DMT : जापान : (11 जून 2023) : –
जपान में घर और आबादी
- सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जापान में 80 लाख से ज़्यादा अकिया हैं.
- साल 2018 के आंकड़ों के अनुसार जापान में 13 फ़ीसदी अकिया मकान थे.
- जापान में 38 फ़ीसदी ऐसे परिवार हैं जिनमें केवल एक या दो ही लोग साथ रहते हैं.
- साल 2010 में जापान की जनसंख्या लगभग 13 करोड़ थी.
- अनुमान है कि 2060 तक जापान की आबादी घटकर 8 करोड़ रह जाएगी.
जनवरी 2023 में जापान के टोक्यो में रहने वालों को सरकार की ओर से बेहद आकर्षक प्रस्ताव मिला कि अगर वे शहरी इलाक़े छोड़ कर बाहर बसना चाहें तो हर परिवार को प्रति संतान दस लाख येन (करीब 7,000 डॉलर) दिए जाएंगे.
शर्त यह थी कि परिवार के कम से कम एक सदस्य के पास नौकरी हो और वो ग्रामीण क्षेत्र में अपना व्यापार शुरू करने का वादा करे.
इसमें एक शर्त ये भी थी कि यह राशि लेने का बाद अगर वो पांच साल से पहले दोबारा शहर में बसना चाहे तो उन्हें पूरी रक़म सरकार को लौटानी पड़ेगी.
जापान की अधिकांश आबादी शहरों में बसती है और पिछले कई सालों से वहां प्रॉपर्टी के क्षेत्र में कमी दिखती हैै. यह दीगर बात है कि वहां लाखों मकान ख़ाली पड़े हैं.
जापान मे प्रॉपर्टी की समस्या से निपटने के लिए केंद्र और प्रांतीय सरकारों द्वारा ऐसे कई कदम उठाए जा रहे हैं.
दुनिया जहान में इस हफ़्ते हम जानने की कोशिश करेंगे कि जापान में लाखों मकान ख़ाली क्यों पड़े हुए हैं?
अकिया- खाली मकान
आयुमी सुगीमोटो जापान की अकिता इंटरनेशनल युनिवर्सिटी, में ग्रामीण जनजीवन के बारे में पढ़ाती हैं. वो अकितो प्रांत में रहती हैं जहां ख़ाली छोड़ दिये गए मकानों की संख्या अन्य इलाक़ों के मुकाबले कहां ज़्यादा है और लगातार बढ़ती जा रही है.
आयुमी सुगीमोटो कहती हैं जापानी भाषा में ख़ाली छोड़ दिए गए मकानों को ‘अकिया’ कहते हैं.
वो कहती हैं, “मैं जब दफ़्तर जा रही होती हूं तो अक्सर ऐसे कई अकिया रास्ते में दिखाई देते हैं. उन्हें पहचानना बहुत आसान होता है क्यों कि अक्सर उनकी ख़िड़कियों के कांच और दरवाज़े टूट होते हैं, उनकी हालत ख़स्ता होती है.”
आयुमी सुगीमोटो के अनुसार, 2018 के आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि जापान में 13 फ़ीसदी अकिया मकान हैं और सिर्फ शहरी ही नहीं बल्कि ग्रामीण इलाक़ों में भी हैं.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जापान में 80 लाख से ज़्यादा अकिया हैं जबकि लोगों का मानना है कि वास्तव में यह संख्या इससे कहीं ज्यादा है.
असल में खाली छोड़ दिए मकानों के पीछे आर्थिक वजहें हैं.
आयुमी सुगीमोटो का कहना है, “जिस ज़मीन पर मकान बने होते हैं उस पर टैक्स में रियायत मिलती है. इसलिए मकान मालिक इन्हें गिराकर ज़मीन खाली करवाना नहीं चाहते. इसलिए गिराने के बजाय ख़ाली छोड़ देना मकान मालिकों के लिए अधिक फ़ायदेमंद होता है.”
इसकी एक अन्य वजह यह भी है कि कई मकान सालों पुराने हैं और वहां रहने वालों की यादें उनसे जुड़ हुई हैं. लेकिन इसके साथ साथ यह धार्मिक आस्था का मुद्दा भी है.
आयुमी सुगीमोटो कहती हैं, “इन घरों में लोग अपने पुरखों की चीज़ें संजो कर रखते हैं जिन्हें वो अपने पुरखों के बौद्ध अवतार भी कहते हैं और मानते हैं कि पुरखों की आत्मा आकिया में रहती हैं.”
आयुमी सुगीमोटो का मानना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार की कमी भी इसकी एक बड़ी वजह है.
ग्रामीण इलाक़ों में रोज़गार और उच्च शिक्षा के पर्याप्त अवसर नहीं हैं. इसलिए युवा पीढ़ी टोक्यो और ओसाका जैसे बड़े शहरों की ओर आकर्षित हो रही है.
आयुमी सुगीमोटो का कहना है कि अकिया मकानों में जंगली जानवर भी डेरा डाल लेते हैं. साथ ही भारी बर्फ़बारी या तूफ़ान से लकड़ी के बने ये ख़स्ताहाल मकान ढह कर पड़ोस के मकानों पर गिर जाते हैं.
इन मकानों को तोड़ कर ज़मीन खाली करवाने के लिए सरकार को इनके मालिकों से अनुमति लेनी पड़ती है जो मुश्किल होती है क्योंकि लोग अपना अगला पता छोड़े बिना ही चले जाते हैं.
कई जगहों पर प्रशासन ने इन मकानों को कैफ़े, पर्यटन आवास या दुकानों में बदलने के लिए भी कदम उठाए हैं मगर उससे समस्या हल नहीं हो रही.
आयुमी सुगीमोटो इस बारे में कहती हैं, “मसला यह है कि जितनी लोगों की ज़रूरतें हैं अकिया की संख्या उससे कहीं ज़्यादा है. और इनमें से कई मकान इतने पुराने हो चुके हैं कि उनकी मरम्मत या रिनोवेशन मुश्किल है.”
लोगों की समस्या
जापान की प्रॉपर्टी समस्या का संबंध वहां की आबादी से भी है. ब्रिटेन की ब्रिस्टल युनिवर्सिटी में सामाजिक नीतिशास्त्र की प्रोफ़ेसर मिसा इज़ुहारा कहती हैं कि 1970 से जापान के सामने बूढ़ी होती आबादी की समस्या है.
जापान की 30 प्रतिशत आबादी 65 साल से अधिक उम्र के लोगों की है. जापान में अच्छी स्वास्थ्य सेवा की वजह से लोगों की औसत जीवन अवधि 80 साल के करीब है. मगर जन्म दर कम है.
वो बताती हैं, “जापान में महिलाओं की प्रजनन दर केवल 1.3 फ़ीसदी है. 2010 में जापान की जनसंख्या लगभग 13 करोड़ थी और उसके बाद से यह लगातार गिर रही है. अनुमान है कि यह 32 फ़ीसदी सालाना की दर से घटेगी और वर्ष 2060 तक जापान की आबादी घट कर 8 करोड़ रह जाएगी.”
इसी साल जापान के प्रधानमंत्री ने संसद में अपील की कि इस समस्या का जल्द हल किया जाना ज़रूरी है अन्यथा जापान के समाज के लिए गंभीर चुनौती खड़ी हो जाएगी.
मगर जन्म दर को घटने का ख़ाली पड़े मकानों की समस्या से क्या संबंध है?
मिसा इज़ुहारा का कहना है, “पहले तीन पीढ़ियां संयुक्त परिवार में एक साथ रहती थीं जिससे घर की विरासत आसानी से नयी पीढ़ी को सौंप दी जाती थी और मकान का रखरखाव भी जारी रहता था. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद आर्थिक पुनरुत्थान के दौर में लोगों ने शहर जाकर बसना शुरू कर दिया और वहीं अपने मकान बनवा लिए. दोनों ही पीढ़ियां धीरे अलग रहने लगीं.”
संयुक्त परिवार छोड़ कर शहरों मे बसने से परिवार के संसाधन कम हुए और पुराने पुश्तैनी मकानों के रखरखाव की अनदेखी होने लगी.
मिसा इज़ुहारा कहती हैं, “अब परिवार छोटे होते जा रहे हैं. मिसाल के तौर पर 70 के दशक में आधे परिवार ऐसे थे जिनके अपने बच्चे थे. और 14 फ़ीसदी संयुक्त परिवार थे जिसमें तीन पीढ़ियां साथ रहती थीं. अब कुल परिवारों में 38 फ़ीसदी ऐसे परिवार हैं जिसमें केवल एक या दो लोग ही साथ रहते हैं.”
जब यह लोग भी गुज़र जाते हैं या मकान छोड़ जाते हैं तो एक और अकिया बन जाता है. मगर मिसा इज़ुहारा कहती हैं कि आबादी के स्वरूप में बदलाव के अलावा दूसरे कारण भी हैं जिसकी वजह से प्रॉपर्टी संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं.
मांग और आपूर्ति की समस्या
दुनिया में कई जगह, ख़ास तौर पर यूरोप में पुराने मकानों की अच्छी मांग है और वो मंहगे बिकते हैं.
ब्रिटेन की लीड्स यूनिवर्सिटी में जापानी पढ़ाने वाले कज़ूकी मोरीमोटो कहते हैं कि जापान में ऐसा बिल्कुल नहीं है, और लोग मानते हैं कि पुराने मकान की बनावट ख़ास अच्छी नहीं होती.
वो कहते हैं, “जापान में लोग अक्सर कहते हैं कि अगर आपने नया मकान भी ख़रीदा हो तब भी 30 सालों में उसकी कोई क़ीमत नहीं रहेगी.”
इसकी एक वजह यह है कि जापान में तूफ़ान और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं आम हैं और नए मकान उन्हें ध्यान में रख कर कड़े पैमानों के तहत बनाए जाते हैं ताकि आपदा की स्थिति में नुक़सान को कम किया जा सके.
ये दिशानिर्देश भी हर 10 साल में बदले जाते हैं. ऐसे में पुराने बने मकानों को नए भवन निर्माण नियमों के अनुरूप बदलना काफ़ी खर्चीला काम होता है.
कज़ूकीमोटो कहते हैं कि भवन निर्माण कंपनियां लोगों की बदलती ज़रूरतों के हिसाब से मकान बना रही हैं और उसकी मार्केटिंग आकर्षक तरीके से करती हैं. जापान में लोगों की ज़रूरतें बदल रही हैं और हर साल करीब 8 लाख नए मकान बनते हैं.
कज़ूकी मोरीमोटो कहते हैं, “मुझे कई बार आश्चर्य होता है कि पुराने बड़े मकानों की जगह जो नए मकान बनाए जाते हैं वो काफ़ी छोटे होते हैं. भवन निर्माण उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए जापानी सरकार बिल्डरों और ख़रीददारों को टैक्स में रियायतें देती है.”
साथ-साथ सरकार पुराने मकानों में लोगों के बसने के लिए भी कई स्कीमें चलाती है.
कज़ूकी मोरीमोटो कहते हैं कि ”यह कुछ-कुछ विरोधाभासी ज़रूर है क्योंकि एक ओर पुराने अकिया मकानों की समस्या सुलझाने के लिए सरकार लोगों को आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित करना चाहती है, वहीं नये महंगे मकान ख़रीदने के लिए भी वह लोगों को प्रोत्साहित कर रही है ताकि अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाया जाए. वहीं लोगों का ग्रामीण इलाकों से शहरों की ओर भागना भी जारी है.”
कज़ूकी मोरीमोटो के अनुसार, “यह सच है कि जनसंख्या कम हो रही है लेकिन टोक्यो में रहने वाले परिवारों की संख्या लगातार बढ़ रही है. क्योंकि अधिक से अधिक लोग अब अकेले रहने लगे हैं. यही बात छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों मे भी देखने को मिलती है. इससे सप्लाई और डिमांड के बीच संतुलन बिगड़ रहा है.”
इसका एक असर यह भी है कि बड़े शहरों के कुछ इलाकों और उनके उपनगरों में सस्ते मकानों की किल्लत पैदा हो रही है.
सप्लाई और डिमांड के बीच बिगड़ते संतुलन का असर स्वास्थ्य और यातायात जैसी सेवाओं पर भी पड़ रहा है जिससे और अधिक संख्या में लोग ग्रामीण क्षेत्रों से बाहर जाना शुरू कर देंगे.
कज़ूकी मोरीमोटो कहते हैं, “ज़्यादा से ज़्यादा लोग बड़े शहरों की ओर जा रहे हैं यानी बुजुर्ग पीछे छूटते जा रहे हैं. प्रशासन के लिए भी समस्या खड़ी हो गई है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों की आय कम होती जा रही है और वहां लोगों को आम सेवाएं प्रदान कर पाना मुश्किल साबित हो रहा है.”
“मूल बात तो यह है कि जापानी लोग नए मकान पसंद करते हैं और अगर सरकार ख़ाली अकिया मकानों की समस्या सुलझाने के लिए कड़े कदम नहीं उठाएगी तो यह समस्या बनी रहेगी.”
बदलाव की ज़रूरत
यह तो साफ़ है कि जापान में लोग नए मकान ख़रीदना पसंद करते हैं. और वक्त के साथ पुराने होते मकानों की कीमत भी गिरती है.
पेन्सिल्वेनिया युनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफ़ेसर और टोक्यो यूनिवर्सिटी में गेस्ट प्रोफ़ेसर जीरो योशिडा टोक्यो में लगभग 12 साल रह चुके हैं.
वो कहते हैं, “खाली पड़े मकानों की समस्या दूसरे देशों में भी है. अमरीका में भी लगभग 13 फ़ीसदी मकान ख़ाली पड़े हैं. उसी तरह यूरोप में ग्रीस, स्पेन और दूसरे देशों में भी बड़ी संख्या में मकान ख़ाली पड़े हैं.”
मगर जापान में ख़ाली मकानों की समस्या को सुलझाने के लिए क्या किया जा सकता है?
इस बारे मे जीरो योशिडा का सुझाव है, “इस समस्या को सुलझाना आसान तो नहीं है लेकिन कुछ कदम उठाए जा सकते हैं. जैसे कि प्रॉपर्टी टैक्स नियमों को बदला जा सकता है. फ़िलहाल टैक्स सिस्टिम में जिन ज़मीनों पर मकान बने हैं उसके मालिकों को रियायत मिलती है. इनहेरिटेंस टैक्स या विरासत कर की दर बदल कर उसे अन्य आय के बराबर किया जा सकता है.”
कोविड महामारी के दौरान घर से काम करने का चलन हर जगह प्रचलित हो गया था. क्या यह भी लोगों को रोकने का तरीका हो सकता है?
जीरो योशिडा कहते हैं, “रोज़गार के अधिकांश अवसर टोक्यो जैसे बड़े शहरों में होते हैं ख़ास तौर पर सर्विस सेक्टर में. कई युवा ग्रामीण क्षेत्र के अपने घर में ही रहना पसंद भी करें तो वहां नौकरियां नहीं होतीं जिसकी वजह से उन्हें घर छोड़ कर बड़े शहरों का रुख़ करना पड़ता है. अगर घर से काम करने की सुविधा हो जाए तो वे ग्रामीण इलाक़ों में रहते हुए किसी कंपनी के लिए काम कर पाएंगे. और यह समस्या काफ़ी हद तक सुलझ जाएगी.”
योशिडा कहते हैं दूसरा विकल्प यह भी हो सकता है कि नयी छोटी कंपनियां ख़ाली पड़े मकानों की मरम्मत कर के वहां अपने दफ़्तर खोल लें. इस तरह के प्रयोग हो भी रहे हैं.
इस मसले का एक पहलू यह भी है कि जापान के कई उद्योगों में श्रमिकों की किल्लत की समस्या शुरू हो गयी है और भवन निर्माण उद्योग भी इससे अछूता नहीं है. इस किल्लत की वजह से भविष्य में नये मकानों की कमी हो सकती है.
“भवन निर्माण उद्योग में आम तौर पर ज्यादातर अधेड़ उम्र के लोग काम करते हैं और नज़दीकी भविष्य में इनमे से कई रिटायर हो जाएंगे और कंस्ट्रक्शन उद्योग इसी स्तर पर इमारतें बनाना जारी नहीं रख पाएगा. घटती आबादी की वजह से नए मकानों की मांग भी घटेगी. इस तरह स्वाभाविक तरीके से ख़ाली पड़े मकानों की समस्या ख़त्म हो जाएगी.”