फ्रांस के इन इलाक़ों में बार-बार क्यों भड़क उठती है हिंसा?

Hindi International

DMT : फ्रांस  : (05 जुलाई 2023) : –

फ्रांस के उपनगरीय इलाकों पर मीडिया का ध्यान तभी जाता है जब वो आग की लपटों से घिरे हों. देश में भड़की हिंसा की मौजूदा आग भी इसका अपवाद नहीं है.

फ्रांस में कई शहर हिंसा की आग में घिरे रहे. ये हिंसा 17 साल के किशोर नाहेल एम की पुलिस की गोली से हुई मौत के बाद भड़की .

पिछले मंगलवार को एक ट्रैफिक लाइट पर कार न रोकने पर पुलिस ने गोली चलाई और नाहेल की मौत हो गई. ये वारदात पेरिस के नजदीकी इलाके नानतेरे में हुई.

अब इस त्रासदी की वजह से एक बार फिर ‘बेनेल्यू’ चर्चा के केंद्र में है. बेनेल्यू मतलब फ्रांस के उपनगरीय इलाके. पूरे देश में ये इलाके एक बार फिर हिंसा की आग में जल उठे.

कुछ लोगों की निगाह में ये हिंसा गरीबी और भेदभाव का नतीजा है.

फ्रांसीसी समाज में मौजूद सामाजिक बुराइयों की वजह से इस तरह के इलाके जब-तब हिंसा की लपटों से घिर जाते हैं.

लेकिन कुछ लोग इस राय से इत्तेफाक नहीं रखते है. वो दंगों को आम तौर पर कानून-व्यवस्था का सवाल मानते हैं.

उनकी राय में फ्रांस में अपराधियों के गैंग और छोटे अपराधी एक त्रासद मौत पर भड़के गुस्से को मार-काट मचाने के बहाने के तौर पर इस्तेमाल करते रहे.

1. उपनगरीय इलाके के लोग और उनकी परेशानियां

आपका नज़रिया भले कुछ भी हो. लेकिन फ्रांस के उपनगरीय इलाके और उनकी दिक्कतों के बारे में यहां के कर्ताधर्ताओं को पता है. हालांकि ये समस्याएं इतनी जल्दी खत्म नहीं होने वाली हैं.

1977 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री रेमंड बा ने लोगों के लिए ऐसे इलाके विकसित करने की योजना शुरू की ताकि ये वैसी बस्तियां न बन जाएं, जिन्हें लोग ‘घेटो’ कहते हैं.

समय के साथ शहरों के लिए नीतियां बनी. जिनमें मकान, शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और संस्कृति को बढ़ावा देने जैसी बातें मौजूद थीं.

सरकार चाहती थी कि ये इलाके देश के दूसरे इलाकों से पिछड़ न जाएं.

इस मकसद को पूरा करने के लिए कई सरकारी विभाग बनाए गए.

शहरों के लिए राष्ट्रीय परिषद और शहरों में सामाजिक विकास के लिए अंतर मंत्रालय आयोग, शहरी पुनर्निर्माण के लिए राष्ट्रीय एजेंसी जैसे महकमे बने.

पिछले 20 साल में फ्रांस के कई उपनगरीय इलाकों में हाउसिंग ब्लॉक के पुनर्निर्माण और नए घर बनाने में 60 अरब यूरो खर्च किए गए हैं.

उपनगरीय इलाकों में इन्फ्रास्ट्रक्चर और दूसरी सुविधाओं के विकास के लिए भी काफी खर्च किया गया है.

लेकिन सरकार की इन कोशिशों के नतीजे बहुत असरदार नहीं रहे हैं. यहां परेशानियां बरक़रार हैं.

2. बेरोजगारी, ड्रग्स और भेदभाव

देश के शहरों के गरीब इलाके कम से कम 50 लाख लोगों का ठिकाना बने हुए हैं. इनमें से कई लोग तीन या चार पीढ़ी पहले फ्रांस आए थे.

थिंक टैंक इंस्टीट्यूट मॉन्टेन के मुताबिक़ इन इलाकों में रहने वाले 57 फीसदी बच्चे उन समुदायों से आते हैं जो गरीबी में रहते हैं.

जबकि बाकी फ्रांसीसी आबादी में 21 फीसदी बच्चे ही गरीब बैकग्राउंड से आते हैं.

गरीब इलाकों के बच्चों में इन इलाकों की तुलना में तीन गुना ज्यादा बेरोजगारी है.

इन इलाकों को परिवहन व्यवस्था से जोड़ने के लिए अरबों डॉलर खर्च करने के बाद भी यहां के निवासियों की सबसे बड़ी शिकायत है कि वे अलग-थलग पड़े हुए हैं.

नई सार्वजनिक इमारतें बढ़ी हैं. लेकिन फ्रेंच समाजशास्त्री क्रिश्चियन मोहाना का कहना है कि सार्वजनिक सेवाओं के लिए खर्चों में कटौती का बड़ा ही घातक असर हुआ है.

उन्होंने बीबीसी से कहा,’’ हालात ऐसे हैं कि ऐसे लोगों के लिए स्कूलों को ज़िंदगी बेहतर करने का जरिया नहीं माना जा रहा है. बेरोजगारी, ड्रग्स और भेदभाव बरकरार है.’’

पुलिस से इन लोगों का संबंध भी एक बड़ी समस्या है. प्रवासी मूल के लोग अक्सर ये शिकायत करते हैं कि पुलिस अफसर भेदभाव करते हैं.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विभाग ने कहा है फ्रांस के मौजूदा दंगों को देश में कानून लागू करने वाली एजेंसियों के अंदर नस्लवाद से जुड़ी समस्याओं को खत्म करने का अवसर के तौर पर देखा जा सकता है.

3. हिंसा और टकराव का इतिहास

कुछ लोगों ने उन इलाकों में पुलिस की चुनौतियों की बात की है, जहां काफी ज्यादा अपराध होते हैं.

2012 से लेकर 2020 के बीच सुरक्षा बलों के 36 लोग ऐसे इलाकों में मारे गए हैं.

हर साल अपराधियों से टकराव में पांच हजार सुरक्षाकर्मी घायल होते हैं. मौजूदा दंगों के दौरान बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी घायल हुए हैं.

नाहेल एम की मौत कोई इकलौती घटना नहीं है. पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक़ पिछले साल ड्राइविंग करने के दौरान पुलिस के रोके जाने से इनकार करने पर 13 लोगों को मार डाला गया था.

फ्रांस के समाज में जो तनाव खदबदा रहा है उससे हिंसा की स्थितियां बन रही हैं. हर मौत से हिंसा का विस्फोट होता है और फिर पुलिस इसका जवाब देती है.

इससे पुलिस और लोगों के बीच अविश्वास की खाई और चौड़ी होती जा रही है.

फ्रांस के उपनगरीय इलाकों में हिंसा की पहली घटना 1979 में हुई थी. लियोन के एक गरीब उपनगरीय इलाके वॉल-एन-वेलिन में कार चोरी के आरोप में पकड़े गए एक किशोर ने अपने हाथ की नसें काट ली थीं.

दो साल बाद कार चोरी के ही एक मामले को सुलझाने की कोशिश में नजदीकी वेनिसिये इलाके में दंगे भड़क उठे थे.

1990 और 1993 में इन इलाकों में दो युवकों की मौत के बाद भी ऐसी हिंसा हुई थी.

4. उपनगरों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश

अभी तक की सबसे बड़ी हिंसा 2005 में हुई थी. दो किशोर पुलिस से छिपने के चक्कर में पेरिस के नजदीक एक इलेक्ट्रिक सब-स्टेशन में मारे गए थे.

इसके बाद पूरे देश के उपनगरीय इलाकों में हिंसा भड़क उठीं. कारें जला दी गईं. दुकानें लूट ली गईं और पुलिस पर हमले हुए.

उस समय सरकार को तीन हफ्ते तक इमरजेंसी लगानी पड़ी थी. इसके बाद फ्रांस के उपनगरीय इलाकों में जब-तब हिंसा भड़कती रही है.

हाल में भड़की हिंसा में भी उपद्रवियों ने टाउन हॉल, पुलिस थानों और स्कूलों को निशाना बनाया. यानी हर वो चीज सरकार से जुड़ी हो, उनके निशाने पर रही.

ये निष्कर्ष निकालना आसान हो सकता है कि उपनगरीय इलाकों को सामाजिक और आर्थिक मुख्यधारा में लाने के लिए दशकों से कोशिश चल रही हैं और इन पर काफी पैसा खर्च किया गया है.

अगर आप इंटरनेट पर ऐसी स्टोरी खोजेंगे तो ऐसी शिकायतों का अंबार मिलेगा कि ये योजनाएं किस तरह से अपने लक्ष्य हासिल करने में नाकाम रही हैं. किस तरह से इनमें निरंतरता की कमी है.

फ्रांस के सरकारी ऑडिटिंग निकाय ने 2020 में बताया कि हर साल दस अरब यूरो खर्च करने के बाद भी ये उपनगरीय इलाके गरीबी, असुरक्षा और सुविधाओं की कमी से घिरे हैं.

लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि इन इलाकों पर खर्च की गई रकम बेकार गई है या फिर सरकार की नीतियां नाकाम रही हैं.

5. हालात सुधरे लेकिन बहुत कुछ करना बाकी

फ्रांस में आंकड़े जारी करने वाले संगठन इनसी ने हाल ही में प्रवासियों के सामाजिक सीढ़ी चढ़ने से जुड़ी रिपोर्ट पेश की है.

रिपोर्ट में कहा है कि इन इलाकों में स्नातक लोगों की संख्या आम इलाकों के लोगों के बराबर पहुंच गई है.

जिन विदेशी मूल के लोगों के पिता के पास बेहतर कौशल थे उनमें से एक तिहाई लोग मैनेजरों के तौर पर काम कर रहे हैं. जबकि मूल निवासियों में ये आंकड़ा सिर्फ 27 फीसदी ही है.

हां ये सही है कि प्रवासियों और उनके वंशजों को अवसरों की कमी, भेदभाव और दूसरी अड़चनों का सामना करना पड़ता है.

लेकिन ये भी सच है कि कई लोग इन उपनगरीय इलाकों से निकल गए हैं. हालांकि अभी भी बड़ी तादाद में लोग इन गरीब उपनगरीय इलाकों में वर्षों से फंसे हुए हैं.

इन लोगों की समृद्धि निश्चित तौर पर फ्रांस के शहरों में रह रहे लोगों से कम रहेगी. गरीबी, बेरोजगारी और हिंसा भी इन उपनगरीय इलाकों में ज्यादा रहेगी. दूसरे फ्रांसीसी लोगों की तुलना में इन लोगों का कानूनी एजेंसियों से सामना भी दोगुना-तिगुना हो सकता है.

लेकिन ऐसी किसी हिंसा की अगली लहर से पहले वो गरीबी, बेरोजगारी और हिंसा से भरे ऐसे इलाकों से निकल जाने की उम्मीद तो बनाए रख ही सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *