मुकेश के 100 साल: …पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा

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DMT : नई दिल्ली : (22 जुलाई 2023) : –

“हमारे उज़्बेकिस्तान में मुकेश के गाने बहुत मशहूर रहे हैं.यहाँ के एक लोकप्रिय गायक हैं बोबोमुरोद हमदामोफ़. वो हूबहू मुकेश की आवाज़ में हिंदी गाने गाते हैं. जब मुकेश के गुज़र जाने के बाद राज कपूर उज़्बेकिस्तान आए थे तो वो मुकेश की आवाज़ सुनने के लिए बोबोमुरोद हमदामोफ़ से मिले और दोनों ने मिलकर मुकेश के गाने गए. वो वीडियो आप यूट्यूब पर देख सकते हैं.”

ताशकंद शहर में रहने वाले अब्दुलमाजिद ममादालियेफ़ ने जब एक ऑडियो नोट भेजकर मुझे गायक मुकेश का ये किस्सा सुनाया तो वो पूरा दृश्य मेरे आँखों के सामने तैर गया मानो मैं ख़ुद वहाँ मौजूद थी.

दरअसल फ़िल्म संगम में राजकपूर, राजेंद्र कुमार और वैजयंतीमाला के यही नाम थे. इस तरह का असर था मुकेश और राज कपूर का.”

मुकेश की आवाज़ के चाहनेवाले अकसर कहते हैं कि उनके लिए दर्द और सोज़ की अगर कोई आवाज़ है तो वो है मुकेश. ख़ुद मुकेश को भी ये सोज़ भरे नग़मे सबसे प्रिय थे.

ये मुकेश ही थे जिन्होंने 1976 में बीबीसी हिंदी के इंटरव्यू में कहा था, “अगर मुझे दस लाइट गाने मिलें और एक उदासी वाला गाना मिले तो मैं दस लाइट गाने छोड़कर एक सैड गाना गाऊँगा.”

ये कैसा हसीन इत्तेफ़ाक रहा होगा कि 50,60 और 70 के दशक में मुकेश, रफ़ी, किशोर, मन्ना डे जैसे गायक सब एक ही समय में गाना गा रहे थे.

मुकेश का कभी कभी मेरे दिल में ख़्याल आता है, रफ़ी का दिन ढल जाए, तो किशोर का खाइके पान बनारस वाला…आप किसे ज़्यादा पंसद करेंगे, किसे कम, ये भारी कशमकश का काम है.

मुकेश के बेटे नीतिन मुकेश ने बीबीसी से ख़ास बातचीत में कई पुराने किस्से सांझा किए.

नीतिन मुकेश बताते हैं, “रफ़ी जी हो, किशोर जी हों या मुकेश जी ,उनका आपसी संबंध भाईयों से भी बढ़कर था. मुझे ताज्जुब होता था जब मुकेश जी फ़ोन उठाकर रफ़ी साब को कहते:

“ एक दूसरे के लिए कॉम्पीटिशन का भाव नहीं था. जब मैं शो करता था तो पापा मुझे कहते थे तू रफ़ी साब के गाने गा, तू किशोर दा के गाने गा..मेरे मन में ये सवाल उठता था कि पापा मुझे किसी और गायक का गीत गाने को क्यों कह रहे हैं. मगर ये एक कलाकार की ओर से अपने समकालीन साथी कलाकार के लिए इज़्ज़त थी.”

पीढ़ी दर पीढ़ी गायक मुकेश से प्रभावित रहे हैं. 90 के दशक के सबसे मशहूर गायकों में से एक कुमार सानू ने बीबीसी सहयोगी मधु पाल को बताया, “मुकेश जी की सबसे बड़ी ख़ूबी थी कि इतनी कोमल आवाज़ में वो इतने गहरे और पावरफ़ुल इमोशन्स को दिल तक पहुँचा देते थे. होटल में उनके सेंटीमेंटल गाने बहुत चलते हैं और आज भी लोग पैसे देते हैं उनके गानों पर. मैं भी जब होटलों में गाता था तो मुकेश जी के सेंटीमेंटल गाने गाता था और उनके गाने गाकर बहुत पैसे कमाए मैंने. बहारों ने मेरा चमन लूट कर मेरा सबसे पसंदीदा गाना है”

दिल्ली में जन्मे मुकेश चंद माथुर के गायक बनने की भी अपनी कहानी है. मुकेश आख़िर गायक कैसे बने, इसकी कहानी ख़ुद मुकेश की ही ज़बानी सुनिए जो बीबीसी के खज़ाने में मौजूद है.

उन्होंने बताया था, “दरअसल मेरी बहन की शादी थी. लडक़ी वालों को बारातियों का मनोरंजन करना था तो मैंने गाने गाए. बारात में मुंबई से दो साहेबान भी आए थे. शादी के अगले दिन दोनों फ़िल्मी साहेबन (फ़िल्मस्टार मोतीलाल) घर पर आ गए और कहा कि आपके साहबज़ादे में बड़ा टेलेंट है और लड़के को फ़िल्मों में भेज दीजिए, सहगल से भी बड़ा नाम कमाएगा. पिता जी को गाने वाने का कुछ पता नहीं था.पिताजी बोले कि क्लर्क बनवा देंगे बेटे को.”

“फिर उन्होंने कुछ समय बाद पिताजी को दोबारा टेलीग्राम किया. तब पिताजी ने बोला कि अगर वो इतना इसरार कर ही रहे हैं तो वाकई तुम्हारे अंदर कोई टेलेंट होगा. हम बॉम्बे आ गए सिंगिग एक्टर बनने लेकिन पिक्चर हो गई फेल. हमें निकाल दिया गया. कंपनी भी बंद हो गई.”

फिर मुकेश को बतौर प्लेबैक सिंगर पहला मौका मिला कैसे ?

मुकेश इस आर्काइव इंटरव्यू में बताते हैं, “मोतीलाल बड़े स्टार थे और अपने गाने ख़ुद गाते थे. 1945 में आई पहली नज़र वो पहली पिक्चर थी जिसमें उन्होंने प्लेबैक की शर्त मंज़ूर की. हमने उनके लिए एक गाना गाया. लेकिन पिक्चर पूरी होने के बाद ये तय हुआ कि उसमें से मेरा गाना निकाल दिया जाए. प्रोड्यूसर कहने लगे कि मोतीलाल अक्सर चंचल किस्म के किरदार करते हैं. और उनके कैरेक्टर को सैड गाना सूट नहीं करता और ये गाना बोर करता है.”

वैसे मुकेश को गाने के साथ-साथ एक्टिंग का भी चस्का था. उन्होंने शुरुआत बतौर एक्टर ही की जब 1942 में फ़िल्म निर्दोष आई. पर फ़िल्म पिट गई.

बाद में जब वो हिट गायक हो गए तो 1953 में माशूका और 1956 में फ़िल्म अनुराग में वो हीरो बने. अपना पैसा भी लगाया. लेकिन कोई भी फ़िल्म चली नहीं. 1953 की फ़िल्म आह में वो एक गाने में राज कपूर के साथ देखे भी जा सकते हैं जहाँ वो टाँगेवाला बनकर गाते हैं छोटी सी ये ज़िंदगानी है, चार दिन की जवानी तेरी.

इस बीच रफ़ी और किशोर अपनी जगह लगातार पक्की कर रहे थे.

राजीव श्रीवास्तव ने भारत के प्रथम वैश्विक गायक-मुकेश’ नाम की किताब लिखी है. बीबीसी से बातचीत में वे बताते हैं, “मैं उन्हें भारत का प्रथम वैश्विक गायक इसलिए कहता हूँ क्योंकि वो पहला गीत जो हिंदुस्तानी सीमा लांघकर विदेश की धरती पर लोकप्रिय हुआ वो था मुकेश का आवारा हूँ. जब भी वहाँ के राष्ट्राध्यक्ष दिल्ली आते थे, चाहे वो रशिया के हों, चीन के हो, तो विशेष फ़रमाइश आती थी कि आवरा हूँ गीत सुनवाइए. तो बॉम्बे से मुकेश को बुलवाया जाता था.”

एक दरियादिल इंसान के तौर पर भी फ़िल्म इंडस्ट्री के लोग मुकेश को याद करते हैं.

गायक मनहर उधास का ये किस्सा काफ़ी मशहूर हैं.

बीबीसी से बातचीत में मनहर उधास ने बताया, “मुझे संगीत का शौक़ था और मैं कल्याणजी आनंदजी की रिकॉर्डिंग में जाया करता था. एक दिन उन्होंने कहा कि स्टूडियो में आ जाइए हमको आपकी आवाज़ टेस्ट करने के लिए एक गाना रिकॉर्ड करना है. मैंने गाना ये सोच कर गा दिया कि यहां सिर्फ़ आवाज़ टेस्ट हो रही है. दो तीन हफ़्तों बाद मुझे पता चला कि ये गाना विश्वास (1969) फ़िल्म के लिए रिकॉर्ड किया गया है. मुझे बताया गया कि मुकेश जी ने इस फ़िल्म के सारे गाने गए हैं और ये गीत भी उनको ही गाना था. पर वो व्यस्त थे और गाने की शूटिंग अटकी हुई थी. तो सबने सोचा कि फ़िलहाल मनहर की आवाज़ में रिकॉर्ड कर देते हैं और बाद में असल गाना मुकेश की आवाज़ में रिकॉर्ड कर लेंगे.

जब मुकेश जी से दोबारा डेट मांगी गई तो उन्होंने कहा कि मुझे पता चला कि ये गाना कोई पहले रिकॉर्ड कर चुका है और मैं वो सुनना चाहूँगा. गाना सुनने के बाद मुकेश जी बोले कि जिसने भी गाया बहुत अच्छा है और आप इस गाने को ऐसे ही उनकी (मनहर) की आवाज़ में रहने दें. इस तरह मेरा प्लके बैक गायन का करियर शुरु हुआ.मुकेश जी की आवाज़ में इतना दर्द था, इतनी सुंदर आवाज़ थी मुकेश जी कि आप सुनते ही रहें. कोई एक गाना चुनना असंभव है. फिर भी मुझे उनका आनंद फ़िल्म का गाना सबसे प्रिय है.”

बाद में मनहर उधास ने राम लखन, हीरो, क़ुर्बानी जैसी फ़िल्मों के लिए कई हिट गाने गए.

वैसे मुकेश को लेकर एक बहस ये होती रही है कि उनके गायन की सीमाएँ थीं जबकि रफ़ी और किशोर की गायकी ज़्यादा विविध थी.

राजीव श्रीवास्तव की कहना था, “कई बार एक धारणा बन जाती है और हम उसे ही सच मानने लग जाते हैं. मैंने 1991 से लेकर अब तक मुकेश पर काम किया है. मुकेश की विविधता और लोगों से अलग है. फ़िल्म धर्म कर्म का गाना है इक दिन बिक जाएगा जो मुकेश ने गाया. इसी गाने में किशोर की भी आवाज़ है लेकिन लोग मुकेश जी की आवाज़ को ही इस गाने से जोड़ते हैं. आपस में किसी गायक की तुलना नहीं की जा सकती.”

उदासी भरे नग़मों के परे भी मुकेश ने हर मूड और एहसास को आवाज़ दी.

बारिश की फुहारों के बीच, छतरी तले अल्हड़ मस्ती में जब राजकपूर गाते हैं -डम डम डिगा डिगा, मौसम भीगा भीगा..तो ये मुकेश की ही आवाज़ थी जो आपको भी बारिश की बूंदों में भिगो जाती है.

या श्री 420 में बेफ़िक्रे राजकपूर जब वो पहली दफ़ा सपनों की नगर बॉम्बे आते हैं और गाते हैं- मेरा जूता है जापानी..

और जब मनोज कुमार अपनी प्रेमिका के लिए गाते हैं- चाँद सी महबूबा हो मेरी तो ये मखमली आवाज़ आपको भी रूमानी कर जाती हैं.

कभी गाड़ी लेकर सफ़र पर निकले हों और मौसम सुहावना हो तो मुकेश का गाना सुहाना सफ़र और ये मौसस हसीं अकसर याद आता है. या छेड़छाड़ वाला राजकपूर का गाना तेरी मन की गंगा और मेरे दिल की जमुना.

राज कपूर की बात करें तो मुकेश और उनकी दोस्ती के किस्से आज भी याद किए जाते हैं ..

मुकेश के गुज़र गाने के बाद उनके कई गाने बाद में रिलीज़ हुई फ़िल्मों में सुनाई देते रहे.

ऐसी एक फ़िल्म जिसके क्रेडिट रोल में अकसर मैं पॉज़ दबा देती हूँ वो है फ़िल्म अमर अकबर एंथनी. जब गायकों के नाम आता है तो लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार के बाद आता है…स्वर्गीय मुकेश.

और अगर आपने उनके पोते नील नितिन मुकेश की फ़िल्में देखी हैं तो उनमें कई जगह नील अपने दादा से जुड़ी चीज़ें पहने नज़र आते हैं. नीतिन मुकेश बताते हैं,” सात ख़ून माफ़, डेविड. जॉनी गद्दार में नील ने मुकेश जी की घड़ी और स्टेवर पहने हैं.. बचपन में वो दादी के घर जाता था और मुकेश जी से जुड़ा सारा सामान संजो कर ले आता था और अब फ़िल्मों में पहनता है.

मुकेश ने फ़िल्म कभी कभी में साहिर लुधियानवी का लिखा ये गाना गाया था जो बहुतों को बहुत प्रिय है.- कल कोई मुझको याद करे, क्यूँ कोई मुझको याद करे, मसरूफ ज़माना मेरे लिए क्यूँ वक़्त अपना बर्बाद करे. मैं पल दो पल का शायर हूँ..

क्रिकेट सुपरस्टार महेंद्र सिंह धोनी ने जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से रिटायरमेंट ली थी तो सोशल मीडिया पर बस एक वीडियो डाल दिया था जिसमें उनके करियर की तमाम तस्वीरें थीं और बैकग्राउंड में मुकेश का गाना था – मैं पल दो पल का शायर हूँ.

मुकेश ने मैं पल दो पल का शायर हूँ गीत भले ही 47 साल पहले गाया हो लेकिन आज के दौर में भी मुकेश की मकबूलियत गवाही देती है कि वो पल दो पल के कलाकार नहीं थे. ये मसरूफ़ ज़माना मुकेश के जाने के बाद भी उन्हें याद करने के बीसियों बहाने ढूँढ ही लेता है.

कभी उदासी में, कभी मोहब्बत में, कभी मस्ती में, तो कभी ज़िंदगी के फ़लसफ़े समझाते हुए मुकेश जीवन के किसी रास्ते पर आपको मिल ही जाएँगे.

मानो आपको याद दिला रहे हों –‘किसी की मुस्कुराहटों पे निसार,किसी का दर्द हो सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है.’

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