इसराइल पर हमास के हमले से क्या फ़लस्तीनी राष्ट्र का ख़्वाब टूट जाएगा?

Hindi International

DMT : इसराइल  : (10 अक्टूबर 2023) : –

क्या आपको अहसास है कि इसराइल पर हमले से आपने फ़लस्तीनियों के हक़ के लिए संवेदना रखने वाले कई लोगों को अलग-थलग कर दिया है, आपने शायद उनकी बात को कई सालों पीछे छोड़ दिया है?

ब्रिटेन के एक टीवी चैनल के इस सवाल के जबाव में हमास के राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रमुख बासेम नाइम ने कहा कि उन्हें इस बात का भरोसा है कि दुनिया के करोड़ों लोग उनका समर्थन करते रहेंगे.

लेकिन उनका ये दावा कितना सही है?

साल 1948 में बनने के बाद ये पहली बार है कि इसराइल के भीतर इतने बड़े स्तर पर हिंसा हुई है.

गज़ा इलाक़े में क़रीब 20 लाख लोग रहते हैं, जिनमें से बड़ी तादाद में लोग मानवीय मदद पर निर्भर हैं. दोनो तरफ़ मरने वालों में बच्चे, बूढ़े और महिलाएँ शामिल हैं.

संगीत फ़ेस्टिवल में नाचते, झूमते युवाओं का क़त्लेआम, परिवारों, बच्चों, महिलाओं को अग़वा करके ले जाते, लोगों के घरों में घुसकर उन्हें मारते हमास चरमपंथियों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर करोड़ों लोगों ने देखी और दुनिया सकते में हैं.

दूसरी ओर जवाबी कार्रवाई में गज़ा में मारे गए लोगों की तस्वीरें और वीडियो भी सोशल मीडिया पर आ रहे हैं और वे भी काफ़ी व्यथित करने वाले हैं.

नॉर्वेजियन रिफ़्यूजी काउंसिल के जान एगलैंड ने एक टीवी चैनल से बातचीत में कहा, “ये तस्वीरें दुनिया भर में फैल रही हैं. ये फ़लस्तीनी कॉज (उनके हक़ की बात) के लिए बहुत बुरा है, क्योंकि इसका बड़ा बदला लिया जाएगा.”

हमास ने अग़वा किए गए बंधकों को मारने की धमकी दी है.

यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, मध्य-पूर्व के देशों में जहाँ फ़लस्तीनियों के पक्ष में समर्थन के नारे लगे हैं, भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी सहित दुनिया के कई मुल्कों की सरकारों ने हमास के हमलों की आलोचना की है.

हमास के हमलों का असर ये है कि फ़लस्तीन को दुनिया के हिस्सों से मिलने वाली आर्थिक मदद पर “पुनिर्विचार” होने की ख़बरें आ रही हैं.

याद रहे कि फ़लस्तीन के लिए ये आर्थिक मदद बेहद महत्वपूर्ण है.

यूरोपीय कमिशन ने कहा कि फ़लस्तीन को दी जाने वाली यूरोपीय यूनियन की आर्थिक मदद पर तुरंत पुनिर्विचार होगा ताकि मदद के पैसे का किसी भी तरह इसराइल पर हमले में इस्तेमाल न हो.

ऑस्ट्रिया ने कहा है कि वो हमास के हमलों के जवाब में फ़लस्तीनियों को दी जाने वाली क़रीब दो करोड़ डॉलर की आर्थिक मदद रोक रहा है.

जर्मनी में भी फ़लीस्तीनियों को दी जाने वाली आर्थिक मदद पर बहस चल रही है और एक मंत्री ने कहा कि इसराइल पर हमले के बाद फ़लस्तीनी इलाक़ों से “हमारे पूरे संबंध की समीक्षा की जाएगी.”

कई बड़े हॉलीवुड सितारों ने खुलकर इसराइल का समर्थन किया है.

अमेरिका ने इसराइल को हथियार भेजने शुरू कर दिए हैं और इलाक़े में लड़ाकू विमान और नौसेना के युद्धपोत भेज रहा है ताकि दूसरा कोई देश और चरमपंथी गुट मौक़े का फ़ायदा उठाते हुए इसराइल पर हमला न कर सके.

सवाल उठ रहे हैं कि गज़ा पर शासन करने वाले हमास की अपनी जनता के प्रति क्या ज़िम्मेदारी है और लोगों पर होने वाले आर्थिक असर या फिर इसराइली हमले की ज़िम्मेदारी कौन लेगा?

इसराइल और फ़लस्तीनीयों की चली आ रही ये लंबी लड़ाई ज़मीन को लेकर है.

अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसराइल और फ़लस्तीन दो अलग देशों की बात करता है, जो एक दूसरे के साथ शांति से रहें, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद ऐसा नहीं हो पाया है.

फ़लस्तानियों का कहना है कि दशकों से इसराइल उनके साथ अमानवीय सुलूक कर रहा है और इसराइली लगतार उनकी ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे हैं.

इसराइल का अभी भी वेस्ट बैंक इलाक़े में कब्ज़ा है लेकिन वो गज़ा से निकल चुका है.

पूर्वी येरुशलम, गज़ा और वेस्ट बैंक में रहने वाले इसराइली और फ़लीस्तीनियों के बीच तनावपूर्ण माहौल रहा है.

गज़ा में फ़लीस्तानी चरमपंथी गुट हमास हमास का शासन है.

हमास और इसराइल के बीच पूर्व में कई बार लड़ाइयाँ हुई हैं. इसराइल और मिस्र गज़ा की सीमाओं पर कड़ाई से नियंत्रण करते हैं ताकि उनके मुताबिक़ हमास के पास हथियार न पहुँचे, लेकिन इससे फ़लीस्तीनियों को काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

फैलती इसराइली आबादी भी फ़लीस्तीनी ग़ुस्से का कारण है.

लीबिया, जॉर्डन और माल्टा में भारतीय राजदूत रहे अनिल त्रिगुनायत के मुताबिक़, “जब तक फ़लीस्तीनी मुद्दा हल नहीं हो जाता, तब तक ये मसला जारी रहेगा. अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ऐसा रास्ता निकालना चाहिए ताकि दोनो पक्ष साथ रह पाएँ.”

प्रोफ़ेसर एके पाशा के मुताबिक़, “फ़लस्तीनी कॉज़ एक भावनात्मक मुद्दा हो चुका है, और पूरी दुनिया में ही नहीं, या फिर अरब देशों या फ़लस्तीन के लोग मे ही नहीं, मुसलमानों में ही नहीं, जिस पर भी उपनिवेशवाद या साम्राज्यवाद का असर पड़ा है, या जो कोई भी शोषित हैं, उनमें ये फ़लीस्तीनीयों के लिए समर्थन धीरे धीरे फैल रहा है.”

लेकिन द हिंदू की पूर्व संपादक मालिनी पार्थ सारथी इससे सहमत नहीं.

वो कहती हैं, “कोई भी नस्लीय और क्षेत्रीय लड़ाई हिंसा से नहीं सुलझाई जा सकती. मासूम नागरिकों पर क्रूर हमले करने से ये लड़ाई और बिड़ेगी. इसराइल ने कहा कि ये उसका 9/11 का क्षण है और वो बातचीत की मेज़ पर कभी नहीं लौटेगा, और वो बदले की कार्रवाई करेगा जिसका फ़लस्तीनी लोगों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा. और फिर दोनों तरफ़ के चरमपंथ आगे आ जाएँगे और सैन्य विकल्प पूरे ज़ोर-शोर से हावी हो जाएगा.”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *