पीएम मोदी ने जो कहा, उस पर श्रीलंका की सत्ताधारी पार्टी का ऐसा रुख़

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DMT : श्रीलंका  : (25 जुलाई 2023) : – बीते सप्ताह जब श्रीलंकाई राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे भारत दौरे पर आए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे तमिलों से जुड़े 13वें संशोधन को लागू करने की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए कहा था.

 अब श्रीलंका की सत्तारूढ़ पार्टी ने इसे ये कहते हुए ख़ारिज कर दिया है कि राष्ट्रपति विक्रमसिंघे के पास 13वां संशोधन लागू करने का अधिकार नहीं है.

आज की प्रेस रिव्यू की लीड में इसी रिपोर्ट को पढ़िए.

श्रीलंका पोदुजना पेरामुना (एसएलपीपी या पीपल्स फ़्रंट) के महासचिव सागर करियावसम ने कहा है कि राष्ट्रपति विक्रमसिंघे जब तक ताज़ा चुनाव करवाकर जीत नहीं जाते तब तक उनके पास 13वां संशोधन लागू करने का कोई ‘मौलिक अधिकार’ नहीं है.

उन्होंने साल 2019 के राष्ट्रपति चुनावों के नतीजों का हवाला देते हुए कहा कि इसमें गोटाबाया राजपक्षे को बड़ी जीत मिली थी.

पिछले साल अपने इतिहास के सबसे गंभीर संकट से जूझते समय श्रीलंका की सत्ता से गोटाबाया और महिंदा राजपक्षे को हटने के लिए मजबूर होना पड़ा था और फिर विक्रमसिंघे ने ये पद संभाला था.

छह बार के पीएम रहे विक्रमसिंघे को मुख्य रूप से 225 सदस्यों वाली संसद में एसएलपीपी का समर्थन हासिल है और पद पर बने रहने के लिए वो इसी पार्टी पर निर्भर हैं.

श्रीलंका का वादा

प्रधानमंत्री मोदी ने रानिल विक्रमसिंघे से मिलने के बाद 21 जुलाई को जारी बयान में कहा, “हम आशा करते हैं कि श्रीलंका की सरकार 13वें संशोधन को लागू करने की अपनी प्रतिबद्धता का पालन करेगी और प्रांतीय परिषद चुनाव करवाएगी.”

दरअसल, भारत और श्रीलंका के रिश्तों में तमिलों का मुद्दा भी काफ़ी अहम रहा है. भारत चाहता है कि श्रीलंका अपने संविधान के 13वें संशोधन का पालन करे. यह संशोधन 1987 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी और तत्कालीन श्रीलंकाई राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने के बीच समझौते के बाद हुआ था.

इसके तहत श्रीलंका के नौ प्रांतों में काउंसिल को सत्ता में साझीदार बनाने की बात है. इसका मक़सद ये था कि श्रीलंका में तमिलों और सिंघलियों का जो संघर्ष है, उसे रोका जा सके. 13वें संशोधन के ज़रिए प्रांतीय परिषद बनाने की बात थी ताकि सत्ता का विकेंद्रीकरण हो सके.

इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, हाउसिंग और भूमि से जुड़े फ़ैसले लेने का अधिकार प्रांतीय परिषद को देने की बात थी. लेकिन इनमें से कई चीज़ें लागू नहीं हो सकीं. भारत चाहता है कि श्रीलंका इसे लागू करे ताकि जाफ़ना में तमिलों को अपने लिए नीतिगत स्तर पर फ़ैसला लेने का अधिकार मिले.

हालांकि, इस संशोधन का श्रीलंका के सिंघली लोग हमेशा विरोध करते रहे हैं, जिसमें सत्ताधारी एसएलपीपी भी शामिल रही है.

इसी महीने एसएलपीपी के एक अन्य सांसद महिंदानंद अलुथगमागे ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान कहा, “13 संशोधन पूरी तरह लागू होगा या नहीं ये हम (एसएलपीपी) तय करेंगे.” परोक्ष रूप से उन्होंने ये कहा कि 13वां संशोधन लागू करने का फ़ैसला राष्ट्रपति नहीं ले सकते.

एसएलपीपी के सांसदों के बयान 13वें संशोधन को लागू करने में सिंघलियों की हिचकिचाहट के साथ ही विक्रमसिंघे के इर्द-गिर्द की राजनीतिक हक़ीकत भी बयां करते हैं.

नई दिल्ली आने से पहले विक्रमसिंघे ने विकास और सत्ता हस्तांतरण के प्रस्ताव के साथ तमिल नेताओं से मुलाक़ात की थी. उन्होंने पुलिस पर नियंत्रण के अलावा 13वें संशोधन को लागू करने का भी प्रस्ताव दिया था. हालांकि श्रीलंका के सबसे बड़े तमिल सांसदों के समूह तमिल नेशनल अलायंस ने इस प्रस्ताव को सिरे से ख़ारिज कर दिया था.

श्रीलंका के अधिकांश तमिलों की राय है कि अगर 13वां संशोधन पूरी तरह लागू कर दिया जाए, तो भी तमिलों के आत्मनिर्णय के अधिकार की ऐतिहासिक मांग का कोई अंतिम समाधान नहीं निकलेगा. पिछली सरकारों ने भी इसको लेकर वादे किए लेकिन बाद में इसे पूरी तरह लागू करने में विफल रही.मध्य प्रदेश में एक आदिवासी शख्स पर पेशाब करने के अभियुक्त को गिराए जाने को लेकर अब बीजेपी के अपने ही विधायक ने सवाल खड़े कर दिए हैं.

कांग्रेस लगातार ये आरोप लगाती रही है कि पेशाब कांड के अभियुक्त प्रवेश शुक्ला सीधी विधायक के प्रतिनिधि रहे हैं.

हालांकि इस आरोप को खारिज करते हुए शुक्ला ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “वो घर उनके (प्रवेश शुक्ला) के पूर्वजों की संपत्ति थी. वो उनके दादा के समय से परिवार का घर था. प्रशासन को इसे नहीं गिराना चाहिए थे. कोई भी अभियुक्त क्यों न हो, उनके परिवार को सज़ा नहीं देनी चाहिए.”

प्रवेश शुक्ला के दशमत रावत नाम के शख्स पर पेशाब करने का वीडियो सामने आने के बाद मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार ने तेज़ी से कार्रवाई की थी.

मध्य प्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं.

मामला सामने आने के बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दशमत रावत से मुलाकात की थी और उनके पैर धोए थे. शिवराज सिंह चौहान ने सार्वजनिक तौर पर माफ़ी भी मांगी थी.

वहीं प्रशासन ने प्रवेश शुक्ला के घर के कुछ अवैध हिस्से को ढहा दिया था. प्रवेश शुक्ला को सख्त राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत गिरफ़्तार किया गया था.

हालांकि, अन्य अपराधों के अभियुक्तों के घरों पर बुलडोज़र भेजने को केदारनाथ शुक्ला गलत नहीं मानते हैं.

उन्होंने कहा, “मैं बुलडोज़र कार्रवाई का समर्थन करता हूं. ये उन लोगों के ख़िलाफ़ होनी चाहिए जो अवैध संपत्ति बनाते हैं या फिर सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे हैं. पूरी जाँच के बाद, ये (बुलडोज़र कार्रवाई) होना चाहिए.”

मणिपुर में जारी हिंसा के बीच कई दिल दहला देने वाली कहानियां सामने आ रही हैं.

‘द टेलीग्राफ़’ अख़बार ने ऐसी ही एक घटना के बारे में विस्तार से बताया है.

अख़बार के अनुसार 21 साल के हंगलालमुआन को मणिपुर पुलिस ने एक फ़ेसबुक पोस्ट शेयर करने के लिए पकड़ा.

लेकिन इसके बाद भीड़ ने इस युवक को पुलिस की गिरफ़्त से छीना और पीट-पीटकर मार दिया.

युवक के परिजनों ने द टेलीग्राफ़ से इस बारे में बात की है.

हंगलालमुआन के पिता दिहाड़ी मज़दूर हैं. युवक को 30 अप्रैल की रात चूराचांदपुर ज़िले के थिंगकानपई गांव से पुलिस ने पकड़ा था.

हालांकि, अपने घर से 60 किलोमीटर दूर इंफ़ाल की सड़कों पर चार मई को भीड़ ने युवक की पीट-पीटकर हत्या कर दी.

युवक के पिता ने अख़बार से कहा, “पुलिस ने हमसे कोई संपर्क नहीं किया. हमें किसी सरकारी एजेंसी ने भी कुछ नहीं बताया. पुलिस और सरकारी एजेंसियां इस हत्या को लेकर क्या कर रही है, इस बारे में हमें कुछ भी नहीं पता.”

युवक का शव भी अभी तक परिवार को नहीं मिल सका है.

वहीं परिवार की मदद कर रहे एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने अख़बार को बताया, “उसकी (युवक) गिरफ़्तारी अवैध थी क्योंकि पुलिस ने कार्रवाई करते हुए नियमों का पालन नहीं किया. पुलिस ने युवक के ख़िलाफ़ स्वतः संज्ञान लेते हुए शिकायत दर्ज की थी और उसकी कैद को बढ़ाने के मकसद से तीन दिन तक हिरासत में रखने के बाद युवक पर एक और एफ़आईआर दर्ज की गई. इसके बाद यही पुलिस इस युवक को भीड़ से बचाने में नाकामयाब रही और युवक को मार दिया गया.”

पुलिस अधिकारी ने अख़बार को बताया है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने युवक के परिवार की ओर से दी गई शिकायत पर संज्ञान लेते हुए ज़िला मैजिस्ट्रेट और इंफ़ाल वेस्ट के एसपी को छह सप्ताह के भीतर सभी संबंधित दस्तावेज़ पेश करने को कहा है. ये निर्देश आयोग के सचिव ने एक जून को दिया था.

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