सऊदी अरब और रूस ने भारत की अध्यक्षता वाली बैठक में सहमति क्यों नहीं बनने दी?

Hindi International

DMT : सऊदी अरब : (25 जुलाई 2023) : –

दुनिया की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले समूह जी-20 की अध्यक्षता इस साल भारत के पास है. भारत के पास जी-20 की कमान तब आई है, जब दुनिया यूक्रेन में रूस के हमले के कारण बुरी तरह से बँटी हुई है.

ऐसे में भारत को जी-20 की किसी भी बैठक में सहमति से कोई बयान या प्रस्ताव पास कराने में नाकामी हाथ लग रही है.

पिछले हफ़्ते गोवा में जी-20 देशों के बैठक में ऐसा ही हुआ. सऊदी अरब ने जीवाश्म ईंधन के सीमित इस्तेमाल को लेकर बैठक में आम सहमति नहीं बनने दी. सऊदी अरब को इसमें रूस का भी साथ मिला. ऐसा तब है जब रूस और सऊदी अरब भारत के बड़े तेल आपूर्तिकर्ता देश हैं.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, सऊदी अरब के नेतृत्व में कई देशों ने जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने के जी-20 देशों के इस क़दम का विरोध किया है.

इस क़दम को भविष्य में तेल, गैस और कोयले की भूमिका को लेकर वैश्विक तनाव का संकेत माना जा रहा है क्योंकि दुनिया जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रही है.

गोवा में हुई बैठक के बाद जी-20 देशों की तरफ़ से एक सारांश दस्तावेज़ जारी किया गया है.

इस दस्तावेज़ में कुछ सदस्य देशों ने विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कटौती करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है जबकि कई देश इसके ख़िलाफ़ थे.

ये देश जीवाश्म ईंधन में कटौती करने के बजाय ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए टेक्नोलॉजी के विकास पर ज़ोर देने की बात कर रहे हैं.

जी-20 की बैठक में साल 2030 तक रिन्यूएबल एनर्जी यानी अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने का प्रस्ताव पेश किया गया था.

सऊदी अरब और रूस समेत प्रमुख जीवाश्म ईंधन उत्पादक देशों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है.

इसके अलावा कार्बन डाइऑक्साइड के सबसे बड़े उत्सर्जक चीन के साथ कोयला निर्यातक दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया है.

वहीं बात अगर भारत की करें तो समाचार एजेंसी रायटर्स के मुताबिक़, भारत ने इस मुद्दे पर अपना रुख़ तटस्थ रखा है.

बैठक में रूस-यूक्रेन युद्ध का भी ज़िक्र हुआ है. बैठक को लेकर जारी किए दस्तावेज में कहा गया है कि यूक्रेन में युद्ध ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर और भी प्रतिकूल प्रभाव डाला है.

रूस ने यूक्रेन में युद्ध को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज़ कराई है और चीन ने विरोध करते हुए कहा कि जी20 सुरक्षा मुद्दों के समाधान के लिए सही मंच नहीं है.

बैठक के बाद केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह की तरफ़ से प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई.

इस दौरान उन्होंने कहा, ”मुझे लगता है कि यह सम्मेलन जी-20 के इतिहास में सबसे सफल सम्मेलनों में से एक था. इसको लेकर हमारी पूरी सहमति थी. जहां तक ​​जी20 का सवाल है, हमारे बीच 29 में से 22 बातों (पैराग्राफ) पर सहमति थी और कुछ बातों को लेकर अहमति भी है.”

जीवाश्म ईंधन को लेकर पूछे गए सवाल पर केंद्रीय मंत्री कहते हैं, ”कुछ देशों ने महसूस किया कि जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीक़े से कम करने के बजाय कार्बन कैप्चर और स्टोरेज के विकल्प भी मौजूद हैं जोकि वैध है. लेकिन, जी20 का बड़ा हिस्सा जीवाश्म ईंधन के बेरोकटोक उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने के पक्ष में था. इसलिए, इस पर कोई सर्वसम्मति नहीं बन पाई.”

सऊदी अरब-रूस को आपत्ति क्यों है?

आपत्ति के सवाल पर मनोहर पर्रिकर इंस्टिट्यूट फोर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनलिसिस में यूरोप एंड यूरेशिया सेंटर की असोसिएट फेलो स्वस्ति राव कहती हैं, ”जब-जब रिन्यूएबल एनर्जी के संसाधनों की तरफ़ बढ़ने को लेकर बात होती है तो ओपेक प्लस समूह के देश सैद्धांतिक तौर पर इसका स्वागत करते हैं लेकिन असल में ये देश पूरी तरह से ऐसी पहल का समर्थन नहीं करते हैं. इसके पीछे की वजह जीवाश्म ईंधन पर इनकी अर्थव्यवस्था की निर्भरता है.”

अंतराष्ट्रीय मामलों के जानकार और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर रहे डॉ. प्रेम आनंद मिश्रा का कहना है कि रूस और सऊदी अरब के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा जीवाश्म ईंधन (तेल और गैस) से आता है इसलिए दोनों देश कड़ी आपत्ति जता रहे हैं.

डॉ. प्रेम आनंद मिश्रा कहते हैं, ”आपत्ति का पहला कारण राजस्व है. दूसरा कारण जलवायु परिवर्तन के लिए वित्तीय मदद देने पर सभी देशों में सर्वसम्मति नहीं है. तीसरा, ऐसे मुद्दों पर एक राजनीतिक लॉबी होती है, जिसका असर सर्वसम्मति पर भी देखने को मिलता है.”

”जीवाश्म ईंधन का मामला सिर्फ़ रूस और सऊदी अरब तक सीमित नहीं है. अगर ट्रंप के समय देखें तो अमेरिकी सरकार भी इसका विरोध करती थी. कई बार उपभोक्ता भी ऐसे फ़ैसलों के ख़िलाफ़ दिखते हैं जैसा अभी चीन और इंडोनेशिया ने किया है.”

क्या ये भारत के लिए झटका है?

स्वस्ति राव सऊदी अरब और रूस के इस क़दम को भारत के लिए झटका नहीं मानती हैं. उनका कहना है कि यह घटना प्रत्याशित थी.

स्वस्ति राव कहती हैं, ”विकसित और विकासशील देशों का कार्बन उत्सर्जन को लेकर एक समान दृष्टिकोण नहीं हो सकता है क्योंकि दोनों की औद्योगिक परिपक्वता अलग-अलग है. विकसित देश कहते हैं कि हमें एक निर्धारित समय में नेट ज़ीरो का लक्ष्य प्राप्त करना है. इसके लिए विकसित देश क्लाइमेट फ़ाइनेंस के तहत विकासशील देशों को 100 अरब डॉलर का फंड देने की बात भी करते हैं. इसके उलट विकासशील देश कहते हैं कि हमारे उद्योग-धंधे अब भी जीवाश्म ईंधन पर निर्भर हैं इसलिए हमारे लिए अचानक से बदलाव कठिन है.”

स्वस्ति राव का कहना है कि ये अकेले इस जी-20 की बात नहीं है, ये समस्या पहले से चली आ रही है.

वहीं डॉ. प्रेम आनंद मिश्रा मानते हैं कि अवधारणा के स्तर पर भारत को इससे नुक़सान होता है.

डॉ. प्रेम आनंद मिश्रा बताते हैं, ”इतने बड़े मंच पर अगर आप किसी अहम मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने में सफल नहीं होते हैं तो अवधारणा के स्तर पर आपको नुकसान होता है लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परिस्थितियां प्रतिकूल हैं तो पूरी तरह से विफलता नहीं मान सकते हैं.”

डॉ. प्रेम आनंद कहते हैं कि अगर ऐसी परिस्थितियों में कोई भी देश जी-20 की बैठक आयोजित करता है उसके सामने भारत जितनी ही मुश्किलें आएंगी.

क्या भारत को बाली समिट की तरह कामयाबी मिल पाएगी?

पूरी दुनिया की निगाहें सितंबर में भारत में होने वाली जी-20 समिट पर रहेंगी.

अब सवाल है कि अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के बीच क्या भारत बाली समिट के बाद कामयाबी की एक और पटकथा लिख पाएगा?

डॉ. प्रेम आनंद मिश्रा इस सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं कि जी-20 समिट की सफलता काफ़ी हद तक वैश्विक परिस्थितयों पर निर्भर करती है.

डॉ. प्रेम आनंद मिश्रा कहते हैं, ”बाली समिट के समय रूस-यूक्रेन युद्ध इतने बड़े स्तर पर नहीं पहुँचा था लेकिन अब स्थितियां काफ़ी बदल चुकी हैं. इसलिए भारत को बाली समिट के स्तर की सफलता मिलने के अवसर कम हुए हैं. सर्वसम्मति नहीं है तो सफलता नहीं है क्योंकि जब तक सर्वसम्मति नहीं होगी घोषणापत्र पर सहमति नहीं बन सकती है. आज हमारे संबंध रूस और अमेरिका दोनों से बहुत अच्छे हैं. इसके वाबजूद उम्मीदों के मुताबिक सर्वसम्मति नहीं बनी तो निश्चित रूप से वैसे कामयाबी नहीं मिलेगी जिसकी हमें आशा है.”

सफलता को लेकर स्वस्ति राव की राय डॉ. प्रेम आनंद मिश्रा से मिलती जुलती है. वो कहती हैं कि आज विश्व स्तर पर जी-20 के लिए जो बाधाएं हैं वो बाली समिट के दौरान नहीं थीं.

स्वस्ति राव कहती हैं, ”बाली समिट के दौरान ईंधन, खाद्य और उत्पादन का इतना बड़ा संकट नहीं था. अभी आप देखिए कि काला सागर अनाज समझौते से रूस बाहर निकल चुका है. इसका असर पूरी दुनिया पर देखने को मिलेगा. भारत ने भी स्थिति को भांपते हुए अपने चावल के आयात पर रोक लगा दी है. ये सारी परिस्थितियां हमें एक जटिल दुनिया की तरफ़ ढकेल रही हैं.”

स्वस्ति राव आख़िर में कहती हैं कि हमें बाली समिट से तुलना करने की बजाय इस बात पर फोकस करना चाहिए कि इन कठिन परिस्थितियों में भारत कैसा प्रदर्शन करता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *