फ़लस्तीनी युवाओं में क्यों बढ़ रही है अपने नेताओं से नाराज़गी?

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DMT : फ़लस्तीन  : (19 जून 2023) : – फ़लस्तीन में 30 साल से कम उम्र वाले नौजवानों को मताधिकार का प्रयोग करने का कभी मौक़ा नहीं मिला और उनमें से अधिकांश का फ़लस्तीनी नेतृत्व पर भरोसा नहीं बचा है.

इस बारे में पूछे जाने पर 17 साल की याना तमीमी कहती हैं, “दो राष्ट्र समाधान बिना वास्तविक समस्या को संज्ञान में लिए पश्चिम द्वारा आगे बढ़ाया गया, बहुत घिसा पिटा विचार है. सवाल है कि सीमाएं कहां हैं?”

याना कहती हैं कि वो दुनिया की सबसे युवा मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं. सात साल की उम्र में ही वो कब्ज़े वाले वेस्ट बैंक में स्थित अपने कस्बे नबी सालेह में विरोध प्रदर्शनों को अपनी मां के फ़ोन से कवर करने लगी थीं.

वो कहती हैं, “मैं इसराइली सुरक्षा बलों द्वारा अक्सर रात और दिन में छापेमारी की रिपोर्टिंग करती रही हूँ. स्कूल के साथ ये थोड़ा मुश्किल रहता है. लेकिन कोई न कोई घटना होती रहती है.”

दिलचस्प है कि याना के जन्म के बाद से फ़लस्तीनी इलाक़े में एक भी आम चुनाव या राष्ट्रपति चुनाव नहीं हुए हैं. पिछला चुनाव 2006 में हुआ था, जिसका मतलब है कि 34 साल से नीचे के किसी व्यक्ति को वोट देने का मौक़ा नहीं मिला.

पैलेस्टीनियन सेंटर फ़ॉर पॉलिसी एंड सर्वे रिसर्च ने क़रीब एक दशक तक 18 से 29 साल तक के नौजवानों की बदलती राय पर नज़र रखी है. इसने इन आंकड़ों को ख़ास तौर पर बीबीसी के साथ साझा किए हैं.

अध्ययन के नतीजे साफ़ तौर दिखाते हैं कि बीते एक दशक में नौजवानों के बीच फ़लस्तीनी अथॉरिटी (पीए) और दो राष्ट्र समाधान के प्रति समर्थन घटा है.

बिना चुनाव 14 साल से सत्ता में

सेंटर के डायरेक्टर डॉल खलील शिकाकी के अनुसार, “नौजवानों में जो असंतोष दिख रहा है उसकी बड़ी वजह है राजनीतिक तंत्र की वैधता की कमी. हमारे पास एक राष्ट्रपति है जो बिना चुनाव पिछले 14 सालों से सत्ता में है.”

वो कहते हैं, “हमारा राजनीतिक तंत्र एकाधिकारवादी है, ‘वन मैन शो’ जैसा. सिद्धांत में हमारे पास संविधान है लेकिन हकीक़त में हम इसका पालन नहीं कर रहे हैं.”

दूसरी तरफ़ बीते मार्च में हुए सबसे ताज़ा पोल के अनुसार, 30 साल से कम उम्र के नौजवानों में हथियारबंद टकराव को लेकर समर्थन सबसे अधिक है. 56% प्रतिशत इसराइल के ख़िलाफ़ इंतिफादा या हथियारबंद संघर्ष की ओर लौटना चाहते हैं.

पिछले साल उत्तरी वेस्ट बैंक के कस्बों नाब्लुस और जेनिन में कई हथियारबंद चरमपंथी संगठन उभर आए हैं जो पीए के सुरक्षा बलों की वैधता को चुनौती दे रहे हैं.

इनमें सबसे चर्चित है लायंस डेन और जेनिन ब्रिगेड्स, जिन्होंने वेस्ट बैंक में इसराइली सुरक्षा बलों और बस्तियों के ख़िलाफ़ हमलों को अंजाम दिए हैं.

हम जेनिन ब्रिगेड्स की ट्रेनिंग एक्सरसाइज को देखने एक रात गए थे जो जेनिन रिफ्यूज़ी कैंप की भूलभुलैया वाली सड़कों पर हो रही थी.

इस ग्रुप का हर सदस्य एम 16 असॉल्ट राइफ़ल से लैस था और सिर से लेकर पांव तक काले कपड़े में थे.

इनमें अधिकांश लोग 20-30 साल की उम्र के थे और इनका दावा है कि वे बड़े चरमपंथी ग्रुपों से स्वतंत्र हैं और फ़लस्तीनी इलाक़े में किसी राजनीतिक दल से इनका कोई संबंध नहीं है.

इनमें से एक 28 साल के मुजाहिद ने हमें बताया कि उनकी पीढ़ी मौजूदा नेतृत्व को नहीं मानती.

उनके मुताबिक, “फ़लस्तीनी नौजवानों का पिछले 30 सालों के राजनीतिक नुस्ख़ों से भरोसा उठ चुका है.”

क्या वो हिंसा को समाधान मानते हैं, इसके जवाब में उन्होंने कहा, “ये यहां रोज़ाना की बात है, दिन के उजाले में निर्दयता से हत्याएं होती हैं. कब्ज़ाधारी सिर्फ हिंसा की भाषा समझते हैं.” वो इसराइल का ज़िक्र कर रहे थे.

राजनीतिक पारा

चूंकि यहां आम चुनाव या राष्ट्रपति चुनाव नहीं होते तो यूनिवर्सिटी में होने वाला चुनाव राजनीतिक सरगर्मी को मापने का एक ज़रिया है.

वेस्ट बैंक में स्थित बर्ज़ीट यूनिवर्सिटी और यहां के छात्र संघ के चुनाव को अक्सर इस इलाक़े में आम राजनीतिक मूड का प्रतिबिंब माना जाता है.

यहां भी लोगों की भावनाओं में बदलाव नज़र आता है. फ़लस्तीनी अथॉरिटी में सबसे बड़ी पार्टी फ़तह के छात्र विंग स्टूडेंट फ़तह पार्टी का इसके मुख्य प्रतिद्वंद्वी हमास के मुकाबले यहां दबदबा रहता है. पिछले साल ये भी जाता रहा.

डेमोक्रेटिक फ़्रंट फ़ॉर लिबरेशन ऑफ़ पैलेस्टाइन पार्टी के छात्र प्रतिनिधि मुस्तफ़ा कहते हैं, “ये एक शॉक था.” वो भी 2022 के छात्र चुनावों में खड़े हुए थे.

वो कहते हैं, “आम तौर पर फ़तह और हमास के बीच एक या दो सीटों का अंतर हुआ करता था इस बार हमास के लिए ये 10 दस था.”

छात्र संघ में हमास की भारी जीत असल में फ़लस्तीनी अथॉरिटी के ख़िलाफ़ गुस्से के रूप में देखा जा रहा है.

पिछले महीने दोबारा ऐसा हुआ लेकिन पिछली बार के मुकाबले थोड़ा कम बहुमत मिला.

मुस्तफ़ा कहते हैं, “बेशक़, अगर आम चुनाव हुए होते तो यही नतीजे आने थे क्योंकि जिस तरह फ़लस्तीनी अथॉरिटी चीजों के साथ पेश आ रही है, उससे लोग तंग आ चुके हैं. चाहे राजनीतिक गिरफ़्तारी हो, टैक्स हो, हत्याएं हो या बोलने की आज़ादी का गला घोंटा जा रहा हो.”

दो राष्ट्र समाधान असल समस्या से मुंह चुराने जैसा

जो लोग बड़े हो गए हैं और फ़लस्तीनी इलाक़े में भविष्य में भी उनके बोलने की आज़ादी के बहुत मौके नज़र नहीं आते हैं, इससे वजूद को लेकर सवाल भी खड़े होते हैं.

माजिद मसरल्लाह क़त्तन फ़ाउंडेशन में क्यूरेटर हैं, जोकि कल्चर और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली एक स्वतंत्र संस्था है.

वो वेस्ट बैंक के शहर रामल्लाह में रहते हैं लेकिन उनका जन्म उत्तरी इसराइल के एक कस्बे में हुआ था.

इसराइल की आबादी में 20% अरब मूल के लोग हैं और वे खुद को ‘फ़्रॉम 48’ से पहचान जाना पसंद करते हैं. असल में ये शब्द उन फ़लस्तीनियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो 1948 में इसराइल के गठन के बाद भी वहीं रहे. इसकी वजह से वे खुद को फ़लस्तीनी समाज से अलग थलग पाते हैं.

माजिद कहते हैं, “वेस्ट बैंक में मुझे फ़लस्तीनी तंत्र का हिस्सा नहीं माना जाता. फ़लस्तीनी चुनावों में वोट करने का मुझे अधिकार नहीं है. और वास्तव में इसराइली क़ानून के मुताबिक़, मुझे रामल्लाह में रहने का भी अधिकार नहीं है.”

इसराइली क़ानून सुरक्षा कारणों से नागरिकों को वेस्ट बैंक के फ़लस्तीनी इलाक़े में जाने पर प्रतिबंध लगाता है.

फ़लस्तीनी राजनीतिक प्रक्रिया में बिना किसी अधिकार के माजिद को भी इस दो राष्ट्र समाधान में कोई भरोसा नहीं है.

वो कहते हैं, “असल में दो राष्ट्र समाधान, फ़लस्तीनियों के लगातार हो रहे उत्पीड़न को छिपाने के लिए इस्तेमाल होने वाले राजनीतिक प्रोजेक्ट की लाश भर है.”

“अगर मुझसे पूछें, ये राष्ट्र के बारे में नहीं है. पांच साल का एक बच्चा भी नक्शा देखकर बता सकता है कि ये कामयाब नहीं होने वाला.”

मैंने माजिद से पूछा कि वो क्या उम्मीद करते हैं, उन्होंने कहा, “जिस तरह का प्रशासन चल रहा है उसके ख़िलाफ़ पिछले एक दशक से कई बार आवाज़ उठाने की कोशिश की गई, जिसे पूरी तरह दबा दिया गया. मैं दिल से कह सकता हूं कि फ़लस्तीनी अथॉरिटी हमारी ही पीढ़ी नहीं बल्कि समूचे फ़लस्तीन की आवाज़ का प्रतिनिधित्व नहीं करता.”

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