DMT : नई दिल्ली : (20 मई 2023) : –
भारत के रिज़र्व बैंक ने 2000 रुपये के नोटों को वापस लेने की घोषणा की है. भारतीय जनता पार्टी ने इसे भ्रष्टाचार पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ बताया है. वहीं कुछ बीजेपी नेताओं का कहना है कि ये ‘नोटबंदी’ नहीं बल्कि ‘नोट वापसी’ है.
लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार ने दो हज़ार रुपये के नोट वापस लेने का फ़ैसला क्यों किया है ये अभी स्पष्ट नहीं है.
शुक्रवार को आरबीआई ने कहा है कि जो नोट बाज़ार में मौजूद हैं वो वैध रहेंगे.
आरबीआई ने कहा है कि लोग 30 सितंबर तक इन नोटों को या तो अपने बैंक खातों में जमा करा सकते हैं या बदल सकते हैं. हालांकि एक बार में अधिकतम 20 हज़ार रुपये यानी 2000 रुपये के दस नोट ही बदले जाएंगे. एक दिन में कई बार भी नोट बदलवाए जा सकते हैं.
भारत सरकार ने 8 नवंबर 2016 को 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट बंद करने की घोषणा की थी. इसे नोटबंदी कहा गया था.
करीब साढ़े छह साल पहले हुई इस नोटबंदी के बाद सरकार ने 2000 रुपये के नए नोट शुरू किए थे. आरबीआई ने आईबीआई एक्ट की धारा 24(1) के तहत नवंबर 2016 में 2 हज़ार रुपये के नए नोट जारी किए गए थे.
आरबीआई ने शुक्रवार को अपने बयान में कहा है कि ऐसा नोटबंदी के बाद पैदा हुई ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किया गया था.
आरबीआई ने कहा, “ये उद्देश्य बाज़ार में अन्य नोट पर्याप्त मात्रा में आ जाने के बाद पूरा हो गया था और इसलिए साल 2018-19 में दो हज़ार रुपये के नोट छापने बंद कर दिए गए थे.”
2 हज़ार रुपये के नोट धीरे-धीरे आम इस्तेमाल से भी बाहर हो रहे थे. आरबीआई ने 2 हज़ार रुपये के 89 प्रतिशत नोट मार्च 2017 से पहले जारी किए थे.
रिज़र्व बैंक ने दो हज़ार रुपये के नोटों को वापस लेते हुए कहा है कि ये बैंक की क्लीन नोट पॉलिसी के तहत किया जा रहा है.
हालांकि आरबीआई ने बैंकों को दो हज़ार रुपये में भुगतान करने से तुरंत रोक दिया है.
‘भ्रष्टाचार पर सर्जिकल स्ट्राइक’
इस निर्णय के बाद प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी नेताओं ने इसे भ्रष्टाचार पर सर्जिकल स्ट्राइक बताया है.
बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने मीडिया को दिए बयान में कहा है, “ये भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई में उठाया गया क़दम है. ये भ्रष्टाचार पर सर्जिकल स्ट्राइक है. जो काला धन लोगों के पास है वो बाहर आ जाए.”
निजी समाचार चैनल आजतक से बातचीत में सुशील मोदी ने कहा, “दो हज़ार रुपये का इस्तेमाल टेरर फंडिंग और अन्य भ्रष्ट गतिविधियों में हो रहा है. ऐसे में मंशा इस नोट को पूरी तरह से ख़त्म करने की है.”
ये कहा जाता रहा है कि बाज़ार के लिए बड़े नोट सही नहीं होते हैं. जब पांच सौ और हज़ार रुपये के नोट वापस लिए गए तो तर्क दिया गया था कि काले धन को रोकने के लिए ऐसा किया जा रहा है. यही तर्क 2 हज़ार के नोट वापस लेते हुए भी किया जा रहा है.
क्या सच में काले धन पर चोट होगी?
हालांकि विश्लेषक सत्ताधारी बीजेपी के इस तर्क पर सवाल उठाते हैं.
जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ अरुण कुमार कहते हैं, “अभी तक बीजेपी की तरफ से जो प्रतिक्रिया आई है वो वही है जो नोटबंदी के समय थी. तर्क दिया जा रहा है कि इससे काला धन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर चोट होगी.”
अरुण कुमार सरकार के इस तर्क को भी खारिज करते हैं कि इससे काले धन पर चोट होगी.
प्रोफ़ेसर अरुण कुमार कहते हैं, “लेकिन समझने की बात ये है कि काला धन और काली कमाई में फ़र्क़ होता है.”
“काला धन अगर बंद भी कर दिया जाये तब भी काली कमाई चलती रहेगी और जब काली कमाई होगी तो काला धन भी बढ़ेगा. काली कमाई की बचत ही काले धन में परिवर्तित होती है.”
फैसले के पीछे की वजह?
आरबीआई के मुताबिक दो हज़ार रुपये के नोट धीरे-धीरे चलन से बाहर हो रहे थे. आरबीआई के मुताबिक 31 मार्च 2018 तक बाज़ार में 6.73 लाख करोड़ रुपये के दो हज़ार रुपये के नोट थे जो कुल नोटों का 37.3 प्रतिशत थे.
जबकि 31 मार्च 2023 तक बाज़ार में कुल 3.62 लाख करोड़ रुपये के दो हज़ार रुपये के नोट थे जो कुल नोटों का 10.8 प्रतिशत ही हैं.
प्रोफ़ेसर कुमार कहते हैं, “कहा जा रहा है कि दो हज़ार के नोट को काला धन रखने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. भारत में अभी 3.62 लाख करोड़ रुपये के दो हज़ार रुपये के नोट प्रचलन में हैं.”
“अगर ये भी मान कर चला जाये कि भारत में लोग घर में एक लाख रुपये इन नोटों में खर्च के लिए रखते होंगे, तब भी ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक नहीं होगी. ऐसे में ये समझ नहीं आ रहा है कि ये क्यों किया जा रहा है, इसके पीछे क्या नीति या मक़सद है.”
भारत में नक़द ट्रांजेक्शन भी बढ़ रही है. नोटबंदी के समय बाज़ार में लगभग 18 लाख करोड़ रुपये के नोट थे जो अब बढ़कर 35 लाख करोड़ रुपये के क़रीब हो गए हैं. भारत की अर्थव्यवस्था जैसे-जैसे बढ़ रही है, बाज़ार में नोट भी बढ़ ही रहे हैं.
आरबीआई धीरे-धीरे ख़ुद ही दो हज़ार रुपये के नोट को प्रचलन से बाहर कर रही थी. मार्च 2018 के बाद नए नोट छापे भी नहीं गए हैं. पहले के मुक़ाबले बाज़ार से भी ये नोट लगभग आधे हो गए हैं. ऐसे में ये सवाल उठ रहा है कि इस समय इस फ़ैसले का मक़सद क्या है.
नवंबर 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘काले धन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर प्रहार करते हुए’ अचानक पांच सौ रुपये और हज़ार रुपये के नोट को बंद करने की घोषणा की थी तो देश में अफ़रा-तफ़री मच गई थी.
कई महीनों तक बैंकों के बाहर नोट बदलने के लिए लाइने लगीं रहीं थीं और आम लोगों को भारी दिक़्क़तों का सामना भी करना पड़ा था. विश्लेषक मानते हैं कि इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी व्यापक असर हुआ.
लेकिन 2000 रुपये के नोटों को प्रचलन से बाहर करने का असर नोटबंदी जैसा नहीं होगा.
प्रोफ़ेसर अरुण कुमार कहते हैं, “2000 रुपये को बाज़ार से वापस लेने का ऐसा असर तो नहीं होगा जैसा नोटबंदी के समय हुआ था.”
“जो लघु उद्योग अपनी कैश ज़रूरतों को पूरा करने के लिए दो हज़ार रुपये के नोट में मुद्रा रखते हैं या जो किसान अपनी बचत को इन नोटों में रख रहे होंगे, उन्हें निश्चित रूप से दिक्कत होगी.”
नोटबंदी के समय बैंकों पर भार बहुत ज़्यादा बढ़ गया था और बैंक कर्मियों को कई महीनों तक अतिरिक्त काम करना पड़ा था. दो हज़ार रुपये का नोट वापस लेने से भी बैंकों का कामकाज प्रभावित हो सकता है.
अर्थव्यवस्था पर कितना असर
प्रोफ़ेसर कुमार कहते हैं, “सरकार अगर सौ दिनों के भीतर इन सभी नोटों को वापस लेगी तो इसका मतलब ये है कि इस दौरान दस करोड़ अतिरिक्त ट्रांजेक्शन होंगे, इससे बैंकों पर बोझ बढ़ेगा और लोगों को बैंक में अतिरिक्त समय लगेगा.”
दो हज़ार रुपये के नोट को वापस लिए जाने या इसे बंद किए जाने को लेकर पहले भी कई बार कयास लगाए जा चुके थे. इसे बंद करने की मांग भी उठती रही थी और मीडिया रिपोर्टों में भी इसके बाज़ार से कम होने के बारे में जानकारी आती रही थी.
हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि भले ही इससे बड़ी आबादी प्रभावित ना हो लेकिन इसका असर कैश की विश्वसनीयता पर पड़ सकता है.
प्रोफ़ेसर अरुण कुमार कहते हैं, “इसके अलावा ये नोट बंद होने से अर्थव्यवस्था में कैश की विश्वसनीयता भी कम होगी. लोगों के मन में ये सवाल पैदा हो सकता है कि अगर दो हज़ार का नोट बंद किया जा सकता है तो पांच सौ का भी बंद किया जा सकता है.”
“कैश का इस्तेमाल भुगतान के लिए किया जाता है. इसमें भी बाधा आ सकती है. भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से परेशानी में है, असंगठित क्षेत्र पिट रहा है, वो और ख़राब स्थिति में जा सकता है.”
“नोटों का इस्तेमाल लेनदेन (ट्रांजेक्शन) के लिए किया जाता है. नोट में भरोसा कम होने से ट्रांजेक्शन भी कम हो सकते हैं और इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है.”