संसद के विशेष सत्र की घोषणा के बाद ‘एक देश एक चुनाव’ पर बनी समिति

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DMT : नई दिल्ली : (01 सितंबर 2023) : –

केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर के बीच पाँच दिनों के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया है. संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने इसकी जानकारी दी.

उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर लिखा, “संसद का विशेष सत्र (17वीं लोकसभा का 13वां सत्र और राज्यसभा का 261वां सत्र) 18 से 22 सितंबर को बुलाया गया है.”

हालांकि, संसद के इस विशेष सत्र का एजेंडा क्या होगा, इस बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं बताया गया है.

इस बीच मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में ‘एक देश एक चुनाव’ की संभावना तलाशने के लिए एक समिति गठित की है.

संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी से इस समिति को लेकर पत्रकारों ने शुक्रवार को सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि अभी तो समिति ही बनी है, इसमें इतना घबराने की क्या ज़रूरत है.

प्रह्लाद जोशी ने कहा, ”अभी कमिटी रिपोर्ट तैयार करेगी. इसके बाद इस पर बहस होगी. फिर रिपोर्ट संसद में आएगी और उस पर चर्चा होगी. संसद प्रबुद्ध है और लोग भी समझदार हैं. भारत दुनिया का सबसे बड़ा और पुराना लोकतंत्र है. भारत के लोकतंत्र में नए-नए विषय आएंगे तो चर्चा होगी ही. यह कोई कल से तो लागू नहीं हो जाएगा. संसद के विशेष सत्र में क्या होगा, इस पर दो-तीन दिनों में बता दिया जाएगा. 1967 तक भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ में ही होते थे. इस पर चर्चा तो होनी ही चाहिए.”

कहा जा रहा है कि विशेष सत्र में ‘एक देश एक चुनाव’ बिल को पेश किया जा सकता है.

ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि संभवतः संसद को पुरानी से नई इमारत में शिफ़्ट करने के इरादे से इस विशेष सत्र को बुलाया गया है. कुछ लोगों का ये मानना है कि अचानक से बुलाये गए इस सत्र के दौरान सरकार कोई महत्वपूर्ण बिल को भी पास करवा सकती है.

लेकिन फ़िलहाल ये सब केवल अटकलें हैं. इस बीच तमाम दलों के नेता संसद के विशेष सत्र बुलाए जाने की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं.

पिछले कुछ सालों में प्रधानमंत्री मोदी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के विचार पर ज़ोर देते आए हैं. अब पूर्व राष्ट्रपति कोविंद को ये टास्क सौंपने का फ़ैसला आगामी चुनावों के मद्देनज़र इस विचार पर सरकार की गंभीरता को दिखाता है.

साल 2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद कोविंद ने भी मोदी के विचारों से सहमति दिखाते हुए एक साथ लोकसभा-विधानसभा चुनाव कराए जाने का समर्थन किया था.

साल 2018 में संसद को संबोधित करते हुए कोविंद ने कहा, “बारी-बारी होने वाले चुनावों न सिर्फ़ मानव संसाधन पर बोझ बढ़ता है बल्कि आचार संहिता लागू होने से विकास की प्रक्रिया भी बाधित होती है.”

अब जब मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल ख़त्म होने की ओर है, तब उसके शीर्ष नेतृत्व के बीच एक राय है कि अब वो इस मुद्दे को ज़्यादा लंबा नहीं खींच सकते. और सालों तक इस पर बहस के बाद निर्णायक रूप से आगे बढ़ने की ज़रूरत है.

पार्टी के नेताओं का मानना है कि मोदी की अगुवाई में सत्तारूढ़ बीजेपी हमेशा समर्थन जुटाने के लिए बड़े मुद्दों टिकट बँटवारे पर ध्यान देती है. ऐसे में ये मुद्दा बीजेपी के लिए राजनीतिक तौर पर भी फिट बैठेगा और इससे विपक्ष भी चित हो जाएगा.

मिज़ोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और राजस्थान में इसी साल नवंबर-दिसंबर के बीच विधानसभा चुनाव होने हैं. इसके बाद अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनाव होने हैं.

हालांकि, सरकार के हालिया क़दम ने लोकसभा चुनाव और उसके साथ या बाद में होने वाले कुछ विधानसभा चुनावों को आगे बढ़ाने की संभावना को भी खोल दिया है.

आंध्र प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में लोकसभा चुनावों के साथ ही विधानसभा चुनाव होने हैं.

अचानक विशेष सत्र क्यों?

संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा है कि संसद के विशेष सत्र में पाँच बैठकें होंगी.

उन्होंने कहा कि अमृतकाल के बीच आयोजित होने वाले इस विशेष सत्र के दौरान संसद में सार्थक चर्चा को लेकर वह आशान्वित हैं.

हालांकि, ये चर्चा किस विषय पर होगी उस पर कोई स्पष्टता नहीं है.

माना ये भी जा रहा है कि सरकार शायद महिला आरक्षण बिल जैसे लंबे समय से टलते जा रहे किसी मुद्दे पर विधेयक ला सकती है.

रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि चंद्रयान-3 और अमृत काल के लिए भारत के लक्ष्यों पर इस सत्र के दौरान व्यापक चर्चा होगी.

वहीं, द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से ये कहा गया है कि हो सकता है सरकार इस विशेष सत्र में एक देश एक चुनाव या महिला आरक्षण जैसा कोई बड़ा बिल ले आए. इस रिपोर्ट में भी ये संभावना जताई गई है कि ये विशेष सत्र संसद की नई इमारत में बुलाया जा सकता है.

एनडीटीवी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि संसद के विशेष सत्र की शुरुआत संसद की पुरानी इमारत में हो सकती है और अंत नई इमारत में.

ये पाँच दिनों का सत्र 9-10 सितंबर को दिल्ली में होने जा रही जी-20 शिखर सम्मेलन के ठीक बाद आयोजित हो रहा है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि ऐसे में ये विशेष सत्र सरकार के लिए वैश्विक सम्मेलन आयोजित करने से लेकर चंद्रयान-3 मिशन की सफलता तक, अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी उपलब्धियां गिनाने का मौक़ा होगा.

सरकार की रणनीति को समझने वाले एक सूत्र के हवाले से अख़बार ने लिखा है कि ये विशेष सत्र ‘घरेलू और अंतरराष्ट्रीय राजनीति’ को ध्यान में रखते हुए बुलाया गया है. सूत्र ने कहा, “इस अवसर का इस्तेमाल देश में एक नए युग की शुरुआत करने वाली सरकार की छवि को मज़बूत करने के लिए किया जाएगा.”

कुछ लोगों का ये भी कहना है कि ये विशेष सत्र आज़ादी के पचास साल पूरे होने पर साल 1997 में 26 अगस्त से एक सितंबर के बीच बुलाए गए स्पेशल सेशन की तरह ही हो सकता है.

इसके अलावा, संसद का यह विशेष सत्र आगामी पी-20 शिखर सम्मेलन (जी20 देशों के संसदीय अध्यक्षों की बैठक) के लिए भी रूप रेखा तैयार करेगा.

ये बैठक अक्टूबर में नई दिल्ली में आयोजित होने वाली है. 30 से अधिक देशों के स्पीकर ने इस सम्मेलन में शामिल होने की पहले ही पुष्टि कर दी है.

कब-कब बुलाया गया विशेष सत्र?

मोदी सरकार ने इससे पहले 30 जून 2017 को गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स यानी जीएसटी को लागू करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इससे पहले 26 नवंबर 2015 को बीआर आंबेडकर को श्रद्धांजलि देने के लिए सरकार ने विशेष सत्र बुलाया था. उस साल देश आंबेडकर की 125वीं जयंती मना रहा था. इसी साल से 26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया गया था.

इससे पहले साल 2002 में तत्कालीन बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार ने 26 मार्च को दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में आतंकवाद निरोधक विधेयक पारित कर दिया था, क्योंकि सत्तारूढ़ गठबंधन के पास राज्यसभा में इसे पारित कराने के लिए बहुमत नहीं था.

‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की 50वीं सालगिरह पर नौ अगस्त 1992 को आधी रात संसद का सत्र बुलाया गया था.

विपक्ष ने क्या कहा?

विशेष सत्र बुलाए जाने की विपक्ष के कई नेताओं ने आलोचना की है. विपक्षी पार्टियों ने दावा किया है कि ये एलान मुंबई में चल रही ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक के जवाब में किया गया है.

द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से ये कहा है कि विशेष सत्र का एजेंडा शायद विपक्षी पार्टियों को भी बाँट दें.

बीजेपी नेता ने कहा, “ये एक ऐसा विषय हो सकता है, जिससे विपक्ष बँट जाए. हो सकता है कि कई बड़ी पार्टियां इस विधेयक को ख़ारिज करने की स्थिति में न रहें.”

वहीं एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने ‘द हिंदू’ से कहा कि सरकार विशेष सत्र बुलाकर शीतकालीन सत्र से छुटकारा पाना चाहती है, ताकि पाँच राज्यों में आगामी विधानसभा के चुनावों के साथ ही समय से पहले लोकसभा चुनाव कराने की संभावना तलाशी जा सके.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि सरकार का ये क़दम दिखाता है को वो घबराई हुई है. उन्होंने मुंबई में प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान कहा, “जब भी आप अदानी का मामला उठाते हैं, पीएम बहुत ही असहज और घबरा जाते हैं.”

हालांकि, महाराष्ट्र के नेता इस विशेष सत्र की टाइमिंग पर सवाल खड़े कर रहे हैं.

शिव सेना (उद्धव ठाकरे गुट) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने सत्र का एलान होते ही एक ट्वीट में लिखा, “गणेश चतुर्थी के त्योहार के समय ये विशेष सत्र बुलाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है और हिंदू भावनाओं के विरुद्ध है. इसके लिए चुनी गई तारीख़ों से हैरान हूँ.”

वहीं, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की सुप्रिया सुले ने विशेष सत्र की तारीख़ों को बदलने के लिए कहा.

उन्होंने ट्वीट किया, “हम सब सार्थक चर्चा और वार्ता चाहते हैं. इसकी तारीखें गणपति त्योहार से टकरा रही हैं. इसलिए केंद्रीय संसदीय मंत्री से आग्रह है कि वो इस पर विचार करें.”

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कारोबारी गौतम अदानी पर आई एक नई रिपोर्ट से जोड़ते हुए संसद के विशेष सत्र को इससे ध्यान भटकाने वाला बताया.

उन्होंने ट्वीट किया, “ख़बरों के प्रबंधन का मोदी स्टाइल. आज मोडानी-स्कैम में नई जानकारियां सामने आने पर हर तरफ़ ख़बर थी. कल मुंबई में हो रही इंडिया गठबंधन की पार्टियों की बैठक की ख़बरें छाएंगी. इसको कैसे रोकें? पाँच दिनों के लिए संसद का विशेष सत्र बुला लीजिए, वो भी तब जब मॉनसून सत्र तीन हफ़्ते पहले ही ख़त्म हुआ है.”

विशेष सत्र का समय विपक्षी गुट I.N.D.I.A की तीसरी बैठक के साथ मेल खाता है.

संसद का पिछला (मॉनसून) सत्र 20 जुलाई से शुरू होकर 12 अगस्त को ही ख़त्म हुआ है. इस दौरान सरकार ने कुल 23 विधेयक पास करवाए. इस सत्र में विपक्ष ने मणिपुर हिंसा और दिल्ली में ट्रांसफ़र-पोस्टिंग से जुड़े विधेयक को लेकर सरकार का विरोध किया.

इस दौरान मोदी सरकार के ख़िलाफ़ लाए गए विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर भी तीन दिनों तक चर्चा चली.

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