सिक्किम में अचानक आई बाढ़: अब भी 100 से ज़्यादा लापता, भयंकर तबाही की क्या है वजह?

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DMT : सिक्किम : (05 अक्टूबर 2023) : –

सिक्किम की तीस्ता नदी में मंगलवार और बुधवार की दरम्यानी रात अचानक बाढ़ आने की वजह से अब 22 सैनिकों समेत 100 से ज़्यादा लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, अब तक इस हादसे की वजह से 14 लोगों की मौत हो चुकी है.

सिक्किम में इस हादसे की वजह से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या बाइस हज़ार से ज़्यादा बताई जा रही है.

भारतीय एजेंसियां जहां एक ओर इन तमाम लोगों को बचाने के लिए युद्ध स्तर पर बचाव अभियान चला रही है.

इस हादसे की ख़बरें बुधवार सुबह लगभग नौ बजे आना शुरू हुईं. शुरुआती ख़बरें आने के कुछ देर बाद समाचार एजेंसियों ने हादसे से जुड़े वीडियो और तस्वीरें जारी कीं.

इन तस्वीरें और वीडियोज़ में दिखाई दिया कि तेजी से आई इस बाढ़ ने किस तरह सिक्किम के तमाम ज़िलों में सड़कों और पुलों को ताश के पत्तों की तरह बिखेर दिया.

सिक्किम के प्रमुख सचिव विजय भूषण पाठक ने पीटीआई को बताया है कि इस बाढ़ में नामची, गंगटोक, पाकयोंग और मंगन ज़िले में स्थित पुल बह गए हैं जो अग्रिम इलाकों को सिक्किम से जोड़ते थे.

इस बाढ़ में सिक्किम के 11 पुल तबाह हुए हैं जिनमें से आठ पुल मंगन ज़िले में स्थित हैं. दो पुल नामची और गंगटोक में मौजूद थे.

इसके साथ ही सिक्किम में वॉटर पाइप लाइन, सीवेज़ लाइन समेत 277 घर तबाह हो गए हैं.

सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुताबिक़, इस हादसे से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या बाइस हज़ार से ज़्यादा है. इनमें से अब तक 2,011 लोगों को बचाया जा सका है.

राज्य सरकार ने हादसे से प्रभावित चार ज़िलों में राहत शिविर लगाए हैं. वहीं, गंगटोक ज़िले में बनाए गए राहत शिविर में 1,025 लोगों ने शरण ली हुई है.

सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने सबसे ज़्यादा प्रभावित सिंगटाम इलाक़े का दौरा करके हालात का जायजा लिया है.

सिक्किम की तीस्ता नदी में बाढ़ आने के लिए लोनक नामक पर्वतीय झील में अचानक हुए बदलाव को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है.

अब तक जो कुछ पता चला है, उसके मुताबिक़ इस हादसे से ठीक पहले झील में मौजूद जलराशि में बढ़ोतरी हुई जिसके बाद पानी की एक भारी मात्रा झील से बाहर निकल गयी.

इस भारी जलराशि ने सिक्किम का चंगथांग बाँध तोड़ दिया जो सिक्किम की सबसे बड़ी हाइड्रोपॉवर परियोजना है.

ये तीस्ता स्टेज़ थ्री 1200 मेगावॉट हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजना का हिस्सा है जिसमें सिक्किम सरकार एक बड़ी हिस्सेदार है.

हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर की ओर से जारी की गई सेटेलाइट तस्वीरों में नज़र आया है कि 17 सितंबर को ली गई तस्वीरों से तुलना करने पर पता चला है कि झील के आकार में 100 हेक्टेयर की कमी हो गई है.

केंद्रीय जल आयोग के एक शीर्ष अधिकारी ने पीटीआई को बताया है कि लगभग 168 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली ये विशाल पर्वतीय झील पहले से जोखिम भरी स्थिति में थी. अब इसका क्षेत्र 60 हेक्टेयर रह गया है जिससे संकेत मिलता है कि लगभग 100 हेक्टेयर में मौजूद पानी झील से बाहर चला गया है.

इस अधिकारी ने ये भी बताया है कि फिलहाल इस झील के फटने की वजह निश्चित करना मुश्किल है लेकिन बादल फटने की वजह से इस तरह के हालात पैदा नहीं होते.

वहीं, इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डिवेलपमेंट नामक संस्था से जुड़े शीर्ष जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ अरुण बी श्रेष्ठ ने पीटीआई को बताया कि अब तक इस हादसे से जुड़ी जानकारी टुकड़ों में सामने आ रही है.

उनका कहना है कि ‘ऐसा लगता है कि बंगाल की खाड़ी में कम दबाव का क्षेत्र बनने की वजह से हुई तेज बारिश ने इस हादसे को जन्म दिया है.’

उन्होंने बताया है कि उनके संस्थान ने इस क्षेत्र में पिछले 24 घंटों में 100 मिमी से ज्यादा बारिश दर्ज की है.

इसी संस्थान से जुड़े क्रायोस्फ़ियर विशेषज्ञ मिरियम जैक्सन ने पीटीआई को बताया है कि ‘तेज बारिश के चलते सिक्किम में इतने भयावह हालात पैदा हुए हैं. इस बारिश की वजह से ग्लेशियर झील फट गयी और उससे निकले पानी ने बांध क्षतिग्रस्त कर दिया. हम ये देख रहे हैं कि इस तरह की बड़ी घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि हो रही है. क्योंकि जलवायु गर्म होती जा रही है. और ये हमें एक ऐसे दौर में ले जा रहा है जिसके बारे में हमें कुछ भी नहीं पता है.’

नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर के मुताबिक़, सिक्किम में 733 ग्लेशियर झीलें हैं जिनमें से 288 झीलें 5,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं.

दक्षिण एशिया नेटवर्क ऑफ़ डेम्स, रिवर्स एंड पीपुल के मुताबिक़, लोनक एक ग्लेशियल मोरेन झील है जो सिक्किम के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में स्थित है.

ये सिक्किम के हिमालय क्षेत्र में तेजी से बड़ी होती हुई झीलों में शामिल है.

इस क्षेत्र की 14 झीलों पर ग्लोफ़ यानी अचानक झील में पानी बढ़ने की वजह से बाढ़ आने का ख़तरा मंडरा रहा है.

ये झील 5,200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. इस झील का निर्माण लोनक ग्लेशियर के पिघलने की वजह से हुआ है. ये झील असामान्य ढंग से बढ़ रही है.

इसकी वजह झील से सटे लोनक ग्लेशियर के अलग-अलग हिस्सों का पिघलना और उसका पानी झील में जमा होना है.

ग्लेशियर और उनसे झीले कैसे बनती हैं?

ग्लेशियर बर्फ़ का बहुत बड़ा हिस्सा होता है जिसे हिमखंड भी कहते हैं. ये अक्सर नदी की तरह दिखते हैं और बहुत धीमी गति से बहते रहते हैं.

ग्लेशियरों के बनने में कई साल लगते हैं.

ये ऐसी जगहों पर बनते हैं जहाँ बर्फ़ गिरती है मगर गल नहीं पाती. ये बर्फ़ धीरे-धीरे ठोस होती जाती है. भार की वजह से ये आगे जाकर पहाड़ों से खिसकने लगती है.

कुछ ग्लेशियर छोटे होते हैं जैसे फुटबॉल के एक मैदान जैसे. पर कुछ बहुत बड़े हो जाते हैं और दर्जनों किलोमीटर से लेकर सैकड़ों किलोमीटर लंबे हो जाते हैं.

अमेरिका स्थिति नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर के मुताबिक़ अभी दुनिया के कुल भूमि क्षेत्र के 10 फ़ीसदी हिस्सों पर ग्लेशियर हैं.

माना जाता है कि ये ग्लेशियर आखिरी आइस एज के बचे अवशेष हैं जब धरती की कुल भूमि का 32 फ़ीसदी और समुद्र का 30 फ़ीसदी हिस्सा बर्फ़ से ढका था.

इन ग्लेशियरों के पिघलने की वजह से ही पर्वतीय क्षेत्रों में झीलों का जन्म होता है.

ग्लेशियरों के पिघलने की रफ़्तार बढ़ने की वजह से इन झीलों के फैलने की दर भी तेजी से बढ़ती है.

बादल फटने या भूकंप आने की स्थिति में पर्वतीय क्षेत्रों में बनी इन झीलों में मौजूद जलराशि में तेजी से बदलाव होता है.

इसके बाद पानी तेज बहाव के साथ ऊंचाई से नीचे आते हुए अपने साथ तबाही लेकर आता है.

सिक्किम में आई बाढ़ के मामले में भी विशेषज्ञों का एक वर्ग मान रहा है कि इस हादसे के लिए झील का आकार बड़ा होना और मंगलवार को नेपाल में भूकंप आना एक वजह हो सकती है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, हादसे के बाद घटनास्थल पर पहुंचे कुछ विशेषज्ञ इस पहलू को भी ध्यान में रख रहे हैं.

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