DMT : नयी दिल्ली : (16 सितंबर 2023) : – भारत के चंद्रमा मिशन ‘चंद्रयान-1’ से मिले रिमोट सेंसिंग डाटा का विश्लेषण कर रहे वैज्ञानिकों ने पाया है कि पृथ्वी के उच्च ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन संभवत: चंद्रमा पर जल बना रहे हैं। अमेरिका के हवाई विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के नेतृत्व वाली एक टीम ने पाया है कि पृथ्वी के प्लाज्मा आवरण में मौजूद ये इलेक्ट्रॉन चंद्रमा की सतह पर मौसमी प्रक्रिया में भी हस्तक्षेप कर रहे हैं, जिनमें चट्टान और खनिजों का टूटना या विघटित होना शामिल है।
नेचर एस्ट्रोनॉमी’ पत्रिका में प्रकाशित शोध में पाया गया है कि इलेक्ट्रॉन संभवत: चंद्रमा पर जल के निर्माण में सहायता कर सकते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि चंद्रमा पर जल की निर्माण प्रक्रिया को जानना इसके विकास को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही यह भविष्य में मानव अन्वेषण के लिए जल संसाधन उपलब्ध कराने के लिहाज से भी अहम है। चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर जल के कणों की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यूएच मनोआ स्कूल ऑफ ओशन के सहायक शोधकर्ता शुआई ली ने कहा, ‘यह चंद्रमा सतह के पानी की निर्माण प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए एक प्राकृतिक प्रयोगशाला उपलब्ध करता है।’ ली ने कहा, ‘जब चंद्रमा मैग्नेटोटेल के बाहर होता है, तो चंद्रमा की सतह पर सौर हवा का दबाव होता है। मैग्नेटोटेल के अंदर, लगभग कोई सौर पवन प्रोटॉन नहीं हैं और पानी का निर्माण लगभग नहीं होने की उम्मीद थी।’ मैग्नेटोटेल एक ऐसा क्षेत्र है जो चंद्रमा को सौर हवा से लगभग पूरी तरह से बचाता है, लेकिन सूर्य के प्रकाश फोटॉन से नहीं। शुआई ली और उनके साथ शामिल हुए लेखकों ने 2008 और 2009 के बीच भारत के चंद्रयान 1 मिशन पर एक इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर, मून मिनरलॉजी मैपर डिवाइस द्वारा इकट्ठे किए गए रिमोट सेंसिंग डेटा का विश्लेषण किया है।
अक्तूबर 2008 में प्रक्षेपित किया गया था
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ‘चंद्रयान 1’ को अक्तूबर 2008 में प्रक्षेपित किया था, और अगस्त 2009 तक संचालित किया गया था। यह मिशन भारत का पहला चंद्रमा मिशन था। मिशन में एक ऑर्बिटर और एक इम्पैक्टर शामिल था। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पिछले महीने सफल ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के बाद भारत वहां पहुंच गया जहां पहले कोई देश नहीं पहुंचा है।
आदित्य एल1 की चौथी बार सफल रही कक्षा परिवर्तन की प्रक्रिया
बेंगलुरू (एजेंसी) : सूर्य का अध्ययन करने के लिए भारत के पहले अंतरिक्ष-आधारित मिशन आदित्य एल1 ने शुक्रवार तड़के चौथी बार सफलतापूर्वक पृथ्वी की एक कक्षा से अन्य कक्षा में प्रवेश किया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘चौथी बार पृथ्वी की कक्षा परिवर्तन की प्रक्रिया (ईबीएन-4) को सफलतापूर्वक निष्पादित किया गया। मॉरीशस, बेंगलुरू, एसडीएससी-एसएचएआर और पोर्ट ब्लेयर में इसरो के ‘ग्राउंड स्टेशनों’ ने इस अभियान के दौरान उपग्रह की निगरानी की।’