इसराइल को लेकर अरब के इस्लामिक देशों में बढ़ी हलचल, सऊदी अरब की अहम पहल

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DMT : इसराइल  : (10 अक्टूबर 2023) : –

इसराइल पर हमास के हमले के बाद अब अरब देशों में हलचल बढ़ती दिख रही है.

एक ओर सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान ने फ़लस्तीनी क्षेत्र के राष्ट्रपति के अलावा मिस्र और जॉर्डन के साथ बातचीत की है, तो दूसरी तरफ़ अरब लीग में शामिल देशों के विदेश मंत्रियों की बुधवार को आपात बैठक बुलाई गई है.

क्राउन प्रिंस ने फ़लस्तीनी क्षेत्र के राष्ट्रपति महमूद अब्बासी से बात की है और उनसे कहा, ”सऊदी अरब फ़लस्तीनियों के अधिकार, उनकी उम्मीदों, महत्वाकांक्षाओं और शांति के लिए साथ खड़ा है.”

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस ने पिछले महीने ही फॉक्स न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में कहा था कि इसराइल से रिश्ते सामान्य करने की दिशा में वह हर दिन मुकाम के क़रीब पहुँच रहे हैं. दूसरी तरफ़ फ़लस्तीनी नहीं चाहते हैं कि सऊदी अरब इसराइल से संबंध कायम कर उसकी संप्रभुता को मान्यता दे.

पूरे मामले में ईरान मुखर होकर फ़लस्तीनियों के लिए बोल रहा है. ऐसा प्रतीत हो रहा है कि ईरान फ़लस्तीनियों के अधिकारों की वकालत करने में सऊदी अरब से आगे निकल रहा है. इस्लामिक देशों के भीतर इस्लामिक दुनिया के नेतृत्व को लेकर भी प्रतिद्वंद्विता रही है.

इस प्रतिद्वंद्विता में फ़लस्तीनियों का मुद्दा बेहद अहम है.

इस बीच ईरान और इराक़ ने फ़लस्तीन में हुए ताज़ा घटनाक्रम की समीक्षा के लिए मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी की मीटिंग बुलाई है.

शनिवार तड़के हमास ने ग़ज़ा की तरफ़ से दक्षिणी इसराइल पर बड़ा हमला किया था. हमास ने दावा किया कि उसने क़रीब सात हज़ार रॉकेट दागे. इसके बाद इसराइल ने ‘जंग’ का एलान कर दिया.

हमास के हमले में इसराइल को बड़ा नुक़सान हुआ. हमास के हमले में इसराइल के कम से कम 900 लोगों की मौत हुई है. उसके कई नागरिकों को बंदी भी बनाया गया है. उसके बाद जवाबी कार्रवाई में सैकड़ों फ़लस्तीनियों के मारे जाने की ख़बर है.

बीते कुछ सालों में बहरीन, सूडान, यूएई जैसे कई अरब देशों के साथ इसराइल के संबंध कायम हुए थे. इस बीच अमेरिका की मध्यस्थता में इसराइल और सऊदी अरब के संबंधों में नरमी के भी संकेत दिखने लगे थे.

सऊदी अरब हमेशा से फ़लस्तीन और उसके लोगों का समर्थन करता आया है. लेकिन इस बीच रिपोर्ट ये भी आई की फ़लस्तीन के मुद्दे को किनारे कर सऊदी अरब अब इसराइल के साथ रिश्ते कायम करने पर राज़ी हो सकता है. बदले में उसे अमेरिका के साथ रक्षा सौदा करना था.

सऊदी प्रिंस ने इन देशों से की बात

क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की जॉर्डन के किंग अब्दुल्लाह द्वितीय और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फ़तह अल-सिसी से फ़ोन पर बात की.

सऊदी प्रेस एजेंसी की ओर से जारी बयान के अनुसार, तीनों नेताओं के बीच इस बात पर सहमति बनी कि गज़ा और उसके आसपास के इलाक़ों में इसराइल को आगे बढ़ने और इस क्षेत्र में उसके विस्तार को रोकने की कोशिशें तेज़ करनी होंगी.

गज़ा में इसराइली सेना की कार्रवाई को रोकने पर चर्चा के लिए अरब लीग के विदेश मंत्रियों ने बुधवार को एक आपातकालीन बैठक बुलाई है.

अरब लीग में इराक़, जॉर्डन, सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, मोरक्को, ओमान, क़तर सहित 22 सदस्य देश हैं.

एक बयान में कहा गया है कि ये असाधारण सत्र फ़लस्तीन की ओर से मिले निवेदन के बाद बुलाया गया है.

अरब लीग के डिप्टी चीफ़ होसाम ज़की ने एक बयान में कहा, काहिरा में होने वाली “असामान्य बैठक” में “अरब और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक कार्रवाई के रास्ते” तलाशे जाएंगे, क्योंकि शनिवार के हमले के बाद इसराइल गज़ा में हमले कर रहा है.”

हमास के हमले के बाद अरब लीग के प्रमुख अहमद अबुल घेत रूस के दौरे पर पहुँचे हैं. उन्होंने यहाँ रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ़ से मुलाक़ात की.

लावरोफ़ ने कहा कि फ़लस्तीन को अलग राष्ट्र बनाना ही इसराइल में शांति का सबसे विश्वसनीय समाधान है.

फ़लस्तीनियों के हथियारबंद इस्लामिक चरमपंथी समूह हमास को अमेरिका और ईयू ने आतंकवादी संगठन के तौर पर लिस्ट किया है जबकि तुर्की इसे राजनीतिक आंदोलन की तरह देखता है. पश्चिम के देश तुर्की को उसकी ज़मीन पर हमास की मौजूदगी को लेकर चेतावनी देते रहे हैं.

सऊदी अरब और हमास के रिश्ते भी उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. 1980 के दशक में हमास के बनने के बाद से सऊदी अरब के साथ उसके सालों तक अच्छे संबंध रहे.

2019 में सऊदी अरब में हमास के कई समर्थकों को गिरफ़्तार किया गया था. इसे लेकर हमास ने बयान जारी कर सऊदी अरब की निंदा की थी. हमास ने अपने समर्थकों को सऊदी में प्रताड़ित करने का भी आरोप लगाया था. 2000 के दशक में हमास की क़रीबी ईरान से बढ़ी.

ईरान ने की मुस्लिम देशों से एक साथ आने की अपील

फ़लस्तीन में ताज़ा घटनाक्रम पर ईरान के विदेश मंत्री हुसैन आमिर अब्दुलाहियान ने इराक़ के विदेश मंत्री फुआद हुसैन से फ़ोन पर बात की है.

ईरान के विदेश मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, दोनों पक्षों ने फ़लस्तीन के पीड़ित लोगों की सहायता के लिए इस्लामी देशों के बीच सहयोग की ज़रूरत पर ज़ोर दिया.

साथ ही दोनों नेताओं ने इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी की आपातकालीन बैठक बुलाए जाने की भी मांग की.

ईरान के विदेश मंत्री ने कहा कि फ़लस्तीनियों को हमले और क़ब्ज़े को रोकने का अधिकार है.

आमिर अब्दुलाहियान ने ये भी कहा कि इसराइल की ओर से इस्लाम के पवित्र स्थलों और अल-अक़्सा मस्जिद में जो कार्रवाई हो रही है, उसके बाद फ़लस्तीनी समूहों का प्रतिक्रिया देना सामान्य बात है.

ईरान के विदेश मंत्री ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के केयरटेकर विदेश मंत्री आमिर मुत्ताक़ी से भी बात की. इस दौरान उन्होंने फ़लस्तीन के समर्थन में सभी मुस्लिम देशों के एकजुट होने की बात कही.

वहीं हंगरी के विदेश और ट्रेड मंत्री से बातचीत में आमिर अब्दुल्लाहियान से पश्चिमी एशिया, खासतौर पर फ़लस्तीन में तेज़ी से बदलते हालात पर चर्चा की.

कई मीडिया रिपोर्टों में हमास के हमले के पीछे ईरान का हाथ बताया जा रहा है.

अमेरका के ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ अख़बार के मुताबिक़ ईरान के इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड के अधिकारियों की निगरानी में हुई बेरूत की बैठक में हमास के इस हमले की बारीक तैयारियां की गई थीं.

हालांकि अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि उसे इस हमले में ईरान के सहयोग का सुबूत नहीं मिला है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने सीएनएन को एक इंटरव्यू में कहा,”अभी तक हमें इस बात के सुबूत नहीं मिले हैं, ईरान ने हमास के हमले में सहयोग किया है. लेकिन इतना तय है कि दोनों के बीच काफ़ी दिनों से संबंध रहे हैं.”

हमास और ईरान की क़रीबी

ईरान से क़रीबी के कारण सऊदी अरब से हमास की दूरी बढ़ना लाज़िम था क्योंकि सऊदी अरब और ईरान के बीच दुश्मनी है. ऐसे में हमास किसी एक का ही क़रीबी रह सकता है.

इसराइल का जितना खुला विरोध ईरान करता है, उतना मध्य-पूर्व में कोई नहीं करता है. ऐसे में हमास और ईरान की क़रीबी स्वाभाविक हो जाती है.

2007 में फ़लस्तीनी प्रशासन के चुनाव में हमास की जीत हुई और इस जीत के बाद उसकी प्रासंगिकता और बढ़ गई थी.

लेकिन हमास और सऊदी अरब के रिश्ते भी स्थिर नहीं रहे. जब 2011 में अरब स्प्रिंग या अरब क्रांति शुरू हुई तो सीरिया में भी बशर अल-असद के ख़िलाफ़ लोग सड़क पर उतरे. ईरान बशर अल-असद के साथ खड़ा था और हमास के लिए यह असहज करने वाला था.

इस स्थिति में ईरान और हमास के रिश्ते में दरार आई. लेकिन अरब क्रांति को लेकर सऊदी अरब का रुख़ मिस्र को लेकर जो रहा, वो भी हमास को रास नहीं आया.

सऊदी अरब मिस्र में चुनी हुई सरकार का विरोध कर रहा था. ऐसे में फिर से हमास की तेहरान से करीबी बढ़ी.

2019 के जुलाई में हमास का प्रतिनिधिमंडल ईरान पहुँचा और उसकी मुलाक़ात ईरान के सर्वोच्च नेता अयतोल्लाह अली ख़ामेनेई से हुई थी. सऊदी अरब में हमास के नेताओं को मुस्लिम ब्रदरहुड से भी जोड़ा जाता है.

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