ऑस्ट्रेलिया बड़ी संख्या में भारतीय क्यों जा रहे हैं?

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DMT : ऑस्ट्रेलिया  : (19 जून 2023) : –

रोहित सिंह का बोलने का लहज़ा अपनी मां से बिलकुल अलग है.

उनका परिवार मेलबर्न से क़रीब एक घंटे की दूरी पर मोरनिंगटन पेनिनसुला में रहता है. वो दूसरी पीढ़ी के प्रवासी हैं.

पिछले दो सालों से रोहित अपने परिवार के बार को चलाने में परिजनों की मदद कर रहे हैं.

उनके माता-पिता 1990 के दशक में ऑस्ट्रेलिया पहुंचे थे और अवनी नाम के इस बुटीक वाइनरी की शुरुआत की थी.

रोहित सिंह कहते हैं कि पिछले एक दशक में मेलबर्न में भारतीय मूल के लोगों की तादाद तेज़ी से बढ़ी है और अब उन्होंने अवनी में भारतीय खाने और शराब के साथ आयोजन करने शुरू कर दिए हैं.

इस रेस्त्रां में नए-नए प्रयोग कर रहे शेफ़ और रेस्त्रां मालिक उन 710,000 भारतीयों में शामिल हैं जो ऑस्ट्रेलिया में रह रहे हैं.

ऑस्ट्रेलिया दुनिया में सर्वाधिक प्रवासी नागरिकों वाले देशों में भी शामिल है.

पिछले कुछ सालों में ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों की तादाद तेज़ी से बढ़ी है और देश के सबसे नई जनगणना के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में भारतीय दूसरा सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय हैं.

ऑस्ट्रेलिया में अब भारतीय मूल के लोगों की संख्या चीन के लोगों से अधिक है और वो सिर्फ़ अंग्रेज़ों से ही पीछे हैं.

ऑस्ट्रेलिया में भारतीय प्रवासियों की इस नई खेप के पीछे तकनीकी क्षेत्र भी है. ऑस्ट्रेलिया में भारत के प्रशिक्षित कामगरों की मांग बढ़ी है.

आरती बेटीगेरी एक पत्रकार हैं और इस समय ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीयों के यहां पलने-बढ़ने के अनुभवों पर एक संकलन को संपादित कर रही हैं.

आरती कहती हैं कि उनके परिजन 1960 के दशक में ऑस्ट्रेलिया पहुंचे थे और उस समय यहां के सार्वजनिक जीवन में भारतीय कम ही दिखाई देते थे.

वो कहती हैं, “उस समय किसी दूसरे भारतीय को ऑस्ट्रेलिया में देख लेना दुर्लभ बात होती थी.”

वो कहती हैं, “लेकिन अब हालात बिल्कुल ही बदल गए हैं. अब वो यहां लगभग हर क्षेत्र में नौकरियों में हैं, कारोबार करते हैं और राजनीति में भी क़दम रख रहे हैं.”

हाल ही में चुनी गई न्यू साउथ वेल्स की सरकार में भारतीय मूल के चार राजनेता हैं. इनमें डेनियल मूखे भी शामिल हैं जो इस साल मार्च में किसी ऑस्ट्रेलियाई प्रांत के राज-कोष का अथ्यक्ष बनने वाले भारतीय मूल के पहले राजनेता भी हैं.

हालांकि भारतीयों को अभी लंबा सफ़र तय करना है. अन्य गैर-यूरोपीय देश के नागरिकों की तरह भारतीयों को भी ऑस्ट्रेलिया की संघीय राजनीति में अभी अपनी जगह बनानी है. फ़िलहाल उनकी संख्या बहुत अधिक नहीं है.

आरती कहती हैं कि सॉफ्ट पॉवर के निर्यात ने दोनों देशों के बीच संबंधों को मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाई है.

हाल ही में सिडनी की एक रैली में, जिसमें हज़ारों भारतीयों ने हिस्सा लिया था, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ऑस्ट्रेलिया के टीवी शो मास्टरशेफ़ ऑस्ट्रेलिया, क्रिकेट और फ़िल्में भारत में लोगों को क़रीब ला रही हैं.

विश्लेषक मानते हैं कि नरेंद्र मोदी की पार्टी भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने, जो साल 2014 से भारत की केंद्रीय सत्ता में हैं, ने ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाई है. 2014 में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था. ये तीन दशकों के भीतर किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला ऑस्ट्रेलियाई दौरा था.

मई में मोदी की ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान दोनों देशों ने प्रवासी समझौते की घोषणा की थी जिसके बाद छात्रों, शिक्षाविदों, पेशेवरों के लिए ऑस्ट्रेलिया और भारत की यात्रा करना और वहां नौकरी करना आसान हो जाएगा.

भारत और आस्ट्रेलिया के नेताओं ने दोनों देशों के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते को पूरा करने के लिए भी प्रतिबद्धता ज़ाहिर की. पिछले साल अप्रैल में हुए समझौते के नतीजे इस समझौते की दिशा तय करेंगे.

इसी साल मार्च में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अलबानीज़ पदभार संभालने के बाद अपने पहले दौरे पर भारत आए थे. इस यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी और अलबानीज़ ने भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सुरक्षा सहयोग बढ़ाने, आर्थिक सहयोग, शिक्षा और द्विपक्षीय कारोबार पर चर्चा की थी.

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और पब्लिक पॉलिसी रिसर्च संस्थान सीयूटीएस इंटरनेशनल के साथ काम करने वाले प्रदीप एस मेहता कहते हैं, “प्रधानमंत्रियों और मंत्रियों के बीच समय-समय पर हो रही मुलाक़ातों से दोनों देशों के संबंध मज़बूत हो रहे हैं. ऐसा पहले नहीं देखा गया था.”

विश्लेषक मानते हैं कि इस साझेदारी से दोनों ही देशों को फ़ायदा हो रहा है. भारत और ऑस्ट्रेलिया चार सदस्यों वाले क्वाड समूह में भी शामिल है जिसका मक़सद भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभाव को कम करना है.

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच संबंध करोड़ों साल पुराने हैं. एक समय गोंडवाना नाम का सुपर-कांटिनेंट कभी वर्तमान दोनों राष्ट्रों को शारीरिक रूप से जोड़ता था. लेकिन ऑस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के लोगों के प्रवासन का इतिहास बहुत पुराना नहीं हैं. भारत से सबसे पहले प्रवासी 1800 के दशक में ऑस्ट्रेलिया पहुंचे थे. ये श्रमिकों या उस समय भारत पर शासन कर रहे ब्रिटेन के सेवकों के रूप में ऑस्ट्रेलिया आये थे.

1900 के दशक में, अलग-अलग क्षेत्रों के और विभिन्न काम करने वाले भारतीयों ने ऑस्ट्रेलिया पहुंचना शुरू किया और 1973 में व्हाइट ऑस्ट्रेलिया नीति के ख़त्म होने के बाद भारतीयों की तादाद तेज़ी से बढ़ी. ये एक नस्लवादी नीति थी जिसके तहत अश्वैत प्रवासियों को ऑस्ट्रेलिया नहीं आने दिया जाता था.

ऑस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के लोगों पर एक किताब के सह-लेखक और शोधकर्ता जयंत बापट कहते हैं, “उस समय भी ऑस्ट्रेलिया इस बात का ध्यान रखता था कि किस तरह के प्रवासियों को स्वीकार करना है. सिर्फ प्रशिक्षित कामगार और पेशेवर जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, टेक क्षेत्र के कर्मचारी, नर्सों और शिक्षा क्षेत्र में काम करने वालों का ही स्वागत किया जाता था. इन लोगों को भी बहुत कम संख्या में ऑस्ट्रेलिया आने दिया जाता था.”

असल बदलाव साल 2006 में आया जब जॉन हॉवर्ड के नेतृत्व वाली सरकार ने भारतीय छात्रों के लिए ऑस्ट्रेलिया के दरवाज़े खोल दिए. उन्होंने ऐसे नीतिगत बदलाव भी किए जिनसे भारतीय छात्रों के लिए ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता लेना आसान हो गया.

बापट कहते हैं, “अस्थायी प्रवासियों में अभी भी भारतीय छात्रों की संख्या बहुत ज़्यादा है. डिग्री मिलने के बाद इनमें से बहुत से छात्रों को ऑस्ट्रेलिया में ही बसने दिया जाता है.”

लेकिन तनाव भी हुए हैं. साल 2000 में सिडनी और मेलबर्न में भारतीय मूल के छात्रों पर हिंसक हमले दुनियाभर में सुर्ख़ियां बनें थे.

बड़ी तादाद में भारतीय प्रवासियों ने इसके ख़िलाफ़ ऑस्ट्रेलिया में प्रदर्शन भी किए थे. भारत ने भी इस पर तीव्र प्रतिक्रिया दी थी और ऑस्ट्रेलिया की स रकार ने परिस्थितियों को सुधारने के लिए क़दम उठाये थे. हालांकि अब भी कभी-कभार हिंसा और उत्पीड़न के मामले सामने आ जाते हैं.

प्रवासन के समर्थक कहते हैं कि एशिया और दक्षिण एशियाई देशों से आने वाले प्रवासी ऑस्ट्रेलिया में अपनी संस्कृति भी लेकर आते हैं और इससे यहां के समाज में विविधता आती है. प्रवासन ने ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में भी मदद की है. लेकिन विपक्ष के कुछ नेताओं ने ऑस्ट्रेलिया की प्रवासन नीतियों की आलोचना भी की है. उनका तर्क है कि कम वेतन पर काम करने वाले प्रवासी ऑस्ट्रेलियाई लोगों की नौकरियां ले रहे हैं और ये संसाधनों पर भी दबाव डालते हैं.

वहीं भारतीय मूल के कुछ लोग कहते हैं कि वो ऑस्ट्रेलिया के लोगों को भारतीय संस्कृति और विरासत के बारे में जानकारियां देकर ऑस्ट्रेलिया के समाज को अधिक समावेशी बनाने में मदद कर रहे हैं.

सिडनी में पली बढ़ी 24 साल की दिव्या सक्सेना भारत के पारंपरिक नृत्यों कथक और भरतनाट्यम को ऑस्ट्रेलिया में अधिक चर्चित करना चाहती हैं.

वो कहती हैं कि सिडनी में भारतीय समुदाय फल-फूल रहा है और उन जैसे रचनात्मक लोग दक्षिण एशियाई समुदाय के इर्द-गिर्द खड़े अवरोधकों को तोड़ रहे हैं और कारोबार में भी एक दूसरे की मदद करते हैं.

दिव्या सक्सेना ने हाल ही में भारतीय ऑस्ट्रेलियाई मेक अप आर्टिस्ट और सोशल मीडिया पर चर्चित हस्ती रोवी सिंह के एक डांस रूटीन को कोरियोग्राफ़ किया. रॉवी सिंह दक्षिण एशियाई समुदाय के प्रति लोगों के पूर्वाग्रहों को तोड़ने की कोशिशें कर रही हैं.

सक्सेना कहती हैं, “हमारे परिजन के पास यहां कुछ भी नहीं था. उन्होंने अपने दम पर शुरुआत की. उनका लक्ष्य नौकरियों में बनें रहना था ताकि वो अपने बच्चों को अच्छा जीवन दे सकें. इसलिए वो सिर झुकाकर काम करते रहे और यहां घुलने मिलने की कोशिश करते रहे. लेकिन हमारी पीढ़ि के लोगों को ऐसा भार नहीं उठाना पड़ रहा है.”

“हम अपनी पसंद के रास्ते पर चलने के लिए आज़ाद हैं और मेरे जैसे बहुत से लोग एक ऐसा ऑस्ट्रेलिया बनाने का प्रयास कर रहे हैं जहां भविष्य की पीढ़ियों का और अधिक स्वागत किया जाए.”

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