वागनर ग्रुप की बग़ावत से पैदा हुए हालात से क्या पुतिन उबर पाएंगे?

Hindi New Delhi

DMT : नई दिल्ली : (25 जून 2023) : –

प्राइवेट मिलिट्री कॉन्ट्रेक्टर वागनर समूह के बग़ावत से पीछे हटने के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सत्ता के लिए पैदा हुआ ख़तरा टल गया है.

वागनर के प्रमुख येवगेनी प्रिगोज़िन ने शनिवार देर रात मॉस्को की तरफ़ कूच करने का अपना फ़ैसला वापस ले लिया और रूस के दक्षिणी शहर रोस्तोव-ऑन-डोन शहर से उनके लड़ाके पीछे हट गए. प्रिगोज़िन अब बेलारूस जाएंगे और रूस उन पर कोई मुक़दमा नहीं चलाएगा.

लेकिन बीते एक दिन के नाटकीय, अप्रत्याशित और तेज़ी से बदले घटनाक्रम ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

क्या पुतिन इस संकट से मज़बूती होकर उबर पाएंगे?

बीबीसी रूसी सेवा के संपादक स्टीव रोज़नबर्ग का विश्लेषण

ये हैरान करने वाले 24 घंटे थे. बीते दो दशक से रूस पर मज़बूती से शासन कर रहे पुतिन के सामने आई ये अब तक की सबसे बड़ी चुनौती थी.

क्रेमलिन और वागनर ग्रुप के बीच समझौते के बाद बग़ावत अब ख़त्म हो गई है. वागनर के लड़ाके अपने सैन्य अड्डों पर लौट सकते हैं और उन पर मुक़दमे नहीं चलाये जाएंगे. लेकिन उनके नेता येवगेनी प्रिगोज़िन को रूस छोड़कर बेलारूस जाना होगा.

लेकिन अगर बात राष्ट्रपति पुतिन करें तो वो इस घटनाक्रम से मज़बूत होकर उभरते नहीं दिख रहे हैं.

रोस्तोव में क्या हुआ? भाड़े के लड़ाकों की सेना ने शहर में स्थित सैन्य ठिकानों पर बिना किसी ख़ास मुश्किल के क़ब्ज़ा कर लिया और फिर वो उत्तर में मॉस्को की तरफ़ कूच भी कर गए.

और इस घटनाक्रम के रणनीतिकार प्रिगोज़िन अभी भी एक आज़ाद व्यक्ति हैं. जबकि उन्होंने रूस के सैन्य नेतृत्व को उखाड़ फेंक देने की कोशिश की. उनके ख़िलाफ़ लगे सैन्य बग़ावत के आरोप रद्द कर दिए गए हैं.

वागनर समूह की बग़ावत पुतिन के लिए एक निर्णायक और बेहद ख़तरनाक पल था.

जब कोई इतने लंबे समय से सत्ता में होता है तो उसे लगता है कि वो अजेय है, वो हर परिस्थिति का सामना कर सकता है.

16 महीने पहले व्लादिमीर पुतिन ने ‘यूक्रेन में विशेष सैन्य अभियान’ शुरू किया था जिसका मक़सद ‘रूस को सुरक्षित’ करना था.

लेकिन हाल के महीनों में क्रेमलिन पर ड्रोन हमले हो चुके हैं, पश्चिमी रूस पर बमबारी हो चुकी है और अब हथियारबंद लड़ाकों ने रूस की राजधानी मॉस्को की तरफ़ कूच कर दिया.

पीछे हटने का फ़ैसला करने से पहले ये लड़ाके रूस के रक्षा मंत्री को पद से हटाने की मांग कर रहे थे.

रूस में परिस्थितियां अस्थिर क्यों हैं?

वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ़ द स्टडी ऑफ़ वॉर के मुताबिक़ येवगेनी प्रिगोज़िन का विद्रोह तो ख़त्म हो गया है लेकिन रूस के सामने अब बेहद अस्थिर परिस्थिति है.

थिंक टैंक के विश्लेषकों के मुताबिक नाकाम बग़ावत और आनन-फ़ानन में निकाले गए समाधान से भले ये संकट टलता हुआ दिखा हो लेकिन दीर्घकालिक रूस से इसने पुतिन की सरकार और यूक्रेन युद्ध में रूस के सैन्य अभियान को भारी नुक़सान पहुंचाया है.

विश्लेषकों ने कहा है, “इस बग़ावत ने रूसी सैन्यबलों की कमज़ोरी को उजागर कर दिया है और अंदरूनी ख़तरे से निबटने में पुतिन के अपने सैन्य बलों के सही से इस्तेमाल करने की अक्षमता को भी ज़ाहिर कर दिया है. इससे सैन्य बल पर उनका एकाधिकार कम होता दिखा है.”

विश्लेषकों के मुताबिक़ रोस्तोव के कुछ इलाक़ों में वागनर समूह के लड़ाकों का अभिवादन भी किया गया.

येवगेनी प्रिगोज़िन भले ही बग़ावत से पीछे हट गए हों लेकिन पिछले 24 घंटों के घटनाक्रम ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ उनके रिश्तों को हमेशा के लिए बदल दिया है.

कैटरिंग क्षेत्र में अपने काम की वजह से एक समय प्रिगोज़िन को पुतिन का शेफ़ कहा जाता था. प्रिगोज़िन और उनकी भाड़े के सैनिकों की फ़ौज ने पिछले कुछ सालों में रूस की विदेश नीति में, छुपकर ही सही, अहम भूमिका निभाई है.

पुतिन ने वागनर समूह के ज़रिए इस तरह से दख़ल दी, जो करने में वो या तो झिझकते रहे था या जैसा करते हुए वो सार्वजनिक रूप से नहीं दिखना चाहते थे.

सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद की मदद से लेकर 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में दख़ल के लिए बोट फ़ार्म संचालित करने तक, वागनर समूह दुनिया के समस्याग्रस्त क्षेत्रों में पुतिन के लिए अहम भूमिका निभाते रहा है.

वागनर समूह का सर्वाधिक असर अफ़्रीका में रहा है. उदाहरण के तौर पर माली में जहां 2020 और 2021 के सैन्य तख़्तापलट के बाद सैन्य सरकार सत्ता में आई. यहां वागनर समूह के लड़ाकों ने इस्लामी विद्रोहियों के ख़िलाफ़ लंबी लड़ाई लड़ी. हालांकि ये माना जाता है कि यहां वागनर के लड़ाके रूस की सेना के इशारे पर हैं.

माना जाता है कि सेंट्रल अफ़्रीकन रिपब्लिक (सीएआर) में वागनर समूह राजधानी की सुरक्षा में सरकार की मदद कर रहा है. यहां वागनर के लड़ाकों पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं.

ऐसा लग रहा है कि अब वागनर समूह रूस की सरकार के निशाने पर आ सकता है. सवाल ये है कि इन हालात में अफ़्रीका और दूसरे देशों में मौजूद वागनर के लड़ाकों और जिन सरकारों का वो समर्थन कर रहे हैं उनका क्या होगा?

ऐसा भी माना जाता है कि इस समूह के नियंत्रण में कई खनिज संसाधन भी हैं, ये वागनर समूह की अधिकतर दौलत का स्रोत भी हैं.

क्या प्रिगोज़िन इन खनिज क्षेत्रों पर भी अपना प्रभाव बरक़रार रख पाएंगे, ख़ासकर पुतिन से रिश्ते ख़राब होने के बाद?

पैसा? संभवतः, हालांकि मुझे लगता है कि उनके पास बहुत अधिक पैसा है. निश्चित रूप से कल उनके ठिकाने पर तलाशी के दौरान बहुत ज़्यादा पैसा मिला है.

और उन्हें उनकी सुरक्षा और भविष्य में भूमिका के लिए क्या भरोसा दिया गया है?

वागनर समूह के प्रमुख प्रिगोज़िन लंबे समय से पुतिन के लिए बेहद अहम व्यक्ति रहे हैं और उनके साये में रहकर काम करते रहे हैं.

सीरिया में लड़ाई हो या फिर 2014 में यूक्रेन से क्राइमिया छीनना, प्रिगोज़िन पुतिन के रूस के लिए ‘गंदा काम’ करते रहे हैं.

ये जानना दिलचस्प होगा कि बेलारूस जाने के लिए उनके साथ क्या समझौता हुआ है.

लेकिन कम से कम मैं ये नहीं मानती की वो शांति से रिटायर हो जाएंगे. लेकिन अभी ये भी स्पष्ट नहीं है कि प्रिगोज़िन आगे क्या करेंगे.

वो कम से कम ऐसे व्यक्ति तो नहीं हैं जो चुपचाप गुमनामी के अंधेरे में खो जाएं.

पुतिन और प्रिगोज़िन के बीच क्या समझौता हुआ?

हमें पता है कि पूरा दिन चली वार्ता के बाद प्रिगोज़िन पीछे हटने को तैयार हो गए. ये वार्ता पुतिन के सहयोगी और बेलारूस के नेता एलेक्सेंडर लूकाशेंको ने की.

इस समझौते के तहत प्रिगोज़िन बेलारूस जाएंगे और रूस में उन पर और उनके लड़ाकों पर मुक़दमे नहीं चलेंगे.

लूकाशेंको के प्रवक्ता के मुताबिक ये वार्ता पुतिन की सहमति से हुई.

समझौते के तहत रूस ने वागनर के लड़ाकों को सुरक्षा का भरोसा भी दिया है.

इसके अलावा और क्या प्रस्ताव उन्हें दिए गये हैं ये अभी स्पष्ट नहीं हैं.

रूस यूक्रेन पर हमले के बाद से ही बेलारूस की ज़मीन का इस्तेमाल करता रहा है और अपने सैन्य अभियान के लिए इस पर निर्भर है. इससे एक तरह से बेलारूस की संप्रभुता प्रभावी रूस से समाप्त सी हो गई है.

अगर रूस की सत्ता पर पुतिन की पकड़ कमज़ोर होगी तो बेलारूस में लूकाशेंको भी ख़तरे में आ जाएंगे. बेलारूस अपनी ज़रूरतों के लिए रूस पर बहुत ज़्यादा निर्भर है.

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