सूरत की डायमंड इंडस्ट्री की चमक फीकी पड़ने का ये रूसी कनेक्शन

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DMT : सूरत  : (19 मई 2023) : –

“चार-पांच महीने पहले कंपनी के मैनेजर ने बुला कर कहा कि कर्मचारियों की संख्या कम करनी है, इसलिए आप इस्तीफ़ा दे दें. मैं घर में अकेली कमाने वाली हूं. पति भी नहीं हैं, दो बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं. भाई विकलांग है. पिता भी नहीं हैं, जबकि मां की ज़िम्मेदारी भी मुझ पर है. जब से नौकरी छूटी है तब से अब तक नौकरी की तलाश में हूं.”

ये है उस महिला का दर्द जो सूरत की हीरा कंपनी में काम करती थी. नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी से उन्होंने बताया कि डायमंड इंडस्ट्री में मंदी का असर उन जैसी कई महिलाओं पर पड़ रहा है.

विशेषज्ञों के मुताबिक़, सूरत की डायमंड इंडस्ट्री में मंदी के कारण पिछले कुछ महीनों में 20,000 से अधिक लोगों की नौकरी चली गई है.

कोरोना संकट से इंडस्ट्री संभलती इससे पहले उसे मंदी की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है और यह रूस-यूक्रेन युद्ध के असर के चलते माना जा रहा है.

दुनिया में बिकने वाले 90 प्रतिशत डायमंड को गुजरात के दक्षिणी शहर सूरत में काटा और पॉलिश किया जाता है.

विशेषज्ञों के मुताबिक़, सूरत की डायमंड इंडस्ट्री तीन लाख करोड़ रुपये (सालाना) की है और देश की जीडीपी में इसका अहम योगदान है.

सूरत की डायमंड इंडस्ट्री से पूरे गुजरात में 12-15 लाख लोगों को काम मिला हुआ है.

नए संकट के दौरान नौकरी गंवाने वाली एक महिला कर्मचारी ने बताया, “अब तक हज़ारों लोगों की छंटनी हो चुकी है. अभी भी मंदी चल रही है. कहते हैं कि युद्ध के कारण सेठों का माल नहीं बिक रहा है, इसलिए स्टाफ़ कम किया जा रहा है. कच्चे माल के दाम भी बढ़े हैं. ऐसे लोगों को काम पर रखा जा रहा है जो दो या तीन तरह के काम कर सकते हैं.”

न मुआवज़ा मिला और न ही काम

“जब मुझे निकाला गया तो कोई मुआवजा नहीं मिला. अब तक जो पीएफ़ जमा हुआ है, उसी से काम चलाना है. मैं लंबे समय से नौकरी की तलाश कर रही हूं, लेकिन काम नहीं मिल पा रहा है.”

इस स्थिति के कारण जीवन में उत्पन्न हुई कठिन परिस्थिति के बारे में वे कहती हैं, “कठिनाई आ रही है, लेकिन कोई विकल्प नहीं है. फ़ैक्ट्री वालों ने कहा कि हीरा आने पर और काम होगा तो फ़ोन करूंगा, लेकिन कई महीनों से फ़ोन नहीं आया.”

सूरत की डायमंड इंडस्ट्री में मंदी का सामना कर रही एक अन्य महिला कामगार ने अपनी समस्या बतायी, लेकिन नाम ज़ाहिर नहीं करने का अनुरोध किया.

उन्होंने इसकी वजह बताई, “कारखाने के मालिक को बुरा लगा तो दोबारा काम पर नहीं बुलाया.”

हाल ही में अमेरिका ने रूसी खनन कंपनी ‘अलरोसा’ पर प्रतिबंध लगाया था.

यह प्रतिबंध यूक्रेन युद्ध के बाद रूस के ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंधों के रूप में लगाए गए थे.

‘अलरोसा’ कच्चे हीरे की दुनिया की सबसे बड़ी उत्पादक कंपनी है. अलरोसा से कच्चे हीरे एंटवर्प के रास्ते सूरत आते हैं.

सूरत में इन कच्चे हीरों यानी रफ़ डायमंड को तराश कर पॉलिश किया जाता है. सूरत में आने वाले कच्चे हीरे का लगभग 30 प्रतिशत रूसी खदानों से आता है.

स्थिति के और बिगड़ने की आशंका

दक्षिणी गुजरात चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष प्रवीणभाई नानावटी ने बताया, “रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित किया है. अलरोसा पर पहले अमेरिका ने प्रतिबंध लगाया और अब बेल्जियम भी इस पर प्रतिबंध लगाने की ओर बढ़ रहा है.”

बेल्जियम की संसद की विदेश मामलों की समिति ने रूस से बेल्जियम में हीरों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है.

बीते दिनों यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने बेल्जियम की संसद को संबोधित करते हुए रूसी हीरों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी.

उन्होंने कहा था, “मुझे लगता है कि एक दुकान में रखे हीरे की तुलना में शांति अधिक महत्वपूर्ण है.”

एंटवर्प को वैश्विक हीरा व्यापार का केंद्र माना जाता है. जेलेंस्की ने बेल्जियम की संसद से आग्रह किया कि एंटवर्प रूसी हीरे के व्यापार से दूर रहे और इस पर प्रतिबंध लगाए.

अमेरिका के बाद बेल्जियम के क़दम पर चिंता जताते हुए प्रवीण नानावटी कहते हैं, “अगर ऐसा होता है तो हीरे का 30 फ़ीसद व्यापार धराशाई हो जाएगा. युद्ध से व्यापार पहले ही प्रभावित हो चुका है और अगर बेल्जियम भी प्रतिबंध लगाता है, तो स्थिति और ख़राब हो जाएगी.”

उन्होंने कहा, “एंटवर्प के बाद अब कच्चा डायमंड भी दुबई से आता है. भारत में और ख़ासकर सूरत में, रूस, दक्षिण अफ़्रीका और कनाडा एवं अन्य जगहों से कच्चे हीरे आते हैं. वैसे सिंथेटिक डायमंड को एक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन निवेशकों में भी संदेह और चिंता है, इसलिए ज़्यादातर निवेश रोक दिए गए हैं.”

“अमेरिकी और यूरोपीय निवेशक निवेश नहीं कर रहे हैं. हाल ही में अलरोसा की टीम सूरत आई थी. उनका एक कार्यालय खोलने की अटकलें तेज़ थीं.”

सूरत डायमंड एसोसिएशन के कार्यकारी सदस्य और गुजरात जेम एंड जूलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के क्षेत्रीय निदेशक दिनेश नावडिया का कहना है कि डायमंड की मांग के मुक़ाबले सप्लाई कम होने पर दिक़्क़त होना स्वाभाविक है.

दिनेश नावडिया कहते हैं, “मैंने एंटवर्प में व्यापारियों से बात की है. उनका कहना है कि प्रतिबंध के बारे में उन्हें अभी तक बेल्जियम सरकार से कोई स्पष्टीकरण नहीं मिला है. रूस की अलरोसा कंपनी पर अमेरिका पहले ही प्रतिबंध लगा चुका है. बेल्जियम सरकार का क़दम चिंताजनक है.”

उनके मुताबिक़, “अफ़्रीकी ख़ानों में उत्पादन नहीं बढ़ा है. इसके अतिरिक्त, रूस से आने वाले कच्चा माल पतला होता है और इसमें अधिक हीरे होते हैं. जबकि रूस से 29 प्रतिशत रफ़ डायमंड नहीं आने का मतलब केवल 71 प्रतिशत आपूर्ति है. तो स्वाभाविक है कि इससे कारोबार पर असर पड़ेगा.”

इस स्थिति के चलते उत्पन्न संकट के बारे दिनेश नावडिया कहते हैं, “इससे निर्माता भी प्रभावित होता है. उदाहरण के लिए, 100 कर्मचारियों के साथ चलने वाली फ़ैक्ट्री को कर्मचारी कम करने होते हैं. व्यापार कम हो जाता है और काम भी घट जाता है.”

बीबीसी गुजराती ने सूरत के एक हीरा कारोबारी से भी बात करने की कोशिश की जो रूस की अलरोसा कंपनी से कच्चा हीरा ख़रीदते थे.

अमेरिकी प्रतिबंध की दोहरी मार

सूरत में ‘लक्ष्मी डायमंड’ कंपनी के चूनीभाई गजेरा ने बताया, “हम रूस से कच्चे हीरे मंगवाते थे. वहां अलरोसा से कच्चा माल मंगवाते थे. लेकिन युद्ध के बाद यह काफ़ी हद तक बंद हो गया है. अमेरिका ने स्पष्ट प्रतिबंध लगाया है ताकि अमेरिकी नागरिक रूस से हीरा न ख़रीद सकें. इसलिए अगर कच्चा हीरा रूस से भारत और ख़ासकर सूरत में आता भी है, तो उसे तैयार करके किसे बेचा जाए, यह भी समस्या है. क्योंकि तैयार हीरों की बिक्री के लिए अमेरिका ही बड़ा बाज़ार है.”

कामगारों की छंटनी के बारे में उन्होंने बताया, “आपूर्ति कम है और मांग भी कम है. और रूस से जो कच्चा माल आता है वह महंगा होता है. अभी डीटीसी साइट्स और कनाडा से आने वाले सामान पर ही काम होता है. इस पूरे हालात के चलते स्टाफ़ कम करना पड़ा है.”

विशेषज्ञों का मानना है कि सूरत के हीरा उद्योग पर वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता, रूस-यूक्रेन युद्ध सहित अन्य कारकों का ग्रहण लगा है.

उद्योग जगत से जुड़े लोगों का मानना है कि युद्ध का असर पश्चिमी देशों पर पड़ने के कारण तैयार माल बेचने में भी दिक़्क़तें आई हैं जिससे हीरा फ़ैक्ट्रियों में काम करने वाले मज़दूरों पर भी संकट बढ़ा है.

सूरत में रत्न कलाकार विकास संघ के अध्यक्ष बालूभाई वेकरिया बीबीसी को बताते हैं कि युद्ध शुरू होने के बाद से इसका असर जारी है.

वो कहते हैं, “काम कम हो गया है. पहले जितना काम अब नहीं मिलता. मंदी चल रही है. जिन लोगों की नौकरी कहीं और चली गई है, उन्हें वापस लाने की कोशिश की जा रही है.”

जेम्स एंड जूलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के आंकड़ों के अनुसार, मार्च में कटे हुए पॉलिश किए हुए हीरों के निर्यात में लगातार गिरावट दर्ज की गई.

फ़रवरी माह में भी यही स्थिति थी. मार्च में कुल निर्यात 1.6 अरब डॉलर रहा. इस दौरान निर्यात में भारी गिरावट के साथ अन्य रत्न और आभूषणों की तुलना में हीरा का प्रदर्शन सबसे ख़राब रहा.

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