चंद्रयान-3: चांद पर 14 दिन में छाएगा अंधेरा, प्रज्ञान और विक्रम का क्या होगा

Hindi New Delhi

DMT : नई दिल्ली : (26 अगस्त 2023) : –

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने बीते बुधवार चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपने उपग्रह चंद्रयान-3 को उतारकर इतिहास रच दिया है.

इसरो ने इस मिशन के तहत एक लैंडर और एक रोवर को चांद की ज़मीन पर उतारा है जिन्हें विक्रम और प्रज्ञान नाम दिया गया है.

विक्रम और प्रज्ञान को अलग-अलग तरह के छह उपकरणों से लैस किया गया है जिनका काम चांद पर अलग-अलग तरह के प्रयोग करके नयी जानकारियां जुटाना है.

लेकिन ये काम सिर्फ़ अगले 14 दिनों तक जारी रह सकेगा. क्योंकि विक्रम और प्रज्ञान की ज़िंदगी सिर्फ़ इतनी ही है.

इसरो ने अपनी वेबसाइट पर बताया है कि विक्रम और प्रज्ञान की मिशन लाइफ़ सिर्फ़ 14 दिनों लंबी है. लेकिन ऐसा क्यों है?

विक्रम-प्रज्ञान की ज़िंदगी 14 दिन लंबी?

इसरो ने चंद्रयान-3 के साथ चांद पर पहुंचे विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर की ज़िंदगी सिर्फ़ 14 दिन बताई है.

इसकी वजह विक्रम और प्रज्ञान का सौर ऊर्जा पर आधारित होना है.

ये दोनों सूर्य की रोशनी को ऊर्जा में तब्दील करके अपना काम करते हैं.

अगर आपने विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर की तस्वीरें देखी हैं तो आपका ध्यान उन पर लगे सोलर पैनल पर गया होगा.

विक्रम लैंडर को तीन तरफ़ से सोलर पैनल से ढका गया है ताकि उसे हर हालत में पर्याप्त रोशनी मिल सके.

लेकिन ऐसा सिर्फ़ अगले 14 दिनों तक ही संभव है क्योंकि 14 दिन के अंदर चांद का ये हिस्सा अंधेरे में डूब जाएगा.

क्योंकि चांद का एक दिन पृथ्वी के 14 दिन जितना लंबा होता है. चांद पर बीती 23 अगस्त को सूरज उगा था जो पांच-छह अगस्त तक ढल जाएगा.

इसके बाद चांद पर तापमान में भारी गिरावट आएगी. क्योंकि चांद पर पृथ्वी की तरह वायुमंडल नहीं है जो पृथ्वी को रात के वक़्त गर्म रखता है.

ऐसे में चांद पर सूरज उगने और ढलने के साथ तापमान में बेहद तेजी के साथ भारी अंतर आता है.

इसरो प्रमुख डॉ एस सोमनाथ ने बताया है, “सूरज ढलने के साथ ही सब कुछ अंधेरे में डूब डाएगा. तापमान माइनस 180 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाएगा. ऐसे में इस तापमान पर इन सिस्टम्स का सुरक्षित बने रहना संभव नहीं है.”

क्या बचे रहने की कोई उम्मीद है?

इस 14 दिन लंबी अंधेरी रात के बाद चांद पर एक बार फिर सूरज उगेगा. और तापमान में गिरावट दर्ज की जाएगी.

लेकिन क्या सूरज की रोशनी एक बार फिर प्रज्ञान और विक्रम में नयी जान फूंक पाएगी?

इसरो के प्रमुख डॉ सोमनाथ ने ये कहा है कि इस तापमान पर इनके सुरक्षित बचे रहने की संभावनाएं काफ़ी कम हैं.

हालांकि, उन्होंने ये भी कहा, “अगर ये सिस्टम सुरक्षित बने रहते हैं तो हम बेहद ख़ुश होंगे. अगर ये दोबारा सक्रिय हो जाते हैं तो हम इनके साथ एक बार फिर काम शुरू कर पाएंगे. और हम उम्मीद करते हैं कि ऐसा ही हो.”

लेकिन अगर चांद पर एक बार फिर सुबह होने के बाद भी प्रज्ञान और विक्रम सक्रिय नहीं हो सके तो क्या होगा.

इंटरनेट पर चंद्रयान 3 से जुड़ी जानकारियां हासिल करने की कोशिश कर रहे लोगों ने एक सवाल बार-बार पूछा है कि क्या प्रज्ञान और विक्रम वापस धरती पर आएंगे. और क्या वे अपने साथ चांद के नमूने लेकर आएंगे.

इसका जवाब है – नहीं.वह कहते हैं, “इस मिशन को चांद के नमूने संग्रहित करने वाले मिशन नहीं हैं. इन पर मौजूद उपकरण लेज़र की मदद से जानकारी जुटाएंगे जिसका विश्लेषण किया जाएगा. अभी भारत के पास वो तकनीक उपलब्ध नहीं है जिससे वो चांद पर अपना मिशन भेजकर सैंपल के साथ वापस लेकर आ सके. हाल ही में चीन ने इस काम को बेहद सफलता के साथ करके दिखाया है. इसके पहले अमेरिका और रूस भी ऐसा कर चुके हैं.”

चांद पर उल्टी गिनती शुरू

ऐसे में चांद पर पहुंचने के साथ ही प्रज्ञान रोवर और विक्रम लैंडर की उल्टी गिनती शुरू हो गयी है.

लेकिन इतने कम समय में ये दोनों चांद से किस तरह की जानकारियां भेज पाएंगे.

पल्लव बागला कहते हैं, “चंद्रयान – 3 के चांद पर पहुंचने के बाद मेरी इसरो के प्रमुख डॉ सोमनाथ से बात हुई है. उन्होंने बताया है कि इन 14 दिनों में चांद पर जो काम होना था, वो शुरू हो चुका है. थोड़े समय में उनकी तस्वीरें आना भी शुरू हो जाएंगी.”

इसरो की ओर से लगातार विक्रम लैंडर की ओर से खींची हुई तस्वीरें भेजा जाना जारी है. इसके साथ ही एक वीडियो भी जारी किया गया है जिसमें लैंडर चांद की सतह की ओर बढ़ता दिख रहा है.

यही नहीं, सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें प्रज्ञान रोवर विक्रम लैंडर से बाहर निकलता दिख रहा है.

लेकिन तस्वीर खींचने से इतर ये उपकरण चांद पर क्या काम करेंगे.

अगले 14 दिन क्या होगा?

इन 14 दिनों में से दो दिन पहले ही गुज़र चुके हैं. और अब 12 दिन शेष हैं. पिछले दो दिनों में इन उपकरणों की टेस्टिंग की गयी है.

इसरो की ओर से लगातार आ रहे अपडेट्स में बताया जा रहा है कि सभी सिस्टम ठीक हैं.

बागला बताते हैं, “चांद की सतह पर पहुंचने के बाद पहले सारे उपकरणों की जांच की जाती है. देखा जाता है कि वे ठीक से चल रहे हैं या नहीं, एक दूसरे के साथ संवाद करने में सक्षम हैं या नहीं. और इसके बाद वैज्ञानिक प्रयोग शुरू होंगे. विक्रम की ओर से काम शुरू किया जा चुका है क्योंकि इसरो के पास ज़्यादा वक़्त नहीं है. केवल 14 दिन का वक़्त है जिसमें सभी वैज्ञानिक प्रयोगों को पूरा करना है.”

वे कहते हैं, “क्योंकि अभी चांद पर दिन है और सूरज निकला हुआ है. ये उपकरण सोलर पावर पर आधारित हैं. सूरज ढलने के बाद ये काम करना बंद कर देंगे. इनकी बैटरियों में जान नहीं बचेगी. ऐसे में इसरो ने तुरंत इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है.”

नासा के मुताबिक़, चांद के दक्षिणी ध्रुव एक रहस्यों से भरी हुई जगह है जहां काम करना बेहद जटिल है.

ऐसे में क्या प्रज्ञान को आने वाले दिनों में किसी तरह की चुनौतियों का सामना करना होगा?

बागला बताते हैं, “इसरो की ओर से एक तस्वीर जारी हुई है जिसमें विक्रम की एक टांग दिख रही है जो कि टूटी नहीं है. और दूसरी टांगे भी सुरक्षित हैं. इसके साथ ही ज़मीन दिख रही है जो कि काफ़ी सपाट लग रही है. ये बहुत ख़ुशी की बात है क्योंकि अब रोवर अपना काम अच्छे से कर पाएगा.”

छह पहियों वाले इस रोवर का वजन मात्र 26 किलोग्राम है जो बेहद धीमी गति से चलता है.

लेकिन चांद की सतह पर चलते हुए प्रज्ञान रोवर आने वाले दो हफ़्तों में क्या-क्या करेगा.

बागला बताते हैं, “प्रज्ञान चांद के दक्षिणी ध्रुव की ज़मीन पर चलेगा जहां अब तक दुनिया के किसी देश का कोई उपकरण नहीं चला है. ऐसे में उसकी ओर से जो भी डेटा भेजा जाएगा वो अपने आप में बेहद ख़ास और नयी जानकारी होगी.”

“ये चांद की सतह की रासायनिक संरचना के बारे में बताएगा कि चांद की ज़मीन में किस तत्व की कितनी मात्रा मौजूद है. और चांद की पूरा भूगर्भशास्त्र एक जैसा नहीं होगा. ऐसे में अभी तक चांद के जो भी टुकड़े आए हैं, वे चांद के भूमध्यरेखीय क्षेत्र से आए हैं. ऐसे में ये जो भी डेटा भेजेंगे, वो अपने आप में नया होगा.”

ये काम रोवर पर मौजूद एलआईबीएस यानी लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप करेगा.

यह एक अत्याधुनिक विधि है जिसका उपयोग किसी स्थान पर तत्वों और उनके गुणों की पहचान करने के लिए किया जाता है.

यह उपकरण चंद्रमा की सतह पर बहुत तीव्र लेजर फायर करेगा, इसके चलते सतह की मिट्टी तुरंत पिघल कर प्रकाश उत्सर्जित करेगी.

इसके वेबलेंथ का विश्लेषण करके एलआईबीएस सतह पर मौजूद रासायनिक तत्वों और सामग्रियों की पहचान करेगा.

रोवर पर स्थापित यह एलआईबीएस उपकरण चंद्रमा की सतह पर मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, पोटेशियम, कैल्शियम, टाइटेनियम और आयरन जैसे तत्वों की उपस्थिति का पता लगाएगा.

रोवर पर लगा एक अन्य उपकरण एपीएक्सएस यानी अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर है.

यह चंद्रमा की सतह पर मिट्टी और चट्टानों में प्रचुर मात्रा में रासायनिक यौगिकों का पता लगाएगा.

यह चंद्रमा की सतह और उसकी मिट्टी के बारे में हमारी समझ को बढ़ाकर भविष्य के प्रयोगों को और अधिक तेज़ी से आगे बढ़ाने का रास्ता तैयार करेगा.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *