DMT : भूटान : (29 मार्च 2023) : –
2020 में ऐसी कई रिपोर्ट्स आई थीं, जिनमें बताया गया था कि भूटान के बॉर्डर के भीतर चीन गाँव बना रहा है. लेकिन अब ला लेब्रे को दिए इंटरव्यू में लोटे छृंग ने कहा है कि चीन ने जो गाँव बनाए हैं, वे भूटान के भीतर नहीं हैं.
भूटान के प्रधानमंत्री ने हाल ही में बेल्जियम का दौरा किया था और उन्होंने वहीं यह इंटरव्यू दिया था.
फ्रेंच भाषा के अख़बार ला लेब्रे को दिए इंटरव्यू में भूटानी प्रधानमंत्री ने कहा है, ”हमने स्पष्ट रूप से कहा है कि कोई अतिक्रमण नहीं हुआ है. यह एक अंतरराष्ट्रीय सीमा है और मुझे पता है कि हमारा हिस्सा कहाँ तक है. भूटान में चीनी निर्माण को लेकर मीडिया में कई तरह की बातें कही जा रही हैं. हमें इससे कोई मतलब नहीं है क्योंकि यह भूटान में नहीं है.”
भूटानी प्रधानमंत्री के इस दावे को कई विशेषज्ञ सच नहीं मान रहे हैं और उनका कहना है कि उन्होंने चीन के दबाव में ऐसा बयान दिया है.
रॉबर्ट बर्नेट तिब्बती इतिहास के विद्वान हैं और वह किंग्स कॉलेज लंदन में लाउ चाइना इंस्टिट्यूट से जुड़े हैं.
उनका कहना है कि चीन ने जो गाँव बनाए हैं, वे भूटान में उत्तरी, पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी सीमा के भीतर हैं.
रॉबर्ट बर्नेट ने ट्विटर पर लिखा है कि चीन ने तीन गाँव भूटान की उत्तरी सीमा के मिड-सेक्टर में बनाए हैं. दो गाँव भूटान के लुहेंत्से इलाक़े उत्तर-पूर्व में हैं और बाक़ी के पाँच गाँव पश्चिमी सीमा के भीतर हैं. बर्नेट का कहना है कि वे यह बात अंतरराष्ट्रीय, चीनी और भूटानी नक़्शे के आधार पर कह रहे हैं.
बेल्जियम के अख़बार को दिए इंटरव्यू में भूटानी प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है कि डोकलाम मुद्दा केवल उनका नहीं है बल्कि इसमें चीन और भारत भी जुड़े हैं.
इसी साल जनवरी महीने के दूसरे हफ़्ते में भूटानी और चीनी अधिकारी चीन के दक्षिणी-पश्चिमी शहर कुनमिंग में सीमा विवाद पर बातचीत के लिए मिले थे.
सीमा विवाद को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के बीच थ्री स्टेप रोडमैप पर बात हुई थी.
इस बैठक के बाद भूटान और चीन की ओर से संयुक्त बयान जारी किया गया था.
इस बयान में कहा गया था, ”दोनों पक्षों के बीच सीमा विवाद पर गंभीरता से बात हुई. इसके तहत थ्री स्टेप रोडमैप से जुड़े एमओयू को लागू करने पर भी बात हुई है. इस दौरान दोनों पक्ष सकारात्मक सहमति पर पहुँचे हैं. दोनों पक्ष थ्री स्टेप रोडमैप लागू करने पर सहमत हैं. दोनों पक्ष इस बात पर भी सहमत हैं कि दोनों देशों के बीच विशेषज्ञ समूहों के बीच बैठकें बढ़नी चाहिए. दोनों देशों के बीच 25वीं सीमा वार्ता पारस्परिक सहमति की तारीख़ पर होगी.”
भूटानी पीएम की इस घोषणा से पहले भी वहाँ की सरकार ने यह नहीं कहा था कि चीन भूटान के भीतर गाँव बना रहा है. भूटानी पीएम ने यह भी कहा है कि चीन के साथ सीमा विवाद कुछ और बैठकों में सुलझ जाएगा.
बर्नेट का कहना है कि भूटानी पीएम को लग रहा है कि चीन ने अपने इलाक़े में गाँव बनाए हैं तो अंतरराष्ट्रीय, चीनी और भूटानी नक़्शे जो लंबे समय से प्रचलन में हैं, वे ग़लत हैं. बर्नेट का कहना है कि या फिर ये हो सकता है कि भूटान ने मान लिया है कि जिन इलाक़ों में चीन ने गाँव बनाए हैं, वे उनके नहीं थे.
कहा जा रहा है कि भूटानी पीएम की इस घोषणा से भारत के लिए स्थिति और जटिल हो गई है.
2017 में डोकलाम में चीन और भारतीय सैनिक आमने-सामने थे.
तब भूटान ने डोकलाम में चीन की ओर से सीमा पर अवैध निर्माण की शिकायत की थी.
इसके अलावा भूटान भारत की सुरक्षा चिंताओं को लेकर संधि से बंधा हुआ है. भूटान भारत की सहमति के बिना किसी तीसरे देश से सीमा को लेकर समझौता नहीं कर सकता है.
बेल्जियम के अख़बार को दिए इंटरव्यू में भूटानी पीएम ने डोकलाम को लेकर कहा है, ”डोकलाम भारत, चीन और भूटान के बीच ट्राइजंक्शन है. यह मुद्दा केवल भूटान के लिए नहीं है. इसमें हम तीन हैं.”
बर्नेट ने लिखा था, ”चीन को भूटान में ज़मीन की ज़रूरत नहीं है. चीन भूटान को मजबूर कर रहा है कि वह जहाँ चाहे वहाँ उसे ज़मीन मिल जाए ताकि भारत से टकराव की स्थिति में उसे सामरिक बढ़त मिले. चीन भारत से लगी सीमाओं पर भी यथास्थिति बदल रहा है. चीन ने 1962 में भारत पर हमला किया था. इसके अलावा 1967 और 1987 में दोनों देशों के बीच सैन्य संघर्ष हो चुका है. 2020 में पूर्वी लद्दाख के गलवान में भारत और चीन के 24 सैनिक आपसी झड़प में मारे गए थे.”
बर्नेट ने लिखा था, ”चीन ने पहले भी भूटान से होते हुए रोड बनाने की कोशिश की थी लेकिन यह मुख्य रूप से पश्चिमी इलाक़े में था और इसमें सीमित सफलता ही मिली थी. 2017 में दक्षिणी-पश्चिमी भूटान के डोकलाम में चीन ने रोड बनाने की कोशिश की थी. डोकलाम इलाक़ा भारत से लगा है. इसे लेकर 73 दिनों तक भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने रहे थे. संभव है कि भूटान ने चीन के हवाले अपनी ज़मीन चुपचाप कर दी और बाहरी दुनिया को नहीं बताया.”
भूटान के प्रधानमंत्री के बयान को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उस बयान से भी जोड़ा जा रहा है, जिसमें उन्होंने चीन के कथित अतिक्रमण को लेकर कहा था, ”न वहाँ कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है.”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान की विपक्षी पार्टियों ने काफ़ी आलोचना की थी.
मोदी सरकार की ओर से ही कहा गया था कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन ने अप्रैल 2020 से पहले की यथास्थिति बदल दी है. भारत जिन इलाक़ों में अप्रैल 2020 से पहले पट्रोलिंग करता था, उसे चीन ने रोक दिया था.
चीन के विस्तारवाद पर जियोस्पेशल इंटेलिजेंस रिसर्चर डेमिएन सायमन लगातार लिखते रहते हैं. उन्होंने भूटान के पीएम की हालिया घोषणा पर लिखा है, ”अगर आप भूटान के सरकारी नक्शे में पश्चिमी भूटान को देखेंगे तो पता चल जाएगा कि चीन के ये सारे गाँव भूटानी इलाक़े में हैं.”
भूटान के प्रधानमंत्री लोटे छृंग इंटरव्यू में कहा है, ”चीन के साथ सीमा पर कोई बड़ी समस्या नहीं है. लेकिन कुछ इलाक़ों में अभी सीमांकन बाक़ी है. अभी इस पर बात चल रही है और सीमांकन होना बाक़ी है. भूटान से एक प्रतिनिधिमंडल चीन गया था और अब हम चीन से एक टेक्निकल टीम के भूटान आने का इंतज़ार कर रहे हैं. एक या दो बैठक के बाद हम शायद बचे इलाक़ों में सीमांकन के लिए सक्षम होंगे.”
भारत की चिंता
चीन के कुनमिंग में भूटानी प्रतिनिधिमंडल के दौरे के बाद भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा थिम्पू गए थे. कहा जा रहा है कि विनय क्वात्रा समझना चाहते थे कि भूटानी प्रतिनिधिमंडल ने चीन से सीमा विवाद पर क्या बात की थी.
विनय क्वात्रा के दौरे से पहले पिछले साल अप्रैल में विदेश मंत्री एस जयशंकर और जुलाई में भारत के सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे भूटान गए थे.
विशेषज्ञों का मानना है कि क्वात्रा का दौरा बताता है कि भूटान और चीन की बढ़ती क़रीबी से भारत चिंतित है.
इसी साल जनवरी महीने में साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के रिसर्च फेलो अमित रंजन ने कहा था, ”भूटानी प्रतिनिधिमंडल के चीन से लौटने के बाद विनय क्वात्रा का थिम्पू जाना बताता है कि भारत चिंतित है. भूटान के भीतर सरकार पर दबाव है कि वह चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाए, भले इससे भारत के हितों को नुक़सान पहुँचे. भूटान के एक तबके का मानना है कि भारत पर भूटान की इतनी निर्भरता ठीक नहीं है. इस तबके का मानना है कि चीन के साथ मज़बूत संबंध होने चाहिए और ट्रेड भी शुरू होना चाहिए. भूटान एक लैंडलॉक्ड देश है. भूटान का 75 फ़ीसदी आयात भारत से है और 95 फ़ीसदी निर्यात भी भारत से ही है.”
भूटान के प्रधानमंत्री का यह इंटरव्यू, पिछले महीने भूटान के प्रतिनिधिमंडल की चीन में बैठक और थिम्पू में चीनी प्रतिनिधिमंडल के आगामी दौरे को भारत के लिए चिंताजनक बताया जा रहा है.
कहा जा रहा है कि इस नई प्रगति से भारत की सुरक्षा चिंताएँ बढ़ सकती हैं. डोकलाम में चीन की गतिविधियों से भारत सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जो सिक्किम और पश्चिम बंगाल के उत्तर-पूर्वी इलाक़े को जोड़ता है, की सुरक्षा को लेकर चिंतित है.
जुलाई 2022 में भूटान के विदेश मंत्री टांडी दोरजी ने स्पष्ट किया था कि डोकलाम ट्राइजंक्शन पर चीन के साथ द्विपक्षीय वार्ता नहीं होगी बल्कि इस पर त्रिपक्षीय वार्ता होगी.
द्विपक्षीय वार्ता को लेकर भूटानी विदेश मंत्री ने कहा था, ”जब भी कोई फ़ैसला होगा तो भूटान, भारत और चीन के हितों का ख़्याल रखा जाएगा. किसी के हितों को कमतर नहीं देखा जाएगा. इसीलिए इस पर किसी भी समझौते को लेकर जल्दबाज़ी नहीं है.”
चीन और भारत दोनों के लिए भूटान को काफ़ी अहम माना जाता है. भूटान के उत्तर-पश्चिम में तिब्बत है. वहीं भारत के उत्तर-पूर्वी इलाक़े से भूटान की सीमा लगती है.
भूटान में भारत के राजदूत रहे पवन कुमार वर्मा कहते हैं कि भारत की सुरक्षा के लिए भूटान काफ़ी अहम है और यह बफ़र स्टेट की तरह है.
पवन कुमार वर्मा कहते हैं कि भूटान में चीन की मौजूदगी बढ़ती है तो यह भारत के लिए बहुत ही निराशाजनक होगा. भूटान और चीन के बीच सीमा विवाद दशकों पुराना है.
चीन भूटान में 764 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर अपना दावा करता है. पवन वर्मा कहते हैं कि भारत और भूटान के बीच की दोस्ती बहुत ही गहरी है और भारत भूटान से संबंध में छोटे-मोटे मुद्दों पर ध्यान नहीं देता है.
भूटान को अब भी भारत के वफ़ादार के तौर पर देखा जाता है. चीन और भूटान के बीच राजनयिक संबंध अब भी नहीं है.
कई विश्लेषकों का मानना है कि अगर डोकलाम में चीन को बढ़त मिली, तो यह भारत की सुरक्षा के लिहाज़ से ठीक नहीं होगा.
अगर भारत और चीन में जंग छिड़ती है, तो डोकलाम के ज़रिए चीन के लिए भारत में पहुँचना और आसान हो जाएगा.