था, ”प्रदेश में हुए जातीय झड़पों में बाहरी तत्वों का हाथ हो सकता है और यह ‘पूर्व नियोजित’ लगता है.”

इस पर सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च में सीनियर फेलो सुशांत सिंह कहते हैं, ”जब मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह विदेशी ताक़तों की बात करते हैं तो वो म्यांमार की ओर इशारा कर रहे हैं. उनका इशारा म्यांमार के चिन समुदाय के लोगों की ओर है. ये लोग उसी जाति से हैं जो की कुकी लोगों की है. लेकिन ये एक तरह से कुकी लोगों को बदनाम करने की कोशिश है, उनको विलेन की तरह दिखाने की कोशिश है. वो ये नहीं कह रहे हैं चीन या बांग्लादेश या कोई और सरकार यहां पर मदद कर रही है. वो कुकी लोगों पर सवाल उठा रहे हैं?”

केंद्र सरकार को संसद में बयान देना चाहिए’

जुलाई के शुरुआत में ही शिवसेना (उद्धव ठाकरे) नेता संजय राउत ने साफ़तौर पर चीन का नाम लेते हुए कहा, ”मणिपुर हिंसा में चीन का हाथ है. आप ने (केंद्र सरकार) क्या कार्रवाई की? उन्हें (मणिपुर के मुख्यमंत्री) इस्तीफ़ा देना चाहिए.”

अगर मणिपुर हिंसा में किसी प्रकार से भी किसी बाहरी ताक़त का हाथ होता है तो ऐसे में भारत सरकार को क्या करना चाहिए?

इस सवाल पर सुशांत सिंह कहते हैं कि “विदेशी ताक़त के शामिल होने की बात में अगर ज़रा भी सच्चाई है तो, भारत सरकार को साफ़ तौर पर संसद और मीडिया को बताना चाहिए कि मणिपुर में क्या चल रहा है, इन बातों में कितनी सच्चाई है. क्या जानकारी उनके पास है? अगर इसमें थोड़ी भी सच्चाई है कि चीन या कोई और देश ऐसा कर रहा है, तो भारत सरकार को सख्त क़दम उठाने चाहिए.”

भारत के उत्तरपूर्व राज्य और चीन

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में चीन के दखल की बातें सामने आती रही हैं. अरुणाचल प्रदेश को लेकर भारत और चीन के बीच लंबे समय से तनाव जारी है.

पूर्व सेना अध्यक्ष वेद प्रकाश मलिक भारत के पूर्वोत्तर में चीन की दिलचस्पी के बारे में बात करते हुए कहते हैं, ‘’भारत के उत्तर पूर्व राज्यों मे चीन की हमेशा दिलचस्पी रही है. 1962 में चीन ने अरुणाचल पर हमला किया था. अब भी चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना प्रदेश मानता है, और वो उसे दक्षिण तिब्बत कहता है.”

”हाल में भी चीन ने हमारे अरुणाचल के खिलाड़ियों को स्टेपल्ड वीज़ा दिया था जिसके बाद भारत सरकार को खिलाड़ियों को ना भेजने का फ़ैसला करना पड़ा. चीन ने 1960 के दशक में हमारे यहां के कई विद्रोही समूहों चाहे वो नगालैंड में हों या असम या मणिपुर में उनको मदद देता था. चीन ये मदद हथियारों के साथ साथ ट्रेनिंग देकर करता था, तो ये कहना ग़लत नहीं होगा कि चीन का हस्तक्षेप रहा है और अभी भी है.’’

दरअसल बीते दिनों अरुणाचल प्रदेश को लेकर फिर दोनों देशों में विवाद खड़ा हो गया था जब चीन ने भारतीय वुशु टीम के तीन खिलाड़ियों को स्टैपल वीज़ा जारी किया था. भारतीय पासपोर्ट होने के बावजूद चीन के इस क़दम को लेकर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई और पूरी टीम इस प्रतियोगिता से हट गई.

ये सरहद तीन सेक्टरों में बंटी हुई है – पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मिडिल सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड और पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश.

दोनों देशों के बीच अब तक पूरी तरह से सीमांकन नहीं हुआ है क्योंकि कई इलाक़ों को लेकर दोनों के बीच मतभेद हैं.

भारत पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चिन पर अपना दावा करता है लेकिन ये इलाक़ा फ़िलहाल चीन के नियंत्रण में है. भारत के साथ 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने इस पूरे इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लिया था.

वहीं पूर्वी सेक्टर में चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है. चीन कहता है कि ये दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है. चीन तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को भी नहीं मानता है.

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