DMT : लखनऊ : (01 जुलाई 2023) : –
उत्तर प्रदेश सरकार आजकल प्रतियोगिता परीक्षाओं में नकल रोकने जो नया तरीका आजमा रही है उसकी ख़ासी चर्चा हो रही है.
बीते दिनों यहां हुई ग्राम विकास अधिकारी भर्ती परीक्षा के दौरान पुलिस की स्पेशल टास्क फ़ोर्स ने लगभग क़रीब 200 सॉल्वर्स को पकड़ा था.
टास्क फोर्स ने पहली बार इन सॉल्वर्स को पकड़ने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया था
नक़ल की कोशिश करने वालों ने क्या तकनीक इस्तेमाल की?
यूपीएसटीएफ़ ने दावा किया कि पूरे राज्य से पकड़े गए करीब 200 लोग सॉल्वर थे.
पुलिस ने बताया कि उन्होंने आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से फ़ेस मिक्सिंग की जिसकी मदद से वे अभियुक्तों को पकड़ पाए.
नक़ल करने में किसी तरह की मदद करने वाले को सॉल्वर कहा जाता है. इस परीक्षा में फ़ेस मिक्सिंग का इस्तेमाल कर नकली छात्र को पेपर देने के लिए बिठाने की कोशिश की गई.
नक़ल करने के इस तरीक़े में परीक्षा के प्रवेश पत्र (एडमिट कार्ड) में लगी छात्र की तस्वीर के साथ छेड़छाड़ कर सॉल्वर को उसकी जगह बिठाने की कोशिश की जाती है.
इसमें फ़ोटोशॉप सॉफ़्टवेयर के एडवांस वर्ज़न के इस्तेमाल से परीक्षार्थी और एक सॉल्वर की तस्वीरों को मिलाकर एक नई तस्वीर बनाई जाती है. इसे ही फ़ेस मास्किंग कहते हैं, और इसी नई तस्वीर का इस्तेमाल एडमिट कार्ड में किया जाता है.
इस तस्वीर से परीक्षक यानी इनविजीलेटर चकमा खा सकते हैं और ऐसा होने की स्थिति में वास्तविक परीक्षार्थी की जगह सॉल्वर को परीक्षा में बैठने की अनुमति मिल जाती है.
कैसे पकड़े गए सॉल्वर
यूपी पुलिस की एसटीएफ़ ने नक़ल करने के इरादे से परीक्षा में बैठने वाले सॉल्वर्स के इस तरीक़े को समझ कर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से ही इसे उजागर करने का काम शुरू किया.
ग्राम विकास अधिकारी की भर्ती से जुड़ी यूपीएसएसएससी की परीक्षा वो पहला मौक़ा था जिसमें फ़ेस मास्किंग को लेकर एसटीएफ़ की बड़े पैमाने पर कार्रवाई देखने को मिली और उन्हें उसमें सफलता भी हासिल हुई.
अगर किसी के चेहरे के फ़ोटो के साथ फ़ेस मिक्सिंग का इस्तेमाल किया गया है और एसटीएफ़ के डेटाबेस में पहले से उस अमुक व्यक्ति की तस्वीर मौजूद है तो रेटिना और फ़ेशियल रेकग्निशन के तरीक़ों से फ़ेस मास्किंग वाली तस्वीर को डिटेक्ट कर लेता है.
परीक्षा आयोजित करने वाली एजेंसी पहले से ही आधार कार्ड की जानकारी मंगवा लेती है. तो उसके पास पहले से परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों की तस्वीरों का एक डेटाबेस मौजूद होता है.
ये डेटाबेस एसटीएफ़ को परीक्षा के दौरान ही केंद्र से मिल जाता है. फिर एडमिट कार्ड की तस्वीर और डेटाबेस में मौजूद फ़ोटो का मिलान किया जाता है.
एसटीएफ़ का कहना है कि चूंकि परीक्षा के कारण लाइव जांच होती है जिसके लिए डेटा ट्रांसफ़र रियल टाइम में होना ज़रूरी है ताकि सॉल्वर को मौक़े पर ही पकड़ा जा सके.
एसटीएफ़ ने बताया कि इस बार परीक्षा के एक घंटे के अंदर ही सभी छात्रों की तस्वीरों का डेटा मिल गया और उसकी जांच शुरू हो गई.
इससे एसटीएफ़ को ये अनुमान मिल गया कि हर परीक्षा में क़रीब कितने फ़र्ज़ी कैंडिडेट बैठ रहे हैं.
सॉल्वर की पहचान करने के बाद उनसे एसटीएफ़ और स्थानीय पुलिस पूछताछ करती है. फिर संदिग्ध सॉल्वर के मोबाइल फ़ोन के डेटा एनालिसिस से और सबूत इकट्ठा किए जाते हैं.
एसटीएफ़ के सूत्र कहते हैं कि यूपी में यह पहली बार हुआ है कि इतने बड़े पैमाने पर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से सॉल्वर पकड़े गए हैं.
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से परीक्षा में मॉनिटरिंग
यूपीएसटीएफ़ की मानें तो अब प्रदेश में आयोजित परीक्षाओं में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की बदौलत मॉनिटरिंग भी संभव है.
कई परीक्षाएं ऑनलाइन भी होती हैं. ऑनलाइन परीक्षा में इंविजिलेटर, छात्र की स्क्रीन नहीं देख सकते हैं, तो वे उसके चेहरे के हाव भाव देखकर संदिग्ध सॉल्वर का पता लगा सकते हैं.
ऐसी ऑनलाइन परीक्षा में यहां आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर आधारित कई ऐसे टूल्स मौजूद होते हैं जिनकी मदद से ये पता लग सकता है कि परीक्षार्थी इंटरनेट या उसे रिमोटली एक्सेस तो नहीं कर रहा या कहीं उसने अपनी स्क्रीन तो शेयर तो नहीं की हुई है.
नक़ल रोकने की थ्री टियर एप्रोच
उत्तर प्रदेश एसटीएफ़ प्रदेश में नक़ल रोकने की त्रिस्तरीय कोशिश करती है. पुलिस परीक्षा से पहले, उसके दौरान और उसके बाद नक़ल करने वाले लोगों, उसके तरीक़ों और उसके ढांचे को नाकाम करने की कोशिश करती हैं.
यूपीएसटीएफ़ ने सरकारी परीक्षाएं करवाने वाले बोर्ड, कमीशन और संस्थानों के साथ हाथ मिलाकर नक़ल रोकने के प्रयास किए हैं और आगे भी करने जा रहे हैं.
साथ में एसटीएफ़ उन एजेंसियों पर भी कार्रवाई कर रही है जो कड़े मानकों के बावजूद पेपर लीक रोकने में नाकाम रहे हैं और परीक्षा के प्रश्नपत्र ख़ुद छापने के बजाए किसी और कंपनी को दे रहे हैं.
एसटीएफ़ सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की संलिप्तता की भी जांच करती है और सबूत मिलने पर कार्रवाई करती हैं.
एसटीएफ़ के मुताबिक़ नक़ल उन सेंटर्स में होने की संभावना ज़्यादा होती है जो दूरदराज़ के इलाके में होते हैं और जहाँ सुरक्षा देना या निगरानी रखना आसान नहीं होता है. अधिकतर ऐसे परीक्षा केंद्र ज़िला मुख्यालय से दूर होते हैं.
नक़ल माफिया ऐसे परीक्षा केंद्रों को अपना निशाना बनाते हैं. वो इन परीक्षा के संचालन से जुड़े कुछ लोगों के साथ मिलीभगत कर के, किसी तरह प्रश्नपत्र बाहर निकलवा कर, चैट जीपीटी या अन्य आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस सॉफ़्टवेयर के उपयोग से कुछ सॉल्वर्स से उसका जवाब लिखवा कर परीक्षा दे रहे छात्रों तक पहुंचाने जैसे विभिन्न तरीक़ों का इस्तेमाल करते हैं.
एसटीएफ़ के सूत्र बताते हैं की इसमें परीक्षा प्रबंधकों की भूमिका भी सामने आई है. 5 से 6 प्रबंधकों को जेल भी भेजा जा चुका है. जिन स्कूलों के परीक्षा केंद्रों पर नक़ल होते पाई गई, उन्हें चिह्नित कर ब्लैकलिस्ट किया गया.
पहले नक़ल के मामले में अक्सर सिर्फ सॉल्वर या छात्र पकड़े जाते थे, लेकिन एसटीएफ़ का कहना है कि अब उन्होंने नक़ल के पूरे तंत्र को तोड़ने की कोशिश की है.
यूपीएसटीएफ़ ने सॉल्वर गैंग और नक़ल माफ़िया का डेटाबेस भी बनाया है. इसकी मदद से परीक्षाओं के पहले ही उन लोगों पर निगरानी रखने का काम शुरू कर दिया जाता है.
उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित नया नक़ल क़ानून
उत्तर प्रदेश विधि आयोग ने नक़ल से निपटने के लिए एक नए क़ानून का मसौदा तैयार कर योगी सरकार को सौंप दिया है.
मसौदा बाकायदा एक सर्वे के बाद तैयार किया गया जिसमें उसकी खासी ज़रूरत महसूस की गई.
राज्य विधि आयोग ने कहा कि बार-बार नक़ल की घटनाओं से सरकार की छवि धूमिल होती है और मेहनत से परीक्षा देने वाले छात्रों को काफ़ी नुकसान झेलना पड़ता है.
इस क़ानून में पकड़े जाने वाले सॉल्वर को 14 साल तक की सज़ा और 25 लाख तक के दंड का प्रावधान रखा गया है.