मालदीव से भारत को मोहम्मद मुइज़्ज़ू क्या वाक़ई ‘आउट’ कर देंगे?

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DMT : मालदीव  : (05 अक्टूबर 2023) : –

मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह को हराने के बाद पिछले 72 घंटों में दो अहम फ़ैसले लिए हैं.

पहले फ़ैसले में अपने गठबंधन के साथी और चीन समर्थक पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को जेल से निकाल राजधानी माले में हाउस अरेस्ट करा दिया. दूसरे फ़ैसले में उन्होंने कहा है कि मालदीव की ज़मीन से सभी विदेशी सैनिकों को वापस भेजा जाएगा.

कहा जा रहा है कि दोनों फ़ैसले बहुत चौंकाने वाले नहीं हैं और दोनों को भारत के ख़िलाफ़ देखा जा रहा है. अपने चुनावी अभियान के दौरान मुइज़्ज़ू ने यही वादा भी किया था. यामीन जब राष्ट्रपति थे तब उनकी चीन से क़रीबी जगज़ाहिर थी.

यामीन विपक्ष के नेता रहते हुए मालदीव में ‘इंडिया आउट’ कैंपेन चला रहे थे. इसके अलावा मालदीव के मीडिया में अक्सर भारतीय सैनिकों की मौजूदगी को लेकर रिपोर्ट छपती थी.कहा जा रहा है कि पिछले कई सालों में भारत की इंडो-पैसिफिक रणनीति में मालदीव काफ़ी अहम हो गया है और भारत ने वहाँ सिक्यॉरिटी इन्फ़्रास्ट्रक्चर भी विकसित किए हैं. मालदीव क्वॉड देशों के लिए काफ़ी अहम है. क्वॉड गुट में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसी साल उथुरु थिला फल्हु द्वीप में नौसेना से जुड़े एक कंस्ट्राक्शन का उद्घाटन किया था. यह मालदीव के साथ 2021 में हुए रक्षा समझौते का हिस्सा था.

क्या वाक़ई मुइज़्ज़ू भारत के ख़िलाफ़ हो जाएंगे? रविवार को मालदीव में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आए थे.

नतीजे आने के बाद से दुनिया भर के मीडिया में हेडलाइन बनी कि चीन समर्थित उम्मीदवार को मालदीव में राष्ट्रपति चुनाव में जीत मिली. लेकिन क्या मुइज़्ज़ू भारत से रिश्ते ख़राब कर लेंगे?

दो अक्टूबर को इन अटकलों पर विराम लगाते हुए पीपल्स नेशनल कांग्रेस के उपाध्यक्ष मोहम्मद हुसैन शरीफ़ ने कहा था, ”भारत सबसे क़रीबी और प्रिय दोस्त होगा. उम्मीद है कि नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डॉ मोहम्मद मुइज़्ज़ू का पहला विदेशी दौरा भी भारत का ही होगा.”

गुरुवार को मालदीव में भारत के उच्चायुक्त मुनु महावर ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू से मुलाक़ात की थी. मुनु महावर के साथ बैठक में मुइज़्ज़ू के अलावा नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति हुसैन मोहम्मद लतीफ़ भी थे.

मालदीव के अख़बार सन के अनुसार, मुइज़्ज़ू ने कहा कि मालदीव-भारत का संबंध एक-दूसरे की संप्रभुता के सम्मान पर आधारित है और वह उम्मीद करते हैं कि भारत के साथ पुराना मधुर संबंध नई ऊंचाई पर पहुँचेगा.

मुइज़्ज़ू ने कहा कि मालदीव के मतदाताओं ने देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए वोट किया है और उम्मीद करते हैं कि भारत इसका सम्मान करेगा. मुइज़्ज़ू ने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि भारत पुरानी सरकार को दिए क़र्ज़ को अदा करने की मियाद बढ़ाएगा.

प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव ने इस मुलाक़ात की तस्वीरें ट्विटर पर पोस्ट की हैं और लिखा है कि भारतीय उच्चायुक्त के साथ द्विपक्षीय संबंधों में मज़बूती लाने पर बात हुई. सन के मुताबिक़ भारतीय उचायुक्त ने कहा कि भारत क़र्ज़ों के भुगतान को लेकर बात करने के लिए तैयार है.

क्या इंडिया को मुइज़्ज़ू ‘आउट’ कर सकते हैं?

2018 से भारत मालदीव को लेकर बहुत ही उदार रहा है. भारत ने अरबों डॉलर का क़र्ज़ दिया है. इसके अलावा भारत ने कोविड वैक्सीन मालदीव को दिया और इन्फ़्रास्ट्रक्चर में निवेश भी किया है.

भारत को उम्मीद थी कि सोलिह ने कई समस्याओं से मालदीव को निकाला है, इसलिए वह चुनाव जीत जाएंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

यामीन मनी लॉन्ड्रिंग के एक केस में जेल में थे और वो चुनाव नहीं लड़ सकते थे लिहाजा उन्होंने माले के मेयर मोहम्मद मुइज़्ज़ू पर दांव लगाया और उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया. मुइज़्ज़ू की लोकप्रियता सोलिह के सामने काफ़ी कम थी.

लेकिन बीते शनिवार को मुइज़्ज़ू ने 54 फ़ीसदी बहुमत वोट के साथ चुनाव जीता.

मुइज़्ज़ू की जीत के पीछे कुछ कारण थे, सत्तारूढ़ मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी में फूट हुई और उनके प्रतिद्वंद्वी मोहम्मद नशीद ने वोटर्स के एक तबके को सोलिह से दूर कर दिया.

लेकिन सबसे बड़ी वजह ये थी कि सोलिह देश को कोई बड़ा नया बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं दे पाए और भारत के साथ उनके करीबी रिश्ते भी इस हार के पीछे एक अहम वजह रही.

मुइज़्ज़ू ने अपने कैंपेन की शुरुआत में ही नारा दिया- इंडिया आउट

बाद में यामीन के समर्थकों ने इस नारे का बढ़ चढ़ कर इस्तेमाल लिया और देश में जनता के बीच भारत के कथित रूप बढ़ते प्रभुत्व को लेकर जो चिंताएं थीं उसे अपने पक्ष में कर लिया. कहा जा रहा है कि मालदीव चुनाव में भारत विरोधी भावना को जमकार इस्तेमाल किया गया है.

भारत और मालदीव के बीच रिश्तों का असर वहां के चुनाव का एक अहम मुद्दा रहा.

मालदीव लगभग 500,000 लोगों की आबादी वाला का एक छोटा सा देश है, जो दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देशों के बगल में है.

मालदीव की ख़ास संस्कृति है, जिसकी वो रक्षा करता है. इस्लाम के प्रति मालदीव काफ़ी प्रतिबद्ध है. वहां के संविधान के मुताबिक़ ग़ैर-मुस्लिम वहाँ का नागरिक नहीं बन सकता.

मालदीव के मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ छोटी संख्या में मौजूद भारतीय सेना की उपस्थिति के ख़िलाफ़ भी काफ़ी नाराज़गी थी.

वहाँ पर भारतीय नौसेना और कोस्ट गार्ड भी छोटी संख्या में तैनात हैं जो मैरीटाइम पट्रोलिंग का काम करते हैं. इसके अलावा भारत के दो हेलिकॉप्टर भी हैं जो सर्च और बचाव कार्य में मदद देने के लिए हैं, ये एक्सक्लूसिव इकॉनमिक ज़ोन का सर्विलांस भी करते हैं, जिसे वहां के लोग जासूसी समझते हैं.

लेकिन मालदीव के जो लोग मामले की बेहतर समझ रखते हैं वो भी मानते हैं कि दोनों देशों के बीच रिश्ते सिर्फ़ राजनयिक ही नहीं है, भारत काफ़ी दखल रखता है.

जब मुइज़्ज़ू पदभार संभालेंगे तो उन पर अपने चुनावी वादों को पूरा करने का दबाव होगा. जिसमें भारत के साथ संबंधों को कम करने (भारतीय सैन्य उपस्थिति को हटाने) और चीन के साथ संबंधों को बढ़ाने और चीनी निवेश के लिए दरवाजे फिर से खोलने का क़दम शामिल हो सकता है.

यामीन के समर्थकों का भी दबाव होगा कि उन्हें जेल से छोड़ा जाए.

अब्दुल्ला यामीन 2013 से 2018 तक मालदीव के राष्ट्रपति थे. उनके कार्यकाल में मालदीव चीन के करीब आया.

उसी दौरान मालदीव चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल हुआ. इस परियोजना के तहत चीन और दुनिया के अन्य देशों के बीच सड़क, रेल और समुद्री संबंध स्थापित किया जाना है.

मानवाधिकारों के हनन आरोपों के बाद भारत और पश्चिमी कर्जदाता यामीन प्रशासन को कर्ज देने को तैयार नहीं थे. इसके बाद यामीन ने चीन का रुख किया. चीन ने उन्हें बिना किसी शर्त पैसे देने की पेशकश की.

यामीन इन दिनों भ्रष्टाचार के आरोप में 11 साल के जेल की सज़ा काट रहे हैं. उन पर इस साल वोट देने की पाबंदी भी लगाई गई है. मोहम्मद मुइज़्ज़ू को यामीन का प्रतिनिधि माना जाता है.

हालांकि यामीन की सज़ा माफ़ करना उनके क्षेत्राधिकार से बाहर है लेकिन वो सुप्रीम कोर्ट में वो ऐसी नियुक्तियां कर सकते हैं जो यामीन की सज़ा माफ़ कर दें. हालांकि ये एक लंबी प्रक्रिया होगी.

मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति नशीद जिन्होंने सोलिह की पिछली जीत में मदद की अब उनकी भी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं हैं.

चुनाव से कुछ सप्ताह पहले उन्होंने संविधान में बदलाव की एक प्रक्रिया शुरू की जो देश के वर्तमान सरकार के सिस्टम में बदलाव की बात करता है. वह चाहते हैं कि देश में राष्ट्रपति व्यवस्था बदल कर संसदीय व्यवस्था लाई जाए.

मुइज़्जू के लिए क्या चुनौतियां होंगी

मुइज़्ज़ू भले ही यामीन की पार्टी के समर्थन की बदौलत चुनाव जीते हों लेकिन वो इससे बिल्कुल अलग परिवेश से आते हैं.

मुइज़्ज़ू नए यामीन नहीं साबित होंगे, वो भारत के साथ थोड़ी दूरी बना सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं लगता वो मालदीव की विदेश नीति की स्थिति में पूरी तरह बदलाव कर देंगे.

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुइज़्जू की जीत पर उन्हें बधाई देते हुए दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने की बात कही है.

मुइज़्ज़ू की विदेश नीति में भारत के संबंधों को तो तवज्जो मिलेगी लेकिन साथ ही चीन के साथ आर्थिक जुड़ाव को भी बढ़ाएगा.

एक छोटे से देश के लिए ऐसा रास्ता कठिन और जोख़िम भरा हो सकता है और उस पर कई तरह के दबाव बढ़ सकते हैं. भारत को भी मालदीव की शर्तों के हिसाब से ही सावधानी के साथ आगे बढ़ना होगा.

बड़ी ताक़तों के बीच खींचतान बढ़ने से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के कई छोटे देशों, ख़ासकर छोटे द्वीप देशों की स्थिरता पर असर पड़ेगा. दुनिया में हिंद-प्रशांत के बढ़ते महत्व को देखते हुए इन देशों का महत्व काफ़ी बढ़ गया है.

जैसा कि मालदीव के चुनावों में देखा गया है कि अगर छोटे देशों के साथ अच्छी तरह से और समझदारी के साथ डील नहीं किया गया तो इन देशों के बड़े देशों से रिश्ते वहां के घरेलू चुनाव में नकरात्मक असर डाल सकते हैं.

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