DMT : स्विट्ज़रलैंड : (13 अप्रैल 2023) : –
स्विट्ज़रलैंड के एक ज्योतिषी ने 1980 के दशक में हैदराबाद के आठवें निज़ाम मुकर्रम जाह से कहा था, “आपकी मौत 86 साल की उम्र से पहले नहीं होगी”.
कई साल पहले जब मुकर्रम जाह के जानने वाले पत्रकार-लेखक जॉन ज़ुबरिस्की उनसे अनातोलिया, तुर्की में मिले तब उनकी उम्र 71 साल थी, वे डायबिटीज़ की बीमारी की दवा लेते थे और सिगरेट जम के पीते थे.
उन्होंने जॉन ज़ुबरिस्की से यक़ीन से कहा था, “जब मेरे दादा, मीर उसमान अली ख़ाँ, चेन-स्मोकर होने के अलावा रोज़ 11 ग्राम अफ़ीम लेते हुए 80 बरस तक जिए, तब मैं तो उनसे ज़्यादा ही जियूँगा”.
2023 में जब मुकर्रम जाह का निधन हुआ तब उनकी उम्र 89 साल की थी.
उनकी मौत अनातोलिया के तीन-बेडरूम वाले अपार्टमेंट में ही हुई जिसमें एक नर्स, एक रसोइया और एक केयरटेकर उनके साथ रहा करते थे.
तुर्की में उनके पड़ोसियों तक को इस बात का इल्म नहीं था कि निज़ाम मुकर्रम जाह के नाना ऑटोमन साम्राज्य के आख़िरी ‘ख़लीफ़ा’ अब्दुल मजीद-2 थे जिन्हें 1924 में देश निकाला झेलना पड़ा था.
स्विट्ज़रलैंड में शरण लेने वाले ‘ख़लीफ़ा’ की अकेली बेटी दुरूशेवर से मुकर्रम के पिता प्रिंस आज़म का निकाह हुआ था.
ये वही मुकर्रम जाह थे जिन्हें 1967 में हैदराबाद के बतौर आठवें और आख़िरी निज़ाम के रूप में गद्दी पर बैठाया गया था और उन्होंने अपने दादा से विरासत में एक दर्जन से ज़्यादा महल, मुग़लकालीन कलाकृतियाँ, सैकड़ों किलो सोने-चाँदी के जवाहरात, हीरे और बेशक़ीमती चीजें विरासत में मिली थीं.
लेकिन अपनी मौत से पहले उन्होंने अंदाज़न 4,000 करोड़ रुपए की जायदाद ‘गँवा’ दी थी या दूसरे शब्दों में ‘उड़ा’ दी थी.
मुकर्रम जाह के बायोग्राफ़र जॉन ज़ुबरिस्की ने ‘द लास्ट निज़ाम:राइज़ एंड फ़ॉल ऑफ़ इंडियाज़ ग्रेटेस्ट प्रिंसली एस्टेट’ में लिखा है, “मुकर्रम बड़े शौक़ से वो क़िस्सा सुनाते थे कि उनके पूर्वज पहले निज़ाम ने कैसे रात के पहरेदारों को रिश्वत देकर गोलकुंडा के क़िले का दरवाज़ा खुलवा कर दक्षिण में मुग़लों को फ़तह दिलवाई थी.”
“इसके बाद ऊंटों पर भर कर सोने, चाँदी और हीरे-जवाहरात औरंगज़ेब के दरबार में पहुँचाए गए थे”.
जॉन ज़ुबरिस्की आगे लिखते हैं, “ये महज़ इत्तेफ़ाक नहीं कि जिस हैदराबाद निज़ाम की रियासत का दायरा फ़्रांस जैसे देश जितना बड़ा हुआ करता था, वो अब सिमट कर कुछ सौ एकड़ में सीमित रह गया है.”
जब मुकर्रम जाह की मौत हुई, तो निज़ाम हैदराबाद की जायदाद के दर्जनों वारिसों के बीच अदालतों में सैकड़ों मुक़दमे चल रहे थे, जिनकी सुनवाई आज भी जारी है.
लेकिन हैदराबाद के आख़िरी निज़ाम की बेपनाह दौलत ‘गंवाने’ को समझने के लिए इतिहास में जाना पड़ेगा क्योंकि उनके दादा मीर ओसमान अली ने अपने बेटे प्रिंस आज़म के बजाय पोते मुकर्रम को वारिस चुना था.
मीर ओसमान अली खान के बायोग्राफ़र डीएफ़ क़राका ने ‘फ़ैबुलस मुग़ल’ में लिखा है, “ओसमान अली खान ने विरासत में बेशुमार जायदाद हासिल की थी और उन्होंने ‘किंग कोठी’ महल में अपना ‘ज़नाना’ बनाया जहां 1920 के दशक में उनकी 200 बीवियाँ रहा करती थीं जो 1967 में यानी सातवें निज़ाम की मौत के साल तक घट कर 42 रह गईं थीं. वो बात और थी कि वे शाही खर्च बिलकुल नहीं करते थे और कंजूसों में गिने जाते थे”.
लेखक जॉन ज़ुबरिस्की ने ‘द लास्ट निज़ाम: राइज़ एंड फ़ॉल ऑफ़ इंडियाज़ ग्रेटेस्ट प्रिंसली एस्टेट’ में लिखा है, “मेरे दादा मीर ओसमान अली खान शाम को उस महल के गार्डन में जाते थे जहां उनकी सभी बीवियाँ पहुंच जाती थीं. जिसके कंधे पर दादा सफ़ेद रूमाल रख देते थे उन्हें पता चल जाता था कि महल में दादा के बेडरूम में रात को नौ बजे किस रानी को मुलाक़ात करनी है”.
लेकिन इस सब के बीच हैदराबाद के सातवें निज़ाम मीर ओसमान अली के बच्चे और पोते बढ़ते जा रहे थे और उनकी मृत्यु के समय ये तादाद 100 के आस पास थी जो 2005 में बढ़ कर 500 पार कर चुकी थी.
लगभग सभी ने आठवें और आख़िरी निज़ाम, मुकर्रम जाह, के ख़िलाफ़ जायदाद में हिस्से वाले मुक़दमे दायर कर रखे थे.
बहराल, हक़ीक़त ये भी थी कि 1947 में भारत की आज़ादी के दौरान, हैदराबाद की रियासत देश की सबसे अमीर रियासत कही जाती थी जिसके बारे में खुद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने बयान दिया था.
जुलाई, 1948 में विंस्टन चर्चिल ने ब्रिटेन की संसद को बताया था, “संयुक्त राष्ट्र के 52 सदस्य देशों में से 20 हैदराबाद से छोटे थे और उनमें से 16 की आमदनी हैदराबाद के निज़ाम की रियासत से कम थी”.
ये वो दौर था जब प्रिंस मुकर्रम जाह की माँ दुरूशेवर ने अपने ससुर निज़ाम मीर ओसमान अली की इच्छा के विरुद्ध मुकर्रम को पहले दून स्कूल और फिर कैम्ब्रिज, इंग्लैंड में पढ़ाई के लिए भेजा था.
इस बीच हैदराबाद रियासत का भारत में विलय हो चुका था और निज़ाम हैदराबाद की कुल जमा पूँजी और चल-अचल संपत्ति पर क़यास लग रहे थे.
मीर ओसमान अली के बायोग्राफ़र डीएफ़ क़राका के मुताबिक़, “1950 के दशक में निज़ाम की कुल संपत्ति 1.35 अरब रुपए थी जिसमें से 35 करोड़ रुपए नक़द थे, हीरे-जवाहरात की क़ीमत 5 करोड़ रुपए थी और इतनी ही क़ीमत के महल और जायदाद भी मौजूद थे”.
वैसे न्यूयॉर्क टाइम्स अख़बार ने साल 1949 में रिपोर्ट किया था कि निज़ाम की कुल जायदाद दो अरब अमरीकी डॉलर के आस-पास रही होगी.
निज़ाम हैदराबाद की जायदाद के जितने भी आंकलन हुए हैं उसमें से कई दफ़ा भारतीय स्टेट बैंक ने उनके हीरे-जवाहरातों और आभूषणों के और कई दफ़ा अदालत में जारी मुक़दमों के दौरान जो आँकड़े दिए गए हैं वे 4,000 करोड़ रुपए के आस-पास रहे हैं.
निज़ाम मीर ओसमान अली ने इसी दौरान अपना मन बना लिया था कि उनकी रियासत का आख़िरी निज़ाम उनका बेटा आज़म जाह नहीं पोता मुकर्रम जाह होगा.
14 जून, 1954 के दिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लिखे गए एक ख़त में उन्होंने लिखा, “अपनी फ़िज़ूलखर्ची और शराब की लत में डूबे रहने की वजह से प्रिंस आज़म जाह खुद को परिवार का मुखिया बनने लायक़ साबित नहीं कर सके हैं. मेरा पोता मुकर्रम जाह मेरी निजी जायदाद का वारिस होगा”.
इसके बाद के कुछ सालों तक जहां भारतीय सरकार ने पुराने राजघरानों के अधिकार लेने जारी रखे थे, मुकर्रम जाह इंग्लैंड और यूरोप में पूल-निर्माण कला से लेकर माइनफ़ील्ड बिछाने के तौर-तरीक़े सीख रहे थे.
हैरो स्कूल, लंदन में अपने मित्र राशिद अली खान से उन्होंने उस दौरान कहा था, “मैं एक आज़ाद इंसान की ज़िंदगी भरपूर जी लेना चाहता हूँ, इसलिए सारे शौक़ पूरे कर रहा हूँ, चाहे वो फ़िल्म देखना हो या जैज़ म्यूज़िक के प्रोग्राम में शिरकत करना”.
1958 में इस्तांबुल में छुट्टी मनाते समय उनकी मुलाक़ात एसरा बर्जिन से हुई जिनके साथ मुकर्रम ने लंदन के केन्सिंगटन कोर्ट में चुप-चाप शादी कर ली.
- इतिहासकार अनिता शाह से हुई बातचीत में उन्होंने कई साल बाद बताया था, “मेरे दादा, तत्कालीन निज़ाम, और मेरी माँ इस शादी के ख़िलाफ़ थे, लेकिन उनके पास विकल्प भी नहीं था”.
- आख़िरकार जब 1967 में सातवें निज़ाम, मीर ओसमान अली, की मृत्यु हुई उस दिन के बाद से मुकर्रम जाह आख़िरी निज़ाम की गद्दी पर बैठे. अनेक मुसीबतों में सबसे बड़ा था शाही खर्च.
- कई सालों बाद तुर्की में जॉन ज़ुबरिस्की को दिए गए इंटरव्यू में मुकर्रम जाह ने बताया था, “सिर्फ़ मेरे दादा के स्टाफ़ की संख्या 14 हजाक 718 थी. इसके अलावा उनकी 42 बीवियाँ और 100 औलादों के शाही खर्च उन पर थे.
- “हैदराबाद के चाउमहल्ला महल कॉम्प्लेक्स में पूरे 6 हजार स्टाफ़ की तैनाती थी और हमारे सभी महलों में क़रीब 5 हजार सरकश गार्ड थे. इस सब के अलावा निज़ाम की रसोई में रोज़ 2 हजार लोगों का खाना पकता था और कुछ स्टाफ़ आसपास के कई होटलों-रेस्टोरेंट वग़ैरह में इसका बड़ा हिस्सा चुप-चाप बेच देते थे”.
- मुकर्रम जाह ने ये भी बताया था कि निज़ाम के शाही गैराज- जिसमें रोलस रोयस की भरमार थी. उनमें पेट्रोल का सालाना खर्च उस ज़माने का 90 हजार अमेरिकी डॉलर था.
- 1968 में मुकर्रम जाह को पहला झटका लगा जब आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने फ़ैसला किया कि निज़ाम की दौलत को उनके सभी वारिसों में बराबरी से बाँटा जाए. ये मुक़दमा मुकर्रम जाह की बहन शहज़ादी पाशा ने दायर किया था जिनकी उनके दादा ने शादी नहीं होने दी थी.
- अगले दो सालों में उनकी पत्नी एसरा और बच्चे वापस इंग्लैंड लौट गए और हैदराबाद में अपनी जायदाद बचाने के उनके मंसूबे एक के बाद एक कर धराशायी होते रहे.
- इंजीनियरिंग और मोटर मैकैनिक का शौक़ रखने वाले मुकर्रम जाह जब निज़ाम की ड्यूटी से फ़ुरसत पाते तब अपने दादा के गैराज में ख़राब पड़ीं 56 कारों की रिपेयर में लगे जाते थे.
- वर्षों बाद इंग्लैंड में उनकी पहली पत्नी एसरा ने जॉन ज़ुबरिस्की से बात करते हुए कहा था, “वे या तो फ़ौज में जाना चाहते थे या कार मैकेनिक बनना चाहते थे. उन्हे लगा था इस जायदाद-वायदाद के काम में करीबी दोस्तों पर भरोसा करने से बात बन जाएगी, जो नहीं बनी. वो इस सब के लिए बने ही नहीं हैं”.
- इधर हैदराबाद में निज़ाम मुकर्रम जाह को एकाएक हैरो और कैम्ब्रिज के अपने एक दोस्त, जॉर्ज हॉबडे की याद आई जो पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में बतौर डॉक्टर प्रैक्टिस कर रहे थे और वे उनसे जाकर मिले.
- यहीं से उनकी ज़िंदगी ने एक बड़ा मोड़ लिया और हैदराबाद ही नहीं उनकी सम्पत्ति भी उनसे दूर होती चली गई.
- पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पर्थ शहर के आस-पास का नजारा और लोग उन्हें इतने पसंद आए कि उन्होंने यहां एक फ़ार्म हाउस लेने की ठान ली. एकाएक उन्हें भेड़ों के एक फ़ार्म “मर्चिसन हाउस स्टेशन” का पता चला.
- टाइम मैगज़ीन को दिए गए एक इंटरव्यू में मुकर्रम जाह ने बताया था, “मर्चिसन नदी के नीले पानी ने जैसे विशालकाय फ़ार्म के बीचो बीच बसी लाल सैंडस्टोन की पहाड़ियों के बीच से एक घुमावदार धार बना दी थी. मुझे उस पुराने हैदराबाद के पास की पहाड़ियाँ और जंगल याद आ रहे थे जहां बचपन में अपने दादा के साथ शिकार पर जाता था”.
- इसी दौरान मुकर्रम ने हेलन सिमन्स नाम की ऑस्ट्रेलियाई महिला से शादी कर ली थी जिनकी बाद में एड्स बीमारी से मौत हो गई. इस शादी से भी उन्हें दो बच्चे थे जिनमें से दूसरे, प्रिंस उमर जाह, की ड्रग्स ओवरडोज़ के चलते मौत हो गई थी.
- मुकर्रम जाह ने पूरा ध्यान ऑस्ट्रेलिया में अपनी नई एस्टेट “मर्चिसन हाउस स्टेशन’ पर लगा रखा था जो पांच लाख एकड़ ज़मीन में फैली हुई थी.
- इसके एक तरफ़ इंडियन ओशन था और दूसरी तरफ़ पहाड़ और गुफाएँ.
- इधर भारत में उनकी जायदाद पर दूसरों का क़ब्ज़ा बढ़ रहा था, बंटवारे हो रहे थे, उधर मुकर्रम ऑस्ट्रेलिया में कई मिलियन डॉलर की जायदाद ख़रीद रहे थे.
- इसमें पानी का जहाज़, दुनिया का सबसे बड़ा बुलडोज़र, लैंडमाइन ढूँढने वाली मशीनें और एक सोने की खदान भी शामिल थी.
- उनके बायोग्राफ़र जॉन ज़ुबरिस्की के मुताबिक़, “ख़र्चों की बढ़ती फ़ेहरिस्त के चलते मुकर्रम ने बेशक़ीमती हीरे-जवाहरात स्विट्ज़रलैंड लाकर बेचे भी जिससे दुनिया भर में अपने कर्मचारियों और महंगे होटलों के खर्चे पूरे हो सके. लेकिन ऑस्ट्रेलिया में उनके खर्चे दोगुना-तिगुना हो रहे थे और लोगों ने उनके पैसों के साथ हेरा-फेरी शुरू कर दी थी”.
- उधार की ज़िंदगी, क़र्ज़दारों से बचने की कवायद और भारत सरकार द्वारा निज़ाम ट्रस्ट के आभूषणों- बेशक़ीमती सामानों को विदेश में ऑक्शन करने पर रोक से मुकर्रम जाह टूटते जा रहे थे.
- 1996 आते-आते उन्हें ऑस्ट्रेलिया और यूरोप की जायदाद गिरवी रखनी पड़ी और फिर बेचनी पड़ी, जिससे क़र्ज़े चुकाए जा सकें, उनके पानी के जहाज़ को ज़ब्त कर लिया गया और उनकी कारों और बुलडोज़रों को नीलाम कर दिया गया.
- ऑस्ट्रेलिया के ‘द वेस्टर्न मेल’ अख़बार ने खबर छापी थी कि, “शाह – जिस नाम से उन्हें वहां लोग बुलाते थे- उनके कर्मचारियों ने ग़लत तरीक़े से पैसे खर्च किए हैं और धोखाधड़ी भी की है. उनके बच्चों की कस्टडी पर भी शाह बैकफ़ुट पर हैं और उन्हें भारी हर्जाना देना होगा”.
- इसी साल एक शुक्रवार के दिन ‘निज़ाम’ मुकर्रम जाह ने पर्थ में अपनी सचिव से कहा कि वे नमाज़ पढ़ने जा रहे हैं. फिर वे ऑस्ट्रेलिया में नहीं दिखे. अपने ख़िलाफ़ दर्ज हुए मामलों पर कार्रवाई के डर से वे तुर्की भाग आए और आजीवन वहीं रहे.
- हां, इस बीच उनकी दो और शादियाँ हुईं जो लंबे समय तक नहीं चल सकीं.
- भारत सरकार ने साल 2002 में उन्हें निज़ाम ट्रस्ट से सरकारी ख़ज़ाने में लिए गए आभूषणों के लिए 22 मिलियन डॉलर ज़रूर दिए लेकिन ये क़ीमत बाज़ार की क़ीमत से एक चौथाई से भी कम बताई गई थी.
- इस साल के शुरुआत में हुई उनकी मौत के बाद मुकर्रम जाह के पार्थिव शरीर को हैदराबाद लाकर पूरे सम्मान के साथ दफ़नाया गया. इससे पहले आख़िरी बार 2012 में वे हैदराबाद आए थे.
- इसके कुछ साल बाद ही बायोग्राफ़र जॉन ज़ुबरिस्की ने उनसे पूछा था कि क्या कोई मलाल रह गया है?
- मुकर्रम जाह ने अंतालिया के उस कैफ़े में टर्किश चाय पीते हुए कहा था, “हां, मेरे एक दोस्त ने इंग्लैंड में मुझ से कहा था, “कई साल पहले इंग्लैंड में मेरे एक दोस्त के हाथ द्वितीय विश्व युद्ध की एक टूटी हुई पनडुब्बी लगी थी. उसने पूछा था कि क्या मुझे उसमें दिलचस्पी है. मैंने जवाब दिया, हां. लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी”.